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इनेलो ने तीन सीटों पर नहीं उतारे उम्मीदवार, जानें क्या है रणनीति ? - करनाल विधानसभा के समीकरण

इनेलो ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में तीन सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतारे हैं. लेकिन क्या ये कोई गलतफहमी से हुआ है या इसके पीछे कोई रणनीति है.

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Published : Oct 5, 2019, 9:42 PM IST

चंडीगढ़ः इनेलो ने तीन विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतारे और एक सीट अकाली दल के हिस्से की है जिस पर उम्मीदवार नामांकन के लिए वक्त पर ही नहीं पहुंचा लेकिन क्या ये सब गलतफहमी की वजह से हुआ है या इसके पीछे कोई रणनीति है. तो जवाब है कि इसके पीछे इनेलो की बड़ी रणनीति है. क्योंकि ओपी चौटाला कच्चे खिलाड़ी तो कतई नहीं हैं.

इनेलो ने इन सीटों पर नहीं खड़े किए उम्मीदवार
इंडियन नेशनल लोकदल ने विधानसभा चुनाव में महम, सिरसा और करनाल विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार खड़े नहीं किए हैं. इसके अलावा अंबाला सिटी विधानसभा सीट अकाली दल के हिस्से में थी, लेकिन उसका उम्मीदवार भी नामांकन के लिए नहीं पहुंचा.

महम विधानसभा सीट पर इनेलो की रणनीति
महम विधानसभा सीट तो ताऊ देवीलाल की विरासत वाली सीट मानी जाती है और उनकी विरासत के सबसे अग्रणी अगुवा खुद को बताने वाली इनेलो ने ये सीट छोड़ दी. इसके पीछे इनेलो की सोची समझी रणनीति है. क्योंकि यहां से पिछली बार ताऊ देवालाल की राजनीतिक पाठशाला के छात्र रहे आनंद सिंह दांगी कांग्रेस के टिकट पर जीते थे. आनंद सिंह दांगी इस सीट पर तीन बार जीत चुके हैं, लेकिन लगातार नहीं. इन्हीं आनंद सिंह दांगी को हराने के लिए इनेलो ने यहां से उम्मीदवार नहीं उतारा है, अब आनंद सिंह दांगी का मुकाबला बीजेपी के शमशेर खरकड़ा से होगा.

महम विधानसभा सीट का इतिहास
महम विधानसभा 3 वजहों से हॉट सीटों में गिनी जाती है. एक चौबीसी का चबूतरा, दूसरा 90 का खूनी उपचुनाव और तीसरा ताऊ देवीलाल की विरासत. देवीलाल इस सीट पर लगातार तीन बार जीते और इसी सीट से 1987 में जीतकर वो मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन इसके बाद 1984 में 404 सीटों के साथ प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी की पार्टी 1989 के चुनाव में मात्र 197 सीटें हासिल कर पाई. इस तरीके से वो सबसे बड़ी पार्टी तो बनी रही, लेकिन देश में मिलीजुली सरकार बनी जनता दल की और देवीलाल उप-प्रधानमंत्री बनकर दिल्ली चले गए. महम विधानसभा सीट खाली हो गई और देवीलाल के बेटे ओमप्रकाश चौटाला ने यहां से उपचुनाव लड़ा. लेकिन इस उपचुनाव में बहुत खून-खराबा हुआ और इलेक्शन नहीं हो पाया. दोबारा फिर उपचुनाव हुए लेकिन इस बार भी चुनाव नहीं हो पाए, क्योंकि इनेलो से बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे अमीर सिंह की हत्या कर दी गई थी. इसके बाद 1991 में महम सीट पर उपचुनाव हुए और देवीलाल के करीबी आनंद सिंह दांगी कांग्रेस की टिकट पर मैदान में उतरे और जीते. ये पहली बार था जब महम से लोकदल का उम्मीदवार हारा था. वही बदला लेने के लिए अब चौटाला ने ये चाल चली है.

तीन सीटों पर इनेलो ने नहीं उतारे उम्मीदवार, देखें रिपोर्ट

ये भी पढ़ें- इनेलो ने तीन सीटों पर नहीं उतारे प्रत्याशी, अकाली ने भी एक सीट खाली छोड़ी, क्या है वजह ?

