भिवानी: मछली पालन की तरह मोती पालन भी एक प्रमुख व्यवसाय बनकर सामने आया है. नागरिक मोती पालन से अपनी आय बढ़ा सकते हैं. मत्स्य विभाग द्वारा मीठे जल में मोती पालन पर लगभग 60 प्रतिशत अनुदान का प्रावधान है. मोती पालन के इच्छुक लोग इस व्यवसाय को अपनाने के लिए जिला मत्स्य अधिकारी कार्यालय में संपर्क कर सकते हैं.
मोती पालन के लिए गहनता से जानकारी होना जरूरी है. मोती एक प्राकृतिक रत्न है और ये सीपियों (मोलस्क) के द्वारा पैदा किया जाता है. सामान्य तौर पर मोती प्राकृतिक रूप में छोटे आकार का और असामान्य आकृति का होता है. एक सीपी पालकर पैदा किया गया मोती भी प्राकृतिक मोती ही है.
तीन प्रकार की सीपियों का होता है प्रयोग
इन दोनों में अंतर सिर्फ केवल यही है कि इसमें मानव द्वारा शल्य चिकित्सा करके एक जीवित मैटल ग्राफटिंग और न्यूकलियस को सीपी में डालकर जरूरत के अनुसार के आकार, आकृति, रंग एवं चमक का मोती पैदा किया जाता है. अच्छे प्रकार के और अच्छी गुणवता के मोती प्राप्त करने के लिए तीन प्रकार की सीपियों का प्रयोग किया जाता है जो कि लेमेलिडेंस मार्गमेलीन, कोरियामस और पेरीजीया कोरूगट हैं.
ऐसे होता है मोती निर्माण
अगर मोती निर्माण की बात की जाए तो एक रेतकण कीड़ा आदि अचानक किसी कारण से सीपी में प्रवेश कर जाता है. सीपी से बाहरी कण वापस बाहर नहीं निकाल पाती. उस दशा में सीपी इस रेत के कण के बाहर एक चमकदार परत का निर्माण करती है. इस पर परत दर परत बनती जाती है, जिसके परिणाम स्वरूप मोती का निर्माण होता है.
जिला मत्स्य अधिकारी जय गोपाल वर्मा ने बताया कि मछली पालन की तरह ही मोती पालन भी एक बहुत अच्छा व्यवसाय है. इसके लिए इच्छुक लोग उनके कार्यालय में संपर्क कर सकते हैं. विभाग द्वारा मोती पालन पर 60 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है.
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