चंडीगढ़ः इनेलो ने तीन विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतारे और एक सीट अकाली दल के हिस्से की है जिस पर उम्मीदवार नामांकन के लिए वक्त पर ही नहीं पहुंचा लेकिन क्या ये सब गलतफहमी की वजह से हुआ है या इसके पीछे कोई रणनीति है. तो जवाब है कि इसके पीछे इनेलो की बड़ी रणनीति है. क्योंकि ओपी चौटाला कच्चे खिलाड़ी तो कतई नहीं हैं.
इनेलो ने इन सीटों पर नहीं खड़े किए उम्मीदवार
इंडियन नेशनल लोकदल ने विधानसभा चुनाव में महम, सिरसा और करनाल विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार खड़े नहीं किए हैं. इसके अलावा अंबाला सिटी विधानसभा सीट अकाली दल के हिस्से में थी, लेकिन उसका उम्मीदवार भी नामांकन के लिए नहीं पहुंचा.
महम विधानसभा सीट पर इनेलो की रणनीति
महम विधानसभा सीट तो ताऊ देवीलाल की विरासत वाली सीट मानी जाती है और उनकी विरासत के सबसे अग्रणी अगुवा खुद को बताने वाली इनेलो ने ये सीट छोड़ दी. इसके पीछे इनेलो की सोची समझी रणनीति है. क्योंकि यहां से पिछली बार ताऊ देवालाल की राजनीतिक पाठशाला के छात्र रहे आनंद सिंह दांगी कांग्रेस के टिकट पर जीते थे. आनंद सिंह दांगी इस सीट पर तीन बार जीत चुके हैं, लेकिन लगातार नहीं. इन्हीं आनंद सिंह दांगी को हराने के लिए इनेलो ने यहां से उम्मीदवार नहीं उतारा है, अब आनंद सिंह दांगी का मुकाबला बीजेपी के शमशेर खरकड़ा से होगा.
महम विधानसभा सीट का इतिहास
महम विधानसभा 3 वजहों से हॉट सीटों में गिनी जाती है. एक चौबीसी का चबूतरा, दूसरा 90 का खूनी उपचुनाव और तीसरा ताऊ देवीलाल की विरासत. देवीलाल इस सीट पर लगातार तीन बार जीते और इसी सीट से 1987 में जीतकर वो मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन इसके बाद 1984 में 404 सीटों के साथ प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी की पार्टी 1989 के चुनाव में मात्र 197 सीटें हासिल कर पाई. इस तरीके से वो सबसे बड़ी पार्टी तो बनी रही, लेकिन देश में मिलीजुली सरकार बनी जनता दल की और देवीलाल उप-प्रधानमंत्री बनकर दिल्ली चले गए. महम विधानसभा सीट खाली हो गई और देवीलाल के बेटे ओमप्रकाश चौटाला ने यहां से उपचुनाव लड़ा. लेकिन इस उपचुनाव में बहुत खून-खराबा हुआ और इलेक्शन नहीं हो पाया. दोबारा फिर उपचुनाव हुए लेकिन इस बार भी चुनाव नहीं हो पाए, क्योंकि इनेलो से बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे अमीर सिंह की हत्या कर दी गई थी. इसके बाद 1991 में महम सीट पर उपचुनाव हुए और देवीलाल के करीबी आनंद सिंह दांगी कांग्रेस की टिकट पर मैदान में उतरे और जीते. ये पहली बार था जब महम से लोकदल का उम्मीदवार हारा था. वही बदला लेने के लिए अब चौटाला ने ये चाल चली है.
महम में माथा टेकते हैं हरियाणा के सभी नेता
महम अपने चौबीसी के चबूतरे को लेकर भी हमेशा चर्चा में रहता है और यहां हरियाणा का हर नेता माथा टेकता है. दरअसल इस चबूतरे में 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के खिलाफ लड़े शहीद दफन हैं और अब इलाके की सर्वखाप पंचायत इसी चबूतरे से अपने सारे फैसले सुनाती है. महम चौबीसी की सर्वखाप को हरियाणा में सुपर पंचायत माना जाता है और यहां से निकले हर फैसले को फरमान माना जाता है. जिसकी हरियाणा के लोग बेहद इज्जत करते हैं.
सिरसा विधानसभा सीट पर इनेलो की रणनीति
2014 में सिरसा विधानसभा सीट पर इनेलो के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी. लेकिन इस बार इनेलो ने इस सीट पर अपना कोई उम्मीदवार ही नहीं उतारा. इसके पीछे की रणनीति क्या है. दरअसल पिछली बार सिरसा से इनेलो प्रत्याशी ने बहुत कम वोटों से जीत दर्ज की थी और हरियाणा लोकहित पार्टी के गोपाल कांडा दूसरे नंबर पर रहे थे. ये वही गोपाल कांडा हैं जिन्होंने 2009 में सिरसा से निर्दलीय चुनाव जीतकर भूपेंद्र हुड्डा सरकार बनाने में मदद की और बदले में इन्हें गृह राज्य मंत्री बनाया गया. लेकिन इसके बाद गीतिका शर्मा वाला कांड हो गया और गोपाल कांडा अर्श से फर्श की ओर आने लगे. पर गोपाल कांडा अब जेल से बाहर हैं और सिरसा से चुनाव में हाथ आजमा रहे हैं. इन्हीं को हराने के लिए इनेलो ये सीट छोड़ी है. क्योंकि चौटाला परिवार और गोपाल कांडा की दुश्मनी पुरानी है.