महम में माथा टेकते हैं हरियाणा के सभी नेता
महम अपने चौबीसी के चबूतरे को लेकर भी हमेशा चर्चा में रहता है और यहां हरियाणा का हर नेता माथा टेकता है. दरअसल इस चबूतरे में 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के खिलाफ लड़े शहीद दफन हैं और अब इलाके की सर्वखाप पंचायत इसी चबूतरे से अपने सारे फैसले सुनाती है. महम चौबीसी की सर्वखाप को हरियाणा में सुपर पंचायत माना जाता है और यहां से निकले हर फैसले को फरमान माना जाता है. जिसकी हरियाणा के लोग बेहद इज्जत करते हैं.

ये भी पढ़ें- कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद सबसे पहले हुड्डा के गढ़ में जाएंगे अशोक तंवर, रोहतक में क्या होगा ?

सिरसा विधानसभा सीट पर इनेलो की रणनीति
2014 में सिरसा विधानसभा सीट पर इनेलो के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी. लेकिन इस बार इनेलो ने इस सीट पर अपना कोई उम्मीदवार ही नहीं उतारा. इसके पीछे की रणनीति क्या है. दरअसल पिछली बार सिरसा से इनेलो प्रत्याशी ने बहुत कम वोटों से जीत दर्ज की थी और हरियाणा लोकहित पार्टी के गोपाल कांडा दूसरे नंबर पर रहे थे. ये वही गोपाल कांडा हैं जिन्होंने 2009 में सिरसा से निर्दलीय चुनाव जीतकर भूपेंद्र हुड्डा सरकार बनाने में मदद की और बदले में इन्हें गृह राज्य मंत्री बनाया गया. लेकिन इसके बाद गीतिका शर्मा वाला कांड हो गया और गोपाल कांडा अर्श से फर्श की ओर आने लगे. पर गोपाल कांडा अब जेल से बाहर हैं और सिरसा से चुनाव में हाथ आजमा रहे हैं. इन्हीं को हराने के लिए इनेलो ये सीट छोड़ी है. क्योंकि चौटाला परिवार और गोपाल कांडा की दुश्मनी पुरानी है.

चंडीगढ़ः इनेलो ने तीन विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतारे और एक सीट अकाली दल के हिस्से की है जिस पर उम्मीदवार नामांकन के लिए वक्त पर ही नहीं पहुंचा लेकिन क्या ये सब गलतफहमी की वजह से हुआ है या इसके पीछे कोई रणनीति है. तो जवाब है कि इसके पीछे इनेलो की बड़ी रणनीति है. क्योंकि ओपी चौटाला कच्चे खिलाड़ी तो कतई नहीं हैं.

इनेलो ने इन सीटों पर नहीं खड़े किए उम्मीदवार
इंडियन नेशनल लोकदल ने विधानसभा चुनाव में महम, सिरसा और करनाल विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार खड़े नहीं किए हैं. इसके अलावा अंबाला सिटी विधानसभा सीट अकाली दल के हिस्से में थी, लेकिन उसका उम्मीदवार भी नामांकन के लिए नहीं पहुंचा.

महम विधानसभा सीट पर इनेलो की रणनीति
महम विधानसभा सीट तो ताऊ देवीलाल की विरासत वाली सीट मानी जाती है और उनकी विरासत के सबसे अग्रणी अगुवा खुद को बताने वाली इनेलो ने ये सीट छोड़ दी. इसके पीछे इनेलो की सोची समझी रणनीति है. क्योंकि यहां से पिछली बार ताऊ देवालाल की राजनीतिक पाठशाला के छात्र रहे आनंद सिंह दांगी कांग्रेस के टिकट पर जीते थे. आनंद सिंह दांगी इस सीट पर तीन बार जीत चुके हैं, लेकिन लगातार नहीं. इन्हीं आनंद सिंह दांगी को हराने के लिए इनेलो ने यहां से उम्मीदवार नहीं उतारा है, अब आनंद सिंह दांगी का मुकाबला बीजेपी के शमशेर खरकड़ा से होगा.

