चंडीगढ़ः बरसात के मौसम में वैसे तो कई बीमारियां लोगों को प्रभावित करती हैं, क्योंकि बरसात के मौसम में बैक्टीरिया सबसे ज्यादा एक्टिव होते हैं. इन बीमारियों में आई फ्लू का खतरा सबसे ज्यादा बना रहता है. इस मौसम में आंखों के संक्रमण के मामले सबसे ज्यादा आते हैं. आंखों में इस बीमारी से झिल्ली बन जाती है, आंखें लाल हो जाती हैं और साथ ही आंखें खोलने में दिक्कत होती है. हरियाणा में भी इन दिनों बरसात की वजह से आंखों की समस्या से जूझने वाले मरीजों की संख्या 60 से 80 फ़ीसदी तक बढ़ गई है. बरसात के मौसम में होने वाले आंखों के संक्रमण से मरीज कैसे बच सकते हैं और कैसे अपना ध्यान रख सकते हैं, इन्हीं सभी बातों को लेकर हमने नेत्ररोग विशेषज्ञ डॉक्टर अशोक शर्मा से बात की.
सवाल- आजकल आंखों के संक्रमण के किस तरह के मामले ज्यादा आ रहे हैं और उसकी वजह क्या बरसात ही है?
जवाब- आजकल आंखों की एलर्जी से लोग ज्यादा परेशान रहते हैं. जिससे बच्चे हो या बड़े, सभी प्रभावित होते हैं. दरअसल बैक्टीरिया की वजह से आंखों में यह समस्या होती है इससे आंखों में सूजन भी होती है. वैसे आजकल वायरल संक्रमण के बहुत ज्यादा मामले आ रहे हैं. इसमें आंखों से बहुत ज्यादा पानी आता है और सूजन भी होती है. जिसे हम आई फ्लू कहते हैं. सामान्य दिनों में तीन-चार मामले हमारे पास आते थे, लेकिन बरसात के मौसम में तो रोजे 10-12 मामले आ रहे हैं. वायरस की वजह से होने वाले आई फ्लू की मुख्य वजह एडिनो वायरस है. यह वायरस आजकल ज्यादातर आंखों के संक्रमण के मामले में पाया जाता है. इस वायरस की खासियत यह है कि अगर परिवार में किसी एक को हो जाए तो बाकी सदस्यों को भी संक्रमित करता है, क्योंकि यह बड़ी तेजी से फैलता है. हम इसे सामान्य भाषा में ऐसे भी कहते कि जैसे मंदिर में प्रसाद बंटता है, वैसे ही यह तेजी से फैलता है.
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सवाल- आंखों का संक्रमण तेजी से ना फैले, इसके लिए क्या बचाव किया जा सकता है?
जवाब- इसको फैलने से रोकने के लिए 2 तरीके इस्तेमाल किए जाते हैं. एक तो इसका ट्रीटमेंट समय पर किया जाए. डॉक्टर के तौर पर हम इसके ट्रीटमेंट में एंटीबायोटिक देते हैं, क्योंकि मरीज बार-बार संक्रमित आंखों को हाथ लगाता है, जिससे इसके फैलने का डर बना रहता है. इसलिए एंटीबायोटिक का इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही आई ड्रॉप का भी इस्तेमाल किया जाता है ताकि जो संक्रमण है उसकी वजह से होने वाली एलर्जी आंखों में ज्यादा ना हो और आंखें नॉर्मल रहे. इस तरह के मामलों में स्टीरियोड ड्रॉप का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. स्टीरियोड ड्रॉप का इस्तेमाल तभी होता है, जबकि बीमारी बहुत ज्यादा फैल गई हो, या बीमारी के ठीक होने पर जब कॉर्निया पर निशान पड़ जाते हैं, तो उन हालातों में इस ड्रॉप का इस्तेमाल किया जाता है. इस ड्रॉप के ज्यादा इस्तेमाल से काला मोतिया सफेद मोतिया बनने के चांस ज्यादा हो जाते हैं, या फिर आंखों में ड्राइनेस भी हो जाती है.
सवाल- इस बीमारी को आगे फैलने से कैसे रोका जाए? या फिर किसी को हो जाए तो उसे क्या क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?
