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लोकसभा चुनाव 2019: इस बार जाट आरक्षण मुद्दा नहीं है ?

लोकसभा चुनाव 2019 में जाट आरक्षण का मुद्दा कहीं नहीं गूंज रहा है. नेताओं की जाट आरक्षण पर चुप्पी फिर भी समझ में आती है लेकिन जाट नेताओं का इस तरह चुप रहना समझ से परे है.

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Published : Apr 20, 2019, 4:46 PM IST

जाट आरक्षण

चंडीगढ़: 2014 का लोकसभा चुनाव आपको याद होगा और उस वक्त जाटों को मिला आरक्षण भी आपको याद होगा. उसके बाद जो कुछ उस जाट आरक्षण पर हुआ वो हम नीचे आपको बताएंगे. लेकिन इस चुनाव से जाट आरक्षण का मुद्दा क्यों गायब है? ऐसा क्या हुआ है कि जब यूपी में विधानसभा चुनाव हुए तब भी हरियाणा का जाट आरक्षण और आंदोलन मुद्दा था लेकिन इस बार नेताओं के मुंह पर न तो जाट आरक्षण है और न ही आंदोलन से जुड़ा कोई मुद्दा. इतना ही नहीं जाट नेता भी इस बार चुप हैं तो उनकी चुप्पी की वजह क्या है? क्या ये मान लिया जाये कि हर चुनाव के मुद्दे अलग होते हैं और जाट आरक्षण भी महज़ एक मुद्दा था. क्या जाट आरक्षण लोकसभा चुनाव में कोई मुद्दा ही नहीं है?

जाट आरक्षण पर मौजूदा स्थिति
2012 में तत्कालीन हरियाणा सरकार ने जाटों को आरक्षण देने के लिए एक आयोग का गठन किया था. जिसका नेतृत्व जस्टिस केसी गुप्ता कर रहे थे. इसी आयोग की रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन हुड्डा सरकार ने जाटों को आरक्षण दिया था. जिसके बाद ये मामला कोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने केसी गुप्ता आयोग की रिपोर्ट को खारिज कर दिया. इसके बाद जब हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन हुआ तो उसके बाद मौजूदा बीजेपी सरकार ने जाटों को आरक्षण देने के लिए नोटिफिकेशन जारी किया और विधानसभा से भी बिल पास किया. इस बार भी केसी गुप्ता की रिपोर्ट को ही आधार बनाया गया. लेकिन कोर्ट में औंधे मुंह गिरी केसी गुप्ता आयोग की रिपोर्ट को एक बार फिर कोर्ट में चुनौती दी गई और फिर से जाटों को मिले आरक्षण पर रोक लग गई. फिलहाल जाट आरक्षण का मुद्दा कोर्ट में है.

जाट आरक्षण पर मौजूदा सरकार का रुख
बीजेपी सरकार कोर्ट में जाटों का पक्ष रख रही है. राज्य में स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज का कहना है कि जाट आरक्षण पर हमारी सरकार ने सबकुछ किया है. हमने विधानसभा से बिल पास कराया और कोर्ट में हम मजबूती से खड़े हैं. इसके अलावा अगर दोबारा सरकार आती है तब भी हम जाट आरक्षण के पक्ष में खड़े रहेंगे.
जाट आरक्षण मुद्दे पर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला कहते हैं कि उनकी पार्टी ने जाट आरक्षण के मुद्दे पर समाधान की ओर कदम उठाये जबकि विपक्ष ने इस पर सिर्फ राजनीति की है. अब जनता समझ चुकी है कि जाट आरक्षण का समाधान सिर्फ बीजेपी कर सकती है.

क्लिक कर जानिये जाट आरक्षण पर बीजेपी की राय

जाट आरक्षण पर इनेलो का रुख
अब तक जाटों को इनेलो का कोर वोटर माना जाता रहा है. इनेलो की राजनीति भी हमेशा जाट समुदाय के इर्द-गिर्द ही रही है. लेकिन इस बार इनेलो भी उस तरीके से जाट आरक्षण को मुद्दा नहीं बना रही है जिस तरीके से उसने इलेक्शन से पहले जाट आरक्षण पर रुख अपनाया था. जब अभय चौटाला से इस बार में पूछा गया कि क्या इस बार जाट आरक्षण आपकी पार्टी का मुद्दा होगा तो उनका कहना था कि 100 फीसदी हम इस मुद्दे को उठाएंगे. लेकिन अभी तक इसके आसार नजर नहीं आ रह हैं.

