चंडीगढ़ः हरियाणा में रोहतक जिले के इंदरगढ़ गांव में रहने वाली, राष्ट्रीय वुशु खिलाड़ी शिक्षा इन दिनों तंगहाली का जीवन गुजार रही है. शिक्षा की बिगड़ी आर्थिक स्थिति को लेकर ईटीवी भारत ने प्रमुखता से खबर भी चलाई थी. जिसके बाद ईटीवी भारत की खबर का बड़ा असर हुआ है. खेल मंत्रालय ने वित्तीय संकट से जूझ रही वुशु खिलाड़ी को पांच लाख रूपये की मदद को मंजूरी दी है.
खेल मंत्री किरण रिजिजू ने हरियाणा की वुशु खिलाड़ी शिक्षा के लिए पांच लाख रूपये की मदद को मंजूरी दी. जिसे कोविड-19 महामारी के चलते वित्तीय संकट के कारण खेत पर मजदूरी करने के लिये बाध्य होना पड़ा. खेल मंत्रालय द्वारा मिली जानकारी के अनुसार 22 साल की खिलाड़ी के लिए ये राशि पंडित दीन दयाल उपाध्याय राष्ट्रीय कल्याण कोष के जरिए मंजूर की गई है.
शिक्षा ने किया धन्यवाद
वुशु खिलाड़ी शिक्षा ने पांच लाख रूपये भेज कर आर्थिक मदद करने के लिए खेल मंत्रालय को शुक्रिया कहा है. शिक्षा का कहना है कि धन्यवाद करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं. शिक्षा ने कहा 'मैं जल्द से जल्द अपनी ट्रेनिंग शुरू करने के लिए प्रतिबद्ध हूं. खिलाड़ियों की मदद करने में इतने सक्रिय मंत्री को देखकर अच्छा लगता है. मैं सभी को वादा करती हूं कि एक साल के अंदर मैं देश के लिए स्वर्ण पदक जीतूंगी.'
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ETV भारत ने सबसे पहले चलाई थी खबर
बता दें कि कोरोना महामारी के दौरान रोहतक जिले के इंदरगढ़ गांव में रहने वाली, राष्ट्रीय वुशु खिलाड़ी शिक्षा तंगहाली का जीवन गुजार रही है. मनरेगा स्कीम के तहत मजदूरी कर रही है. ताकि घर में कुछ पैसे आ जाएं और दो वक्त की रोटी का जुगाड़ हो जाए. शिक्षा ने स्कूलिंग के समय चैंपियनशिप में हिस्सा लिया और अब वो महाऋषि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक की तरफ से खेलती है. उनकी वुशु खेल में रुची है. वो अपने दम पर खेलती आई है.
9 बार की राष्ट्रीय चैंपियन
शिक्षा 3 बार ऑल इंडिया वुशु चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीत चुकी है. यही नहीं वो 9 बार राष्ट्रीय चैंपियनशिप और 24 बार स्टेट में चैंपियनशिप में भी गोल्ड मेडल जीत चुकी है.
शिक्षा ने हर चैंपियनशिप में गाड़े झंडे
- 1 बार ऑल इंडिया चैंपियनशिप में गोल्ड
- 2 बार ऑल इंडिया चैंपियन में सिल्वर
- 2 बार सीनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप में गोल्ड
- 4 बार जुनियर नेशनल में गोल्ड
- 1 बार सब-जुनियर नेशनल में गोल्ड
- 24 बार स्टेट चैंपियनशिप में गोल्ड
रोजी रोटी के लिए करती हैं मजदूरी
शिक्षा के माता पिता मनरेगा के तहत मजदूरी कर रहे हैं. घर चलाने के लिए और कोई रोजगार का साधन भी नहीं है. फिलहाल शिक्षा का मनरेगा कार्ड नहीं बना है, लेकिन माता पिता के साथ सुबह 6 बजे कंधे पर कस्सी लाद कर काम पर निकल पड़ती है.