हरियाणा की राजनीति हमेशा से ही देश के लिए नजीर साबित होती रही है, लेकिन हरियाणा का ऐसा नेता भी हुआ है जिसकी धाक प्रदेश से लेकर केंद्र के राजनीतिक गलियारों में भी थी. लंबी कद-काठी, चौड़ी भौहें और अख्खड़ स्वभाव के ताऊ देवी लाल को आज भी देश की जनता उनके जबरदस्त व्यक्तित्व की वजह से जानती है.
उन्हें हरियाणा का निर्माता कहा जाता है. उनकी धाकड़ बोली उनकी पहचान थी. यही वजह है कि राजनीतिक समीक्षक भी उनके कायल थे. ऐसा हम नहीं कह रहे हैं ये सारी बातें उनकी याद में आज भी राजनेता कहते हैं. यही वजह है कि हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल की स्थापना कर केंद्र की बड़ी पार्टियों को चुनौती देने का दावा करने वाले ताऊ देवी लाल पर आज भी कोई विपक्षी नेता टिप्पणी नहीं करता.यकीनन ये बात कही जा सकती है कि ताऊ देवालाल भारत की राजनीति में हरियाणा के इकलौते राष्ट्रीय स्तर के नेता थे. देवीलाल की छवि दबंग और लठैत नेता के रूप में जाती रही है.
आज 6 अप्रैल के दिन हर साल ताऊ देवी लाल की पुण्यतिथि के रूप में मनाया जाता है. तो चलिए हम आज उनसे जुड़ी कुछ बातें आपको बताते हैं जो अक्सर उन्हे लेकर दोहराई जाती हैं.
केंद्र तक पहुंचे मगर रहे ठेठ ग्रामीण
1930 से ही राजनीति में सक्रिय हो गए थे, लेकिन उनका अंदाज ठेठ ग्रामीणों वाला ही रहा, वे दिल्ली के पावर कॉरिडोर में खेतिहर मजदूरों से जुड़े रहते थें. वो कहते थे कि लोग उन्हें ताऊ कहते हैं और ताऊ सुनते रहना पसंद है.
पल भर में बड़ा त्याग!
बताया जाता है कि पहली दिसंबर, 1989 को आम चुनाव के बाद नतीजे आने के बाद संयुक्त मोर्चा संसदीय दल की बैठक हुई और उस बैठक में विश्वनाथ सिंह के प्रस्ताव और प्रस्ताव पर चंद्रशेखर के समर्थन से चौधरी देवीलाल को संसदीय दल का नेता मानना तय हो गया था, लेकिन देवीलाल ने सहज भाव से उन्होंने कहा कि ये पद वीपी सिंह को सौंपता हूं.
जुबान के लिए छोड़ दी कुर्सी!
ताऊ के कुर्सी छोड़ने वाले किस्से के पीछे भी एक किस्सा है. कहा ये भी जाता है कि ताऊ देवीलाल ने वीपी सिंह को वादा किया था कि वो उन्हें पीएम की कुर्सी तक पहुंचने में मदद करेंगे, लेकिन उन्हें भी नहीं पता था कि वीपी सिंह के पीएम पद तक पहुंचने के बीच उन्ही का नाम आ जाएगा. बताया जाता है कि ताऊ देवी लाल ने बैठक के दौरान वो किया जिसका किसी को अंदाजा नहीं था. वो खड़े हुए और उन्होंने हाथ जोड़ते हुए सभी का अभिवादन स्वीकार किया. यहां तक सब सही था, लेकिन उन्होंने अपने नाम की जगह पीएम पद के लिए वीपी सिंह का नाम आगे दे दिया. ताऊ देवी लाल ने कहा कि वो जनता के ताऊ बने रहना ही पसंद करते हैं.
हालांकि चर्चा ऐसी भी होती रही है कि ताऊ देवी लाल और वीपी सिंह की पहले से ही ये रणनीति थी और उस दिन जो कुछ भी हुआ वो एक प्लान का हिस्सा था.