क्लिक कर जानिये जाट आरक्षण पर इनेलो की राय

जाट आरक्षण कांग्रेस का रुख

2014 चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने ही जाट समुदाय को आरक्षण दिया था. उसके बाद कांग्रेस की सरकार केंद्र और राज्य दोनों जगह से चली गई तब से कांग्रेस लगातार बीजेपी पर आरोप लगाती रही है कि उसने अदालत में सही से मामले की पैरवी नहीं की.लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस भी इस मुद्दे पर ध्यान नहीं दे रही है क्योंकि उनका दिया आरक्षण कोर्ट में नहीं टिक पाया था.

जाट आरक्षण पर जेजेपी का रुख

जेजेपी इनेलो से ही टूटकर बनी है और जाट वोटर्स पर उनकी भी नज़र है फिलहाल पार्टी ने आम आदमी पार्टी से गठबंधन किया है. लेकिन जाट आरक्षण को लेकर जेजेपी भी बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं दिख रही है. न ही उनके शीर्ष नेतृत्व ने इस पर कोई ध्यान दिया है.

पार्टियां जाट आरक्षण से क्यों भाग रही हैं ?
हरियाणा में जाट समुदाय का बड़ा प्रभाव है लेकिन फिर भी अब पार्टियां जाट आरक्षण से अगर दूर भाग रही हैं तो उसकी कई वजहें हैं.
⦁ पहली वजह- जब भी किसी सरकार ने जाटों को आरक्षण देने की कोशिश की कोर्ट ने उस पर रोक लगा दी.
⦁ दूसरी वजह- सभी पार्टियों की नजर गैर जाट समुदाय के वोटरों पर है.
⦁ तीसरी वजह- जाट समुदाय इनेलो का कोर वोटर माना जाता था. लेकिन अब उसमें जेजेपी ने सेंधमारी की है और हुड्डा के साथ भी काफी लोग दिखते हैं. इसके अलावा कुछ जाट वोटर बीजेपी के साथ भी हैं. इसीलिए बंटते वोट की वजह से भी पार्टियां शायद ध्यान नहीं दे रही हैं.
⦁ चौथी वजह- क्योंकि कोर्ट ने कई बार जाट आरक्षण पर रोक लगाई है इसीलिए कोई भी पार्टी अब ऐसा कोई वादा नहीं करना चाहती जो बाद में मुसीबत की वजह बन जाये.

हरियाणा में 'किंगमेकर' हैं जाट
हरियाणा की राजनीति में जाटों को साधे बिना टिक पाना कितना मुश्किल है इस बात का अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है. राज्य में अभी तक ज्यादातर जाट समुदाय से ही मुख्यमंत्री बनते रहे हैं. प्रदेश में जाटों के लगभग 25 फीसदी वोट हैं. भिवानी, रोहतक, सोनीपत और हिसार में बड़ी संख्या में जाट वोटर हैं. यानि 10 में 4 सीटें ऐसी हैं जिन्हें जाटों का गढ़ माना जाता है. बाकी सीटों पर भी जाट बहुत कम संख्या में नहीं हैं. इसीलिए आज तक हरियाणा में कोई पार्टी जाटों को नजरअंदाज नहीं कर पाई है.

हुड्डा ने 2005 का वादा 2014 में पूरा किया
2005 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने और खासतौर पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने जाट समुदाय से वादा किया था कि वो जाटों को आरक्षण देंगे. ये वादा हुड्डा ने 2014 में ऐसे पूरा किया कि उन्होंने जाटों के साथ जट सिख, रोड, बिश्नोई और त्यागी कम्युनिटी को स्पेशल बैकवर्ड क्लास के तहत रिजर्वेशन दिया. लेकिन 2015 में ये नोटिफिकेशन हाईकोर्ट के आदेशों के बाद मौजूदा सरकार को वापस लेना पड़ा.

केंद्र सरकार को भी मुंह की खानी पड़ी
2014 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने हरियाणा समेत 9 राज्यों में जाटों को ओबीसी में शामिल करने की सिफारिश की थी जिसे 2015 में सुप्रीम ने खारिज कर दिया था. हरियाणा के अलावा बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्य इसमें शामिल किये गये थे.

