चंडीगढ़: आखिरकार कई दिनों से हरियाणा कांग्रेस की कमान किसको मिलेगी इसको लेकर चल रहे कयासों का दौर खत्म हो गया. पूर्व केन्द्रीय कुमारी सैलजा को हरियाणा कांग्रेस की कमान सौंप दी गई है और लंबे वक्त से हाईकमान की अनदेखी की वजह से विद्रोही तेवर अपनाए हुए पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को चुनाव कमेटी और विधायक दल की कमान सौंप दी गई है. प्रदेश में बदलाव को लेकर लम्बे समय से बदलाव को लेकर हाई कमान पर दबाव डाला जा रहा था. कांग्रेस की तरफ से विधान सभा चुनाव से ठीक पहले किये गए इस बदलाव से कई मायने है.
हुड्डा के सामने झुका कांग्रेस आलाकमान!
कांग्रेस के खिलाफ बगावती तेवर अपनाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी के दिग्गज नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के सामने पार्टी झुक गई है. पांच सालों से लगातार पार्टी पर दबाव बना रहे हुड्डा गुट को आखिरकार जीत मिल ही गई. हुड्डा की मांग को मानते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अशोक तवंर को प्रदेशाध्यक्ष से पद से हटा दिया है. इसके साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को हरियाणा विधानसभा चुनाव में चुनाव अभियान कमेटी का चेयरमैन और विधानसभा में नेता विपक्ष बनाया गया है. जहां सीएलपी लीडर किरण चौधरी की भूपेंद्र सिंह हुड्डा को विधायक दल का नेता बनाया गया है वहीं अशोक तंवर की जगह राज्य में अध्यक्ष पद की कमान पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा के हाथ में दी गई है.
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कई दिनों के मंथन के बाद हुआ फैसला
किसको अध्यक्ष बनाया जाए और किसको प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों में कमान सौंपी जाए इसको लेकर कांग्रेस पार्टी में कई दिनों से मंथन चल रहा था. वहीं हुड्डा गुट ने 18 अगस्त को रोहतक में एक रैली कर पार्टी के सामने चुनावों से पहले अपने तीखे तेवर भी बता दिये थे. जिसे उस वक्त पार्टी के अध्यक्ष रहे अशोक तंवर ने पार्टी विरोधी बताया था, लेकिन उनका यह दाव भी काम नहीं आया. हुड्डा ने रोहतक रैली के बाद 36 सदस्यों की कमिटी बनाकर अपने भविष्य की योजना पर तैयारी शुरु कर दी थी और माना जा रहा था कि अगर कांग्रेस ने हुड्डा को कोई बड़ा पद नहीं दिया तो वे अलग दल बनाकर चुनावी समर में उतर सकते हैं. वहीं इस रैली के बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा और दिपेंद्र हुड्डा कई बार सोनिया और प्रियंका गांधी से भी मिले, लेकिन उन्हें कोई आश्वासन नहीं मिला. 3 सितंबर को हुड्डा ने जो कमेटी बनाई थी उसकी बैठक दिल्ली में हुई, इसके बाद हाईकमान का रुख बदल गया और 4 सिंतबर को यह फैसला सामने आ गया.
बुधवार को भी हुआ मंथन
बुधवार को दोपहर बाद हुड्डा की सोनिया गांधी के साथ बैठक हुई. यह बैठक करीब दो घंटे तक चली. इसके बाद हरियाणा कांग्रेस में बदलाव का ऐलान किया गया. जानकारी केमुताबिक हुड्डा और सोनिया गांधी की मुलाकात दस जनपथ पर हुई. इस दौरान हरियाणा कांग्रेस के प्रभारी गुलाम नबी आजाद सहित कई वरिष्ठ नेता भी मौजूद थे. बता दें कि कुमारी सैलजा कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व की करीबी मानी जाती हैं. पार्टी ने राजस्थान में विधानसभा चुनाव के दौरान उनको वहां की अहम जिम्मेदारी दी थी. इसी का नतीजा है कि कुमारी सैलजा को पार्टी अध्यक्ष बनाया गया.
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कब से थी अशोक तंवर की प्रधानगी में कांग्रेस?
