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फरीदाबादः सूरजकुंड मेले में छाई कोयले, राख और गोबर से बनी पेंटिंग्स - सूरजकुंड मेला

1 फरवरी से शुरू हुए 33वें अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले में कई रंग देखने को मिल रहे हैं. मेले में कोयले, राख और गोबर से बनी पेंटिंग्स लोगों को खूब लूभा रही हैं.

गोबर से बनी पेंटिंग्स.
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Published : Feb 6, 2019, 3:30 PM IST

Updated : Feb 7, 2019, 12:01 AM IST

फरीदाबादः 1 फरवरी से शुरू हुए 33वें अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले में कई रंग देखने को मिल रहे हैं. मेले में कोयले, राख और गोबर से बनी पेंटिंग्स लोगों को खूब लूभा रही हैं.

आमतौर पर पेंटिंग बनाने के लिए ब्रश, पानी और रंगों की आवश्यकता होती है लेकिन सूरजकुंड मैं कुछ कलाकार ऐसी भी है जो वो अपनी पेंटिंग्स में कोयला, राख व गोबर का भी इस्तेमाल करते हैं. इनकी सभी पेंटिंग्स आदिवासियों की चित्रकला से जुड़ी हुई हैं. जो चित्रकला भाषा की खोज से पहले प्रयोग में लाई जाती थी.

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सूरजकुंड मेले में बड़ी चौपाल के पास महाराष्ट्र के पालघर से आए आर्टिस्ट संदेश चिंटू राजद और दूसरे आर्टिस्ट ने बताया कि हमारी सभी पेंटिंग्स उस समय से जुड़ी हुई हैं जो सबसे प्राचीन है.

उन्होंने बताया कि उनकी सारी पेंटिंग्स कोयला, राख गोबर का इस्तेमाल करके बनाई गई है. उन्होंने कहा कि वो पिछले 22 साल से विनिंग पेंटिंग्स की दुनिया से जुड़े हुए हैं और उन्होंने अब तक की सारी पेंटिंग्स आदिवासी समय से प्रभावित होकर ही बनाई है.

फरीदाबादः 1 फरवरी से शुरू हुए 33वें अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले में कई रंग देखने को मिल रहे हैं. मेले में कोयले, राख और गोबर से बनी पेंटिंग्स लोगों को खूब लूभा रही हैं.

आमतौर पर पेंटिंग बनाने के लिए ब्रश, पानी और रंगों की आवश्यकता होती है लेकिन सूरजकुंड मैं कुछ कलाकार ऐसी भी है जो वो अपनी पेंटिंग्स में कोयला, राख व गोबर का भी इस्तेमाल करते हैं. इनकी सभी पेंटिंग्स आदिवासियों की चित्रकला से जुड़ी हुई हैं. जो चित्रकला भाषा की खोज से पहले प्रयोग में लाई जाती थी.

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सूरजकुंड मेले में बड़ी चौपाल के पास महाराष्ट्र के पालघर से आए आर्टिस्ट संदेश चिंटू राजद और दूसरे आर्टिस्ट ने बताया कि हमारी सभी पेंटिंग्स उस समय से जुड़ी हुई हैं जो सबसे प्राचीन है.

उन्होंने बताया कि उनकी सारी पेंटिंग्स कोयला, राख गोबर का इस्तेमाल करके बनाई गई है. उन्होंने कहा कि वो पिछले 22 साल से विनिंग पेंटिंग्स की दुनिया से जुड़े हुए हैं और उन्होंने अब तक की सारी पेंटिंग्स आदिवासी समय से प्रभावित होकर ही बनाई है.

Intro:आमतौर पर पेंटिंग बनाने के लिए ब्रश पानी और रंगों की आवश्यकता होती है लेकिन सूरजकुंड मैं कुछ कलाकार ऐसी भी है जो वो अपनी पेंटिंग्स में कोयला राख व गोबर का भी इस्तेमाल करते हैं और इनकी सभी पेंटिंग्स आदिवासियों की चित्रकला से जुड़ी हुई हैं जो चित्रकला भाषा की खोज से पहले प्रयोग में लाई जाती थी


Body:अगर आप भाषा और शब्दों से पहले किस तरह से लोगों को अपना जीवन यापन करते थे किस तरह से वह लोग आपस में विचारों का आदान-प्रदान करते थे और किस तरह से ज्ञान को संजो कर रखा जाता था इसके बारे में जानना चाहते हैं तो वह सूरजकुंड की मेले में आई है मेले में बड़ी चौपाल के पास महाराष्ट्र के पालघर से आए आर्टिस्ट संदेश चिंटू राजद और दूसरे आर्टिस्ट ने बताएं कि हमारी सभी पेंटिंग्स उस समय से जुड़ी हुई हैं जो सबसे प्राचीन है आदिवासियों के समय भाषा और शब्द नहीं थे इसलिए वह चित्रकला के जरिए चित्र बनाकर ज्ञान को खट्टा रखते थे और अपने जीवन में भी चित्रों के माध्यम से ही विचारों का आदान-प्रदान किया करते थे हमारी सारी पेंटिंग्स उसी समय को बताती हैं और हम इनमें कोयला राख गोबर का इस्तेमाल करते हैं उन्होंने कहा की पिछले 22 साल से विनिंग पेंटिंग्स की दुनिया से जुड़े हुए हैं और उन्होंने अब तक की सारी पेंटिंग्स आदिवासी समय से प्रभावित होकर ही बनाई है उन्होंने बताया कि एक पेंटिंग अपने अंदर इतनी जानकारी जमा कर रखे हुए हैं की ढाई सौ से लेकर 300 तक की एक किताब उस पर लिखी जा सकती है उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे आदिवासियों की निशानियां नष्ट हो रही है तो सबसे अच्छा और सही है कि इस चित्रकला को जीवित

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Conclusion:मेले में मिल रही है आदिवासियों के जीवन की चित्रकला
Last Updated : Feb 7, 2019, 12:01 AM IST
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