नई नहीं है जाट आरक्षण की मांग
1991 में जब वीपी सिंह की सरकार में मंडल कमीशन की रिपोर्ट आई थी तब भी जाटों ने उसका विरोध किया था. इसके बाद 1997 में जाटों ने हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में केंद्रीय ओबीसी श्रेणी में शामिल करने की मांग की थी जिसे राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग ने रद्द कर दिया था. नीचे दी गई तारीखों के जरिये समझिये हरियाणा में जाटों ने आरक्षण के लिए कब, क्या किया ?
⦁ 24 नवंबर 2006: जाट जागृति अभियान की शुरुआत हुई
⦁ 13 सितंबर 2010: जाट आरक्षण संघर्ष समिति ने मय्यड़ गांव में दिल्ली हाईवे जाम किया.
⦁ 13 सितंबर 2010: पूरे देश में 62 जगहों पर या तो रेल रोकी गई या रोड जाम किया गया.
⦁ 13 सितंबर 2010: आंदोलन के दौरान मय्यड़ में कुरुक्षेत्र के एक व्यक्ति की मौत हो गई.
⦁ इसके लिए तत्कालीन पुलिस अधीक्षक सुभाष यादव पर मामला दर्ज हुआ.
⦁ 5 मार्च 2011: देशभर के 15 रेलवे ट्रैक के पास जाट धरने पर बैठे.
⦁ 23 मार्च 2011: फतेहाबाद में भूख हड़ताल के दौरान विजय कड़वासरा की मौत हो गई.
⦁ 25 मार्च 2011: जाटों की तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से वार्ता हुई.
⦁ 3 मई 2011: केंद्र सरकार ने गजट नोटिफिकेशन कर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को पुनर्वलोकन का अधिकार दिया.
⦁ 29 मई 2011: अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से देशभर में जाट संकल्प यात्रा की शुरुआत हुई.
⦁ 13 सितंबर 2011: सुनील श्योराण का शहादत दिवस मनाया गया और 19 फरवरी 2012 से आंदोलन का ऐलान किया गया.
⦁ 19 फरवरी 2012: मय्यड़ के नजदीक रामायण ट्रैक से आंदोलन की शुरुआत की गई.
⦁ 6 मार्च 2012: तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ने भूख हड़ताल पर बैठे आंदोलनकारियों को उठाया. लोगों ने इसका विरोध किया. इसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज किया, आंसू गैस के गोले छोड़े और पुलिस पर पथराव हुआ. इस दौरान मय्यड़ के संदीप कड़वासरा की गोली लगने से मौत हो गई. आंदोलन के चलते ये तीसरी मौत थी.
⦁ 6 मार्च 2012: शव को रेलवे ट्रैक पर रखकर जाट समुदाय ने आंदोलन शुरु कर दिया और 12 मार्च 2012 को संदीप कड़वासरा की अंत्येष्टि हुई.
⦁ 13 सितंबर 2012: सुनील श्योराण की दूसरी बरसी पर खापों ने 15 दिसंबर 2012 से आंदोलन की चेतावनी दी.
⦁ 24 जनवरी 2013: हुड्डा सरकार ने जाटों को 10 प्रतिशत अलग से विशेष पिछड़ा वर्ग में आरक्षण दिया.
⦁ 5 मार्च 2013: संसद के बजट सत्र के दौरान जंतर-मंतर समेत देशभर की 55 जगहों पर धरने की शुरुआत हुई. 31 मार्च को देश के बाकी हिस्सों में धरना खत्म हो गया लेकिन 10 मई 2013 तक धरना चलता रहा.
⦁ 6 मार्च 2013: मय्यड़ से आंदोलन की शुरुआत हुई जो कुछ ही समय में पूरे हरियाणा में फैल गया.
⦁ 10 मई 2013: केंद्रीय मंत्री वी नारायण सामी ने जल्द आरक्षण की घोषणा का वादा किया.
⦁ 20 अगस्त 2013: केंद्र सरकार ने जाट आरक्षण के लिए केंद्र के नेताओं की कमेटी गठित की.
⦁ 13 सितंबर 2013: मय्यड़ में सुनील श्योराण के शहादत दिवस पर रैली हुई.
⦁ 19 दिसंबर 2013: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को 9 राज्यों के जाटों के आरक्षण की मांग पर राज्यों के आधार पर सुनवाई शुरु करने का निर्देश दिया.
⦁ 10 से 13 फरवरी 2014: राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग में 9 राज्यों की सुनवाई हुई.
⦁ 2 मार्च 2014: केंद्र सरकार ने 9 राज्यों के जाटों को आरक्षण में शामिल करने की घोषणा की.
⦁ 5 मार्च 2014: केंद्र सरकार ने गजट नोटिफिकेशन जारी किया.
⦁ इसके बाद केंद्र में मोदी सरकार आई और राज्य में मनोहर सरकार, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने इस सुविधा पर रोक लगा दी.
⦁ 13 फरवरी 2016: एक बार फिर से जाट आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन शुरु हुआ.

