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अंधविश्वास और मान्यता! फरीदाबाद के इस जंगल से अगर कोई लकड़ी ले गया तो जिंदा नहीं बचा - नरसिंह धाम जंगल फरीदाबाद

फरीदाबाद के पृथला गांव में बने नरसिंह धाम के जंगलों से कोई लकड़ी लेकर घर नहीं जाता, जो लेकर गया उसको जानमाल की हानि उठानी पड़ी है. इस जंगल से जुड़े ऐसे कई किस्से प्रचलित हैं, जो हम आपको सुनाने जा रहे हैं.

narsingh dham jungle faridabad
narsingh dham jungle faridabad
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Published : Jan 21, 2021, 8:22 PM IST

फरीदाबाद: अंधविश्वास और मान्यातएं, हमारे देश में कई ऐसी जगह हैं जिनसे ये दोनों चीजें जुड़ी मिलती हैं. ऐसी ही एक जगह है हरियाणा के फरीदाबाद जिले के गांव पृथला में. यहां एक ऐसा जंगल है जहां से अगर कोई लकड़ी लेकर जाता है तो उसके साथ अनहोनी होने लगती है. उसका आर्थिक नुकसान होता है और परिवार में मौत तक हो जाती है.

इस मान्यता और इस जंगल से जुड़ी सच्चाई जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम उस जंगल में पहुंची, और पूरी बात का पता लगाया है जो अब हम आपको सुनाने जा रहे हैं..

साधु नरसिंह से जुड़ी है ये कहानी

दिल्ली से सात किलोमीटर दूर नेशनल हाईवे नंबर-19 के साथ ये पृथला गांव बसा है. इस गांव में नरसिंह धाम है जिसे करिया की बनी के नाम से जाना जाता है. यहां पर करीब ढाई सौ साल पहले नरसिंह नामक साधु ने तपस्या की थी और उन्हीं के नाम पर इसका नाम बाबा नरसिंह धाम रखा गया. यहां उनका मंदिर बनाया गया.

बाबा नरसिंह ने किया था कठोर तप

करीब ढाई सौ साल पहले जब बाबा नरसिंह यहां आए थे तो यहां बेहद घने जंगल हुआ करते थे. बाबा ने यहीं पर कठोर तप किया और लकड़ियों का एक मंदिर बनाया जिसके बाद धीरे-धीरे यहां पर छोटे-छोटे कई मंदिर बनाए गए.

अंधविश्वास और मान्यता! फरीदाबाद के इस जंगल से अगर कोई लकड़ी ले गया तो जिंदा नहीं बचा

नरसिंह धाम के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं जिनमें से एक ये है कि इस धाम के चारों तरफ फैले जंगल से कोई लकड़ी लेकर घर नहीं जाता. ऐसा नहीं है कि जंगल में से लकड़ी तोड़ी नहीं जाती, लेकिन तोड़ी हुई लकड़ी को कोई घर पर लेकर नहीं जाता.

केवल मंदिर के काम में इस्तेमाल होती है लकड़ी

नरसिंह धाम के महंत कांता दास ने बताया कि मान्यता के अनुसार कोई यहां की लकड़ी को निजी काम के लिए प्रयोग नहीं कर सकता, ना ही उस लकड़ी को बेच सकता है. जब-जब किसी ने यहां से लकड़ी लेकर जाने की कोशिश की या फिर उस लकड़ी को बेचा तब तक उसको जान और माल की हानि उठानी पड़ी. इस जंगल की लकड़ी को केवल मंदिर और जंगलों के परिसर में ही प्रयोग में लाया जाता है.

लकड़ी ले जाने पर नुकसान होने के कई किस्से हैं प्रचलित

मंदिर पर जब भी कोई भंडारा होता है या कोई साधु तपस्या करता है तो इस जंगल की लकड़ियों को प्रयोग में ले सकता है, लेकिन अगर कोई इसे घर ले जाकर प्रयोग करने की सोचता है तो उसको नुकसान उठाना पड़ता है. महंत ने बताया कि करीब 50 से 60 साल पहले एक व्यक्ति यहां से लकड़ी काटकर घर ले गया था और निजी काम में उसका प्रयोग किया. उसको इसका भुगतान अपने बेटे की जान गंवा कर करना पड़ा.

ये भी पढ़ें- ये है हरियाणा का ताजमहल! जो महान विद्वान शेख चिल्ली की याद में बनवाया गया था

ऐसे ही बहुत सारे किस्से हैं जिसमें कई लोगों को अपने अंग गंवाने पड़े तो कई को अपनी जान भी गंवानी पड़ी. लोगों का मानना है कि ये बाबा नरसिंह दास का वरदान है कि इस जंगल की लकड़ी केवल यहीं प्रयोग में लाई जा सकती हैं.

