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युद्ध की अग्नि में झुलसता सीरिया

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Published : Oct 23, 2019, 7:17 PM IST

Updated : Oct 23, 2019, 7:35 PM IST

सीरिया की समस्या लगातार बद से बदतर होती जा रही है. तुर्की ने सीरिया के कुर्द वाले इलाकों पर हमला जारी रखा हुआ है. अमेरिकी सैनिक इस इलाके से हट चुके हैं. ऐसे में खतरा उत्पन्न हो गया कि यहां पर कहीं फिर से आईएस आतंकी अपना पैर पसार ना लें. पढ़िए, कैसी है सीरिया की स्थिति.

सीरिया में संघर्ष के कारण पलायन करते लोग

किसी ने कहा है, 'शांति दो युद्धों के मध्य का अंतराल है'. लेकिन दुर्भाग्य से, यहां तक ​​कि यह अल्पकालिक शांति पिछले आठ वर्षों से सीरिया को नसीब नहीं हुई है. हर तरफ एक उथल-पुथल है और चारों ओर खून खराबा है. जब से बड़े भाई अमेरिका ने मानवाधिकारों की रक्षा का कार्यभार संभाला है, स्थिति बद से बदतर हो गई है. उसने अपनी ज़िम्मेदारी पूरी ईमानदारी से नहीं निभाई है.

राष्ट्रपति ट्रम्प के उत्तरी सीरिया से अमेरिकी सेना को वापस लेने के निर्णय ने कुर्दों को असहाय स्थिति में पहुंचा दिया है. तुर्की जो इस अवसर की प्रतीक्षा कर रहा था, उसने कुर्दों पर भयंकर हमला करके भयानक स्थिति पैदा कर दी है, जिसने एक नया राजनीतिक समीकरण तैयार किया है. कुर्द, जो अबतक, अमेरिका के समर्थन से लड़ रहे थे, अब अकेले दयनीय स्थिति में अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. यह बहुत चौंकाने वाला है कि कुर्द अपने अस्तित्व को बचाने और तुर्की के हमलों से अपनी रक्षा करने के लिए सीरिया के शासक असद के साथ समझौता कर चुके हैं.

हालांकि, ट्रम्प ने अंकारा (तुर्की की राजधानी) को धमकी दी है कि वे वित्तीय प्रतिबंधों का सहारा लेंगे, अमेरिका की पर्दे के पीछे की राजनीति ने 5 दिनों के संघर्ष विराम के लिए मार्ग प्रशस्त किया है. इसके अलावा, तुर्की और अमरीका के बीच इस शर्त के साथ समझौता हुआ है कि कुर्द चरमपंथियों को तुर्की की सीमाओं से दूर हटा दिया जायेगा और तुर्की की पहले से ही कमजोर अर्थव्यवस्था पर कोई वित्तीय प्रतिबंध नहीं लगाया जायेगा. तुर्की इस बात से खुश है कि अमेरिका उसकी इस शर्त पर सहमत हो गया है कि सीरिया की एनडीएफ़ (नेशनल डेमोक्रेटिक फ़ोर्स) की सेना को दक्षिण सीरिया की सीमा से 20 किमी दूर धकेल दिया जाए और उस दिशा में व्यवस्था की जा रही है.

ट्रम्प का दावा है कि यह मानवता की बहाली के लिए एक सही कदम था, वास्तविकता यह है कि निश्चित रूप से पुनः इस्लामिक स्टेट की बहाली का खतरा मंडरा रहा है.

सीरिया को फ्रांस से आजादी सात दशक पहले मिली थी. सीरिया कुर्द, आर्मेनियाई, असीरियन, ईसाई, शिया, सुन्नी समुदायों का एक जमावड़ा है. कुर्दों की ख़ासियत यह है कि, सबसे बड़े जातीय समूह होने के बावजूद उनके पास कोई अलग देश नहीं है. वे ईरान, तुर्की, इराक, सीरिया, आर्मेनिया में फैले हैं, लगभग 17 लाख उत्तरी सीरिया में रहते हैं.

