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RTI की जानकारी ना देने वाले अफसरों पर सवा दो करोड़ का जुर्माना - राज्य सूचना अधिकारी पर जुर्माना हरियाणा

आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर ने लोकायुक्त में जुर्माना वसूली के लिए केस दायर किया गया है. राज्य सूचना आयोग ने साल 2006 से दिसंबर 2019 तक राज्य जनसूचना अधिकारियों पर 2.27 करोड़ रुपये जुर्माना लगाया था.

Rs 2 crore penalty pending on state information officer
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Published : Aug 10, 2020, 9:32 AM IST

चंडीगढ़: सूचना के अधिकार कानून के तहत जानकारी ना देने वालों पर सूचना आयोग ने 2.27 करोड़ रुपये से ज्यादा का जुर्माना लगाया है. हैरानी की बात ये है कि किसी भी अधिकारी ने जुर्माना राशि जमा नहीं करवाई है. अभी तक प्रदेश में 1726 जनसूचना अधिकारियों पर साढ़े तीन करोड़ रुपये से ज्यादा जुर्माना लगाया गया है. मगर अधिकारी इसे गंभीरता से नहीं ले रहे हैं.

अब इस मामले को लेकर आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर ने लोकायुक्त में केस दायर किया है. लोकायुक्त के माध्यम से इन अधिकारियों से जुर्माना वसूली लिए केस दायर किया गया है. राज्य सूचना आयोग ने साल 2006 से दिसंबर 2019 तक राज्य जनसूचना अधिकारियों पर 2.27 करोड़ रुपये जुर्माना लगाया था.

डिफाल्टर में एचसीएस अधिकारी भी शामिल

1726 अधिकारियों में कई एचसीएस अधिकारी भी शामिल हैं. सबसे अधिक जुर्माना नगर परिषद जींद के तत्कालीन ईओ वीएन भारती पर लगा है. जिनपर 1.82 लाख रुपये का जुर्माना लगया गया है. वहीं हांसी नगर परिषद के तत्कालीन ईओ अमन ढांडा पर 1.50 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था. अभी तक किसी भी अधिकारी ने जुर्माना राशि नहीं दी है.

RTI के तहत जानकारी ना देने वाले अधिकारियों पर सवा 2 करोड़ रुपये का जुर्माना

आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर ने बताया कि सालों से जुर्माना राशि जमा ना कराने वाले 1726 डिफाल्टर जनसूचना अधिकारियों के खिलाफ उन्होंने लोकायुक्त कोर्ट में शिकायत दायर गई है. उन्होंने बताया कि डिफाल्टरों की सूची में एचसीएस अधिकारी और कई अन्य उच्चाधिकारी भी शामिल हैं. पीपी कपूर ने आरोप लगाया कि अधिकांश सूचना अधिकारी ना तो सूचनाएं देते हैं ना ही राज्य सूचना आयोग द्वारा लगाई गई जुर्माना राशि राजकोष में जमा कराते हैं.

ये भी पढ़ें- हाईकोर्ट के आदेश: लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे विवाहित पुरुष और लड़की को दी जाए सुरक्षा

उन्होंने कहा कि सरकार भी इन डिफाल्टरों के खिलाफ कोई विभागीय कार्रवाई नहीं करती है. नतीजन पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए बना आरटीआई एक्ट 2005 सख्त नजर नहीं आ रहा है. सरकार ने जुर्माना राशि की वसूली के लिए बार-बार सभी उच्चाधिकारियों को सर्कुलर भेजकर पल्ला झाड़ लिया, लेकिन इन आदेशों पर अमल नहीं हुआ.

पीपी कपूर ने मांग की है कि सभी 1726 डिफाल्टर जनसूचना अधिकारियों से जुर्माना राशि ब्याज सहित वसूल की जाए. ड्यूटी से लापरवाह इन जनसूचना अधिकारियों की एसीआर में विपरीत टिप्पणी दर्ज हो. जुर्माना राशि वसूली के लिए राज्य सूचना आयोग में विशेष प्रकोष्ठ गठित हो. जुर्माना वसूली ना करने वाले ड्राईंग एंड डिसर्बसमेंट ऑफिसरों को दंडित किया जाए.

