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हरियाणा के किसान नेता बोले, 'MSP पर कानून, शुरू से ही आंदोलन की मुख्य मांग होनी चाहिए थी' - हरियाणा संयुक्त किसान मोर्चा

तीन कृषि कानूनों की वापसी (farm laws repealed) को पहली मांग बताकर क्या संयुक्त किसान मोर्चा ने गलती की? हरियाणा के स्थानीय किसान नेता और खाप पंचायत से जुड़े नेता भी अब यह मानने लगे हैं कि किसान आंदोलन का पहला लक्ष्य और प्राथमिक मांग एमएसपी ही होनी चाहिये थी, न कि कृषि कानूनों की वापसी. ईटीवी भारत ने आंदोलन की मौजूदा स्थिति को लेकर हरियाणा प्रदेश के किसान नेताओं से बातचीत की.

haryana farmers comments on MSP law
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Published : Nov 28, 2021, 8:12 PM IST

Updated : Nov 28, 2021, 10:41 PM IST

चंडीगढ़/नई दिल्ली: किसानों के मुद्दे पर आंदोलन को सफल बनाने में हरियाणा प्रदेश के किसानों की भी अहम भूमिका रही है. आंदोलन के दो प्रमुख मोर्चे, सिंघु बॉर्डर और टीकरी बॉर्डर हरियाणा क्षेत्र में ही आते हैं. स्थानीय लोग, खाप पंचायतों और प्रदेश के छोटे बड़े किसान संगठनों की मदद आंदोलन के दौरान लगातार दिखी है, लेकिन हरियाणा की कुछ खाप पंचायत और किसान संगठनों के नेता यह मानते हैं कि आंदोलन में हर तरह के तत्व शामिल होते हैं और कुछ लोगों का उद्देश्य राजनीतिक भी जरूर होता है.

ईटीवी भारत ने हरियाणा के ऐसे ही कुछ किसान नेताओं से बातचीत की जो लंबे समय से उपज पर लाभकारी मूल्य की बात करते रहे हैं. इनका कहना है कि आंदोलन का सर्वोपरि मुद्दा शुरुआत से ही एमएसपी गारंटी कानून होना चाहिए था, लेकिन कानून वापसी (farm laws repealed) को सबसे ऊपर रखा गया और अब सरकार ने कृषि कानून वापसी कर प्रचार शुरू कर दिया कि उन्होंने किसानों की बात मान ली. अखिल हरियाणा न्यूनतम समर्थन मूल्य समिति के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप धनखड़ कहते हैं कि एमएसपी आज से नहीं बल्कि वर्षों से किसानों के लिये बड़ा मुद्दा रहा है.

हरियाणा के किसान नेता बोले, 'MSP पर कानून शुरू से ही आंदोलन की मुख्य मांग होनी चाहिए थी'

ये भी पढ़ें- MSP पर बीजेपी-जेजेपी की अलग राह, निशान सिंह बोले- 'एमएसपी पर ही हो फसलों की खरीद'

धनखड़ ने कहा कि हरियाणा के मंडियों में किसानों ने अनशन भी किये हैं और खरीद के मुद्दे पर मंत्रियों का घेराव, इस आंदोलन के पहले से भी होते रहे हैं. पहला मुद्दा एमएसपी ही होना चाहिये ये कानून तो वैसे भी निष्प्रभावी हो जाने थे. वहीं हरियाणा की धनखड़ खाप पंचायत के अध्यक्ष डॉ. ओमप्रकाश धनखड़ का कहना है कि आंदोलन और सरकार के रवैये को खाप अच्छी तरह समझती है. हरियाणा के लोग जाट आंदोलन के समय भी ठगे गए थे. उन्होंने कहा कि आंदोलन खत्म होने के साथ ही लोगों पर लगे मुकदमे भी खत्म होने चाहिये.

