चंडीगढ़: अपने लिए तो हर कोई जी लेता है. लेकिन, अपनों के साथ-साथ कोई दूसरों के बारे में कुछ सोचे या करे यह बहुत बड़ी बात है. चंडीगढ़ में आरटीआई एक्टिविस्ट राम कुमार गर्ग (आरके गर्ग) ने भी शहर में व्याप्त अव्यवस्थाओं को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी उठा ली है. अगर किसी क्षेत्र में कोई परेशानी पेश आ रही हो, कहीं किसी विभाग में गड़बड़ी का आशंका है तो सबके सबसे पहले आरके गर्ग का नाम ही ध्यान में आता है. आरके गर्ग के सवाल से अधिकारी भी सचेत रहते हैं.
पिछले कई सालों से आरटीआई एक्टिविस्ट के तौर पर काम कर रहे आरके गर्ग: चंडीगढ़ में प्रॉसेस ऑफ चंडीगढ़ के नाम से चलाई जाने वाली संस्था का काम न सिर्फ लोगों को उनके हक को दिलवाना है, बल्कि समाज में एक स्थिरता बनाए रखने के लिए निस्वार्थ भावना से काम करना है. आज के समय में चंडीगढ़ और मनीमाजरा जैसे इलाकों में बड़ी संख्या में लोग अपनी समस्याओं को लेकर आर के गर्ग के पास पहुंचते हैं. वहीं, शहर के कई आम लोग उनकी टीम में शामिल होकर काम करते आ रहे हैं. एक समय में अखबार के संपादक को लिखने वाले पत्र आज प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तक पहुंचाने के हिम्मत रखने वाले आरके गर्ग पिछले कई सालों इस काम को कर रहे हैं. उनका मकसद समाज में लोगों को उनका हक दिलवाते हुए साकारात्मकता फैलाना है.
घर के काम के साथ-साथ आरटीआई के लिए रोजाना समय निकालते हैं आरके गर्ग: हरियाणा के कुरुक्षेत्र के रहने वाले राम कुमार गर्ग पिछले 2 दशकों से चंडीगढ़ में रह रहे हैं. वहीं, एक फाइनेंस एडवाइजर के तौर पर आज भी कम कर रहे हैं. 78 वर्षीय आर के गर्ग जहां रोजाना सुबह अपने ऑफिस का काम करते हैं. वहीं, दोपहर के बाद वे आरटीआई से संबंधित अपनी रिसर्च और उससे जुड़ी हर जानकारी को इकट्ठा करने में जुट जाते हैं. ऐसा करने में उन्हें एक लंबा समय लग जाता है. कई बार किसी मुद्दे रिसर्च के लिए 3 से 6 महीने तक का समय लग जाता है. आरके गर्ग को अपनी विशेष प्रतिभा पर इतना विश्वास है कि वह अकेले ही किसी भी मुद्दे को लेकर खुद रणनीति बनाते हैं और उसे संबंधी योजना पर कड़ी मेहनत करते हैं.
...तो इसलिए आरके गर्ग के हर सवालों का मिल जाता है जवाब: ईटीवी भारत से बात करते हुए आरके गर्ग ने कहा कि, आरटीआई में पूछे जाने वाले सवाल इस तरह से लिखा होता है कि सामने वाला अधिकारी उसे संबंधित सवाल का जवाब देने के लिए मजबूर हो जाता है. उन्होंने कहा कि, अगर अधिकारी जवाब नहीं देता तो उसे इसके परिणाम भुगतने का भी ख्याल बराबर सताने लगता है.
18 साल से शहर से जुड़े मुद्दों पर काम कर रहे आरके गर्ग: आरके गर्ग ने बताया कि, वह शहर से जुड़े कई मुद्दों पर पिछले 18 सालों से कम कर रहे हैं. अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार के विरुद्ध चली मुहिम से वह बहुत प्रभावित हुए थे. जिसके चलते उन्होंने अपनी लिखने की प्रतिभा का इस्तेमाल करते हुए आरटीआई डालनी शुरू की.
