चंडीगढ़: कृषि कानूनों के विरोध में 67 दिन से किसान दिल्ली से लगती सीमाओं पर डटे हैं. सिर्फ किसान ही नहीं बल्कि विपक्षी दल के नेता भी कृषि कानून के खिलाफ रोष जाहिर कर चुके हैं. सत्ता पक्ष के कुछ नेता भी इन कानूनों को लेकर अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा कर चुके हैं. एक तरफ नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र हुड्डा सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाने की मांग कर रही हैं, तो दूसरी तरफ हरियाणा के मुख्यमंत्री भी बजट सत्र में विपक्ष को चुनौती दे चुके हैं.
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हरियाणा का बजट सत्र फरवरी के अंतिम सप्ताह में शुरू हो सकता है. दूसरी तरफ कांग्रेस के लिए चुनौती काफी बड़ी है. अविश्वास प्रस्ताव की बात कर रही कांग्रेस की एक और सीट कम हो गई है. कालका विधानसभा सीट से कांग्रेस के विधायक प्रदीप चौधरी की सदस्यता को रद्द कर दिया गया है.
वहीं इनेलो नेता अभय चौटाला कृषि कानूनों के विरोध में इस्तीफा दे चुके हैं. यानी हरियाणा में अब 90 विधानसभा सीटों में से दो सीटें खाली हो गई है. अब हरियाणा में 88 विधायक हैं, सरकार चलाने के लिए बहूमत के लिए 45 सीटें जरूरी हैं. बीजेपी के पास फिलहाल 40 और जेजेपी के 10 विधायक है. दोनों की मिलाकर 50 सीटें बनती है. जो कि बहुमत के आंकड़े से कहीं ज्यादा है. ऐसे में कांग्रेस के लिए अविश्वास पसताव लेकर सरकार को गिराना मुश्किल लग रहा है.
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विधानसभा के मौजूदा समीकरण को देखते हुए बजट सत्र में अगर कांग्रेस की तरफ से अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है तो, कांग्रेस को अब 45 विधायकों का बहुमत दिखाना होगा. जो अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में हो. 90 विधायकों वाली विधानसभा में 46 का आंकड़ा बहुमत का रहत है, जोकि अब 45 का रह गया है. 90 सदस्यों वाली हरियाणा विधान सभा में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या अब 31 से घट कर 30 रह गई है. अभय सिंह चौटाला के त्याग पत्र देने बाद अब इनेलो की एक भी संख्या विधानसभा में नहीं रही.
हरियाणा में विधायकों की संख्या हुई 88
विधानसभा सदस्यों की संख्या 90 से घटकर 88 रह जाने के बाद अब बहुमत का आंकड़ा 46 की बजाय 45 हो गया है. बीजेपी विधायकों की संख्या 40 है जबकि उन्हें 10 जेजेपी के विधायकों का समर्थन प्राप्त है. इसके इलावा 5 निर्दलीयों का समर्थन सरकार को प्राप्त है. इनमें लोकहित पार्टी के एकमात्र विधायक गोपाल कांडा का भी सरकार को समर्थन है. इस तरह से 56 विधायकों का समर्थन सरकार के पास है.
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दूसरी तरफ निर्दलीय विधायक सोमवीर सांगवान और बलराज कुंडू सरकार से समर्थन वापस ले चुके हैं. अगर कांग्रेस के 30 विधायकों समेत 2 निर्दलीय भी सरकार को समर्थन देते हैं, तो भी आंकड़ा कांग्रेस के लिए काफी दूर नजर आ रहा है. किसान आंदोलन के बीच विपक्ष के हमलावर होने से डिफेंसिव मोड में आई सरकार अब विधानसभा में संख्या बल के हिसाब से मजबूत हो गई है.
अविश्वास प्रस्ताव से सरकार पर नहीं पड़ेगा असर!
कुल मिलाकर बात ये है कि अगर कांग्रेस बजट सत्र में अविश्वास प्रस्ताव लाती भी है तो उससे सरकार के ऊपर कोई फर्क पड़ता नजर नहीं आ रहा. क्योंकि बीजेपी-जेजेपी गठबंधन से सरकार के पास संख्याबल पहले से ही मजबूत है. मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने बिजली मंत्री एवं निर्दलीय विधायक रणजीत सिंह चौटाला समेत 3 निर्दलीय विधायकों के साथ लंच किया था. जिसके बाद भी ये निर्दलीय सरकार के साथ ही मजबूती से खड़े होने की बात कहते नजर आए थे. इससे पहले दिल्ली में उपमुख्यमंत्री सीएम दुष्यंत चौटाला ने अपने विधायकों के साथ चर्चा की थी.
जेजेपी के विधायक रामकरण काला और जोगी राम सिहाग भी कृषि कानून का समर्थन कर चुके हैं. जेजेपी के वरिष्ठ नेता और विधायक रामकुमार गौत्तम भी जेजेपी के खिलाफ मुखर रहते हैं. इस बीच अगर कुछ जेजेपी विधायक खुलकर अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करते हैं तो भी सरकार पूरी तरफ से बहुमत में नजर आ रही है. फिलहाल तो हर एंगल से हरियाणा सरकार सेफ जोन में नजर आ रही है. नियमों के अनुसार 18 विधायक अगर सरकार पर अविश्वास जताते हैं तो विधानसभा स्पीकर को 10 दिन के भीतर अविश्वास प्रस्ताव चर्चा के लिए स्वीकार करना होगा.
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