किसान कहते हैं कि देश की आबादी के 56% मानव संसाधन खेती और उससे जुड़ी मजदूरी पर निर्भर है. देश की GDP में आज कृषि की हिस्सेदारी 17% है. सरकार 23 फसलों पर एमएसपी घोषित करती है, लेकिन खरीद कभी पूरी नहीं होती. किसान चाहते हैं कि ये खामियां दूर की जाएं. देश के कई राज्य जैसे कि पंजाब और हरियाणा, उत्तराखंड और राजस्थान समेत अन्य राज्यों की हाईकोर्ट ने भी यह कहा है कि एमएसपी पर कानून होना चाहिये. 21 राजनीतिक पार्टियों ने जिस ड्राफ्ट बिल का समर्थन किया उसकी प्रति केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को पहले ही सौंपी जा चुकी है. ऐसे में सरकार को एमएसपी पर कानून बनाने में दिक्कत नहीं होनी चाहिये.

ये भी पढ़ें- 'देश के ज्यादातर किसान नहीं उठा पाते MSP का लाभ', किसान सभा ने बताई वजह

हरियाणा संयुक्त किसान मोर्चा (haryana samyukt kisan morcha) की हमेशा यह राय रही है कि एमएसपी को पहले रखा जाए और कृषि कानूनों को दूसरे नंबर पर रखा जाए, लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा पर आढ़तियों का प्रभाव ज्यादा है और समूह में बैठे लोग में आढ़तियों द्वारा प्रायोजित लोग भी बैठे हैं. इसलिये देश के किसानों का भला करने वाले असली मुद्दे को दबाया गया और आढ़तियों के मुद्दे को प्राथमिक बना दिया. किसान मानते हैं कि तीन कृषि कानूनों के मुद्दे पर किसानों को बरगलाया गया और 'कानून वापसी तो घर वापसी' का नारा गलत था. आज यदि एमएसपी को पहली मांग बना कर आंदोलन आगे बढ़ता तो एक फसल पर किसानों को प्रति एकड़ कम से कम 5 से 10 हजार रुपये तक का लाभ होता.

स्पष्ट है कि ऐसे किसानों की संख्या भी है जो संयुक्त किसान मोर्चा की नीतियों से अलग सोचते हैं और अपने विचार खुल कर रखते हैं. ये किसान भी बोर्डरों पर लगातार बैठे रहे हैं और अपनी प्राथमिक मांग एमएसपी बताते रहे हैं. ऐसे में संसद के शीतकालीन सत्र में कृषि कानून निरस्त होने के बाद भी किसानों का मुद्दा शांत होने की संभावना नहीं दिखती.

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चंडीगढ़/नई दिल्ली: किसानों के मुद्दे पर आंदोलन को सफल बनाने में हरियाणा प्रदेश के किसानों की भी अहम भूमिका रही है. आंदोलन के दो प्रमुख मोर्चे, सिंघु बॉर्डर और टीकरी बॉर्डर हरियाणा क्षेत्र में ही आते हैं. स्थानीय लोग, खाप पंचायतों और प्रदेश के छोटे बड़े किसान संगठनों की मदद आंदोलन के दौरान लगातार दिखी है, लेकिन हरियाणा की कुछ खाप पंचायत और किसान संगठनों के नेता यह मानते हैं कि आंदोलन में हर तरह के तत्व शामिल होते हैं और कुछ लोगों का उद्देश्य राजनीतिक भी जरूर होता है.

ईटीवी भारत ने हरियाणा के ऐसे ही कुछ किसान नेताओं से बातचीत की जो लंबे समय से उपज पर लाभकारी मूल्य की बात करते रहे हैं. इनका कहना है कि आंदोलन का सर्वोपरि मुद्दा शुरुआत से ही एमएसपी गारंटी कानून होना चाहिए था, लेकिन कानून वापसी (farm laws repealed) को सबसे ऊपर रखा गया और अब सरकार ने कृषि कानून वापसी कर प्रचार शुरू कर दिया कि उन्होंने किसानों की बात मान ली. अखिल हरियाणा न्यूनतम समर्थन मूल्य समिति के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप धनखड़ कहते हैं कि एमएसपी आज से नहीं बल्कि वर्षों से किसानों के लिये बड़ा मुद्दा रहा है.

