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अंबालाः एक-एक पैसे को मोहताज कुली भूखे सोने को मजबूर

लॉकडाउन के दौरान ईटीवी भारत ने हर उस व्यक्ति की आवाज उठाने की कोशिश की, जिसके जीवन पर कोरोना काल के दौरान सबसे ज्यादा मार पड़ी है. इसी कड़ी में ईटीवी भारत की टीम अंबाला रेलवे स्टेशन में काम करने वाले कुलियों का हालचाल जानने पहुंची. जब हमारी टीम अंबाला रेलवे स्टेशन पर पहुंची तो कुलियों के चेहरे पर एक मायूसी साफ झलक रही थी. ये मायूसी काम न मिलने की थी.

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Published : Jul 23, 2020, 5:50 PM IST

impact on porters of ambala railway station during the Covid period
कुलियों की सुनो सरकार... कहीं विलुप्त न हो जाए रेलवे स्टेशन से ये कामगार!

अंबालाः कोरोना महामारी ने देश-दुनिया के हर क्षेत्र पर असर डाला है. ऐसे में लॉकडाउन और कोरोना के दौर में सबसे बुरा असर उन मजदूरों पर पड़ा है जो अपने दिन की दिहाड़ी से अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं. ऐसा ही एक तबका है कुलियों का, जिनकी रोजी-रोटी रेलवे स्टेशन पर रुकने वाली रेलगाड़ियों से ही चलती है.

लॉकडाउन व कोरोनाकाल के इस वक्त में ईटीवी भारत ने हर उस व्यक्ति की आवाज उठाने की कोशिश की, जिसके जीवन पर कोरोना काल के दौरान सबसे ज्यादा मार पड़ी है. इसी कड़ी में ईटीवी भारत की टीम अंबाला रेलवे स्टेशन में काम करने वाले कुलियों का हालचाल जानने पहुंची. जब हमारी टीम अंबाला रेलवे स्टेशन पर पहुंची तो कुलियों के चेहरे पर एक मायूसी साफ झलक रही थी. ये मायूसी काम न मिलने की थी. जिसकी वजह से इन्हे परिवार के पालन पोषण की चिंता खाए जा रही है.

कुलियों की सुनो सरकार

अब ये हैं हालात...

नॉर्थन जोन रेलवे कुली यूनियन के सेक्रेटरी सुरिंदर कुमार ने बताया कि अंबाला छावनी रेलवे में करीब 150 कुलियों को रोजगार मिलता था. फिलहाल इस रेलवे स्टेशन पर 75 कुली दिन में तो 75 कुली रात में कार्य करते हैं, लेकिन इन दिनों रात के समय ट्रेनों में यात्री ना होने के चलते हर कुली की 15 दिनों के बाद शिफ्ट लग रही है. बावजूद इसके उन्हें दो वक्त की रोटी की भी चिंता सता रही है.

पढेंः अनलॉक-2 में खुले बाजार, लेकिन नहीं सुधरी व्यापारियों की आर्थिक हालत

क्या कहते हैं कुली ?

कुलियों ने बताया कि आजकल तो ऐसे भी दिन बीत रहें हैं जब एक भी पैसा नहीं बन पाता. लॉकडाउन से पहले एक दिन में लगभग 20 से 22 रेलगाड़ियां अंबाला छावनी से होकर गुजरती थी, जिसके चलते कुली महीने में करीब 10 से 12 हजार रुपये भी कमा लेते थे, लेकिन लॉक डाउन के बाद इनकी आमदनी नाम मात्र रह गई है.

कुलियों ने आगे बताया कि हम अपना दुखड़ा सुनाने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते. हमने पहले भी रेलवे से मदद की गुहार लगाई है, लेकिन अबतक कुछ नहीं मिला पाया है. अब जो भी करना है वो रेलवे और सरकार को करना है. उन्होंने कहा कि हमें घर-परिवार के पालन-पोषण की चिंता हर-रोज सता रही है.

पढ़ेंः स्पेशल रिपोर्ट: नहीं हुआ अनलॉक का फायदा, बहादुरगढ़ में केवल 20% फैक्ट्रियां ही खुलीं

अंबालाः कोरोना महामारी ने देश-दुनिया के हर क्षेत्र पर असर डाला है. ऐसे में लॉकडाउन और कोरोना के दौर में सबसे बुरा असर उन मजदूरों पर पड़ा है जो अपने दिन की दिहाड़ी से अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं. ऐसा ही एक तबका है कुलियों का, जिनकी रोजी-रोटी रेलवे स्टेशन पर रुकने वाली रेलगाड़ियों से ही चलती है.

लॉकडाउन व कोरोनाकाल के इस वक्त में ईटीवी भारत ने हर उस व्यक्ति की आवाज उठाने की कोशिश की, जिसके जीवन पर कोरोना काल के दौरान सबसे ज्यादा मार पड़ी है. इसी कड़ी में ईटीवी भारत की टीम अंबाला रेलवे स्टेशन में काम करने वाले कुलियों का हालचाल जानने पहुंची. जब हमारी टीम अंबाला रेलवे स्टेशन पर पहुंची तो कुलियों के चेहरे पर एक मायूसी साफ झलक रही थी. ये मायूसी काम न मिलने की थी. जिसकी वजह से इन्हे परिवार के पालन पोषण की चिंता खाए जा रही है.

कुलियों की सुनो सरकार

अब ये हैं हालात...

नॉर्थन जोन रेलवे कुली यूनियन के सेक्रेटरी सुरिंदर कुमार ने बताया कि अंबाला छावनी रेलवे में करीब 150 कुलियों को रोजगार मिलता था. फिलहाल इस रेलवे स्टेशन पर 75 कुली दिन में तो 75 कुली रात में कार्य करते हैं, लेकिन इन दिनों रात के समय ट्रेनों में यात्री ना होने के चलते हर कुली की 15 दिनों के बाद शिफ्ट लग रही है. बावजूद इसके उन्हें दो वक्त की रोटी की भी चिंता सता रही है.

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क्या कहते हैं कुली ?

कुलियों ने बताया कि आजकल तो ऐसे भी दिन बीत रहें हैं जब एक भी पैसा नहीं बन पाता. लॉकडाउन से पहले एक दिन में लगभग 20 से 22 रेलगाड़ियां अंबाला छावनी से होकर गुजरती थी, जिसके चलते कुली महीने में करीब 10 से 12 हजार रुपये भी कमा लेते थे, लेकिन लॉक डाउन के बाद इनकी आमदनी नाम मात्र रह गई है.

कुलियों ने आगे बताया कि हम अपना दुखड़ा सुनाने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते. हमने पहले भी रेलवे से मदद की गुहार लगाई है, लेकिन अबतक कुछ नहीं मिला पाया है. अब जो भी करना है वो रेलवे और सरकार को करना है. उन्होंने कहा कि हमें घर-परिवार के पालन-पोषण की चिंता हर-रोज सता रही है.

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