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चंडीगढ़ पर रार: पंजाब के वो हिंदी भाषी क्षेत्र जो हरियाणा को देने थे लेकिन आज तक नहीं मिले, जानिए पूरी कहानी

पंजाब विधानसभा में चंडीगढ़ को लेकर पारित किये गए प्रस्ताव के बाद लगातार राजीव-लोगोंवाल समझौते (Rajiv Longowal agreement) की बातें सुनने को मिल रही हैं. हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर ने भी पंजाब को ये समझौता याद दिलाया. आखिर क्या है राजीव-लोंगोवाल समझौता. पढ़ें रिपोर्ट

Rajiv Longowal agreemen
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Published : Apr 5, 2022, 5:58 PM IST

चंडीगढ़: पंजाब सरकार ने जब से चंडीगढ़ पर अधिकार को लेकर विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया है, तब से दोनों राज्यों के नेताओं के बीच जमकर बयानबाजी हो रही है. चंडीगढ़ मुद्दे को लेकर (Chandigarh Capital issue) हरियाणा विधानसभा द्वारा मंगलवार को विशेष सत्र भी बुलाया गया. जहां एक तरफ पंजाब के नेता चंडीगढ़ पर पंजाब का अधिकार होने की बात कर रहे, तो वहीं हरियाणा के नेता चंडीगढ़ पर हरियाणा के अधिकार की बात करते हैं.

हरियाणा के कई नेताओं का कहना है कि अगर शाह कमीशन की रिपोर्ट देखी जाए, तो कानूनी तौर पर चंडीगढ़ पर हरियाणा का अधिकार है. इसके अलावा जब राजीव लोंगोवाल समझौता (Rajiv Longowal agreement) हुआ था, तब केंद्र सरकार ने चंडीगढ़ पंजाब को देने की बात कही थी, लेकिन इसके बदले में चार सौ हिंदी भाषी गांवों को हरियाणा को देने की बात भी कही थी. जिसे अब तक पंजाब द्वारा पूरा नहीं किया गया. वहीं हरियाणा की ओर से पंजाब के साथ SYL जैसे मुद्दे पर चर्चा करने की बात कह रहे हैं.

जब चंडीगढ़ को दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी बनाया गया था. तब शाह कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार खरड़ तहसील को हरियाणा को दिया जाना था. खरड़ तहसील उस वक्त पंजाब की सबसे बड़ी तहसील थी. खरड़ तहसील में चंडीगढ़ समेत कालका और पंचकूला भी आते थे. अगर खरड़ तहसील हरियाणा के हिस्से आती तो चंडीगढ़ पर खुद ही हरियाणा का अधिकार हो जाता, लेकिन अंतिम क्षणों में पंजाब कांग्रेस के कुछ नेता तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पास पहुंचे और उनसे बात की. तब इंदिरा गांधी ने खरड़ तहसील को हरियाणा को देने की बजाय पंजाब को दे दिया. जबकि कालका और पंचकूला इलाके हरियाणा को दिए और चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया.

क्या है राजीव लोंगोवाल समझौता- 80 के दशक में एक बार फिर से यह मांग तेज हो गई कि चंडीगढ़ को पंजाब को सौंप दिया जाना चाहिए. इसी मामले को लेकर उस समय प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अकाली दल के संत हरचरण सिंह लोंगोवाल के बीच एक समझौता हुआ था. साल 1985 में चंडीगढ़ पर अधिकार का मुद्दा गर्माया हुआ था. तब अकाली दल के संत हरचंद सिंह लोंगोवाल ने केंद्र सरकार से चंडीगढ़ को पंजाब को सौंपने की मांग की थी. ऐसा नहीं करने पर आत्मदाह की चेतावनी भी दी थी. जिसके बाद केंद्र सरकार इस बात पर राजी हो गई थी कि चंडीगढ़ को पंजाब को सौंप दिया जाएगा और बदले में हरियाणा को पंजाब में स्थित करीब 400 हिंदी भाषी गांव दे दिए जाएंगे. क्योंकि जब हरियाणा पंजाब का बंटवारा हुआ था, तब भी वह भाषा के आधार पर किया गया था. इसके बाद बंटवारे की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई थी.