जाट आरक्षण आंदोलन
जाट आरक्षण आंदोलन की शुरुआत सबसे पहले 12 फरवरी 2016 को हिसार के मय्यड़ से हुई थी. हालांकि, ये मामला तुरंत ही निपट गया था. फिर 14 फरवरी को रोहतक के सांपला में जाट आरक्षण को लेकर सम्मेलन बुलाया गया. इस सम्मेलन के तुरंत बाद आंदोलनकारियों ने रोहतक-दिल्ली नैशनल हाइवे को जाम कर दिया. हरियाणा सरकार में कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ ने आंदोलनकारियों से मुलाकात कर मामले को निपटाने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी. इससे अगले ही दिन 15 फरवरी को जाट आंदोलनकारियों ने इस्माइला गांव में रोहतक-दिल्ली रेलमार्ग को जाम कर दिया. इसी के साथ रोहतक के महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी के गेट के सामने धरना शुरू कर दिया गया. बस फिर क्या था यह आंदोलन आसपास के झज्जर और सोनीपत जिलों में होता हुआ हरियाणा के 8 जिलों में फैल गया. इस आंदोलन से रोहतक, झज्जर, सोनीपत, जींद, हिसार, कैथल और भिवानी जिले पूरी तरह से प्रभावित रहे. जगह-जगह हाइवे और रेलमार्ग जाम कर दिए गए. सरकार ने जाट और खाप प्रतिनिधियों से भी बातचीत कर मसले को सुलझाने का प्रयास किया, पर बात नहीं बनी.

जब हिंसक हो गया आंदोलन

तीन दिन तक तो ये आंदोलन शांतिपूर्ण ढंग से चलता रहा, लेकिन इस आंदोलन ने 18 फरवरी की शाम को रोहतक में घटी एक घटना के बाद जातीय और हिंसक रूप ले लिया. 35 बिरादरी संघर्ष समिति और जाट आंदोलनकारियों के बीच झड़प के बाद रोहतक शहर में आगजनी की घटनाएं शुरू हो गई. 18 फरवरी की रात को ही रोहतक पुलिस ने एक हॉस्टल में घुसकर युवा जाट आंदोलनकारियों की पिटाई कर दी. अगले दिन 19 फरवरी को रोहतक में महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी के गेट के सामने हजारों आंदोलनकारी जमा हो गए. आंदोलनकारियों की संख्या को देखते हुए भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया. आंदोलनकारियों ने दिल्ली बाईपास स्थित रोहतक के आईजी आवास की ओर कूच किया. आंदोलनकारियों और सुरक्षा कर्मियों के बीच भिड़ंत हो गई. उसके बाद जो हुआ वो सबके सामने है.

चंडीगढ़: 2014 का लोकसभा चुनाव आपको याद होगा और उस वक्त जाटों को मिला आरक्षण भी आपको याद होगा. उसके बाद जो कुछ उस जाट आरक्षण पर हुआ वो हम नीचे आपको बताएंगे. लेकिन इस चुनाव से जाट आरक्षण का मुद्दा क्यों गायब है? ऐसा क्या हुआ है कि जब यूपी में विधानसभा चुनाव हुए तब भी हरियाणा का जाट आरक्षण और आंदोलन मुद्दा था लेकिन इस बार नेताओं के मुंह पर न तो जाट आरक्षण है और न ही आंदोलन से जुड़ा कोई मुद्दा. इतना ही नहीं जाट नेता भी इस बार चुप हैं तो उनकी चुप्पी की वजह क्या है? क्या ये मान लिया जाये कि हर चुनाव के मुद्दे अलग होते हैं और जाट आरक्षण भी महज़ एक मुद्दा था. क्या जाट आरक्षण लोकसभा चुनाव में कोई मुद्दा ही नहीं है?

जाट आरक्षण पर मौजूदा स्थिति
2012 में तत्कालीन हरियाणा सरकार ने जाटों को आरक्षण देने के लिए एक आयोग का गठन किया था. जिसका नेतृत्व जस्टिस केसी गुप्ता कर रहे थे. इसी आयोग की रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन हुड्डा सरकार ने जाटों को आरक्षण दिया था. जिसके बाद ये मामला कोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने केसी गुप्ता आयोग की रिपोर्ट को खारिज कर दिया. इसके बाद जब हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन हुआ तो उसके बाद मौजूदा बीजेपी सरकार ने जाटों को आरक्षण देने के लिए नोटिफिकेशन जारी किया और विधानसभा से भी बिल पास किया. इस बार भी केसी गुप्ता की रिपोर्ट को ही आधार बनाया गया. लेकिन कोर्ट में औंधे मुंह गिरी केसी गुप्ता आयोग की रिपोर्ट को एक बार फिर कोर्ट में चुनौती दी गई और फिर से जाटों को मिले आरक्षण पर रोक लग गई. फिलहाल जाट आरक्षण का मुद्दा कोर्ट में है.

