कुरुक्षेत्र: एक हकीकत जिससे आज हम आपको रूबरू करवाने पहुंचे हैं कुरुक्षेत्र के गांव खेड़ी शीशगारा में. ये वही स्थान है जहां महाभारत के अहम पात्र दुर्योधन का अंत हुआ था. मान्यता है कि युद्ध के दौरान अपनी जान बचाने के लिए दुर्योधन ने इसी तालाब में जल समाधि ली थी. इस जगह को जलोद भव तीरथ भी कहा जाता है.
इसी तालाब में छुप कर रहा था दुर्योधन
पंडित विनोद पंचौली ने बताया कि महाभारत युद्ध के दौरान दुर्योधन कौरवों में अकेला ही बचा था और वह अपनी जान बचाने के लिए इसी गांव के तालाब में छिप गया था. तालाब में कमल के फूल के जरिए वह सांस लेता रहा और पांडवों से छिपा रहा लेकिन भगवान श्री कृष्ण की दिव्य दृष्टि से नहीं बच सका. तब श्री कृष्ण सहित पांडवों ने इस तालाब को घेर लिया और दुर्योधन को बाहर निकालने के लिए उकसाने लगे.
पांडवों के तानें सुनकर दुर्योधन तालाब से बाहर आ गया और फिर भीम के साथ गद्दा युद्ध करने लगा. दोनों के बीच काफी देर तक लड़ाई होती रही लेकिन भीम के प्रहार का दुर्योधन पर कोई असर नहीं हो रहा था क्योंकि दुर्योधन की माता गांधारी के आशीर्वाद से दुर्योधन का शरीर वज्र का हो चुका था. फिर भगवान श्री कृष्ण ने भीम को दुर्योधन की जांग पर वार करने के लिए कहा और भीम ने जांग पर वार कर दुर्योधन का अंत कर दिया.
कई मान्यता और जुड़ी हैं इस स्थान से
लोगों का ये भी मानना है कि तलाब से ही 20 गज की दूरी पर सती माता का स्थान बना हुआ है. ये दुर्योधन की पत्नियां है जो दुर्योधन के अंतिम संस्कार के साथ ही सती हो गई थी. गांव के लोगों द्वारा आज भी इनकी पूजा की जाती है. एक और मान्यता ये है कि इस तालाब में निरंतर पांच रविवार स्नान करने से चर्म रोग ठीक हो जाते हैं. हरियाणा की धरती में महाभारत से जुड़े ऐसे ही कई और रहस्य हैं जिनके के बारे में कम ही लोग जानते हैं. इस खास पेशकश के जरिए हम आपको इन रहस्यों से रुबरु कराते रहेंगे.