चंडीगढ़: हरियाणा में 2019 के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद बीजेपी 40 विधायकों के साथ प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनी. लेकिन 90 विधानसभा सीटों वाले इस प्रदेश में बहुमत से 6 सीट दूर रह गई. जिसके बाद दूसरी बार सरकार बनाने के लिए बीजेपी को 10 सीटों वाली जननायक जनता पार्टी के साथ गठबंधन करना पड़ा. करीब साढ़े तीन साल के कार्यकाल के दौरान बीजेपी और जेजेपी के कुछ नेताओं की ओर से गठबंधन को लेकर बयानबाजी होती रही है, इसके बावजूद सरकार की सेहत ठीक बनी रही. लेकिन 2024 के चुनाव से पहले दोनों पार्टियों में एक बार फिर खींचतान शुरू हो गई है.
गठबंधन में चुनाव लड़ने का नया सवाल और सियासी बवाल तब शुरु हुआ जब बीते दिनों बीजेपी के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह से सवाल किया गया कि बीजेपी को हरियाणा में अगला अकेले लड़ना चाहिए या गठबंधन में. इस पर बिना किसी लागलपेट के चौधरी बीरेंद्र ने दो टूक कहा कि बीजेपी को अकेले चुनाव लड़ना चाहिए. उन्होंने गठबंधन को कमजोरी की निशानी बताया और कहा कि साल 2014 के बाद से बीजेपी ने हरियाणा में खुद की जड़ों को मजबूत कर लिया है. बीजेपी को अकेले चुनाव लड़ना चाहिए और उसके नतीजे भी अच्छे आएंगे.
चौधरी बीरेंद्र सिंह के इसी बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में बीजेपी और जेजेपी के गठबंधन पर कयासों का दौर शुरू हो गया. हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज से जब सवाल किया गया तो उन्होंने भी कहा कि चौधरी बीरेंद्र सिंह की ये बात सही है कि बीजेपी मजबूत हुई है लेकिन गठबंधन में चुनाव लड़ने का फैसला हाईकमान लेगा कोई व्यक्ति विशेष नहीं.
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आने वाले हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में गठबंधन पर उठा ये सवाल यही नहीं रुका. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने इस मुद्दे को और हवा दे दी. उन्होंने कहा कि अभी तो दोनों ही दल अपने-अपने हिसाब से लगे हुए हैं. हम ये कहते हैं कि हम 10 के 10 लोकसभा सीटें जीतेंगे. जेजेपी भी यही कहती है कि डिप्टी हटा दो (यानी जेजेपी दुष्यंत चौटाला को सीएम बनाना चाहती है). वे भी अपनी तैयारी पर लगे हुए हैं और हम भी. जब समय आयेगा तब जवाब दिया जायेगा.
चौधरी बीरेंद्र सिंह के बेटे और हिसार से बीजेपी के सांसद बृजेंद्र सिंह भी कह चुके हैं कि आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बीजेपी को किसी की बैसाखी की जरूरत नहीं है क्योंकि बीजेपी एक सशक्त पार्टी है. केंद्र में 9 साल से और हरियाणा में साढ़े आठ साल से सत्ता में है. वे कहते हैं बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ओपी धनखड़ ने स्पष्ट कर दिया है कि हम 10 की 10 सीटों पर लड़ने की तैयारी कर रहे हैं और वे (जेजेपी) डिप्टी हटाने की तैयारी कर रहे हैं. जब उनसे सवाल किया गया कि अगर बीजेपी जेजेपी का चुनाव लड़ने का गठबंधन होता है और उचाना विधानसभा सीट जेजेपी के खाते में गई तो वे क्या करेंगे. इसका जवाब देते हुए उन्होने कहा कि हमारे का परिवार का सदस्य 100 फीसदी वहां से चुनाव लड़ेगा.
चौधरी बीरेंद्र सिंह के परिवार की बयानबाजी तेज हुई तो जेजेपी के प्रधान महासचिव दिग्विजय चौटाला भी आक्रामक हो गए. दिग्विजय चौटाला कहते हैं कि चुनाव राजनीतिक अखाड़ा होता है. उन्हें बयानबाजी के बजाय चुनाव में दो-दो हाथ करके देख लेना चाहिए. बीरेंद्र सिंह और उनका परिवार ना ही चुनाव में और ना ही जनहित के कार्यों में दुष्यंत चौटाला का मुकाबला कर सकते हैं. गठबंधन को लेकर चौधरी बीरेंद्र व उनके परिवार के बयानों से जाहिर होता है कि उनके लिए पार्टी से ऊपर उनका निजी राजनीतिक स्वार्थ है.
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इस मामले पर राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर सुरेंद्र धीमान कहते हैं कि यह बयानबाजी बताती हैं कि दोनों दल आने वाला चुनाव शायद गठबंधन में ना लड़ें. वे कहते हैं कि कहीं न कहीं बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता भी गठबंधन में चुनाव लड़ने से बचना चाह रहे हैं. वहीं जननायक जनता पार्टी के नेता और कार्यकर्ता भी चाहते हैं कि दुष्यंत चौटाला प्रदेश के मुख्यमंत्री बनें. ऐसे में जब बीजेपी और जेजेपी का गठबंधन है, बीजेपी का मुख्यमंत्री है तो फिर यह सब कैसे संभव होगा. इसके अलावा चुनाव में बीजेपी और जेजेपी के बीच सीट का बंटवारा भी आसान नहीं होगा. जेजेपी अगर कम सीटों पर लड़ी तो फिर दुष्यंत चौटाला को सीएम बनाने का ख्वाब पूरा नहीं होगा. ऐसे में गठबंधन का लोकसभा और विधानसभा चुनाव में चल पाना आसान दिखाई नहीं दे रहा है.
चौधरी बीरेंद्र सिंह के परिवार की बयानबाजी को लेकर सुरेंद्र धीमान कहते हैं कि ऐसी राजनीतिक चर्चाएं हैं कि बीरेंद्र सिंह खुद को बीजेपी में फिट महसूस नहीं कर रहे हैं. इसकी बड़ी वजह उचाना में पिछले विधानसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला से मिली करारी हार है. अगर बीजेपी-जेजेपी का गठबंधन रहता है तो 2024 के चुनाव में उनकी पत्नी प्रेमलता का चुनावी भविष्य खतरे में पड़ जायेगा. उनके सांसद बेटे बृजेंद्र सिंह के भी हिसार लोकसभा से चुनाव लड़ने पर सवाल खड़ा हो जायेगा क्योंकि कुलदीप बिश्नोई भाजपा में शामिल हो गए हैं और वे लोकसभा चुनाव में हिसार सीट पर अपनी दावेदारी जरूर करेंगे. अगर बेटे और पत्नी का राजनीतिक भविष्य खतरे में पड़ गया तो निश्चित तौर पर चौधरी बीरेंद्र सिंह बीजेपी का दामन भी छोड़ सकते हैं.
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