पानीपत: हमारे देश में आज तक एक सोच ऐसी है जिसने बेटियों को बराबरी का दर्जा नहीं दे सकी. कुछ लोग आज भी बेटी के पैदा होने पर खुशी नहीं अफसोस मनाते हैं. गरीब ही नहीं बल्कि बड़े-बड़े घरानों में वारिस तभी होता है जब बेटा पैदा हो. हरियाणा जैसा प्रदेश भ्रूण हत्या और लिंगानुपात के लिए बहुत बदनाम रहा है. लेकिन पानीपत जिले का एक शख्स ऐसा है जिसने अपनी गरीबी को दरकिनार कर अपनी बेटियों के लिए अलग सपना देखा.
हरियाणा के पानीपत जिले में रहने वाले इंद्रपाल जांगड़ा पानीपत की श्री विद्यानंद कॉलोनी में पंचर की दुकान लगाते हैं. इंद्रपाल बताते हैं कि उनका काम ज्यादा बड़ा नहीं है. इसके बावजूद उन्होंने किसी की परवाह ना करते हुए कर्ज लेकर अपनी बेटियों को खेलने की आजादी दी. पड़ोसियों व रिश्तेदारों ने इस पर ऐतराज भी जताया. लड़कियों की सुरक्षा को लेकर कई बार सवाल भी उठाए. लेकिन उन्होंने अपनी जिद पर बेटियों के सपनो को उड़ान दी. वे अपनी बेटियों के भविष्य के लिए सबको एक तरफ करते चले गए. अपनी इस जिद के दम पर उन्होंने अपनी दो बेटियों को राष्ट्रीय स्तर का हैंडबॉल खिलाड़ी बना दिया.
जब बेटियां मेडल जीतकर आती हैं तो गर्व से सीना चौड़ा हो जाता है. मेरा सपना है कि बेटियां इंटरनेशनल खेलकर आयें तो और अच्छा लगेगा. घर का खर्चा पंचर की दुकान से ही चलता है लेकिन बेटियों को कभी कमी नहीं होने दी. इंद्रपाल जांगड़ा, हैंडबॉल खिलाड़ियों के पिता
इंद्रपाल की तीन बेटियां और एक बेटा है. 19 वर्षीय बेटा अनुज सबसे बड़ा है. दूसरे नंबर की 17 वर्षीय बेटी अनु है. और तीसरे नंबर पर सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली 15 साल की बेटी अंजली. तीसरी बेटी अभी केवल 5 साल की है. अनु स्कूल की तरफ से कभी ग्राउंड में खेलने के लिए आई थी और कोच के पूछने पर उसने हैंडबॉल खेलने की इच्छा जताई. इसके बाद अनु जिला और राज्य स्तरीय टूर्नामेंट में अपना स्थान बनाती चली गई. अनु अब तक पांच बार नेशनल लेवल की प्रतियोगिताएं खेल चुकी हैं. जिनमें तीन प्रतियोगिता में वह टीम को मेडल दिला चुकी हैं.
बड़ी बहन को देखते हुए छोटी बहन अंजलि भी हैंडबॉल खेलने के लिए मैदान में उतर गई. अंजलि का कोच कोई और नहीं बल्कि उसकी बड़ी बहन अनु ही बन गई. पहले ही टूर्नामेंट में अंजलि ने नेशनल लेवल पर गोल्ड मेडल जीत लिया. अनु ने अपने शानदार खेल के बलबूते अब तक राष्ट्रीय हैंडबॉल प्रतियोगिता में एक रजत और दो कांस्य पदक जीते हैं.
पापा पंचर की दुकान लगाते हैं. घर का खर्चा बस उसी दुकान से चलता है. हमारे खेल के लिए उन्होंने कभी कोई कमी नहीं आने दी. उन्होंने हमे खेलने की पूरी आजादी दी. मेरे भाई ने भी अपनी पढ़ाई छोड़कर हमारे खेल को सपोर्ट किया. बस ये सपना है कि कम से कम हम ओलंपिक में मेडल लायें. अनु, राष्ट्रीय हैंडबॉल खिलाड़ी
घर की बेटियों को आगे बढ़ाने के लिए सिर्फ पिता ने ही नहीं बल्कि उनके बड़े भाई अनुज ने भी कई कुर्बानियां दी हैं. जब पिता से दुकान पर काम नहीं होता था और काम करने में वह थोड़े लाचार से दिखने लगे तो बहनों को आगे बढ़ाने के लिए बेटे अनुज ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी. पिता के साथ दुकान पर ही उनका हाथ बंटाना शुरू कर दिया. अनुज का कहना है कि वो केवल दसवीं तक पढ़ा है. बहनों को आगे बढ़ाने के लिए उसने पढ़ाई छोड़ दी और पिता के साथ काम करने लगा. वह अपनी बहनों को इंटरनेशनल लेवल पर खेलते हुए देखना चाहता है.