चंडीगढ़: हरियाणा के प्राइवेट स्कूलों ने सरकारी स्कूलों पर बच्चों की चोरी करने का आरोप लगा दिया है. मतलब ये कि बड़ी संख्या में छात्र प्राइवेट स्कूल को छोड़कर बिना स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट (School Leaving Certificate) सरकारी स्कूलों में दाखिला ले रहे हैं. छात्र बिना स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट लिए सरकारी स्कूलों में अस्थाई दाखिले ले रहे हैं. जिसके बाद फेडरेशन ऑफ प्राइवेट स्कूल वेलफेयर एसोसिएशन (Federation of Private School Welfare Association) ने सरकारी स्कूलों पर आरोप लगाया है.
प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष कुलभूषण शर्मा ने कहा कि नियमों को ताक पर रखकर बिना एसएलसी यानी स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट के बच्चों को सरकारी स्कूल में भर्ती किया जा रहा है. हरियाणा के शिक्षा मंत्री ने बिना एसएलसी के दाखिले ना होने की बात की थी. मगर जिलों में डीईओ सीधे-सीधे दादागिरी कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि सरकार अगर इस पर कार्रवाई नहीं करती है हम सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे.
प्राइवेट स्कूलों ने आरोप लगाया कि सरकार को प्रत्येक बच्चे पर होने वाले खर्च को लेकर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए, क्योंकि सरकारी स्कूलों में ज्यादा खर्चा प्राइवेट स्कूलों के मुकाबले हो रहा है. इसके अलावा कुलभूषण शर्मा ने 134-ए के तहत स्कूलों का बकाया जारी करने और तेलंगाना, उत्तरप्रदेश की तर्ज पर स्कूलों को खोलने की मांग की है. प्राइवेट स्कूल संचालकों ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल से मांग की है कि वो अपना मौन तोड़कर इस पर कार्रवाई करें.
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कुलभूषण शर्मा ने कहा कि हमनें 125 स्कूलों का डाटा निकाला है. जिसमें 2014 से लेकर अभी तक 1 करोड़ 72 लाख 134-ए का बकाया है. कुलभूषण शर्मा ने कहा कि हरियाणा सरकार की तरफ से 2 से ₹400 प्रति बच्चा दिया जाता है. जबकि दिल्ली सरकार कई गुना ज्यादा पैसा 134-ए के तहत बच्चों की पढ़ाई पर दे रही है. मगर सरकार की तरफ से कई सालों से बकाया जारी नहीं किया गया है. कुलभूषण शर्मा ने सरकार से मांग की है कि कोरोना के इस बुरे दौर में प्राइवेट स्कूल संचालकों की किसी तरीके से मदद करनी चाहिए. उन्हें बिल्डिंग टैक्स, बिजली के बिलों समेत अन्य राहत दी जाए.
क्या है 134-ए नियम?
शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत सभी निजी स्कूलों में कमजोर वर्गों के बच्चों के लिए 10 प्रतिशत सीटों के आरक्षण का प्रावधान है. इन बच्चों का टेस्ट के जरिए निजी स्कूल में दाखिला होता है. इन बच्चों का पूरा खर्चा सरकार उठाती है.