ये भी पढ़ें: फर्जी डिग्री का खेल, मिल रही पनाह

2011 की अरब क्रांति, जिसे अरब स्प्रिंग के नाम से जाना जाता है, ने लोगों के आंदोलन के रूप में कई देशों को हिला दिया, जब वह सीरिया में दाखिल हुआ, तो उसको इसके गंभीर परिणाम झेलने पड़े जिससे गृहयुद्ध और हिंसा भड़क उठी. जब विपक्ष ने असद के पद छोड़ने के लिए आंदोलन किया, तो सीरिया सरकार ने उन पर अपना लोहे का पैर रख दिया. हालांकि, अरब लीग, यूरोप, तुर्की, अमेरिका, इजरायल जैसे देशों ने विद्रोहियों का समर्थन किया.

सीरियाई सरकार जो मुश्किल स्थिति में थी, उसे ईरान के चतुर वरिष्ठ अधिकारियों, हजारों हिजबुल्लाह गुरिल्लाओं के भौतिक समर्थन और रूस के हवाई हमलों का समर्थन हासिल हुआ. जैसे शीत युद्ध के दौरान, अमेरिका और सोवियत संघ द्वारा अफगानिस्तान में तबाही का खेल रचा गया था, वैसा ही राजनीतिक नाटक का सामना सीरिया में फैली अशांति के रूप में देखा जा सकता है.

ये भी पढ़ें: अयोध्या भूमि विवादः समाधान की ओर बढ़ते 'सुप्रीम' कदम

असद, जिन्होंने विदेशी देशों के हस्तक्षेप करने पर रासायनिक हथियारों के उपयोग की धमकी दी थी, उन्होंने अपने शब्दों का मान रखते हुए अपने ही लोगों को प्रताड़ित किया. संयुक्त राष्ट्र और दुनिया के देशों ने इसपर आपत्ति तो जताई मगर निर्लज्जतापूर्वक इस पूरे मामले से दूरी भी बनाये रखी. चुनावों को ध्यान में रखते हुए ट्रम्प ने कहा कि उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति ओबामा की गलती को सुधार लिया है. लेकिन युद्ध का प्रकोप कहीं कम होता नज़र नहीं आ रहा है.

लिंडसे ग्राहम ने ट्रम्प की इस जल्दबाजी की रणनीति को ओबामा द्वारा लिए गए क्षुद्र निर्णय की तुलना में ज्यादा बड़े खतरे के रूप में माना. यह आलोचना काफी न्यायसंगत है. क्षणभंगुर लाभ के साथ अमेरिका के जल्दबाजी में किए गए फैसलों के कारण समस्याएं पैदा हुई हैं. स्वतंत्र कुर्द देश बनाने के उदेश्य से 1984 में बनी पीकेके लगातार सशस्त्र संघर्ष कर रही है, जिसमें अबतक 40,000 जानें जा चुकी हैं.

ये भी पढ़ें: भारत में तटीय क्षेत्रों का नियमन किस तरह होता है, विस्तार से समझें

पीकेके के समर्थन से, पीवायडी ने सीरिया में कुर्द पार्टी के रूप में ताकत हासिल की. अमेरिका ने तुर्की-सीरिया सीमा में पांव फैलाते आईएस के चरमपंथ का सफाया करने के लिए कुर्द सेना, एसडीएफ को हथियारों का समर्थन दिया था. एनडीएफ ने तुर्की की सीमाओं में स्वायत्त परिषदें गठित कर हजारों आईएस चरमपंथियों को कैद कर लिया था.

कुर्दों के समर्थन की ज़रूरत पूरी होने पर, ट्रम्प ने अपना रास्ता बदल दिया और तुर्की का समर्थन करना शुरू कर दिया, जो नाटो का सदस्य है. अंकारा ने हवाई बमों द्वारा नाक में दम बने कुर्द चरमपंथियों पर बमबारी शुरू कर दी.

ये भी पढ़ें: ड्रोन : लचर सुरक्षा-व्यवस्था, सिर पर मंडराता खतरा

तुर्की अपनी सीमा से 50 किलोमीटर चौड़ा एसडीएफ मुक्त बफर ज़ोन बनाना चाहता है. यदि यह शर्त मान ली जाती है तो, क्या होगा यदि परिणामस्वरूप कुर्द सेना आईएस के उन सैनिकों को छोड़ दे, जो उसके नियंत्रण में हैं या क्या होगा यदि आईएस दोबारा ताकतवर बन नरसंहार को फिर से शुरू कर दे? बड़े देशों की संकीर्ण राजनीतिक दृष्टि के कारण हर तरफ अफरा तफरी का माहौल फ़ैल रहा है जो एक शाश्वत नरसंहार की ओर धकेल रहा है.

