पानीपतः एक रिटायर फौजी महाल सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के नारे से पहले ही खुद को ऐसा आत्मनिर्भर बनाया कि मिसाल बन जाये. महाल सिंह किसान के बेटे थे और देश की सीमा पर रक्षा कर रहे थे, एक वक्त आया जब उन्हें इस सेवा से रियाटर होना था लेकिन उनका देस से प्यार उन्हें मिट्टी के करीब ले गया और अपने पिता की तरह वो भी किसानी करने लगे, कुछ दिन बाद उन्हें एहसास हुआ कि इतना केमिकल और पेस्टीसाइड से युक्त अनाज तो आने वाली पीढ़ियों के लिए जहर बन जाएगा, लिहाजा उन्होंने ऑर्गेनिक खेती शुरू कर दी. महाल सिंह ने अब से लगभग 12 साल पहले गन्ना उगाना शुरू किया और उसका गुड़ बनाने के लिए एक कोल्हू के रूप में छोटी सी यूनिट लगा दी.
महाल सिंह ने क्यों शुरू किया कोल्हू ?
महाल सिंह बताते हैं कि वो भी पहले पारंपरिक खेती की ओर ही मुड़े और रियारमेंट के बाद काफी दिनों तक वही करते रहे. लेकिन उसके बाद मुझे लगा कि जिस तरीके से कैमिकल और पेस्टीसाइड का इस्तेमाल हो रहा है उससे आने वाली पीढ़ी पर बहुत बुरा असर पड़ेगा और मैंने पहले ऑर्गेनिक खेती करनी शुरू की फिर उसके बाद उसी गन्ने से शक्कर, खांड और गुड़ तैयार करना शुरू कर दिया जो आज के वक्त में ना सिर्फ देश में बल्कि विदेशों तक में काफी पसंद किया जाता है.
यहां तक जा रहा पानीपत का गुड़
- भारत के केरल जैसे राज्यों में
- अमेरिका
- यूके
- फ्रांस
- ऑस्ट्रेलिया
- जर्मनी
- दुबई
- नाइजीरिया
- अल्जीरिया
इन देशों तक कैसे पहुंच रहा पानीपत का गुड़ ?
महाल सिंह का कहना है कि वो गुड़ को सुखाकर विदेश सप्लाई करते हैं. लेकिन ज्यादातर उनके यहं से एनआरआई सीधे खरीदकर ले जाते हैं. जो अलग-अलग देशों में जाकर पानीपत की छाप छोड़ता है.
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इंजीनियर बेटे ने नौकरी छोड़ अपनाई खेती
महाल सिंह के बड़े बेटे विजय ने आईटी कंपनी से अच्छी खासी नौकरी छोड़कर अपने पिता के साथ ऑर्गेनिक गुड़ बनाने का फैसला किया. अब वो अपने पिता के साथ ही खेत में काम करते हैं और ऑर्गेनिक गुड़, शक्कर और खांड बनाने में उनकी मदद करते हैं. विजय कहते हैं कि उनके पिता का लक्ष्य है कि लोगों तक बिना कैमिकल और पेस्टीसाइड से तैयार किया गया गुड़ पहुंचे जिसे पूरा करने के लिए वो उनके कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं.
खरीदार ने क्या कहा ?
सुरेंद्र भारद्वाज पास ही के गांव से महाल सिंह के कोल्हू पर गुड़ खरीदने आये थे. ईटीवी भारत संवाददाता ने जब उनसे पूछा कि इनके गुड़ में ऐसा क्या खास है तो सुरेंद्र भारद्वाज ने कहा कि ये बिना दवाई के गुड़ तैयार करते हैं जो सेहत के लिए फायदेमंद होता है और किसी भी तरीक का नुकसान नहीं पहुंचाता. इसीलिए हम यहां से गुड़ लेकर जाते हैं.
कोल्हू में कैसे तैयार होता है गुड़ ?
कोल्हू गुड़ और शक्कर बनाने का पुरान और देसी तरीका है. जिसमें पहले गन्ने का रस निकाला जाता है जिसे पाइप के जरिए एक पतीले नुमा बड़े कढ़ाव तक पहुंचाया जाता है. जिसके नीचे पहले से आग जल रही होती है. उसी के आसपास ऐसे चार कढ़ाव लगे होते हैं. पहले कढ़ाव में जब रस गर्म होता है तो उसके अंदर की गंदगी ऊपर आ जाती है जिसे जाली के जरिए निकाल दिया जाता है. इसके बाद उस रस को दूसरे कढ़ाव में डाला जाता है जहां उसे थोड़ी तेज आंच पर पकाया जाता है और फिर से उसमें निकलने वाली गंदगी को साफ किया जाता है और अगल कढ़ाव में डाल दिया जाता है जिसमें उससे भी तेज आंच पर उसे पकाया जाता है. और इस कढ़ाव में आखिरी बार रस को साफ किया जाता है. जिसके बाद चौथे और आखिरी कढ़ाव में रस को डाल दिया जाता है जहां उसे तब तक पकाया जाता है जब तक वो गुड़ ना बन जाये. जब गुड़ तैयार हो जाता है तो उसे ठंडा करके पैक कर दिया जाता है.