जाट आरक्षण पर मौजूदा सरकार का रुख
बीजेपी सरकार कोर्ट में जाटों का पक्ष रख रही है. राज्य में स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज का कहना है कि जाट आरक्षण पर हमारी सरकार ने सबकुछ किया है. हमने विधानसभा से बिल पास कराया और कोर्ट में हम मजबूती से खड़े हैं. इसके अलावा अगर दोबारा सरकार आती है तब भी हम जाट आरक्षण के पक्ष में खड़े रहेंगे.
जाट आरक्षण मुद्दे पर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला कहते हैं कि उनकी पार्टी ने जाट आरक्षण के मुद्दे पर समाधान की ओर कदम उठाये जबकि विपक्ष ने इस पर सिर्फ राजनीति की है. अब जनता समझ चुकी है कि जाट आरक्षण का समाधान सिर्फ बीजेपी कर सकती है.

क्लिक कर जानिये जाट आरक्षण पर बीजेपी की राय

जाट आरक्षण पर इनेलो का रुख
अब तक जाटों को इनेलो का कोर वोटर माना जाता रहा है. इनेलो की राजनीति भी हमेशा जाट समुदाय के इर्द-गिर्द ही रही है. लेकिन इस बार इनेलो भी उस तरीके से जाट आरक्षण को मुद्दा नहीं बना रही है जिस तरीके से उसने इलेक्शन से पहले जाट आरक्षण पर रुख अपनाया था. जब अभय चौटाला से इस बार में पूछा गया कि क्या इस बार जाट आरक्षण आपकी पार्टी का मुद्दा होगा तो उनका कहना था कि 100 फीसदी हम इस मुद्दे को उठाएंगे. लेकिन अभी तक इसके आसार नजर नहीं आ रह हैं.

क्लिक कर जानिये जाट आरक्षण पर इनेलो की राय

जाट आरक्षण कांग्रेस का रुख

2014 चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने ही जाट समुदाय को आरक्षण दिया था. उसके बाद कांग्रेस की सरकार केंद्र और राज्य दोनों जगह से चली गई तब से कांग्रेस लगातार बीजेपी पर आरोप लगाती रही है कि उसने अदालत में सही से मामले की पैरवी नहीं की.लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस भी इस मुद्दे पर ध्यान नहीं दे रही है क्योंकि उनका दिया आरक्षण कोर्ट में नहीं टिक पाया था.

जाट आरक्षण पर जेजेपी का रुख

जेजेपी इनेलो से ही टूटकर बनी है और जाट वोटर्स पर उनकी भी नज़र है फिलहाल पार्टी ने आम आदमी पार्टी से गठबंधन किया है. लेकिन जाट आरक्षण को लेकर जेजेपी भी बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं दिख रही है. न ही उनके शीर्ष नेतृत्व ने इस पर कोई ध्यान दिया है.

पार्टियां जाट आरक्षण से क्यों भाग रही हैं ?
हरियाणा में जाट समुदाय का बड़ा प्रभाव है लेकिन फिर भी अब पार्टियां जाट आरक्षण से अगर दूर भाग रही हैं तो उसकी कई वजहें हैं.
⦁ पहली वजह- जब भी किसी सरकार ने जाटों को आरक्षण देने की कोशिश की कोर्ट ने उस पर रोक लगा दी.
⦁ दूसरी वजह- सभी पार्टियों की नजर गैर जाट समुदाय के वोटरों पर है.
⦁ तीसरी वजह- जाट समुदाय इनेलो का कोर वोटर माना जाता था. लेकिन अब उसमें जेजेपी ने सेंधमारी की है और हुड्डा के साथ भी काफी लोग दिखते हैं. इसके अलावा कुछ जाट वोटर बीजेपी के साथ भी हैं. इसीलिए बंटते वोट की वजह से भी पार्टियां शायद ध्यान नहीं दे रही हैं.
⦁ चौथी वजह- क्योंकि कोर्ट ने कई बार जाट आरक्षण पर रोक लगाई है इसीलिए कोई भी पार्टी अब ऐसा कोई वादा नहीं करना चाहती जो बाद में मुसीबत की वजह बन जाये.

हरियाणा में 'किंगमेकर' हैं जाट
हरियाणा की राजनीति में जाटों को साधे बिना टिक पाना कितना मुश्किल है इस बात का अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है. राज्य में अभी तक ज्यादातर जाट समुदाय से ही मुख्यमंत्री बनते रहे हैं. प्रदेश में जाटों के लगभग 25 फीसदी वोट हैं. भिवानी, रोहतक, सोनीपत और हिसार में बड़ी संख्या में जाट वोटर हैं. यानि 10 में 4 सीटें ऐसी हैं जिन्हें जाटों का गढ़ माना जाता है. बाकी सीटों पर भी जाट बहुत कम संख्या में नहीं हैं. इसीलिए आज तक हरियाणा में कोई पार्टी जाटों को नजरअंदाज नहीं कर पाई है.