जवाब- अगर परिवार में किसी को आई फ्लू हो जाए तो उसे बार-बार आखों पर हाथ नहीं लगाना चाहिए. इसके साथ ही जिसको यह संक्रमण हुआ है, वह अपने हाथ धोते रहे. अगर आप बार-बार हाथ नहीं धो सकते हैं तो हैंड सैनिटाइजर का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके साथ ही घर में आप जो तौलिया और कपड़ों को इस्तेमाल करते हैं, उन्हें अलग रखें. तकिए का कवर इसमें सबसे खास होता है, क्योंकि रात को सोते वक्त आंखों से जो डिस्चार्ज होता है वह तकिए पर लग जाता है. यह और लोगों को संक्रमित कर सकता है. इसलिए बार-बार कवर को बदलते रहे. इसके साथ ही अगर किसी को आई फ्लू हो गया है तो उससे क्लोज कांटेक्ट ना करें. इसके साथ ही हाथ मिलाना भी बंद कर दें. इससे बीमारी को फैलने से रोक सकते हैं.
सवाल- लोगों में यह भ्रांति है कि आंखों के आंखों से कांटेक्ट होने से भी बीमारी फैलती है, क्या ऐसा है? दूसरा, अगर समय पर इसका इलाज न किया जाए तो क्या यह घटक हो सकता है?
जवाब- जहां तक ट्रीटमेंट का सवाल है तो यह सेल्फ लिमिटिंग है. ट्रीटमेंट भी बड़ा साधारण सा रहता है. जहां तक बात आंखों के आंखों से कांटेक्ट की है तो उससे यह बीमारी नहीं फैलती है. अगर किसी को आई फ्लू है तो आप दूर खड़े रहकर उससे बात कर सकते हैं, लेकिन फिर भी अगर संदेह है तो आप कोई भी काला चश्मा पहन सकते हैं. जहां तक इस बीमारी के आगे बड़ी समस्या बनने की बात है तो वह कुछेक मामलों में हो सकता है. इस तरह के मामलों में आंख के अंदर सूजन हो जाती है, लेकिन यह बहुत ही रेयर होता है. हजार मामलों में एक केस ऐसा हो सकता है, जिसमें आंखों में सूजन हो जाए.
कई बार आंख पर दबाव होने से भी काला मोतिया हो जाता है. कुछ मामलों में देखने को मिलता है कि कॉर्निया पर स्पाट पड़ जाता है. इस तरह के निशान पड़ने को न्यूमलर कैराटाइटिस कहा जाता है. इसे एडिनोवायरल केराटाइटिस भी कहा जाता है. वायरस से जो एंटीजन निकलता है, उसका एंटीबॉडी रिएक्शन होता है, जिससे ये स्पॉट बनते हैं. स्टेरॉयड देने से यह ठीक तो हो जाते हैं लेकिन इससे समस्याएं होती रहती हैं. इसलिए इसके साथ ही नॉनस्टेरॉयड दवाओं का भी इलाज में इस्तेमाल किया जाता है.
सवाल- बरसात के मौसम में बैक्टीरिया ज्यादा तेजी से फैलते हैं, क्या इस बीमारी के फैलने की यही वजह है?
जवाब- बिल्कुल, क्योंकि इस मौसम में जर्म ज्यादा तेजी से फैलते हैं. इस मौसम में आपने देखा होगा कि जैसे घरों में ब्रेड या अचार खुला रह जाता है तो उस में फंगस तुरंत आ जाती है. उसी तरह बैक्टीरिया भी ज्यादा तेजी से फैलते हैं. जहां तक बात एडिनोवायरस की है तो बरसात के मौसम में यह एक्टिव रहता है, जिसकी वजह से इन दिनों आई फ्लू के मामले ज्यादा आते हैं.
सवाल- क्या इन दिनों जो कपड़े हम इस्तेमाल करते हैं, बचाव के तौर पर उनका ड्राई रहना जरूरी है?
जवाब- बिल्कुल हम जो भी कपड़े पहने या जिन भी कपड़ों को इस्तेमाल करते हैं, चाहे वो फिर रुमाल हो, तौलिया हो, या अंडर गारमेंट हो, सभी पूरी तरह से ड्राई होने चाहिए. अगर मौसम की वजह से आप उन कपड़ों को सुखा नहीं पा रहे हैं तो अच्छा रहेगा कि आप इस्त्री यानी प्रेस का इस्तेमाल करें. जिससे की वे ड्राई हो जाएं. ऐसा करने से अगर घर में किसी को आई फ्लू हुआ भी है तो उसके संक्रमण का खतरा कम हो जाएगा.