कुरुक्षेत्र: हरियाणा के कुछ ऐतिहासिक और धर्म से जुड़े ऐसे किस्से हैं, जिससे लोग आज भी अछूते हैं, तो किस्सा हरियाणा के इस एपिसोड में हम आपको बता रहे हैं कुरुक्षेत्र के खंड पिहोवा के गांव सियाना सैदा में स्थित गुरुद्वारा जोड़ा साहिब के बारे में.
यहां दशामेश गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज करीब 300 साल पहले पहुंचे थे और उस समय उन्होंने अपने पांव में पहने जोड़े यहां अपने एक भगत की मांग पर उसे दे दिए थे.
गुरु गोबिंद सिंह ने यहां किया था आराम
बताया जाता है लगभग 300 वर्ष पूर्व इस गांव में भाई वीर सिंह त्रिखान( बढ़ई) के पूर्वज रहते थे, जो गुरु गोबिंद सिंह के भगत थे. इन्हीं दिनों गुरु गोबिंद सिंह आनंदपुर साहिब से मुक्तसर पटियाला की यात्रा करते हुए गांव सियाना सैदा में पहुंचे और गांव के बाहर आराम करने ठहरे. जिस स्थान पर गुरुजी ने ठहर कर आराम किया उसी जगह उनकी स्मृति में गुरुद्वारा दमदमा साहिब निर्मित है.
फकीर ने पूर्व की तरफ किया सजदा
इसी गांव में भीखण शाह नाम के एक सूफी संत रहते थे जो कि सभी धर्मों में अपनी मान्यता रखते थे और ये गांव एक मुस्लिम गांव था. एक बार गुरु गोबिंद सिंह के जन्म पर जब भीखण शाह ने पूर्व की तरफ मुंह करके सजदा किया तो सभी हैरत में पड़ गए, क्योंकि फकीर पश्चिम की ओर मुंह कर के सजदा करता है.
जब उनसे कारण पूछा तो भीखण शाह ने कहा कि पूर्व में एक अवतार ने जन्म लिया है वो उसी का सजदा कर रहे हैं. उस समय पटना में गुरु गोविंद सिंह ने जन्म लिया था. मुस्लिम समुदाय के लोगों ने कहा कि जिस अवतार ने जन्म लिया है और जिसको सजदा किया है उसको रूबरू करवाया जाए, तो भीखण शाह मुस्लिम समुदाय के काजी को लेकर पटना की ओर रवाना हुए थे.
इस दौरान त्रिखान( बढ़ई) जोकि गुरु गोबिंद साहिब के भगत थे वो भी उनके साथ जाने की जिद करने लगे. उम्र ज्यादा होने के कारण भीखण शाह ने उन्हें साथ ले जाने से मना कर दिया और कहा की अगर तू उनका सच्चा भगत है तो वो तुम से मिलने जरूर आएंगे. तो गुरु गोबिंद सिंह पटियाला की यात्रा करते हुए इस गांव में पहुंचे थे और निशानी मांगने पर यहां अपने जूते उतारकर अपने भगत को दे दिए थे. मान्यता है कि उन्हीं के नाम पर इस गांव का नाम सियाना सैदा पड़ा.
विदेश जाने वालों की मनोकामना होती है पूरी !
आपको बता दें कि यहां विदेश जाने के इच्छुक लोग अपनी मान्यता को लेकर आते हैं और उनके विदेश जाने की कार्य में अगर कोई अड़चन आती है, तो यहां अरदास करने से उनके कार्य सफल हो जाते हैं और इसी गांव के लगभग 500 युवा विदेशों में कार्य करने के लिए गए हुए हैं.