हुड्डा ने 2005 का वादा 2014 में पूरा किया
2005 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने और खासतौर पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने जाट समुदाय से वादा किया था कि वो जाटों को आरक्षण देंगे. ये वादा हुड्डा ने 2014 में ऐसे पूरा किया कि उन्होंने जाटों के साथ जट सिख, रोड, बिश्नोई और त्यागी कम्युनिटी को स्पेशल बैकवर्ड क्लास के तहत रिजर्वेशन दिया. लेकिन 2015 में ये नोटिफिकेशन हाईकोर्ट के आदेशों के बाद मौजूदा सरकार को वापस लेना पड़ा.

केंद्र सरकार को भी मुंह की खानी पड़ी
2014 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने हरियाणा समेत 9 राज्यों में जाटों को ओबीसी में शामिल करने की सिफारिश की थी जिसे 2015 में सुप्रीम ने खारिज कर दिया था. हरियाणा के अलावा बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्य इसमें शामिल किये गये थे.

नई नहीं है जाट आरक्षण की मांग
1991 में जब वीपी सिंह की सरकार में मंडल कमीशन की रिपोर्ट आई थी तब भी जाटों ने उसका विरोध किया था. इसके बाद 1997 में जाटों ने हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में केंद्रीय ओबीसी श्रेणी में शामिल करने की मांग की थी जिसे राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग ने रद्द कर दिया था. नीचे दी गई तारीखों के जरिये समझिये हरियाणा में जाटों ने आरक्षण के लिए कब, क्या किया ?
⦁ 24 नवंबर 2006: जाट जागृति अभियान की शुरुआत हुई
⦁ 13 सितंबर 2010: जाट आरक्षण संघर्ष समिति ने मय्यड़ गांव में दिल्ली हाईवे जाम किया.
⦁ 13 सितंबर 2010: पूरे देश में 62 जगहों पर या तो रेल रोकी गई या रोड जाम किया गया.
⦁ 13 सितंबर 2010: आंदोलन के दौरान मय्यड़ में कुरुक्षेत्र के एक व्यक्ति की मौत हो गई.
⦁ इसके लिए तत्कालीन पुलिस अधीक्षक सुभाष यादव पर मामला दर्ज हुआ.
⦁ 5 मार्च 2011: देशभर के 15 रेलवे ट्रैक के पास जाट धरने पर बैठे.
⦁ 23 मार्च 2011: फतेहाबाद में भूख हड़ताल के दौरान विजय कड़वासरा की मौत हो गई.
⦁ 25 मार्च 2011: जाटों की तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से वार्ता हुई.
⦁ 3 मई 2011: केंद्र सरकार ने गजट नोटिफिकेशन कर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को पुनर्वलोकन का अधिकार दिया.
⦁ 29 मई 2011: अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से देशभर में जाट संकल्प यात्रा की शुरुआत हुई.
⦁ 13 सितंबर 2011: सुनील श्योराण का शहादत दिवस मनाया गया और 19 फरवरी 2012 से आंदोलन का ऐलान किया गया.
⦁ 19 फरवरी 2012: मय्यड़ के नजदीक रामायण ट्रैक से आंदोलन की शुरुआत की गई.
⦁ 6 मार्च 2012: तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ने भूख हड़ताल पर बैठे आंदोलनकारियों को उठाया. लोगों ने इसका विरोध किया. इसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज किया, आंसू गैस के गोले छोड़े और पुलिस पर पथराव हुआ. इस दौरान मय्यड़ के संदीप कड़वासरा की गोली लगने से मौत हो गई. आंदोलन के चलते ये तीसरी मौत थी.
⦁ 6 मार्च 2012: शव को रेलवे ट्रैक पर रखकर जाट समुदाय ने आंदोलन शुरु कर दिया और 12 मार्च 2012 को संदीप कड़वासरा की अंत्येष्टि हुई.
⦁ 13 सितंबर 2012: सुनील श्योराण की दूसरी बरसी पर खापों ने 15 दिसंबर 2012 से आंदोलन की चेतावनी दी.
⦁ 24 जनवरी 2013: हुड्डा सरकार ने जाटों को 10 प्रतिशत अलग से विशेष पिछड़ा वर्ग में आरक्षण दिया.
⦁ 5 मार्च 2013: संसद के बजट सत्र के दौरान जंतर-मंतर समेत देशभर की 55 जगहों पर धरने की शुरुआत हुई. 31 मार्च को देश के बाकी हिस्सों में धरना खत्म हो गया लेकिन 10 मई 2013 तक धरना चलता रहा.
⦁ 6 मार्च 2013: मय्यड़ से आंदोलन की शुरुआत हुई जो कुछ ही समय में पूरे हरियाणा में फैल गया.
⦁ 10 मई 2013: केंद्रीय मंत्री वी नारायण सामी ने जल्द आरक्षण की घोषणा का वादा किया.
⦁ 20 अगस्त 2013: केंद्र सरकार ने जाट आरक्षण के लिए केंद्र के नेताओं की कमेटी गठित की.
⦁ 13 सितंबर 2013: मय्यड़ में सुनील श्योराण के शहादत दिवस पर रैली हुई.
⦁ 19 दिसंबर 2013: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को 9 राज्यों के जाटों के आरक्षण की मांग पर राज्यों के आधार पर सुनवाई शुरु करने का निर्देश दिया.
⦁ 10 से 13 फरवरी 2014: राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग में 9 राज्यों की सुनवाई हुई.
⦁ 2 मार्च 2014: केंद्र सरकार ने 9 राज्यों के जाटों को आरक्षण में शामिल करने की घोषणा की.
⦁ 5 मार्च 2014: केंद्र सरकार ने गजट नोटिफिकेशन जारी किया.
⦁ इसके बाद केंद्र में मोदी सरकार आई और राज्य में मनोहर सरकार, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने इस सुविधा पर रोक लगा दी.
⦁ 13 फरवरी 2016: एक बार फिर से जाट आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन शुरु हुआ.

