चंडीगढ़: हरियाणा का बजट आने वाला है. मनोहर सरकार पार्ट 2 प्रदेश का पहला बजट पेश करने जा रही है. जिसको लेकर हर वर्ग के मन में यह जिज्ञासा है कि सरकार उनके लिए क्या कुछ लेकर आ रही है. हरियाणा प्रदेश के बजट को लेकर ईटीवी भारत हरियाणा की टीम ने वित्त मामलों के जानकार डॉक्टर सुच्चा सिंह गिल से बात की. जिन्होंने न केवल हरियाणा बल्कि राज्य और केंद्र सरकार के बजट के बेसिक्स बारे में विस्तार से जानकारी दी.
वित्त एक्सपर्ट डॉ. सुच्चा सिंह ने न केवल हरियाणा बल्कि राज्य और केंद्र सरकार के बजट के बेसिक्स बारे में विस्तार से जानकारी दी. देखिए ये रिपोर्ट
डॉक्टर सुच्चा सिंह से हमारा पहला सवाल था कि किसी राज्य का बजट बनता कैसे है और किन चीजों का ध्यान रखा जाता है? उनका कहना है कि एक राज्य का बजट दो बातों पर निर्भर होता है. पहला राज्य को जीएसटी के तौर पर पैसा प्राप्त होता है. जिसमें से आधा केंद्र सरकार के पास जाता है और आधा राज्य सरकार के पास. दूसरा पहलू है राज्य का अपना रेवेन्यू और केंद्र सरकार से राज्य को मिलने वाला पैसा, केंद्र सरकार अपनी आय का 42% पैसा अलग-अलग राज्यों में उनके शेयर के हिसाब से बांटती है.
केंद्र और राज्य बजट में क्या फर्क होता है?
डॉक्टर सुच्चा सिंह ने बताया कि राज्य और केंद्र के बजट में काफी फर्क होता है जिसमें सबसे बड़ा फर्क बजट में खर्च किए जाने वाले पैसे का होता है. अगर राज्यों की बात की जाए तो राज्य के पास आधा धन उसके खुद के रेवेन्यू का होता है. जबकि बाकी का पैसा उसे केंद्र सरकार द्वारा मुहैया करवाया जाता है. जो उसे अलग-अलग योजनाओं पर खर्च करना होता है. एक राज्य के बजट पर खर्च किए जाने वाला पैसा सीमित होता है. क्योंकि उसे अपने रेवेन्यू और केंद्र के अलावा कहीं और से पैसा नहीं मिल सकता.जबकि केंद्र सरकार के पास पैसा जुटाने के कई साधन होते हैं. जैसे पहला तो केंद्र सरकार का अपना खुद का रेवेन्यू होता है. दूसरा वह आरबीआई से पैसा ले सकता है. इसके अलावा केंद्र वर्ल्ड बैंक या दूसरे देशों से भी पैसा उधार ले सकता है. इस तरह केंद्र के पास पैसा जुटाने के कई विकल्प होते हैं. जो केंद्र और राज्य के बजट में सबसे बड़ा फर्क है.
योजनाओं पर कैसे खर्च होता है?
डॉक्टर सुच्चा सिंह कहते हैं कि केंद्र सरकार की तरफ से जो योजनाएं चलाई जाती है. उन योजनाओं के लिए केंद्र सरकारी की तरफ से राज्य सरकार को पैसा दिया जाता है. जैसे स्वच्छ भारत, मनरेगा और प्रधानमंत्री आवास योजना आदि. वहीं कुछ योजनाएं राज्य सरकार खुद चलाती है. जिनके लिए पैसा भी राज्य सरकार को ही लगाना पड़ता है. राज्य के पास यह अधिकार होता है कि वह खुद की चलाई योजनाओं पर कितना पैसा खर्च करता है.
राज्य की योजनाओं के लिए कैसे निर्धारित होता है पैसा?
राज्य सरकार अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर यह तय करती है कि उसे किस योजना पर कितना पैसा खर्च करना है. जैसे कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि. जबकि कुछ पहलू ऐसे होते हैं जिन पर लगातार पैसा खर्च करना पड़ता है और यह पहले से तय होता है. जैसे कर्मचारियों का वेतन, सरकारी सुविधाओं, वाहनों आदि पर किया जाने वाला खर्च इत्यादि. वही केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं पर खर्च किए जाने वाला पैसा होता है. जिसमें राज्य अपनी मर्जी से फेरबदल नहीं कर सकता.
राज्य के पास केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं में खर्च किए जाने वाले पैसे को लेकर उसमें बदलाव करने के लिए कोई अधिकार नहीं होते. लेकिन राज्य सरकार अपनी मर्जी से अपनी योजनाओं को लेकर पैसे को कम या ज्यादा खर्च कर सकती है. जैसे केंद्र सरकार कृषि, हेल्थ, एजुकेशन या गरीबों के लिए चलाई जा रही योजनाओं पर अपनी मर्जी से पैसा खर्च कर सकती है.
राज्य सरकार अपनी मर्जी से लोगों को राहत प्रदान करने के लिए भी बजट में फेरबदल कर सकती है. जैसे राज्य सरकार मिनिमम सपोर्ट प्राइस तय कर सकती है. वह गन्ने की फसल का मूल्य निर्धारित कर सकती है. फलों की फसल का मूल्य निर्धारित कर सकती है. गरीबों के लिए राहत पैकेज और बच्चों के लिए स्कॉलरशिप आदि शुरू कर सकती है. इसके अलावा बिजली की दरों में भी सरकार आम लोगों को राहत दे सकती है यह उसके अधिकार क्षेत्र में आता है.
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