चंडीगढ़: एग्जाम के दिन नजदीक आने के साथ ही बच्चों में इसे लेकर चिंता और डर बढ़ता जाता है. इसके पीछे बच्चों पर ज्यादा पढ़ने और बेहतर नंबर लाने का दबाव भी है. अभिभावकों की बढ़ती उम्मीदों के दबाव से बच्चे का मानसिक तनाव की बढ़ जाता है. जिसके स्ट्रेस में आकर कुछ बच्चे न तो अच्छे से परीक्षा की तैयारी कर पाते हैं और एग्जाम के समय ब्लैक आउट हो जाता है. जिससे पेपर देते समय बच्चों को कुछ याद नहीं रहता. इस तरह के लक्षणों को एग्जाम फीवर कहा जाता है. एक्सपर्ट्स की माने तो ऐसी स्थिति से बचा जा सकता है, इसके लिए हमें बस कुछ टिप्स फॉलो करने होंगे.
आगे बढ़ने की दौड़ वयस्कों में ही नहीं बल्कि छोटी उम्र के बच्चों में भी आ गई है. कक्षा छठी से 12वीं क्लास तक के बच्चों में परीक्षाओं में आगे रहने की होड़ लगी हुई है. जो बच्चा पढ़ाई में अच्छा नहीं होता है, उससे आस पास के लोगों द्वारा उसे परेशान किया जाता है. जबकि वह बच्चा सिर्फ अपनी क्षमता के अनुसार ही पढ़ाई कर पाता है. एग्जाम में अच्छे नंबर लाने बल्कि अक्सर दूसरे बच्चों से बेहतर नंबर लाने का दबाव बच्चों के दिमाग में तनाव पैदा कर रहा है.
ऐसे हालातों में बच्चों में एग्जाम फीवर जैसी स्थिति पैदा होगी. जो उसे मानसिक तनाव का शिकार बना सकती है. घर का माहौल जितना शांत और सामान्य होगा, उतना ही बच्चे को पढ़ाई पर फोकस करने का मौका मिलेगा. बच्चों के अभिभावक बच्चों का स्ट्रेस दूर करें और खुद भी टेंशन-फ्री रह सकते हैं. मनोचिकित्सक की माने तो उनके मुताबिक हर बच्चे में अलग अलग क्षमता होती है.
जिसे या तो बेहतर टीचर समझ सकता है या बच्चे के अभिभावक समझ सकते हैं. ऐसे में बच्चों को वे सब करने दें, जहां उसे खुशी मिलती है. बच्चे को बार बार इस बात का ध्यान न दिलवाए कि वह कमजोर है और उसे बहुत पढ़ाई करनी है. एग्जाम के दिनों में भी उसे मैदान में खेलने जाने दें, इससे उसका फोकस बना रहेगा. बच्चा एक साफ कागज की तरह होता है, जिसमें वह रोजाना कुछ नया सीख कर लिखता है. अगर बच्चा जीभर कर खेलगा नहीं, तो वह पढ़ाई भी नहीं कर पाएगा.
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अभिभावकों को चाहिए कि एग्जाम नजदीक आने पर वे बच्चों की आदतों को न बदलें बल्कि उन्हें रोजाना वहीं कसरत करने दें. हालांकि बच्चों को गैजेट से दूर रखे, क्योंकि वह एक सबसे बड़ा डिस्ट्रेक्शन माना गया है. मनोचिकित्सक डॉ. नीरू अत्तरी ने बताया कि बच्चों से ज्यादा उम्मीद न रखें. उन पर ज्यादा नंबर लाने का प्रेशर न बनाए. वहीं अक्सर अभिभावक बच्चों को ताना देते हुए उसकी दूसरे बच्चों से तुलना करते है. ऐसा उन्हें नहीं करना चाहिए.
बच्चे को दें इमोशनल सपोर्ट: हर बच्चे में एक विशेष क्षमता होती है. टीचर और अभिभावकों को उसे पहचानना चाहिए. अभिभावक बच्चों से हर वक्त पढ़ाई और सिलेबस की ही बातें न करें. उसके साथ वैसा ही बर्ताव करें, जैसे वे आम दिनों में करते हैं. वहीं बच्चों को उसकी कमियों के बारे में बार-बार याद न करवाए. बच्चे को इमोशनल सपोर्ट दें. बच्चा अगर देर तक पढ़ना चाहता है, तो कोई एक अभिभावक उसके साथ रात में जागे. इससे उसका हौसला बढ़ता रहे. इससे बच्चे को लगेगा कि वह अकेला नहीं है.