जाट आरक्षण आंदोलन
जाट आरक्षण आंदोलन की शुरुआत सबसे पहले 12 फरवरी 2016 को हिसार के मय्यड़ से हुई थी. हालांकि, ये मामला तुरंत ही निपट गया था. फिर 14 फरवरी को रोहतक के सांपला में जाट आरक्षण को लेकर सम्मेलन बुलाया गया. इस सम्मेलन के तुरंत बाद आंदोलनकारियों ने रोहतक-दिल्ली नैशनल हाइवे को जाम कर दिया. हरियाणा सरकार में कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ ने आंदोलनकारियों से मुलाकात कर मामले को निपटाने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी. इससे अगले ही दिन 15 फरवरी को जाट आंदोलनकारियों ने इस्माइला गांव में रोहतक-दिल्ली रेलमार्ग को जाम कर दिया. इसी के साथ रोहतक के महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी के गेट के सामने धरना शुरू कर दिया गया. बस फिर क्या था यह आंदोलन आसपास के झज्जर और सोनीपत जिलों में होता हुआ हरियाणा के 8 जिलों में फैल गया. इस आंदोलन से रोहतक, झज्जर, सोनीपत, जींद, हिसार, कैथल और भिवानी जिले पूरी तरह से प्रभावित रहे. जगह-जगह हाइवे और रेलमार्ग जाम कर दिए गए. सरकार ने जाट और खाप प्रतिनिधियों से भी बातचीत कर मसले को सुलझाने का प्रयास किया, पर बात नहीं बनी.

जब हिंसक हो गया आंदोलन

तीन दिन तक तो ये आंदोलन शांतिपूर्ण ढंग से चलता रहा, लेकिन इस आंदोलन ने 18 फरवरी की शाम को रोहतक में घटी एक घटना के बाद जातीय और हिंसक रूप ले लिया. 35 बिरादरी संघर्ष समिति और जाट आंदोलनकारियों के बीच झड़प के बाद रोहतक शहर में आगजनी की घटनाएं शुरू हो गई. 18 फरवरी की रात को ही रोहतक पुलिस ने एक हॉस्टल में घुसकर युवा जाट आंदोलनकारियों की पिटाई कर दी. अगले दिन 19 फरवरी को रोहतक में महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी के गेट के सामने हजारों आंदोलनकारी जमा हो गए. आंदोलनकारियों की संख्या को देखते हुए भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया. आंदोलनकारियों ने दिल्ली बाईपास स्थित रोहतक के आईजी आवास की ओर कूच किया. आंदोलनकारियों और सुरक्षा कर्मियों के बीच भिड़ंत हो गई. उसके बाद जो हुआ वो सबके सामने है.

