चंडीगढ़ : देश के उत्तरी राज्यों में प्रदूषण ने लोगों का जीना दूभर कर दिया है. पिछले कई दिनों से एयर क्वालिटी इंडेक्स की हालत ख़राब है और लोगों का दम घुट रहा है. दिल्ली के अलावा हरियाणा के ज्यादातर शहरों में एयर क्वालिटी इंडेक्स 300 से 400 के बीच चल रहा है जो लोगों को डरा रहा है. सरकार भले ही अपने स्तर पर प्रदूषण से निपटने के लिए कदम उठाने की बात कर रही हो, पर हालात चिंताजनक बने हुए हैं. वहीं पंजाब और हरियाणा में जल रही पराली को भी प्रदूषण की बड़ी वजह माना जा रहा है. लेकिन क्या वाकई दिल्ली एनसीआर के प्रदूषण के लिए पराली जिम्मेदारी है और कैसे प्रदूषण पर काबू पाया जा सकता है, इसको लेकर हमने ख़ास बातचीत की पीजीआई में पर्यावरण और पब्लिक हेल्थ विभाग के प्रोफेसर डॉ. रविंद्र खैवाल से.
मौसम में बदलाव से बढ़ता है प्रदूषण : प्रोफेसर डॉ. रविंद्र खैवाल ने बताया कि अक्टूबर, नवंबर के महीने में मौसम में बदलाव आता है. इस दौरान वातावरण स्थिर हो जाता है. प्रदूषण के कारक जस के तस बने रहते हैं. वहीं सर्दियां आने से आग जलाने की गतिविधियां बढ़ जाती है. इन वजहों से पॉल्यूशन का लेवल डबल हो जाता है. उन्होंने कहा कि जैसे ही मौसम बदलेगा, बारिश होगी या हवाएं चलेंगी, उससे प्रदूषण का स्तर कम हो जाएगा.
पराली जलाने में आई कमी : पराली जलाने के आंकड़ों पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि साल 2019 में इस वक्त पराली जलाने के 50,000 के करीब मामले थे।. वहीं 2020 और 2021 में ये बढ़कर 90,000 तक पहुंच गए. वहीं साल 2022 में ये आंकड़ा घटकर 50,000 तक आ गया. वहीं इस साल की अगर बात करें तो इसमें करीब 47 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की जा रही है.
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10 दिन में मिलेगी राहत ? : उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में हवा की गति बढ़ेगी और प्रदूषण से कुछ हद तक निजात मिल जाएगी. उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले 10 दिनों में प्रदूषण का लेवल कम होगा और लोगों को राहत मिलेगी.
लॉन्ग टर्म रणनीति की जरूरत : प्रदूषण से निपटने के उपायों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इससे निपटने के लिए लॉन्ग टर्म रणनीति पर काम करना होगा. नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम भी बनाया गया है. भारत सरकार ने इस पर 4000 करोड़ से ज्यादा की मदद भी की है. पहले टारगेट 2024 का रखा गया था, लेकिन कोरोना काल की वजह से टारगेट को 2026 कर दिया गया है. वहीं लोगों में जागरुकता भी पैदा करनी होगी ताकि सरकार और हम सब मिलकर इस पर काम कर सकें.