फरीदाबादः हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारियों ने फॉर्मोल्डिहाईड मैन्युफैक्चरिंग फैक्ट्रियों को शो कॉज नोटिस भेजना शुरू कर दिया है. बोर्ड का कहना है कि ऐसी फैक्ट्रियों का प्री एनवायरमेंटल क्लीयरेंस के बिना संचालन हो रहा है.
बोर्ड ने ऐसी कंपनियों को प्रबंधक से सवाल किया है कि क्यों ना उन लोगों पर नियमानुसार कार्रवाई की जाए. प्रबंधकों को जवाब देने के लिए बोर्ड ने 7 दिनों का वक्त दिया है. नोटिस का जवाब ना देने पर भी बोर्ड कार्रवाई करेगा. जिसको लेकर फॉर्मोल्डिहाईड मैन्यूफैक्चर्स में हड़कंप मचा हुआ है.
बिना एनओसी चल रही कंपनियां
जानकारों के मुताबिक केंद्र और राज्य सरकारों के आदेशों को धता बताकर इन फैक्ट्रियों का संचालन हो रहा है. ये फैक्ट्रियां बिना एनवायरमेंट क्लीयरेंस के चल रही हैं. इन फैक्ट्रियों के पास आवश्यक एनओसी भी नहीं है. लेकिन प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत के चलते हरियाणा फॉर्मोल्डिहाईड इंफेक्शन का गढ़ बन गया है.
2006 से अब तक 26 कंपनियां लगी
जानकारी के मुताबिक साल 2006 से पहले तक इन फैक्ट्रियों को एनओसी लेने की जरूरत नहीं पड़ती थी. लेकिन 2006 के बाद फॉर्मोल्डिहाईड की फैक्ट्री के लिए एनओसी लेना अनिवार्य कर दिया गया है. बावजूद इसके हरियाणा में 2006 से अब तक फॉर्मोल्डिहाईड की 26 फैक्ट्रियां लग चुकी हैं. फॉर्मोल्डिहाईड केमिकल का इस्तेमाल जूस, परफ्यूम, बिल्डिंग मटेरियल और प्लाईवुड उत्पादन में किया जाता है.
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फैक्ट्रियों से फैल रहा प्रदूषण
आपको बता दें कि 1 लीटर फॉर्म्यूलेट केमिकल बनाने में लगभग डेढ़ सौ लीटर पानी की आवश्यकता पड़ती है. जब एक लीटर केमिकल तैयार होता है, ऐसे में फैक्ट्री संचालक 149 लीटर बचा हुआ जहरीला पानी जमीन के अंदर डालकर भूजल को दूषित कर देते हैं. यह प्रदूषित जल इतना खतरनाक है कि इससे कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां तक हो रही हैं. इन फैक्ट्रियों में बिना सुरक्षा के काम कर रहे मजदूरों को भी अक्सर कैंसर होने की संभावना बनी रहती है.
कंपनियों पर कार्रवाई की मांग
पर्यावरणविद् डॉ एके गौर का कहना है कि इस तरह के केमिकल कंपनियों पर सरकार को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए. क्योंकि एक तरफ जहां ये पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही हैं, तो वहीं दूसरी तरफ लोगों के स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ कर रही हैं.
ऐसी कंपनियों में काम करने वाले लोगों के लिए भी बेहद सावधानी की जरूरत होती है. सरकार को इस बात की भी जांच करनी चाहिए कि कंपनियों में काम कर रहे मजदूरों को कितनी सुरक्षा मुहैया कराई जा रही है.
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