Intro:एंकर -
हरियाणा में आगामी समय में होने वाले लोकसभा चुनाव में हरियाणा बीजेपी सरकार की उपलब्धियां और नाकामयाबी मतदान के समय मतदाताओं के जेहन में रहेगी । हरियाणा सरकार जाट आरक्षण आंदोलन , डेरा हिंसा समेत कई मुद्दों को लेकर विपक्ष के निशाने पर रह सकती है वहीं कर्मचारी वर्ग भी सरकार से कुछ नाराज है पंजाब के समान वेतनमान का वादा हरियाणा की बीजेपी सरकार अभी पूरा नहीं कर पाई है । हालांकि इस मुद्दे को लेकर हरियाणा बीजेपी के अध्यक्ष सुभाष बराला का मानना है कि सरकार के पास अभी 5 साल का वक्त है जो घोषणाएं अभी बची हैं उन पर आने वाले समय में पूरा कर दिया जाएगा । वहीं जाट आरक्षण आंदोलन पर सुभाष बराला ने के पाले में फेंकते हुए कहा कि इसके पीछे विपक्ष का षड्यंत्र उजागर हुआ है । वहीं सरकार की उपलब्धियों पर सुभाष बराला ने कहा कि सरकार के पास उपलब्धियों का लंबा-चौड़ा खाका तैयार है । बराला ने कहा किसानों , युवाओं , महिलाओं व्यापारियों , किसानों और मजदूरों सभी के लिए सरकार ने कई जनकल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं। सुभाष बराला ने कहा कि आरक्षण आंदोलन के पीछे जो लोग थे जनता समझती है उन लोगों को निकाय चुनाव और जींद उपचुनाव में जनता ने सबक सिखाया था आने वाले समय में भी जनता से उन्हें सबक सिखाएगी । इन चुनावों के नतीजों से बराला दर्शाते नजर आए की जनता में सरकार के प्रति कोई गुस्सा नहीं है । वहीं उपलब्धियों पर बराला ने कहा कि सरकार ने कई ऐसी घोषणाएं की हैं जिससे सभी वर्गों को बड़ी राहत मिली है और यह सरकार की बड़ी उपलब्धियां हैं । सुभाष बराला ने कहा कि सही मायनों में हरियाणा की बीजेपी सरकार लोकतंत्र लेकर आई है पहले राजतंत्र हुआ करता था । सुभाष बराला ने कहा कि सरकार ने भ्रष्टाचार को खत्म किया है पहले सीएलयू समेत नौकरियां भी एक ही हाथ से निकला करती थी पर सरकार बड़े सर पर पारदर्शिता लेकर आई है और भ्रष्टाचार को समाप्त करने का काम किया है । सुभाष बराला ने कहा कि हमारे लिए इस चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा व्यवस्था परिवर्तन भ्रष्टाचार को समाप्त करना मेरिट पर नौकरियां देना और भ्रष्टाचार को पूरी तरह समाप्त करना अहम मुद्दे रहेंगे । सुभाष बराला ने कहा कि असल मायने में गरीब का कल्याण और सुरक्षित भारत को बीजेपी ने सरकार किया है ।


Body:कांग्रेस की तरफ से जारी किए गए घोषणापत्र पर सुभाष बराला ने कहा कि कांग्रेस को अपने घोषणापत्र पर फिर से विचार करना चाहिए । सुभाष बराला ने कहा कि नेहरू जी के समय से जो नारे और लारे कांग्रेस देने का काम करती रही है उसी पर कायम है । बराला ने कहा कि सोनिया गांधी तक के समय में भी वही नारे और नारे दिए गए । सुभाष बराला ने कहा कि घोषणा पत्र में एएफए से हटाने की बात की गई है जो कहीं ना कहीं पाकिस्तान के पक्ष में जाकर कानून हटाने का प्रयास है । सुभाष बराला ने कहा कि कांग्रेस इमरान खान की भाषा बोल रही है । सुभाष बराला ने कहा कि कांग्रेस को कश्मीर का हल कैसे हो कश्मीरी पंडितों को फिर से कैसे बचाया जाए इसकी चिंता नहीं है । सुभाष बराला ने कांग्रेस पर बड़ा हमला बोलते हुए कहा कि पाकिस्तान परस्त जो लोग हैं उनकी रक्षा सुरक्षा कैसे हो इसकी चिंता कांग्रेस को है । सुभाष बराला ने कहा कि असल मायने में अगर इमरान खान की भाषा कोई बोल रहा है तो वह कांग्रेस और कांग्रेस पार्टी के नेता हैं । सेना के जो जवान आतंकवाद को नेस्तनाबूद करने के लिए लगे हुए हैं आतंकवादियों के खिलाफ जो करे कानून हैं उन को समाप्त करने की बात कांग्रेस कर रही है । कांग्रेस भारत के साथ ना खड़ी होकर भारत विरोधी ताकतों के साथ खड़ी नजर आती है कांग्रेस को अपने घोषणापत्र पर फिर से पुनर्विचार करना चाहिए ।


Conclusion:गौरतलब है कि बीजेपी निकाय चुनाव और जींद उपचुनाव में मिली जीत से गदगद नजर आ रही है यही कारण है कि बीजेपी अपनी उपलब्धियों को तो बड़ा चढ़ा कर सामने रख रही है लेकिन जिन मुद्दों को लेकर बीजेपी विपक्ष के निशाने पर रह शक्ति है उस पर भी चुनाव के नतीजे दिखाने का प्रयास किया जा रहा है ।
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