चंडीगढ़: कोरोना महामारी ने देश को आर्थिक संकट की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है. समाज का कोई भी वर्ग इसके परिणामों से अछूता नहीं रहा है. इस महामारी की सबसे बड़ी मार गरीब तबके पर पड़ी है. अपने प्रदेशों को छोड़ महानगरों में आ बसे लोग इस समय दो वक्त की रोटी के लिए भी तरस रहे हैं क्योंकि इनमें से ज्यादातर लोग दिहाड़ी के हिसाब से ही कमा रहे थे और इस महामारी के चलते अब उन सब के काम धंधे बंद पड़े हैं.
इममें कुछ ऐसे भी लोग हैं जो कपड़े धोकर और उनपर प्रेस करके रोजी-रोटी के लिए पैसे कमाते हैं. कोरोना महामारी के चलते होटल, हॉस्टल, पीजी सब बंद हैं. ये सब इन लोगों की आय का मुख्य जरिया है. लॉकडाउन की स्थिति में ये लोग कैसे गुजर-बसर कर रहे हैं और अपनी रोजी-रोटी का जरिया कैसे तलाश रहे हैं इसी पर ईटीवी भारत की टीम ने इन लोगों से बातचीत कर इनका दर्द जाना.
बातचीत के दौरान इस धंधे में लगे लोगों ने बताया कि कई पीढ़ियों से वो लॉन्ड्री का काम कर रहे हैं. उनकी जिंदगी में पहली बार ऐसा हुआ कि लॉन्ड्री का काम बंद हुआ हो. लॉकडाउन की वजह से उनका लॉन्ड्री का काम बंद हो गया है. जिसकी वजह से उनके ऊपर आर्थिक संकट पैदा हो गया है. उन्होंने बताया कि छोटी से छोटी चीजों के लिए वो मोहताज हो गए हैं.
प्रशासन से मदद की मांग
धोबी का काम करने वालों ने बताया कि प्रशासन की ओर से उन्हें किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली है. उन्होंने कहा कि हमारी सारी जमा पूंजी खत्म होती जा रही है. काम बंद पड़ा है. अगर जल्द ही सब ठीक नहीं हुआ तो आने वाले दिन उनके लिए और मुश्किलें पैदा हो सकती हैं.
उन्होंने बताया कि लॉकडाउन से पहले के जो कपड़े आए हुए हैं अब वो दोबारा से गंदे हो रहे हैं. जिसके चलते इन्हें भी बार-बार धोना पड़ रहा है. जब पुराने ग्राहकों के कपड़े ले जाने और बकाया देने की बात की जाती है तो ना तो कोई कपड़े उठाने के लिए तैयार होता है और ना ही पूरा पैसा कोई दे रहा है. कई लोगों ने तो अब फोन भी उठाने बंद कर दिए हैं.
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जब इनसे मूल प्रदेश वापस जाने का सवाल किया गया तो इन लोगों ने कहा कि चंडीगढ़ आए इन्हें कई साल हो चुके हैं. इनके बच्चे भी यहीं पढ़ रहे हैं. अपने गांव जा कर करने के लिए कुछ भी नहीं है, तो वहां जाकर क्या करेंगे. इनका कहना है कि अब इंतजार करने के सिवाय कुछ और नहीं बचा इसलिए इस इंतजार में बैठे हैं कि कब होटल कार्यालय आदि खुलेंगे और हमारा कार्य फिर उसी गति से दौड़ने लगेगा.