चंडीगढ़: सेक्टर 10 डीएवी कॉलेज में अध्यापकों ने सरकार और चंडीगढ़ प्रशासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन (teachers protest in chandigarh) किया. अध्यापकों ने चंडीगढ़ में सातवें वेतन आयोग की सिफारिश (7th pay commission) लागू करने की मांग को लेकर (teachers demand 7th pay commission) ना सिर्फ चंडीगढ़ प्रशासन के खिलाफ रोष जताया बल्कि पंजाब सरकार के खिलाफ भी नारेबाजी की. क्योंकि चंडीगढ़ में पंजाब की तर्ज पर बदलाव किए जाते हैं. जब तक पंजाब में सातवां वेतन आयोग लागू नहीं हो जाता तब तक चंडीगढ़ प्रशासन चंडीगढ़ में इसे लागू नहीं करेगा.
इस वजह से इन अध्यापकों ने चंडीगढ़ प्रशासन के साथ-साथ पंजाब सरकार के खिलाफ भी प्रदर्शन किया. डॉक्टर बिमल अंजुम ने बताया कि साल 2016 में केंद्र सरकार ने सातवां वेतन आयोग लागू किया था. आर्थिक तौर पर पड़ने वाला बोझ भी केंद्र सरकार ने 3 साल तक वहन किया. जिससे राज्य सरकारों पर इसका कोई बोझ नहीं आया, लेकिन फिर भी पंजाब सरकार ने आज तक यूनिवर्सिटी और कॉलेज के टीचर्स के लिए सातवां वेतन आयोग लागू नहीं किया. जिस वजह से चंडीगढ़ में सातवां वेतन आयोग लागू नहीं हुआ.
उन्होंने कहा कि ये साफ तौर पर चंडीगढ़ प्रशासन की नाकामी है. यहां पर कुछ कॉलेज में तो ये लागू कर दिया गया है, लेकिन बहुत से कॉलेज में से लागू नहीं किया गया है. उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ के सरकारी कॉलेज केंद्र सरकार के अधीन आते हैं. तो फिर इसे पंजाब की तर्ज पर क्यों चलाया जा रहा है?
उन्होंने कहा कि एक अध्यापक अपने छात्रों के लिए रोल मॉडल की तरह होता है, लेकिन आज देश की हालत ये हो गई है कि उसी रोल मॉडल को छात्रों के सामने ही अपने हकों के लिए लड़ना पड़ रहा है. प्रदर्शन कर रहे अध्यापकों ने कहा कि 'केंद्र सरकार ने सातवां वेतन आयोग 6 साल पहले पेश किया था. हम तब से लेकर अब तक सिर्फ इंतजार कर रहे थे कि हमें भी इसका लाभ मिलेगा. जो अबतक नहीं मिल पाया है. हम चाहते तो 2 साल या 4 साल पहले भी सड़कों पर आ सकते थे, लेकिन हमने ऐसा नहीं किया. हम अपनी जिम्मेदारी को लगातार निभाते आ रहे हैं. यहां तक कि करोना काल में भी हमने छात्रों की पढ़ाई का नुकसान नहीं होने दिया. बच्चों को लगातार ऑनलाइन क्लासेज दी, लेकिन जब हमारी किसी ने ना सुनी तो हमें मजबूर होकर प्रदर्शन का रास्ता अपनाना पड़ा.'
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अध्यापकों ने कहा कि पंजाब सरकार यूजीसी डीलिंकिंग करने पर उतारू है. अगर ऐसा किया गया तो हमारा शैक्षणिक ढांचा बुरी तरह से ध्वस्त हो जाएगा, क्योंकि ऐसा करने पर कॉलेज इन यूजीसी से अलग हो जाएंगे. उसके बाद अध्यापकों की सैलरी यूजीसी नहीं बल्कि कॉलेज प्रबंधन तय करेगा. जिसके बाद यूजीसी के नियमों को अनदेखा किया जाएगा. इससे शिक्षा प्रणाली पर बहुत बुरा असर पड़ेगा. उन्होंने कहा कि अगर सरकार की मंशा ये है कि आने वाले दिनों में शिक्षा को कारपोरेट घरानों के हाथों बेच दिया जाए, तो हम ऐसा नहीं होने देंगे. जब तक उनकी मांगों को नहीं माना जाता तकतक उनका प्रदर्शन जारी रहेगा.
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