क्या है सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005?

सूचना का अधिकार (Right to Information-RTI) अधिनियम, 2005 भारत सरकार का एक अधिनियम है, जिसे नागरिकों को सूचना का अधिकार उपलब्ध कराने के लिये लागू किया गया है.

क्या हैं प्रमुख प्रावधान?

  • इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत भारत का कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी प्राधिकरण से सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदन कर सकता है, ये सूचना 30 दिनों के अंदर उपलब्ध कराई जाने की व्यवस्था की गई है.
  • यदि मांगी गई सूचना जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित है तो ऐसी सूचना को 48 घंटे के भीतर ही उपलब्ध कराने का प्रावधान है.
  • सभी सार्वजनिक प्राधिकरण अपने दस्तावेज़ों का संरक्षण करते हुए उन्हें कंप्यूटर में सुरक्षित रखेंगे.
  • प्राप्त सूचना की विषय-वस्तु के संदर्भ में असंतुष्टि, निर्धारित अवधि में सूचना प्राप्त ना होने आदि जैसी स्थिति में स्थानीय से लेकर राज्य एवं केंद्रीय सूचना आयोग में अपील की जा सकती है.
  • राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, संसद व राज्य विधानमंडल के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक और निर्वाचन आयोग जैसे संवैधानिक निकायों व उनसे संबंधित पदों को भी सूचना का अधिकार अधिनियम के दायरे में लाया गया है.
  • केंद्र स्तर पर एक मुख्य सूचना आयुक्त और 10 या 10 से कम सूचना आयुक्तों की सदस्यता वाले एक केंद्रीय सूचना आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है. इसी के आधार पर राज्य में भी एक राज्य सूचना आयोग का गठन किया जाएगा.
  • ये जम्मू और कश्मीर (यहां जम्मू और कश्मीर सूचना का अधिकार अधिनियम प्रभावी है) को छोड़कर अन्य सभी राज्यों पर लागू होता है.
  • इसके अंतर्गत सभी संवैधानिक निकाय, संसद अथवा राज्य विधानसभा के अधिनियमों द्वारा गठित संस्थान और निकाय शामिल हैं.

हालांकि साल 2019 में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 में संसोधन किया गया था.

हालांकि केंद्र सरकार ने सूचना अधिकार कानून (RTI Act) 2005 में बदलाव किया है. सरकार ने केंद्रीय स्तर से लेकर राज्य स्तर तक मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) और सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और सेवा शर्तों में बदलाव किया है.

क्या कहता है संशोधन बिल

सूचना अधिकार (संशोधन) विधेयक 2019 में मूलतः दो बदलाव प्रस्तावित है:

1. इसमें मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के कार्यकाल में बदलाव प्रस्तावित है. अब तक यह व्यवस्था है कि सूचना आयुक्त का कार्यकाल 5 साल का होगा. लेकिन अधिकतम उम्र सीमा 65 साल होगी. इसमें जो भी पहले पूरा होगा, उसे माना जाएगा. सरकार ने अब इस व्यवस्था को बदल कर इस कार्यकाल को 'केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित' किया है. यानी मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त का कार्यकाल वो होगा जो सरकार निर्धारित करेगी.

2. वेतन और भत्ते भी वही होंगे जो केंद्र सरकार निर्धारित करेगी. मूल कानून में ये व्यवस्था है कि केंद्रीय स्तर पर मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा शर्तों में चुनाव आयोग का नियम लागू होगा. यानी उन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की तरह वेतन भत्ते प्राप्त होंगे. राज्य स्तर पर राज्य के मुख्य सूचना अधिकारी का वेतन भत्ता राज्य चुनाव आयुक्त के जैसा होगा. जबकि राज्य अन्य सूचना आयुक्तों का वेतन भत्ता राज्य के मुख्य सचिव के जैसा होगा.

