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फरीदाबादः कुम्हारों पर भी लॉकडाउन की मार, ठप हुआ मटके का कारोबार - लॉकडाउन में मटके का कारोबार फरीदाबाद

कोरोना वायरस ने के चलते हुए लॉकडाउन ने जहां हर सेक्टर में वित्तीय संकट पैदा कर दिया है. वहीं मिट्टी का मटका बनाने वाले कुम्हार भी इससे बच नहीं सके हैं. लॉकडाउन के चलते मटके का काम ही ठप पड़ा है.

Faridabad Lockdown effect on potters
Faridabad Lockdown effect on potters
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Published : Apr 20, 2020, 8:55 PM IST

फरीदाबादः गर्मियों में लोग मिट्टी से बने मटके में रखा पानी को बड़े चाव से पीते हैं. क्योंकि मटके का पानी शीतल और स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है. लेकिन इस बार लोगों को पानी रखने के लिए मटके नहीं मिल पाएंगे. क्योंकि लॉकडाउन के चलते इन मिट्टी के मटकों को बनाने वाले ही खुद वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं. लॉकडाउन ने मिट्टी की मटके बनाने वाले कुम्हारों का धंधा चौपट कर दिया है.

कुम्हारों की रोजी-रोटी पर संकट

ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कुम्हारों ने बताया कि वह पिछले काफी समय से मटके बनाने का काम कर रहे हैं. लेकिन इस तरह से उनका धंधा पहली बार चौपट हुआ है. उन्होंने कहा कि लॉकडाउन होने के कारण उनके बने हुए माल को कोई खरीदने नहीं आ रहा है और बिक्री ना होने के कारण वह मटके बनाने के लिए कच्चा माल नहीं खरीद पा रहे हैं. जिस कारण उनकी रोजी-रोटी पर संकट गहराया हुआ है.

कुम्हारों पर भी लॉकडाउन की मार, ठप हुआ मटके का कारोबार

आर्थिक तंगी में फंसे कुम्हार

उन्होंने कहा कि पहले अप्रैल के महीने में उनके यहां से मटकों की खरीद शुरू हो जाती थी और यह मटके दिल्ली, फरीदाबाद, पलवल सहित कई स्थानों पर भेजे जाते थे. वह रोजाना लगभग 200 मटके तैयार किया करते थे. लेकिन जब से लॉकडाउन हुआ है, तब से कोई मटका तैयार नहीं किया जा रहा है. क्योंकि पुराने माल की बिक्री ना होने से उनके पास नया कच्चा माल खरीदने तक का पैसा नहीं है.

उन्होंने कहा कि मटके का सीजन 4 महीने चलता है और इन्हीं चार महीनों में कमाकर वह पूरे साल गुजारा करते हैं. लेकिन कोरोना चलते इस बार सब कुछ खत्म हो चुका है. उन्होंने कहा कि वह जैसे-तैसे परिवार का गुजारा कर रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि जब यह लॉकडाउन खत्म होगा, तब शायद उनके मटकों खरीद शुरू हो पाए.

ये भी पढ़ेंः- चंडीगढ़ः रेहड़ी लगाने वालों पर दोहरी मार, करीब 5 महीने से बंद है काम

फरीदाबादः गर्मियों में लोग मिट्टी से बने मटके में रखा पानी को बड़े चाव से पीते हैं. क्योंकि मटके का पानी शीतल और स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है. लेकिन इस बार लोगों को पानी रखने के लिए मटके नहीं मिल पाएंगे. क्योंकि लॉकडाउन के चलते इन मिट्टी के मटकों को बनाने वाले ही खुद वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं. लॉकडाउन ने मिट्टी की मटके बनाने वाले कुम्हारों का धंधा चौपट कर दिया है.

कुम्हारों की रोजी-रोटी पर संकट

ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कुम्हारों ने बताया कि वह पिछले काफी समय से मटके बनाने का काम कर रहे हैं. लेकिन इस तरह से उनका धंधा पहली बार चौपट हुआ है. उन्होंने कहा कि लॉकडाउन होने के कारण उनके बने हुए माल को कोई खरीदने नहीं आ रहा है और बिक्री ना होने के कारण वह मटके बनाने के लिए कच्चा माल नहीं खरीद पा रहे हैं. जिस कारण उनकी रोजी-रोटी पर संकट गहराया हुआ है.

कुम्हारों पर भी लॉकडाउन की मार, ठप हुआ मटके का कारोबार

आर्थिक तंगी में फंसे कुम्हार

उन्होंने कहा कि पहले अप्रैल के महीने में उनके यहां से मटकों की खरीद शुरू हो जाती थी और यह मटके दिल्ली, फरीदाबाद, पलवल सहित कई स्थानों पर भेजे जाते थे. वह रोजाना लगभग 200 मटके तैयार किया करते थे. लेकिन जब से लॉकडाउन हुआ है, तब से कोई मटका तैयार नहीं किया जा रहा है. क्योंकि पुराने माल की बिक्री ना होने से उनके पास नया कच्चा माल खरीदने तक का पैसा नहीं है.

उन्होंने कहा कि मटके का सीजन 4 महीने चलता है और इन्हीं चार महीनों में कमाकर वह पूरे साल गुजारा करते हैं. लेकिन कोरोना चलते इस बार सब कुछ खत्म हो चुका है. उन्होंने कहा कि वह जैसे-तैसे परिवार का गुजारा कर रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि जब यह लॉकडाउन खत्म होगा, तब शायद उनके मटकों खरीद शुरू हो पाए.

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