किसी ने कहा है, 'शांति दो युद्धों के मध्य का अंतराल है'. लेकिन दुर्भाग्य से, यहां तक ​​कि यह अल्पकालिक शांति पिछले आठ वर्षों से सीरिया को नसीब नहीं हुई है. हर तरफ एक उथल-पुथल है और चारों ओर खून खराबा है. जब से बड़े भाई अमेरिका ने मानवाधिकारों की रक्षा का कार्यभार संभाला है, स्थिति बद से बदतर हो गई है. उसने अपनी ज़िम्मेदारी पूरी ईमानदारी से नहीं निभाई है.

राष्ट्रपति ट्रम्प के उत्तरी सीरिया से अमेरिकी सेना को वापस लेने के निर्णय ने कुर्दों को असहाय स्थिति में पहुंचा दिया है. तुर्की जो इस अवसर की प्रतीक्षा कर रहा था, उसने कुर्दों पर भयंकर हमला करके भयानक स्थिति पैदा कर दी है, जिसने एक नया राजनीतिक समीकरण तैयार किया है. कुर्द, जो अबतक, अमेरिका के समर्थन से लड़ रहे थे, अब अकेले दयनीय स्थिति में अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. यह बहुत चौंकाने वाला है कि कुर्द अपने अस्तित्व को बचाने और तुर्की के हमलों से अपनी रक्षा करने के लिए सीरिया के शासक असद के साथ समझौता कर चुके हैं.

हालांकि, ट्रम्प ने अंकारा (तुर्की की राजधानी) को धमकी दी है कि वे वित्तीय प्रतिबंधों का सहारा लेंगे, अमेरिका की पर्दे के पीछे की राजनीति ने 5 दिनों के संघर्ष विराम के लिए मार्ग प्रशस्त किया है. इसके अलावा, तुर्की और अमरीका के बीच इस शर्त के साथ समझौता हुआ है कि कुर्द चरमपंथियों को तुर्की की सीमाओं से दूर हटा दिया जायेगा और तुर्की की पहले से ही कमजोर अर्थव्यवस्था पर कोई वित्तीय प्रतिबंध नहीं लगाया जायेगा. तुर्की इस बात से खुश है कि अमेरिका उसकी इस शर्त पर सहमत हो गया है कि सीरिया की एनडीएफ़ (नेशनल डेमोक्रेटिक फ़ोर्स) की सेना को दक्षिण सीरिया की सीमा से 20 किमी दूर धकेल दिया जाए और उस दिशा में व्यवस्था की जा रही है.

ट्रम्प का दावा है कि यह मानवता की बहाली के लिए एक सही कदम था, वास्तविकता यह है कि निश्चित रूप से पुनः इस्लामिक स्टेट की बहाली का खतरा मंडरा रहा है.

सीरिया को फ्रांस से आजादी सात दशक पहले मिली थी. सीरिया कुर्द, आर्मेनियाई, असीरियन, ईसाई, शिया, सुन्नी समुदायों का एक जमावड़ा है. कुर्दों की ख़ासियत यह है कि, सबसे बड़े जातीय समूह होने के बावजूद उनके पास कोई अलग देश नहीं है. वे ईरान, तुर्की, इराक, सीरिया, आर्मेनिया में फैले हैं, लगभग 17 लाख उत्तरी सीरिया में रहते हैं.

ये भी पढ़ें: फर्जी डिग्री का खेल, मिल रही पनाह

2011 की अरब क्रांति, जिसे अरब स्प्रिंग के नाम से जाना जाता है, ने लोगों के आंदोलन के रूप में कई देशों को हिला दिया, जब वह सीरिया में दाखिल हुआ, तो उसको इसके गंभीर परिणाम झेलने पड़े जिससे गृहयुद्ध और हिंसा भड़क उठी. जब विपक्ष ने असद के पद छोड़ने के लिए आंदोलन किया, तो सीरिया सरकार ने उन पर अपना लोहे का पैर रख दिया. हालांकि, अरब लीग, यूरोप, तुर्की, अमेरिका, इजरायल जैसे देशों ने विद्रोहियों का समर्थन किया.

