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एक्सपर्ट की रायः कोरोना संकट के बीच कृषि क्षेत्र देगा अर्थव्यवस्था को सहारा

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Published : Apr 16, 2020, 6:38 PM IST

Updated : Apr 16, 2020, 7:14 PM IST

देश भर में कोरोना के कहर के चलते लॉकडाउन के बीच सरकार ने कृषि, पशुपालन, मछली पालन और पोल्ट्री उत्पादों को लेकर रियायतें दी है. आर्थिक मामलों के जानकार सरकार के इस कदम की तारीफ कर रहे हैं और एक्पर्ट की माने तो सरकार ने इस कदम से अर्थवयवस्था के एक बड़े हिस्से को बचा लिया है.

Agriculture sector will support the economy amid Corona crisis
Agriculture sector will support the economy amid Corona crisis

चंडीगढ़ः केंद्र सरकार ने लॉकडाउन की अवधि 3 मई तक बढ़ा दी है. इसी के साथ ही सरकार ने कृषि क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए इस क्षेत्र को कुछ छूट भी दी है. ताकि किसान कृषि उत्पाद यानी अपनी फसल को बाजार तक पहुंचा सके और खेती के लिए जो जरूरी साजो सामान हैं वो किसानों को मिल सके. इसके साथ ही केंद्र सरकार ने मछली पालन, पशुपालन के साथ चाय और कॉफी के उत्पादकों को भी रियायतें दी हैं. केंद्र सरकार के इस कदम की अर्थशास्त्री भी तारीफ कर रहे हैं.

कृषि को लेकर क्यों जरूरी थी रियायत ?

आर्थिक मामलों के जानकार बिमल अंजुम ने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था और ज्यादातर आबादी आज भी कृषि पर निर्भर है. उनके मुताबिक कृषि क्षेत्र का सालाना ग्रोथ रेट अभी भी 2.5 से लेकर 2.7 है, जो कि विकसित देशों के मुकाबले बहुत कम है. जबकि हमारा कृषि आधारित एक्सपोर्ट 34 फीसदी के करीब है. हालांकि यह चीन से भी बेहतर है.

एक्सपर्ट की रायः कोरोना संकट के बीच कृषि क्षेत्र देगा अर्थव्यवस्था को सहारा

सरकार ने 2022 तक किसानों की आमदनी डबल करने का लक्ष्य रखा है. वहीं अगर सरकार ने अगर इस वक्त यह रियायत नहीं दी होती तो वह लक्ष्य पाना मुश्किल हो जाता. अभी खेतों में किसानों की फसल तैयार खड़ी है. ऐसे में ये सही वक्त पर लिया गया फैसला है.

निर्यात पर पड़ता असर

भारत हर साल 33 लाख मीट्रिक टन गेहूं निर्यात करता है, करीब साढ़े पांच लाख मीट्रिक टन बासमती चावल का भी निर्यात किया जाता है. इसके साथ ही कृषि उत्पादन से तैयार होने वाली शराब का भी भारत बहुत बड़ा निर्यातक है. अगर सरकार अभी यह हालात नहीं संभालती तो इसका भारी नुकसान देश को उठाना पड़ सकता था.

मछली पालकों और पोल्ट्री फार्म को रियायत से क्या होगा लाभ ?

मछली पालन और अन्य क्षेत्रों को दी गई रियायत को लेकर बिमल अंजुम ने कहा कि देश से मीट का निर्यात करीब 200 मिलियन टन के करीब है. हर साल 5 लाख मिलियन टन अंडे का निर्यात होता है. अगर सरकार पोल्ट्री फॉर्म को रियायत नहीं देती तो यह उद्योग बुरी तरह से चरमरा जाता.

पशुपालकों के लिए रियायत के क्या मायने ?

डेरी प्रोडक्ट भी कृषि का ही एक हिस्सा है और लॉकडाउन के चलते किसानों का दूध भी बाजार तक नहीं पहुंच पा रहा था. पशुपालन को लेकर सरकार ने जो कदम उठाए हैं वह भी बेहतर है. क्योंकि पशुओं को भी चारा नहीं मिल पा रहा था. जिससे पशुधन को भी नुकसान पहुंचने की आशंका थी. अर्थशास्त्री बिमल अंजुम के मुताबिक केंद्र सरकार द्वारा यह निर्णय सही समय पर लिया गया है.