3. चुनाव आयोग एक्ट 1991 कहता है कि केंद्र में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों के वेतन, भत्ते और अन्य सेवा शर्तें सुप्रीम कोर्ट के जजों के बराबर होंगी. इस तरह देखें तो केंद्रीय सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्त और राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त के वेतन, भत्ते और सेवा शर्तें सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर होती हैं.

चंडीगढ़: सूचना के अधिकार कानून के तहत जानकारी ना देने वालों पर सूचना आयोग ने 2.27 करोड़ रुपये से ज्यादा का जुर्माना लगाया है. हैरानी की बात ये है कि किसी भी अधिकारी ने जुर्माना राशि जमा नहीं करवाई है. अभी तक प्रदेश में 1726 जनसूचना अधिकारियों पर साढ़े तीन करोड़ रुपये से ज्यादा जुर्माना लगाया गया है. मगर अधिकारी इसे गंभीरता से नहीं ले रहे हैं.

अब इस मामले को लेकर आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर ने लोकायुक्त में केस दायर किया है. लोकायुक्त के माध्यम से इन अधिकारियों से जुर्माना वसूली लिए केस दायर किया गया है. राज्य सूचना आयोग ने साल 2006 से दिसंबर 2019 तक राज्य जनसूचना अधिकारियों पर 2.27 करोड़ रुपये जुर्माना लगाया था.

डिफाल्टर में एचसीएस अधिकारी भी शामिल

1726 अधिकारियों में कई एचसीएस अधिकारी भी शामिल हैं. सबसे अधिक जुर्माना नगर परिषद जींद के तत्कालीन ईओ वीएन भारती पर लगा है. जिनपर 1.82 लाख रुपये का जुर्माना लगया गया है. वहीं हांसी नगर परिषद के तत्कालीन ईओ अमन ढांडा पर 1.50 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था. अभी तक किसी भी अधिकारी ने जुर्माना राशि नहीं दी है.

RTI के तहत जानकारी ना देने वाले अधिकारियों पर सवा 2 करोड़ रुपये का जुर्माना

आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर ने बताया कि सालों से जुर्माना राशि जमा ना कराने वाले 1726 डिफाल्टर जनसूचना अधिकारियों के खिलाफ उन्होंने लोकायुक्त कोर्ट में शिकायत दायर गई है. उन्होंने बताया कि डिफाल्टरों की सूची में एचसीएस अधिकारी और कई अन्य उच्चाधिकारी भी शामिल हैं. पीपी कपूर ने आरोप लगाया कि अधिकांश सूचना अधिकारी ना तो सूचनाएं देते हैं ना ही राज्य सूचना आयोग द्वारा लगाई गई जुर्माना राशि राजकोष में जमा कराते हैं.

ये भी पढ़ें- हाईकोर्ट के आदेश: लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे विवाहित पुरुष और लड़की को दी जाए सुरक्षा

उन्होंने कहा कि सरकार भी इन डिफाल्टरों के खिलाफ कोई विभागीय कार्रवाई नहीं करती है. नतीजन पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए बना आरटीआई एक्ट 2005 सख्त नजर नहीं आ रहा है. सरकार ने जुर्माना राशि की वसूली के लिए बार-बार सभी उच्चाधिकारियों को सर्कुलर भेजकर पल्ला झाड़ लिया, लेकिन इन आदेशों पर अमल नहीं हुआ.

पीपी कपूर ने मांग की है कि सभी 1726 डिफाल्टर जनसूचना अधिकारियों से जुर्माना राशि ब्याज सहित वसूल की जाए. ड्यूटी से लापरवाह इन जनसूचना अधिकारियों की एसीआर में विपरीत टिप्पणी दर्ज हो. जुर्माना राशि वसूली के लिए राज्य सूचना आयोग में विशेष प्रकोष्ठ गठित हो. जुर्माना वसूली ना करने वाले ड्राईंग एंड डिसर्बसमेंट ऑफिसरों को दंडित किया जाए.

क्या है सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005?

