चंडीगढ़: कृषि अध्यादेशों को लेकर मंगलवार को काफी हलचल देखी गई. प्रदेश में किसानों की तरफ से सरकार के खिलाफ हल्ला बोलने की बड़ी तैयारी है. अपने तय कार्यक्रम के अनुसार किसानों ने सुबह से ही पूरे प्रदेश में जगह-जगह धरने दिए.
मंगलवार से शुरू हुआ प्रदेशस्तरीय प्रदर्शन
अंबाला में भारतीय किसान यूनियन के बैनर तले भारी संख्या में किसान जिला उपायुक्त कार्यालय के बाहर इकट्ठा हुए और सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की. वहीं यमुनानगर की बात करें तो यहां भी किसानों ने सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद की और सरकार पर किसान विरोधी होने का आरोप लगाया.
भिवानी में भी किसानों का गुस्सा चरम पर था, किसानों ने यहां न सिर्फ कृषि विरोधी अध्यादेश बल्कि बिजली बिलों की भी प्रतियां जलाई. किसानों ने कहा कि सरकार उन पर अन्याय कर रही है, उन पर लाठीचार्ज करती है, इस रवैये को नहीं सहा जाएगा. कैथल का नजारा भी कुछ अलग नहीं था. यहां भी सरकार खिलाफ प्रदर्शन किया गया.
दिल्ली में क्या हुआ?
तो वहीं दूसरी ओर आज हरियाणा का किसान प्रतिनिधिमंडल और बीजेपी के कई सांसद कृषि अध्यादेशों को लेकर दिल्ली में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर से मुलाकात करने वाले थे, लेकिन हरियाणा के कृषि मंत्री से मिलने के बाद ही दिल्ली में किसान नेताओं ने केंद्रीय मंत्री से मिलने से इनकार कर दिया.
नहीं होगा समझौता!
भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मिलने की हरियाणा बीजेपी की पहल को साफ तौर से नकार दिया. उन्होंने कहा कि जब तक तीनों कृषि अध्यादेश वापस नहीं लिए जाते तब तक केंद्रीय कृषि मंत्री से कोई बात नहीं होगी.
कौन कर रहा राजनीति?
किसान नेता द्वारा केंद्रीय कृषि मंत्री से मुलाकात नहीं करने पर हरियाणा के कृषि मंत्री जेपी दलाल खुद केंद्रीय कृषि मंत्री का मान रखने के लिए मिलने पहुंचे और किसानों की मांगें सामने रखी. पता नहीं केंद्रीय और राज्य के कृषि मंत्री के बीच ऐसी कौन सी बात हुई कि इन दोनों ने भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी पर कांग्रेस से सांठ गांठ के आरोप लगा दिए. शायद केंद्रीय मंत्री तोमर को गुरनाम सिंह का मिलने से इनकार कर देना खटक गया.
आपस में मनमुटाव
सरकार तो सरकार किसान नेताओं का मनमुटाव आपस में दिख गया, दिल्ली में स्थित हरियाणा भवन में किसान संगठन आपस में भिड़ गए. यहां कई किसान नेताओं ने गुरनाम सिंह चढूनी पर कांग्रेस से मिलीभगत कर किसानों को गुमराह करने के आरोप लगाए.
..तो आगे क्या?
दिल्ली में जिस तेजी के साथ घटनाक्रम बदला और किसान संगठनों में आपस में मनभेद दिखा. उससे एक बात तो साफ हो गई है, कि राजनीति से कोई अछूता नहीं है. किसानों का प्रतिनिधित्व कर रहें संगठन में ही एकता नहीं होगी तो सरकार तो फायदी उठाएगी ही, बरहाल फिलहाल पूरे राज्य में मंगलवार को फिजा बदली रही और किसानों ने जता दिया है कि सरकार ने अगर उनकी बात नहीं सुनी तो 20 तारीख को पूरे प्रदेश में हाईवे, और सड़क जाम करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ा जाएगा. ऐसे में अब सरकार के पास दो ही विकल्प है या तो किसानों की बात सुनी जाए या फिर लाठीचार्ज कर फिर से अपनी भद्द पिटवाए.
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