ये भी पढ़ें- कांग्रेस के इस नेता ने की हरियाणा के लिए अलग राजधानी की मांग

बाकायदा एक तारीख को भी मुकर्रर कर दिया गया था. जिस दिन से चंडीगढ़ को पूरी तरह से पंजाब का हिस्सा माना जाता. ऐसे में पंजाब के जो 400 गांव हरियाणा के हिस्से में आने थे, उनकी पहचान के लिए एक कमीशन भी बैठा दिया गया था, लेकिन उस वक्त उन गांव की पहचान पूरी नहीं की गई. जिस वजह से यह मामला लटक गया. अगर उस समय इन 400 गांव की पहचान कर हरियाणा को सौंप दिए जाते, तो आज चंडीगढ़ पूरी तरह से पंजाब का हिस्सा होता.

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चंडीगढ़: पंजाब सरकार ने जब से चंडीगढ़ पर अधिकार को लेकर विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया है, तब से दोनों राज्यों के नेताओं के बीच जमकर बयानबाजी हो रही है. चंडीगढ़ मुद्दे को लेकर (Chandigarh Capital issue) हरियाणा विधानसभा द्वारा मंगलवार को विशेष सत्र भी बुलाया गया. जहां एक तरफ पंजाब के नेता चंडीगढ़ पर पंजाब का अधिकार होने की बात कर रहे, तो वहीं हरियाणा के नेता चंडीगढ़ पर हरियाणा के अधिकार की बात करते हैं.

हरियाणा के कई नेताओं का कहना है कि अगर शाह कमीशन की रिपोर्ट देखी जाए, तो कानूनी तौर पर चंडीगढ़ पर हरियाणा का अधिकार है. इसके अलावा जब राजीव लोंगोवाल समझौता (Rajiv Longowal agreement) हुआ था, तब केंद्र सरकार ने चंडीगढ़ पंजाब को देने की बात कही थी, लेकिन इसके बदले में चार सौ हिंदी भाषी गांवों को हरियाणा को देने की बात भी कही थी. जिसे अब तक पंजाब द्वारा पूरा नहीं किया गया. वहीं हरियाणा की ओर से पंजाब के साथ SYL जैसे मुद्दे पर चर्चा करने की बात कह रहे हैं.

जब चंडीगढ़ को दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी बनाया गया था. तब शाह कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार खरड़ तहसील को हरियाणा को दिया जाना था. खरड़ तहसील उस वक्त पंजाब की सबसे बड़ी तहसील थी. खरड़ तहसील में चंडीगढ़ समेत कालका और पंचकूला भी आते थे. अगर खरड़ तहसील हरियाणा के हिस्से आती तो चंडीगढ़ पर खुद ही हरियाणा का अधिकार हो जाता, लेकिन अंतिम क्षणों में पंजाब कांग्रेस के कुछ नेता तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पास पहुंचे और उनसे बात की. तब इंदिरा गांधी ने खरड़ तहसील को हरियाणा को देने की बजाय पंजाब को दे दिया. जबकि कालका और पंचकूला इलाके हरियाणा को दिए और चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया.

क्या है राजीव लोंगोवाल समझौता- 80 के दशक में एक बार फिर से यह मांग तेज हो गई कि चंडीगढ़ को पंजाब को सौंप दिया जाना चाहिए. इसी मामले को लेकर उस समय प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अकाली दल के संत हरचरण सिंह लोंगोवाल के बीच एक समझौता हुआ था. साल 1985 में चंडीगढ़ पर अधिकार का मुद्दा गर्माया हुआ था. तब अकाली दल के संत हरचंद सिंह लोंगोवाल ने केंद्र सरकार से चंडीगढ़ को पंजाब को सौंपने की मांग की थी. ऐसा नहीं करने पर आत्मदाह की चेतावनी भी दी थी. जिसके बाद केंद्र सरकार इस बात पर राजी हो गई थी कि चंडीगढ़ को पंजाब को सौंप दिया जाएगा और बदले में हरियाणा को पंजाब में स्थित करीब 400 हिंदी भाषी गांव दे दिए जाएंगे. क्योंकि जब हरियाणा पंजाब का बंटवारा हुआ था, तब भी वह भाषा के आधार पर किया गया था. इसके बाद बंटवारे की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई थी.

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बाकायदा एक तारीख को भी मुकर्रर कर दिया गया था. जिस दिन से चंडीगढ़ को पूरी तरह से पंजाब का हिस्सा माना जाता. ऐसे में पंजाब के जो 400 गांव हरियाणा के हिस्से में आने थे, उनकी पहचान के लिए एक कमीशन भी बैठा दिया गया था, लेकिन उस वक्त उन गांव की पहचान पूरी नहीं की गई. जिस वजह से यह मामला लटक गया. अगर उस समय इन 400 गांव की पहचान कर हरियाणा को सौंप दिए जाते, तो आज चंडीगढ़ पूरी तरह से पंजाब का हिस्सा होता.

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