बच्चों में एग्जाम फीवर: इस को पहचानने के लिए कुछ बातों को नोटिस कर इसे देखा जा सकता है, जिसमें अगर बच्चा लगातार सिरदर्द, बदन दर्द, चक्कर आने, भूलने, घबराहट, बेचैनी व पढ़ने में मन न लगने जैसी समस्याएं बताता है, तो हो सकता है कि बच्चा बहुत ज्यादा तनाव में है. ऐसे में या तो वह कुछ नहीं खाता या वह सिर्फ खाता ही रहता है. ऐसे में बच्चे को अकेला रहने का मन करता है और वह बात बात प रो देता है. इन हालातों में बच्चे को सायकोलॉजिस्ट या काउंसलर के पास ले जाए.
डॉ. नीरू ने बताया कि बच्चे के साथ साथ अभिभावकों को भी कुछ बदलाव करने की जरूरत होती है. वे हर बदलाव की उम्मीद बच्चे से ही न करें. आज के समय जहां हर किसी के पास स्मार्टफोन, टैबलेट और लैपटॉप है. ऐसे में वे इन चीजों को इस्तेमाल अपने तक सीमित रखे. अगर वे इन सभी गैजेट को बच्चे के सामने लाते हैं तो वह डिस्ट्रक्ट होता है. ऐसे में अगर घर का माहौल ठीक न हो, अभिभावकों की आपस में अनबन रहती रहे, तो अक्सर बच्चों में दिक्कत बहुत बढ़ जाती है. बच्चे के सामने अपने आपसी मतभेद न लाने दें.
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एग्जाम देने के बाद बच्चे से पेपर डिस्कस न करें. उसे आराम से अगले पेपर की तैयारी करने दें. बच्चे को अकेला न छोड़ें, खासकर अगर वह किसी पेपर के खराब होने या किसी की तैयारी न होने से परेशान है. उसे अच्छा करने के लिए प्रेरित करें. अगर वह आपसे पढ़ाई या कोई और बात शेयर करना चाहता है तो ध्यान से उसकी बात सुनें. वहीं मनासिक तनाव होने के चलते अभिभावकों बच्चों के लक्षण देखते हुए उनके व्यवहार में बदलाव कर सकते हैं.
बच्चों के खान पान का रखें विशेष ध्यान: इसके साथ ही तनाव को देखते हुए उसके खाने का ध्यान रखे, ताकि उसका एनर्जी लेवल बना रहे. इसके लिए बच्चों को सब्जियां और फल अधिक खिलाना चाहिए. नींबू, मौसमी, संतरा आदि विटामिन सी से भरपूर चीजें बच्चे के खाने में शामिल करें. दलिया, ओट्स, कॉर्न आदि शामिल करें, ताकि उसका पाचन भी अच्छा हो और उसे हल्का भी महसूस हो. हरी सब्जियां शामिल करें जैसे कि साग, पालक, मेथी आदि. इसके साथ ही ध्यान रखें कि बच्चा बाहर का खाना नहीं खाए, सिर्फ घर का खाना खाए. ड्राई-फ्रूट्स दें जैसे कि बादाम, अखरोट, काजू, चिलगोजा आदि दें.
परीक्षा की तैयारी कैसे करें: डॉ. नीरू ने बताया कि अभिभावकों और टीचरों के साथ साथ बच्चों को भी अपनी क्षमता के अनुसार पढ़ाई करनी चाहिए. बच्चों चाहिए के वे अपना टाइम टेबल बनाए. जिसमें सारे सब्जेक्ट के अनुसार टाइम बांट लें. छोटे छोटे टारगेट रखे. अपनी कमजोरी को तलाशे और उस पर ज्यादा काम करें. अभी परीक्षा की तैयारी के लिए बच्चों के पास समय है. टाइम टेबल में पढ़ने के साथ-साथ थोड़ा वक्त पार्क में जाकर खेलना, चेस, स्पोर्ट्स में भाग लेना आदि के लिए भी निकाल सकते हैं.
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सैंपल पेपर और प्री बोर्ड ध्यान से दें: इससे तैयारी में मदद मिलेगी. लगातार पढ़ने के बजाय हर एक घंटे के बाद 10-15 मिनट का ब्रेक लें. बच्चों के लिए 7-8 घंटे की नींद जरुरी है. भूखे रहकर लगातार पढ़ाई करने से बचें. दिमाग को काम करने के लिए ग्लूकोज और ऑक्सीजन भी चाहिए. हर घंटे में पानी पीते रहें. इसके अलावा योग कर सकते हैं. लगातार बैठे रहने से बॉडी का एनर्जी लेवल गिर जाता है. इसके लिए बॉडी का थोड़ा मूवमेंट जरूरी है. एग्जाम को त्योहार की तरह समझे. एग्जाम हॉल में पहुंचने से पहले खुद को रिलैक्स रखें. यह सोचकर परेशान न हों कि यह तैयार नहीं किया, वह छूट गया. एग्जाम हॉल में टाइम से कम-से-कम 10 मिनट पहले पहुंचें. पेपर मिलने पर ध्यान से पढ़ें और आस पास हो रही किसी बात पर ध्यान न दें.