हरियाणा के किसान नेता बोले, 'MSP पर कानून शुरू से ही आंदोलन की मुख्य मांग होनी चाहिए थी'

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धनखड़ ने कहा कि हरियाणा के मंडियों में किसानों ने अनशन भी किये हैं और खरीद के मुद्दे पर मंत्रियों का घेराव, इस आंदोलन के पहले से भी होते रहे हैं. पहला मुद्दा एमएसपी ही होना चाहिये ये कानून तो वैसे भी निष्प्रभावी हो जाने थे. वहीं हरियाणा की धनखड़ खाप पंचायत के अध्यक्ष डॉ. ओमप्रकाश धनखड़ का कहना है कि आंदोलन और सरकार के रवैये को खाप अच्छी तरह समझती है. हरियाणा के लोग जाट आंदोलन के समय भी ठगे गए थे. उन्होंने कहा कि आंदोलन खत्म होने के साथ ही लोगों पर लगे मुकदमे भी खत्म होने चाहिये.

किसान कहते हैं कि देश की आबादी के 56% मानव संसाधन खेती और उससे जुड़ी मजदूरी पर निर्भर है. देश की GDP में आज कृषि की हिस्सेदारी 17% है. सरकार 23 फसलों पर एमएसपी घोषित करती है, लेकिन खरीद कभी पूरी नहीं होती. किसान चाहते हैं कि ये खामियां दूर की जाएं. देश के कई राज्य जैसे कि पंजाब और हरियाणा, उत्तराखंड और राजस्थान समेत अन्य राज्यों की हाईकोर्ट ने भी यह कहा है कि एमएसपी पर कानून होना चाहिये. 21 राजनीतिक पार्टियों ने जिस ड्राफ्ट बिल का समर्थन किया उसकी प्रति केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को पहले ही सौंपी जा चुकी है. ऐसे में सरकार को एमएसपी पर कानून बनाने में दिक्कत नहीं होनी चाहिये.

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हरियाणा संयुक्त किसान मोर्चा (haryana samyukt kisan morcha) की हमेशा यह राय रही है कि एमएसपी को पहले रखा जाए और कृषि कानूनों को दूसरे नंबर पर रखा जाए, लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा पर आढ़तियों का प्रभाव ज्यादा है और समूह में बैठे लोग में आढ़तियों द्वारा प्रायोजित लोग भी बैठे हैं. इसलिये देश के किसानों का भला करने वाले असली मुद्दे को दबाया गया और आढ़तियों के मुद्दे को प्राथमिक बना दिया. किसान मानते हैं कि तीन कृषि कानूनों के मुद्दे पर किसानों को बरगलाया गया और 'कानून वापसी तो घर वापसी' का नारा गलत था. आज यदि एमएसपी को पहली मांग बना कर आंदोलन आगे बढ़ता तो एक फसल पर किसानों को प्रति एकड़ कम से कम 5 से 10 हजार रुपये तक का लाभ होता.

स्पष्ट है कि ऐसे किसानों की संख्या भी है जो संयुक्त किसान मोर्चा की नीतियों से अलग सोचते हैं और अपने विचार खुल कर रखते हैं. ये किसान भी बोर्डरों पर लगातार बैठे रहे हैं और अपनी प्राथमिक मांग एमएसपी बताते रहे हैं. ऐसे में संसद के शीतकालीन सत्र में कृषि कानून निरस्त होने के बाद भी किसानों का मुद्दा शांत होने की संभावना नहीं दिखती.

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Last Updated : Nov 28, 2021, 10:41 PM IST
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