मैं अक्सर जिन-जिन शहरों में जाता था. वहां के सभी लोकल न्यूजपेपर के एडिटर को एक पत्र लिखना था, जिसे लेटर टू एडिटर के तौर पर हर न्यूज पेपर में छापा जाता था. उस समय से ही मुझमें लिखने की और सवाल पूछने की एक आदत पनपने लगी. पिछले 18 सालों से मैं आरटीआई यानी सूचना का अधिकार का इस्तेमाल करते हुए चंडीगढ़ और उसके आसपास से जुड़े इलाकों की समस्याओं को हल करवाने के लिए काम कर रहा हूं. मेरा मानना है कि आरटीआई और समाज सेवा से जुड़े कामों को तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक आपके पास ठोस सबूत और मुद्दे ना हो. - आरके गर्ग, आरटीआई एक्टिविस्ट
'आरटीआई डालने के साथ ही समस्या का हल': आरके गर्ग ने बताया कि, साल 2012 से पहले वे लोगों से संबंधित सभी मुद्दों को लेकर संपादक को एक पत्र लिखते थे. लेकिन, आरटीआई का अधिकार मिलने के बाद अखबार के लिए पत्र लिखना बंद कर दिया और 2015 के बाद से आरटीआई डालनी शुरू कर दी. ऐसे में शहर से जुड़े हर मुद्दे को लेकर जवाब मिलते ही कुछ दिनों बाद उस समस्या को प्रशासन द्वारा हल भी किया जाता. पहले चंडीगढ़ प्रशासन में जो अधिकारी अपनी सेवाएं दे रहे थे, आरके गर्ग की जागरूकता के कारण वे आज के समय में आरके गर्ग के घनिष्ठ दोस्त बन चुके हैं. आरके गर्ग ने कुरुक्षेत्र में रहते हुए भारतीय सीमा शुल्क विभाग में काम किया और 1980 के दशक की शुरुआत में उन्हें महाराष्ट्र में तैनात किया गया था.
आरके गर्ग कहते हैं कि, 'एक समय था जब एक मुद्दे को लेकर महाराष्ट्र की जानी मानी पत्रिका में मेरा एक लेख छपा था, वो मेरी अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि है. क्योंकि वो एक ऐसी पत्रिका थी, जिसमें सरकार के खिलाफ लिखने का साहस था. इसके बाद मुझे अपनी लिखने की प्रतिभा पर विश्वास हुआ और मैंने इसको आगे जारी रखा. उसके बाद चंडीगढ़ से जुड़े कई मुद्दों को उठाया. चाहे वह लोगों के लिए रहने की व्यवस्था हो या उन्हें बिजली और पानी मुहैया करवाने की समस्या हो. सभी तरह के मुद्दों को मैंने धीरे-धीरे समझा और उन्हें उनसे जुड़े सवालों को प्रशासन से किया.'
चंडीगढ़ से दिल्ली हवाई यात्रा करने वाले अधिकारियों के खर्चे पर उठा चुके हैं सवाल: बता दें कि, चंडीगढ़ के प्रशासक बनवारी लाल पुरोहित ने सभी अधिकारियों के फ्लाइट से जाने पर पाबंदी लगा दी है. दरअसल चंडीगढ़ से दिल्ली जाने वाले कुछ सरकारी अधिकारी अक्सर रोड से जाने की बजाय महंगी-महंगी फ्लाइट्स में जाते थे. जिसका खर्च आम जनता पर पड़ रहा था. इसके बाद और उन्हें सड़क के रास्ते बट ट्रेन के जरिए जाने के आदेश दिए गए. इस मुद्दे पर आरके गर्ग ने ही सबसे पहले सवाल उठाया था.
चंडीगढ़ में पंजाब राजभवन में विभिन्न राज्यों के स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम पर सवाल: चंडीगढ़ में पंजाब राजभवन में सभी भारत के राज्यों का स्थापना दिवस मनाने का एक चलन शुरू किया गया. ऐसे में इन प्रोग्राम पर होने वाले खर्च को लेकर भी आरके गर्ग ने प्रशासन से सवाल किया कि इन सभी स्थापना दिवस का खर्च क्यों और किस लिए किया जा रहा है. इसका जवाब आया कि यह प्रधानमंत्री द्वारा चलाई जाने वाली योजना के तहत किया जाता है. लेकिन, इसमें खास बात यह रही कि प्रोग्राम का खर्च चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा किया जाता है, जबकि यह राज्यों द्वारा किया जाना चाहिए. अब तक के खर्च से संबंधित ब्यौरा आरके गर्ग को दिया गया है.
साइबर क्राइम को लेकर जागरूक करते रहते हैं आरके गर्ग: वहीं, हरियाणा के हिसार से के रहने वाले सत्य प्रकाश जो पिछले 15 साल से सेक्टर-45 में मैकेनिक का काम करते हैं उन्होंने कहा कि, 'आरटीआई एक्टिविस्ट आरके गर्ग ने उस मुश्किल घड़ी में साथ दिया, जब मुझे साइबर क्राइम का सामना करना पड़ा. साइबर फ्रॉड ने मेरे चार अकाउंट से पैसा निकाल लिए. जब साइबर फ्रॉड मेरे अकाउंट से पैसे निकाले रहे थे तो बैंक द्वारा मुझे मिस गाइड करते हुए पुलिस को इन्फॉर्म करने के लिए बोला गया. पुलिस प्रशासन और बैंक द्वारा सताए जाने के दौरान किसी सभा में आरके गर्ग को साइबर क्राइम के चलते हो रही ठगी के लिए जागरूक करते हुए सुना. उसके बाद से ऐसी तीन-चार सभाओं के दौरान मैंने आरके गर्ग को सुना. मुझे उनसे बहुत प्रेरणा मिली.'