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Tulsi Vivah 2024 Katha : तुलसी विवाह क्यों करवाया जाता है?, जानिए शालिग्राम से विवाह की पूरी कथा

Tulsi Vivah 2024 Katha : तुलसी विवाह का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है. जानिए तुलसी और भगवान शालिग्राम के विवाह के पीछे की कहानी.

Tulsi Vivah 2024 Katha Complete Story of Tulsi vivah Know why did Lord Vishnu Shaligram Marry Tulsi
तुलसी विवाह की कहानी (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Nov 10, 2024, 11:03 PM IST

Tulsi Vivah 2024 Katha : हिंदू धर्म में तुलसी विवाह खासा महत्व रखता है. तुलसी विवाह घर में करवाने से भगवान विष्णु की कृपा और आशीर्वाद मिलता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि तुलसी विवाह आखिर क्यों करवाया जाता है. इसके पीछे क्या मान्यता और कहानी है. आइए आपको बताते हैं.

तुलसी विवाह कब है ? : तुलसी विवाह के दिन मां तुलसी का भगवान शालिग्राम से विवाह करवाया जाता है. करनाल के पंडित विश्वनाथ ने बताया कि तुलसी विवाह इस बार कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी यानि कि 12 नवंबर को शाम 4.04 बजे शुरू होगी, जबकि इसका समापन 13 नवंबर को दोपहर 1 मिनट पर होगा. उदया तिथि के मुताबिक तुलसी विवाह को 12 नवंबर करवाया जाएगा. इस दिन देव उठनी एकादशी का व्रत भी रखा जाता है. शुभ मुहूर्त शाम 5.29 बजे से शाम 7:53 बजे तक रहेगा.

तुलसी विवाह की संपूर्ण कथा : पौराणिक कथाएं कहती हैं कि एक वक्त था, जब सारे देवता जालंधर नाम के राक्षस से खासे परेशान थे. वे इस असुर से छुटकारा पाने के लिए जगत के पालनहार भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उन्हें जालंधर के अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए कहा. विचार विमर्श के बाद समाधान निकला कि अगर जालंधर की पत्नी वृंदा के सतीत्व को नष्ट कर दिया जाए तो जालंधर का अंत हो जाएगा. तब वृंदा के सतीत्व को नष्ट करने के लिए भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण किया और वृंदा को स्पर्श कर दिया जिससे वृंदा का पतिव्रत धर्म खंडित हो गया. इसके साथ ही दैत्य जालंधर की सारी शक्तियां क्षीण हो गई और भगवान शंकर ने जालंधर का वध कर दिया.

वृंदा ने विष्णु को दिया श्राप : कथाओं के मुताबिक जब वृंदा को जालंधर के अंत के बारे में पता चला तो उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया कि वे फौरन पत्थर के बन जाएं. श्री हरि ने वृंदा के श्राप को स्वीकारते हुए पाषाण रूप में परिवर्तित हो गए. तब मां लक्ष्मी ने वृंदा से नारायण को श्राप से मुक्त करने के लिए प्रार्थना की.

शालिग्राम से होता है तुलसी विवाह : मां लक्ष्मी के कहने पर वृंदा ने नारायण को श्राप से मुक्त करते हुए आत्मदाह कर लिया. जिस जगह पर वृंदा भस्म हुई, वहां एक पौधा उग गया, जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी का नाम दिया. फिर भगवान ने कहा कि शालिग्राम नाम से उनका एक रूप इस पत्थर में हमेशा विराजमान रहेगा जिसकी हमेशा पूजा सदैव तुलसी के साथ ही की जाएगी. इसी वजह से हर साल देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम और मां तुलसी का विवाह करवाया जाता है.

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Tulsi Vivah 2024 Katha : हिंदू धर्म में तुलसी विवाह खासा महत्व रखता है. तुलसी विवाह घर में करवाने से भगवान विष्णु की कृपा और आशीर्वाद मिलता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि तुलसी विवाह आखिर क्यों करवाया जाता है. इसके पीछे क्या मान्यता और कहानी है. आइए आपको बताते हैं.

तुलसी विवाह कब है ? : तुलसी विवाह के दिन मां तुलसी का भगवान शालिग्राम से विवाह करवाया जाता है. करनाल के पंडित विश्वनाथ ने बताया कि तुलसी विवाह इस बार कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी यानि कि 12 नवंबर को शाम 4.04 बजे शुरू होगी, जबकि इसका समापन 13 नवंबर को दोपहर 1 मिनट पर होगा. उदया तिथि के मुताबिक तुलसी विवाह को 12 नवंबर करवाया जाएगा. इस दिन देव उठनी एकादशी का व्रत भी रखा जाता है. शुभ मुहूर्त शाम 5.29 बजे से शाम 7:53 बजे तक रहेगा.

तुलसी विवाह की संपूर्ण कथा : पौराणिक कथाएं कहती हैं कि एक वक्त था, जब सारे देवता जालंधर नाम के राक्षस से खासे परेशान थे. वे इस असुर से छुटकारा पाने के लिए जगत के पालनहार भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उन्हें जालंधर के अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए कहा. विचार विमर्श के बाद समाधान निकला कि अगर जालंधर की पत्नी वृंदा के सतीत्व को नष्ट कर दिया जाए तो जालंधर का अंत हो जाएगा. तब वृंदा के सतीत्व को नष्ट करने के लिए भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण किया और वृंदा को स्पर्श कर दिया जिससे वृंदा का पतिव्रत धर्म खंडित हो गया. इसके साथ ही दैत्य जालंधर की सारी शक्तियां क्षीण हो गई और भगवान शंकर ने जालंधर का वध कर दिया.

वृंदा ने विष्णु को दिया श्राप : कथाओं के मुताबिक जब वृंदा को जालंधर के अंत के बारे में पता चला तो उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया कि वे फौरन पत्थर के बन जाएं. श्री हरि ने वृंदा के श्राप को स्वीकारते हुए पाषाण रूप में परिवर्तित हो गए. तब मां लक्ष्मी ने वृंदा से नारायण को श्राप से मुक्त करने के लिए प्रार्थना की.

शालिग्राम से होता है तुलसी विवाह : मां लक्ष्मी के कहने पर वृंदा ने नारायण को श्राप से मुक्त करते हुए आत्मदाह कर लिया. जिस जगह पर वृंदा भस्म हुई, वहां एक पौधा उग गया, जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी का नाम दिया. फिर भगवान ने कहा कि शालिग्राम नाम से उनका एक रूप इस पत्थर में हमेशा विराजमान रहेगा जिसकी हमेशा पूजा सदैव तुलसी के साथ ही की जाएगी. इसी वजह से हर साल देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम और मां तुलसी का विवाह करवाया जाता है.

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