2014 में हुए विधानसभा चुनाव अशोक तंवर की अगुवाई में हुए थे. जिसमें कांग्रेस हरियाणा में तीसरे नंबर की पार्टी रही. तभी से हुड्डा गुट तंवर को हटाने में जुट गया था. वहीं उसके बाद नगर निगम चुनाव हो या फिर जींद उपचुनाव इनमें भी कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा. वहीं 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी का एक भी सांसद जीत दर्ज नहीं कर पाया फिर क्या खुद अशोक तंबर हो या भूपेंद्र सिंह हुड्डा या दिपेंद्र हुड्डा सभी को करारी हार का सामना करना पड़ा. अशोक तंवर की अध्यक्षता में पिछड़ रही पार्टी का ही कारण बताकर लगातार हुड्डा खेमे के विधायक कांग्रेस हाई कमान से अध्यक्ष बदलने की मांग कर रहे थे. तंवर के नेतृत्व में पार्टी शिकस्त का सामना करती रही वहीं उनके कार्यकाल में पार्टी में कई धड़े बनकर उभरे. जिनको वो एक साथ लाने में नाकाम रहे और हुड्डा गुट ने तो लगातार पांच सालों में उनको अपना अध्यक्ष स्वीकार नहीं किया .
अशोक तंवर को झटका!
कांग्रेस के इस कदम से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर को कड़ा झटका लगा है. हुड्डा खेमा किसी भी कीमत पर तंवर को हटाना चाहता था. भूपेंद्र सिंह हुड्डा इसके लिए आलाकमान पर काफी समय से दबाव बना रहे थे. उन्होंने इसके लिए बागी तेवर भी दिखाए थे.जानकारों के मुताबिक कई धड़ों में बंटी कांग्रेस को एक करने के लिए पार्टी में कुछ कार्यकारी
अध्यक्ष भी बना सकती है. पार्टी के वरिष्ठ नेता अशोक तंबर, कुलदीप बिश्नोई, अजय सिंह यादव और किरण चौधरी को भी अहम जिम्मेदारी दिए जाने की संभावना है.
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हुड्डा के लिए बड़ी जीत!
कुछ दिनों में हरियामा में विधानसभा चुनावों का बिगुल बजने वाला है दो महीने बाद हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में अशोक तवंर को पद से हटाया जाना हुड्डा के लिए पार्टी के भीतर किसी बड़ी जीत से कम नहीं है. चुनावी प्रबंधन समिति की कमान मिलने से भी साफ है कि विधानसभा चुनाव को लेकर हुड्डा की भूमिका अहम होने वाली है. विधायक दल के नेता के तौर पर हुड्डा किरण चौधरी की जगह लेंगे, लेकिन क्या कई धड़ों में बंटी कांग्रेस एक साथ चुनावी दंगल में उतरेगी और क्या सभी नेता एक साथ पार्टी के लिए काम करेंगे इन सवालों का जवाब अभी बताना मुश्किल है. आने वाले दिनों में इन सवालों के जवाब इन धड़ों के नेताओं की गलिविधियां खुद ब खुद दे देगी.
कांग्रेस के लिए आसान नहीं राह!
इस फैसले के बाद भी राज्य में कांग्रेस के लिए राह आसान नहीं है. हरियाणा में विधानसभा की 90 सीटें हैं और कांग्रेस के पास सिर्फ 17 विधायक हैं. इसके अलावा भी पार्टी के अंदर की गुटबाजी पा्रटी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. हालांकि हुड्डा खेमा राज्य में सबसे मजबूत नज़र आता है. जब उन्होंने बगावती तेवर अख्तियार किए, उस वक्त 13 विधायक और कई पूर्व मंत्री उनके साथ थे . हुड्डा के अलावा राज्य में शैलजा, रणदीप सुरजेवाला, कुलदीप बिश्नोई, किरण चौधरी, अशोक तवंर बड़े चेहरे हैं. ये सभी चेहरे अलग अलग गुट माने जाते रहे है और वर्चस्व की लड़ाई किसी से छुपी नहीं है . अब कांग्रेस में भपेंद्र सिंह हुडडा और सैलजा को सभी को एक साथ लेकर चलना भी बड़ी चुनौती रहेगा , ऐसे में कांग्रेस के लिए हरियाणा की राह आसान दिनखाई नहीं देती है.