सीरियाई सरकार जो मुश्किल स्थिति में थी, उसे ईरान के चतुर वरिष्ठ अधिकारियों, हजारों हिजबुल्लाह गुरिल्लाओं के भौतिक समर्थन और रूस के हवाई हमलों का समर्थन हासिल हुआ. जैसे शीत युद्ध के दौरान, अमेरिका और सोवियत संघ द्वारा अफगानिस्तान में तबाही का खेल रचा गया था, वैसा ही राजनीतिक नाटक का सामना सीरिया में फैली अशांति के रूप में देखा जा सकता है.

ये भी पढ़ें: अयोध्या भूमि विवादः समाधान की ओर बढ़ते 'सुप्रीम' कदम

असद, जिन्होंने विदेशी देशों के हस्तक्षेप करने पर रासायनिक हथियारों के उपयोग की धमकी दी थी, उन्होंने अपने शब्दों का मान रखते हुए अपने ही लोगों को प्रताड़ित किया. संयुक्त राष्ट्र और दुनिया के देशों ने इसपर आपत्ति तो जताई मगर निर्लज्जतापूर्वक इस पूरे मामले से दूरी भी बनाये रखी. चुनावों को ध्यान में रखते हुए ट्रम्प ने कहा कि उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति ओबामा की गलती को सुधार लिया है. लेकिन युद्ध का प्रकोप कहीं कम होता नज़र नहीं आ रहा है.

लिंडसे ग्राहम ने ट्रम्प की इस जल्दबाजी की रणनीति को ओबामा द्वारा लिए गए क्षुद्र निर्णय की तुलना में ज्यादा बड़े खतरे के रूप में माना. यह आलोचना काफी न्यायसंगत है. क्षणभंगुर लाभ के साथ अमेरिका के जल्दबाजी में किए गए फैसलों के कारण समस्याएं पैदा हुई हैं. स्वतंत्र कुर्द देश बनाने के उदेश्य से 1984 में बनी पीकेके लगातार सशस्त्र संघर्ष कर रही है, जिसमें अबतक 40,000 जानें जा चुकी हैं.

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पीकेके के समर्थन से, पीवायडी ने सीरिया में कुर्द पार्टी के रूप में ताकत हासिल की. अमेरिका ने तुर्की-सीरिया सीमा में पांव फैलाते आईएस के चरमपंथ का सफाया करने के लिए कुर्द सेना, एसडीएफ को हथियारों का समर्थन दिया था. एनडीएफ ने तुर्की की सीमाओं में स्वायत्त परिषदें गठित कर हजारों आईएस चरमपंथियों को कैद कर लिया था.

कुर्दों के समर्थन की ज़रूरत पूरी होने पर, ट्रम्प ने अपना रास्ता बदल दिया और तुर्की का समर्थन करना शुरू कर दिया, जो नाटो का सदस्य है. अंकारा ने हवाई बमों द्वारा नाक में दम बने कुर्द चरमपंथियों पर बमबारी शुरू कर दी.

ये भी पढ़ें: ड्रोन : लचर सुरक्षा-व्यवस्था, सिर पर मंडराता खतरा

तुर्की अपनी सीमा से 50 किलोमीटर चौड़ा एसडीएफ मुक्त बफर ज़ोन बनाना चाहता है. यदि यह शर्त मान ली जाती है तो, क्या होगा यदि परिणामस्वरूप कुर्द सेना आईएस के उन सैनिकों को छोड़ दे, जो उसके नियंत्रण में हैं या क्या होगा यदि आईएस दोबारा ताकतवर बन नरसंहार को फिर से शुरू कर दे? बड़े देशों की संकीर्ण राजनीतिक दृष्टि के कारण हर तरफ अफरा तफरी का माहौल फ़ैल रहा है जो एक शाश्वत नरसंहार की ओर धकेल रहा है.

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Last Updated : Oct 23, 2019, 7:35 PM IST
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