अंबाला: ताजमहल, संगमरमर में तराशी गई एक कविता है जो आकर्षण और भव्यता के लिए पूरी दुनिया में अपने प्रकार का एक ही है. जिसकी खूबसरती में चार चांद लगाने का काम करती है संगमरमर के पत्थरों पर की गई नक्काशी. ऐसा ही एक अनूठा या यू कहे अजूबा अंबाला में तैयार हो रहा है. जो आने वाले दिनों में हरियाणा ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर भारत के लिए पर्यटन की दृष्टि के तौर पर विकसित हो सकता है.
ताजमहल को मुगल शासक शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में बनवाया था और अंबाला में संगमरमर के पत्थरों से बन रहा भव्य जैन मंदिर है. जिसे गीता नगरी में जैन मुनि विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वर की याद में बनाया जा रहा है.
अंबाला में आठवां अजूबा !
अंबाला के गीता नगरी में बन रहा ये जैन मंदिर अपने आम में ही अनूठा है, क्योंकि इसे बनाने में सिर्फ और सिर्फ संगमरमर का इस्तेमाल किया जा रहा है. लोहे की एक भी कील का इस्तेमाल नहीं किया गया है. मंदिर में लेंटर की जगह पुरानी भारतीय निर्माण शैली डाट का इस्तेमाल किया गया है. ये मंदिर करीब ढाई एकड़ में बन रहा है. जिसमें से 500 गज पर मंदिर और दूसरे हिस्से में आश्रम और भोजनालय बनाए जाएंगे.
मकराना से लाए जा रहे हैं पत्थर
खास बात ये है कि इस मंदिर के लिए पत्थर राजस्थान के मकराना से लाए जा रहे हैं और इसे तराशने का काम भी राजस्थान से आए शिल्पकार ही कर रहे हैं.मंदिर का निर्माण मुनि सुरिश्वर के शिष्य मुनि विजय रत्नाकर सूरीश्वर ने साल 2011 में शुरू कराया था. हैरानी की बात ये है कि मंदिर का नक्शा किसी आर्किटेक्ट ने नहीं, बल्कि खुद जैन मुनि विजय रत्नाकर सूरीश्वर ने कागज पर परात रख कर तैयार किया था.
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5 साल में बनकर तैयार होगा जैन मंदिर
ये मंदिर चंदे पर तैयार किया जा रहा है. जिसमें 36 गुंबद हैं, जिनके नीचे जैन समाज के सभी 108 आचार्य भगवानों की मूर्तियों को रखा जाएगा. अभी तक इस मंदिर पर 7 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं. कयास लगाए जा रहे हैं कि मंदिर को बनने में और पांच साल का वक्त लगेगा. वहीं ये मंदिर पर्यटन की दृष्टि से न सिर्फ अंबाला के लिए, बल्कि पूरे उत्तर भारत का अपनी शिल्प शैली का अनूठा मंदिर होगा. जो बिना सरिये के सिर्फ संगमरमर के पत्थर से बनकर तैयार होगा.