महम विधानसभा सीट का इतिहास
महम विधानसभा 3 वजहों से हॉट सीटों में गिनी जाती है. एक चौबीसी का चबूतरा, दूसरा 90 का खूनी उपचुनाव और तीसरा ताऊ देवीलाल की विरासत. देवीलाल इस सीट पर लगातार तीन बार जीते और इसी सीट से 1987 में जीतकर वो मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन इसके बाद 1984 में 404 सीटों के साथ प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी की पार्टी 1989 के चुनाव में मात्र 197 सीटें हासिल कर पाई. इस तरीके से वो सबसे बड़ी पार्टी तो बनी रही, लेकिन देश में मिलीजुली सरकार बनी जनता दल की और देवीलाल उप-प्रधानमंत्री बनकर दिल्ली चले गए. महम विधानसभा सीट खाली हो गई और देवीलाल के बेटे ओमप्रकाश चौटाला ने यहां से उपचुनाव लड़ा. लेकिन इस उपचुनाव में बहुत खून-खराबा हुआ और इलेक्शन नहीं हो पाया. दोबारा फिर उपचुनाव हुए लेकिन इस बार भी चुनाव नहीं हो पाए, क्योंकि इनेलो से बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे अमीर सिंह की हत्या कर दी गई थी. इसके बाद 1991 में महम सीट पर उपचुनाव हुए और देवीलाल के करीबी आनंद सिंह दांगी कांग्रेस की टिकट पर मैदान में उतरे और जीते. ये पहली बार था जब महम से लोकदल का उम्मीदवार हारा था. वही बदला लेने के लिए अब चौटाला ने ये चाल चली है.

तीन सीटों पर इनेलो ने नहीं उतारे उम्मीदवार, देखें रिपोर्ट

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महम में माथा टेकते हैं हरियाणा के सभी नेता
महम अपने चौबीसी के चबूतरे को लेकर भी हमेशा चर्चा में रहता है और यहां हरियाणा का हर नेता माथा टेकता है. दरअसल इस चबूतरे में 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के खिलाफ लड़े शहीद दफन हैं और अब इलाके की सर्वखाप पंचायत इसी चबूतरे से अपने सारे फैसले सुनाती है. महम चौबीसी की सर्वखाप को हरियाणा में सुपर पंचायत माना जाता है और यहां से निकले हर फैसले को फरमान माना जाता है. जिसकी हरियाणा के लोग बेहद इज्जत करते हैं.

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सिरसा विधानसभा सीट पर इनेलो की रणनीति
2014 में सिरसा विधानसभा सीट पर इनेलो के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी. लेकिन इस बार इनेलो ने इस सीट पर अपना कोई उम्मीदवार ही नहीं उतारा. इसके पीछे की रणनीति क्या है. दरअसल पिछली बार सिरसा से इनेलो प्रत्याशी ने बहुत कम वोटों से जीत दर्ज की थी और हरियाणा लोकहित पार्टी के गोपाल कांडा दूसरे नंबर पर रहे थे. ये वही गोपाल कांडा हैं जिन्होंने 2009 में सिरसा से निर्दलीय चुनाव जीतकर भूपेंद्र हुड्डा सरकार बनाने में मदद की और बदले में इन्हें गृह राज्य मंत्री बनाया गया. लेकिन इसके बाद गीतिका शर्मा वाला कांड हो गया और गोपाल कांडा अर्श से फर्श की ओर आने लगे. पर गोपाल कांडा अब जेल से बाहर हैं और सिरसा से चुनाव में हाथ आजमा रहे हैं. इन्हीं को हराने के लिए इनेलो ये सीट छोड़ी है. क्योंकि चौटाला परिवार और गोपाल कांडा की दुश्मनी पुरानी है.

