चंडीगढ़: देश की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के भाषण, उनकी तर्कशक्ति और उनके ज्ञान की दुनिया दीवानी थी. उनके व्यक्तित्व को तराशने वाले प्रोफेसर डीएन जौहर से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की. बातचीत के दौरान प्रोफेसर भावुक हो गए.
प्रोफेसर डीएन जौहर ईटीवी से बात करते हुए कहा कि सुषमा स्वराज ने साल 1970 में पंजाब यूनिवर्सिटी के लॉ विभाग में दाखिला लिया था. उस समय वे केवल 18 साल की थीं, लेकिन शुरू से ही सुषमा तर्क-वितर्क, पढ़ाई में बहुत तेज थी.
पढ़ाई के अलावा नाटक की शौकीन थीं सुषमा स्वराज
प्रोफेसर ने बताया कि सुषमा स्वराज हर काम में आगे रहती थीं. अगर कोई डिबेट कंपटीशन होता था तो उसमें भी सुषमा सबसे आगे होती थीं. अगर कोई नाटक होता था या कोई लोक नृत्य का कार्यक्रम होता, उसमें भी सुषमा ही सबसे आगे होती थी. सुषमा अभूतपूर्व प्रतिभा की धनी थी. प्रोफेसर जौहर ने कहा ऐसे शिष्यों को देख कर एक अध्यापक को गर्व तो होता ही है. मुझे भी सुषमा को देखकर हमेशा गर्व होता रहा है
सुषमा स्वराज की कामयाबी के पीछे उनकी मेहनत थी
सुषमा ने जितनी भी बुलंदियों को हासिल किया, उसकी खुद की कड़ी मेहनत का नतीजा था. राजनीति में उच्चतम स्तर पर पहुंची जबकि उनके परिवार में कोई भी राजनीति में नहीं था और ना ही उनका कोई राजनीतिक बैकग्राउंड था. इसके बावजूद वह राजनीति में जहां तक पहुंची हम सब ने देखा और यह सब उसे दान में नहीं मिला था. इसके लिए उसने कड़ी मेहनत की थी.
भावुक हुए प्रोफेसर जौहर
प्रोफेसर जौहर सुषमा के बारे में बात करते हुए काफी भावुक हो गए. उन्होंने कहा कि सुषमा के जाने से राजनीति और देश को ही नुकसान नहीं पहुंचा है बल्कि इंसानियत को कभी न पूरी होने वाली क्षति पहुंची है. आपको दुनिया में लोग तो बहुत मिल जाएंगे मगर सुषमा स्वराज जैसी सच्ची इंसान नहीं मिलेगी.