ये भी पढ़ेंः- लॉकडाउन 2.0: कृषि समेत इन कामों को करने की रहेगी छूट

चंडीगढ़ः केंद्र सरकार ने लॉकडाउन की अवधि 3 मई तक बढ़ा दी है. इसी के साथ ही सरकार ने कृषि क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए इस क्षेत्र को कुछ छूट भी दी है. ताकि किसान कृषि उत्पाद यानी अपनी फसल को बाजार तक पहुंचा सके और खेती के लिए जो जरूरी साजो सामान हैं वो किसानों को मिल सके. इसके साथ ही केंद्र सरकार ने मछली पालन, पशुपालन के साथ चाय और कॉफी के उत्पादकों को भी रियायतें दी हैं. केंद्र सरकार के इस कदम की अर्थशास्त्री भी तारीफ कर रहे हैं.

कृषि को लेकर क्यों जरूरी थी रियायत ?

आर्थिक मामलों के जानकार बिमल अंजुम ने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था और ज्यादातर आबादी आज भी कृषि पर निर्भर है. उनके मुताबिक कृषि क्षेत्र का सालाना ग्रोथ रेट अभी भी 2.5 से लेकर 2.7 है, जो कि विकसित देशों के मुकाबले बहुत कम है. जबकि हमारा कृषि आधारित एक्सपोर्ट 34 फीसदी के करीब है. हालांकि यह चीन से भी बेहतर है.

एक्सपर्ट की रायः कोरोना संकट के बीच कृषि क्षेत्र देगा अर्थव्यवस्था को सहारा

सरकार ने 2022 तक किसानों की आमदनी डबल करने का लक्ष्य रखा है. वहीं अगर सरकार ने अगर इस वक्त यह रियायत नहीं दी होती तो वह लक्ष्य पाना मुश्किल हो जाता. अभी खेतों में किसानों की फसल तैयार खड़ी है. ऐसे में ये सही वक्त पर लिया गया फैसला है.

निर्यात पर पड़ता असर

भारत हर साल 33 लाख मीट्रिक टन गेहूं निर्यात करता है, करीब साढ़े पांच लाख मीट्रिक टन बासमती चावल का भी निर्यात किया जाता है. इसके साथ ही कृषि उत्पादन से तैयार होने वाली शराब का भी भारत बहुत बड़ा निर्यातक है. अगर सरकार अभी यह हालात नहीं संभालती तो इसका भारी नुकसान देश को उठाना पड़ सकता था.

मछली पालकों और पोल्ट्री फार्म को रियायत से क्या होगा लाभ ?

मछली पालन और अन्य क्षेत्रों को दी गई रियायत को लेकर बिमल अंजुम ने कहा कि देश से मीट का निर्यात करीब 200 मिलियन टन के करीब है. हर साल 5 लाख मिलियन टन अंडे का निर्यात होता है. अगर सरकार पोल्ट्री फॉर्म को रियायत नहीं देती तो यह उद्योग बुरी तरह से चरमरा जाता.

पशुपालकों के लिए रियायत के क्या मायने ?

डेरी प्रोडक्ट भी कृषि का ही एक हिस्सा है और लॉकडाउन के चलते किसानों का दूध भी बाजार तक नहीं पहुंच पा रहा था. पशुपालन को लेकर सरकार ने जो कदम उठाए हैं वह भी बेहतर है. क्योंकि पशुओं को भी चारा नहीं मिल पा रहा था. जिससे पशुधन को भी नुकसान पहुंचने की आशंका थी. अर्थशास्त्री बिमल अंजुम के मुताबिक केंद्र सरकार द्वारा यह निर्णय सही समय पर लिया गया है.

ये भी पढ़ेंः- लॉकडाउन 2.0: कृषि समेत इन कामों को करने की रहेगी छूट

Last Updated : Apr 16, 2020, 7:14 PM IST
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