सूचना का अधिकार (Right to Information-RTI) अधिनियम, 2005 भारत सरकार का एक अधिनियम है, जिसे नागरिकों को सूचना का अधिकार उपलब्ध कराने के लिये लागू किया गया है.

क्या हैं प्रमुख प्रावधान?

  • इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत भारत का कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी प्राधिकरण से सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदन कर सकता है, ये सूचना 30 दिनों के अंदर उपलब्ध कराई जाने की व्यवस्था की गई है.
  • यदि मांगी गई सूचना जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित है तो ऐसी सूचना को 48 घंटे के भीतर ही उपलब्ध कराने का प्रावधान है.
  • सभी सार्वजनिक प्राधिकरण अपने दस्तावेज़ों का संरक्षण करते हुए उन्हें कंप्यूटर में सुरक्षित रखेंगे.
  • प्राप्त सूचना की विषय-वस्तु के संदर्भ में असंतुष्टि, निर्धारित अवधि में सूचना प्राप्त ना होने आदि जैसी स्थिति में स्थानीय से लेकर राज्य एवं केंद्रीय सूचना आयोग में अपील की जा सकती है.
  • राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, संसद व राज्य विधानमंडल के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक और निर्वाचन आयोग जैसे संवैधानिक निकायों व उनसे संबंधित पदों को भी सूचना का अधिकार अधिनियम के दायरे में लाया गया है.
  • केंद्र स्तर पर एक मुख्य सूचना आयुक्त और 10 या 10 से कम सूचना आयुक्तों की सदस्यता वाले एक केंद्रीय सूचना आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है. इसी के आधार पर राज्य में भी एक राज्य सूचना आयोग का गठन किया जाएगा.
  • ये जम्मू और कश्मीर (यहां जम्मू और कश्मीर सूचना का अधिकार अधिनियम प्रभावी है) को छोड़कर अन्य सभी राज्यों पर लागू होता है.
  • इसके अंतर्गत सभी संवैधानिक निकाय, संसद अथवा राज्य विधानसभा के अधिनियमों द्वारा गठित संस्थान और निकाय शामिल हैं.

हालांकि साल 2019 में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 में संसोधन किया गया था.

हालांकि केंद्र सरकार ने सूचना अधिकार कानून (RTI Act) 2005 में बदलाव किया है. सरकार ने केंद्रीय स्तर से लेकर राज्य स्तर तक मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) और सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और सेवा शर्तों में बदलाव किया है.

क्या कहता है संशोधन बिल

सूचना अधिकार (संशोधन) विधेयक 2019 में मूलतः दो बदलाव प्रस्तावित है:

1. इसमें मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के कार्यकाल में बदलाव प्रस्तावित है. अब तक यह व्यवस्था है कि सूचना आयुक्त का कार्यकाल 5 साल का होगा. लेकिन अधिकतम उम्र सीमा 65 साल होगी. इसमें जो भी पहले पूरा होगा, उसे माना जाएगा. सरकार ने अब इस व्यवस्था को बदल कर इस कार्यकाल को 'केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित' किया है. यानी मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त का कार्यकाल वो होगा जो सरकार निर्धारित करेगी.

2. वेतन और भत्ते भी वही होंगे जो केंद्र सरकार निर्धारित करेगी. मूल कानून में ये व्यवस्था है कि केंद्रीय स्तर पर मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा शर्तों में चुनाव आयोग का नियम लागू होगा. यानी उन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की तरह वेतन भत्ते प्राप्त होंगे. राज्य स्तर पर राज्य के मुख्य सूचना अधिकारी का वेतन भत्ता राज्य चुनाव आयुक्त के जैसा होगा. जबकि राज्य अन्य सूचना आयुक्तों का वेतन भत्ता राज्य के मुख्य सचिव के जैसा होगा.

3. चुनाव आयोग एक्ट 1991 कहता है कि केंद्र में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों के वेतन, भत्ते और अन्य सेवा शर्तें सुप्रीम कोर्ट के जजों के बराबर होंगी. इस तरह देखें तो केंद्रीय सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्त और राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त के वेतन, भत्ते और सेवा शर्तें सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर होती हैं.

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