Intro:हरियाणा में 2014 के विधानसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी दल रहे इंडियन नेशनल लोकदल तीन अहम सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतार पाई । हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल के गृह क्षेत्र से उम्मीदवार उतारने जा रही के कई राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं । वही अपने गृह क्षेत्र सिरसा में भी इंडियन नेशनल लोकदल उम्मीदवार नहीं उतार पाई । इसके साथ साथ में हम किसी पर भी इंडियन नेशनल लोकदल ने उम्मीदवार नहीं पारा जबकि गठबंधन में चुनाव लड़ रही इंडियन नेशनल और अकाली दल कि अंबाला सिटी की सीट भी खाली रह गई । राजनीतिक जानकारों की मानें तो जिस तरह से मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र में इंडियन नेशनल लोक दल की तरफ से उम्मीदवार नहीं उतारा गया है उसके कई मायने निकाले जाएंगे सवाल उठाए जा सकते हैं कि क्या किसी तरह की राहत मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र में देने का प्रयास किया गया है । वही अपने ही क्षेत्र में उम्मीदवार ना उतार पाने पर इनेलो की साख पर भी सवाल उठेगा इस पर विपक्षी दल इंडियन नेशनल लोकदल को खत्म होता जनाधार बताकर घेर सकते हैं । राजनीतिक विश्लेषक एवं पंजाब यूनिवर्सिटी में हिंदी विभाग के प्रोफेसर गुरमीत सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र से उम्मीदवार ना उतारे जाने पर इंडियन नेशनल लोकदल को लेकर राजनीतिक गलियारों में कई तरह की चर्चाएं शुरू हो सकती है । गुरमीत सिंह ने कहा कि 3 सीटों पर उम्मीदवार नही उतारने का आईएनएलडी का प्रभाव अच्छा नहीं नजर आता । उन्होंने कहा कि इसके पीछे कोई भी कारण हो सकते हैं , उन्होंने कहा कि करनाल से उम्मीदवार नहीं उतारा जबकि वहां से हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल चुनाव लड़ रहे हैं जिसके राजनीतिक मतलब निकाले जा सकते हैं कि इंडियन नेशनल लोकदल कोई मैसेज देना चाहती है , उन्होंने कहा कि आरएलडी अकाली दल के साथ गठबंधन से चुनाव लड़ रही है जबकि अकाली दल का पंजाब में भाजपा के साथ गठबंधन है । उन्होंने कहा कि इसमें कुछ ना कुछ गफलत जरूर है हालांकि आईएनएलडी नहीं मानेगी कि उन्हें उम्मीदवार नहीं मिला हो सकता है इन सीटों पर किसी निर्दलीय को समर्थन दे दिया जाए ।
बाइट - प्रोफेसर गुरमीत सिंह , राजनीतिक विश्लेषक


Body:हरियाणा में गायें बगाहे महिलाओं को चुनाव के दौरान 33% टिकते देने के दावे अलग-अलग राजनीतिक दलों से की तरफ से चुनाव से पहले किए जाते हैं मगर चुनाव नजदीक आते ही अक्सर दल अपने वादे और दावे को भूलते नजर आते हैं । महिलाओं को 35 फ़ीसदी टिकटें देने के इंडियन नेशनल लोक दल और बीजेपी दोनों ही पार्टियों के दावे से इतर महिलाओं को उतनी तवज्जो नहीं दी गई जितना दोनों पार्टियों के नेताओं की तरफ से दावे किए गए थे । वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस की तरफ से भी 33% महिलाओं को टिकट देने का दूसरी पार्टियों को चुनौती दी गई थी । हालांकि इसी तरह के दावे भारतीय जनता पार्टी की तरफ से भी सत्ता में आने से पहले किए जाते रहे थे । राजनीतिक जानकारों की माने तो अक्सर राजनीतिक पार्टियों की तरफ से आधी आबादी यानी महिलाओं को समान सम्मान देने की बात की जाती है लेकिन आज तक महिला आरक्षण बिल पास नहीं हो पाया है । उन्होंने कहा कि दोनों ही प्रमुख पार्टियां महिला आरक्षण विधयेक का समर्थन करती हैं लेकिन आज तक यह विधयेक पास नहीं हो पाया है जिसमें दोनों की ही सरकार है या तो 10 साल रह चुकी हैं या अभी सत्ता में है । अगर यह बिल पास हो जाता तो सभी पार्टियों को समान टिकते देनी होती । उन्होंने कहा कि पार्टियां अपने सर पर महिलाओं को टिकटें देना तय करती हैं बावजूद उसके 15 से 18% या इससे भी कम सीटें अलग-अलग पार्टियों की तरफ से दी गई हैं ।
बाइट - प्रोफेसर गुरमीत सिंह , राजनीतिक विश्लेषक


Conclusion:गौरतलब है कि 2014 के चुनाव में मुख्य विपक्षी दल रहे इंडियन नेशनल लोकदल सभी 90 सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतार पा इ इसको लेकर विपक्षी पार्टियों की तरफ से इंडियन नेशनल लोकदल के जनाधार पर सवाल उठाए जा सकते हैं ।
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