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क्या सैलजा बदल पाएगी हालात ?
अशोक तंवर की जगह पार्टी ने दूसरे दलित चेहरे यानि कुमारी सैलजा को हरियाणा की कमान सौंप दी. तो वहीं हुड्डा को चुनावों कती जिम्मेदारी दे दी. पार्टी के इस फैसले को हरियाणा में चलती आ रही जाट और नॉन जाट की राजनीति के बैलस करने की कवायद के तौर पर भी देखा जा सकता है. लेकिन कुमारी सैलजा के लिए अध्यक्ष पद की राह और पार्टी को विधानसभा चुनावों में जीत दिलाने की कड़ी चुनौती है. कुमारी सैलजा के सामने सबसे बड़ी चुनौती तो उनकी पार्टी के अंदर के सभी धड़ों को इकट्ठा करने की होगी. और अगर वे इसमें सफल होती हैं तो ही वे विधानसभा चुनावों में पार्टी को मजबूत बनाकर उभर पाएंगी, और अगर गुटबाजी जारी रही तो उनके लिए भी अध्यत्क्ष पद का ताज कांटों भरा साबित हो सकता है.
क्या कांग्रेस दे पाएगी बीजेपी को चुनौती ?
कांग्रेस ने हरियाणा में चुनावों से ठीक पहले बदलाव तो कर दिया है, लेकिन क्या कांग्रेस इस बदलाव के बाद बीजेपी को टक्कर दे पाएगी ? और क्या कांग्रेस हरियाणा की सत्ता में खुद को फिर से काबिज कर पाएगी ? यह वह सवाल है जो अब राजनीतिक गलियारों में तेजी से उठने लगे हैं. उम्मीद की जा रही है कि कांग्रेस इन बदलावों से बीजेपी को कड़ी टक्कर तो जरुर देगी. लेकिन हरियाणा की सत्ता पर काबिज होने के लिए कांग्रेस को रात दिन एक करने होंगे क्योंकि बीजेपी ने अपने चुनावी अभियान को बहुत पहले ही शुरु कर दिया है और कांग्रेस अभी-अभी खुद की सबसे बड़ी चुनौतियों से बाहर आने के लिए फैसले ले पाई है, ऐसे में कांग्रेस की चुनौती कमजोर दिखाई दे रही है, लेकिन आने वाले दिनों में कांग्रेस किस तरह काम करती है उसी पर उनकी हरियाणा में क्या स्थिति होगी निर्भर है.
क्या अब कड़ा होगा बीजेपी-कांग्रेस का मुकाबला ?
इसमें कोई दो राय नहीं है कि कांग्रेस की चुनावी कमान पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा के हाथ आने से पार्टी का मनोबल बढ़ेगा. क्योंकि हुड्डा दो बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं और प्रदेश की राजनीति में उनका बहुत बड़ा कद है. ऐसे में बीजेपी के सामने वे अपनी चुनौती जुरुर पेश करेंगे. भले ही स्थितियां कोई भी रहे. वहीं चुनावों में हुड्डा अगर सभी धड़ों को एक साथ ले आये तो बीजेपी के सामने वे जरुर कड़ी टक्कर पेश करेंगे. दूसरा विपक्ष मजबूत होने से बीजेपी को चुनौती तो मिलेगी इसमें भी कोई दो राय नहीं कयोंकि प्रदेश में कांग्रेस पहले ही कई धड़ों में बंटी थी, वहीं इनेलो से जेजेपी बनने के बाद विपक्ष हरियाणा में बिल्कुल अलग-थलग पड़ गया था. ऐसे में बीजेपी के सामने कोई भी पार्टी चुनौती के तौर पर नहीं दिख रही थी.
बीजेपी के लिए हुड्डा बड़ी चुनौती!
हुड्डा को चुनावी कमान देकर कांग्रेस ने बीजेपी के एक तरफ चुनावी अभियान को तो चुनौती दे ही दी है. अब देखना होगा की क्या आने वाले दिनों में हुड्डा अपनी पार्टी के धड़ों के साथ ही अन्य दलों को भी साथ लाने के प्रयास करेंगे जैसा की हरियाणा के राजनितिक गलियारों में बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन को लेकर चर्चाएं चल रही है .