स्थानीय निवासियों ने भी सुनाए कुछ किस्से

वहीं पृथला गांव के निवासी 70 वर्षीय सुमेर सिंह ने भी एक किस्सा सुनाया. उन्होंने बताया कि सन् 1970 में जब यहां वाटर सप्लाई की लाइन लगाई गई थी उस वक्त अधिकारियों के द्वारा काटी गई लकड़ियों को गाड़ियों में डालकर फरीदाबाद ले जाया गया, और जैसे ही वो अधिकारी फरीदाबाद पहुंचे तो उनका एक्सीडेंट हो गया.

बता दें कि, नरसिंह धाम के इन जंगलों में 100 साल से भी ज्यादा पुराने पेड़ पौधे भी हैं. धाम के इन जंगलों में 12 गांवों शामिल हैं और इन सभी गांवों का ये एक मंदिर है. इन गांवों के लोग यहां पर हर शनिवार और रविवार भंडारा पूजा पाठ इत्यादि के लिए आते हैं.

यहां के लोग इस मान्यता को आज भी मानते हैं और आज भी करोड़ों रुपये की लकड़ी जंगलों में पड़ी रहती है, लेकिन कोई लकड़ी का एक भी तिनका तक उठाकर अपने साथ में नहीं लाता.

ये भी पढ़ें- इस गांव में हुआ था श्रीराम की माता कौशल्या का जन्म, यहां से जुड़े हैं कई रहस्य

फरीदाबाद: अंधविश्वास और मान्यातएं, हमारे देश में कई ऐसी जगह हैं जिनसे ये दोनों चीजें जुड़ी मिलती हैं. ऐसी ही एक जगह है हरियाणा के फरीदाबाद जिले के गांव पृथला में. यहां एक ऐसा जंगल है जहां से अगर कोई लकड़ी लेकर जाता है तो उसके साथ अनहोनी होने लगती है. उसका आर्थिक नुकसान होता है और परिवार में मौत तक हो जाती है.

इस मान्यता और इस जंगल से जुड़ी सच्चाई जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम उस जंगल में पहुंची, और पूरी बात का पता लगाया है जो अब हम आपको सुनाने जा रहे हैं..

साधु नरसिंह से जुड़ी है ये कहानी

दिल्ली से सात किलोमीटर दूर नेशनल हाईवे नंबर-19 के साथ ये पृथला गांव बसा है. इस गांव में नरसिंह धाम है जिसे करिया की बनी के नाम से जाना जाता है. यहां पर करीब ढाई सौ साल पहले नरसिंह नामक साधु ने तपस्या की थी और उन्हीं के नाम पर इसका नाम बाबा नरसिंह धाम रखा गया. यहां उनका मंदिर बनाया गया.

बाबा नरसिंह ने किया था कठोर तप

करीब ढाई सौ साल पहले जब बाबा नरसिंह यहां आए थे तो यहां बेहद घने जंगल हुआ करते थे. बाबा ने यहीं पर कठोर तप किया और लकड़ियों का एक मंदिर बनाया जिसके बाद धीरे-धीरे यहां पर छोटे-छोटे कई मंदिर बनाए गए.

अंधविश्वास और मान्यता! फरीदाबाद के इस जंगल से अगर कोई लकड़ी ले गया तो जिंदा नहीं बचा

नरसिंह धाम के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं जिनमें से एक ये है कि इस धाम के चारों तरफ फैले जंगल से कोई लकड़ी लेकर घर नहीं जाता. ऐसा नहीं है कि जंगल में से लकड़ी तोड़ी नहीं जाती, लेकिन तोड़ी हुई लकड़ी को कोई घर पर लेकर नहीं जाता.

केवल मंदिर के काम में इस्तेमाल होती है लकड़ी

नरसिंह धाम के महंत कांता दास ने बताया कि मान्यता के अनुसार कोई यहां की लकड़ी को निजी काम के लिए प्रयोग नहीं कर सकता, ना ही उस लकड़ी को बेच सकता है. जब-जब किसी ने यहां से लकड़ी लेकर जाने की कोशिश की या फिर उस लकड़ी को बेचा तब तक उसको जान और माल की हानि उठानी पड़ी. इस जंगल की लकड़ी को केवल मंदिर और जंगलों के परिसर में ही प्रयोग में लाया जाता है.

लकड़ी ले जाने पर नुकसान होने के कई किस्से हैं प्रचलित

मंदिर पर जब भी कोई भंडारा होता है या कोई साधु तपस्या करता है तो इस जंगल की लकड़ियों को प्रयोग में ले सकता है, लेकिन अगर कोई इसे घर ले जाकर प्रयोग करने की सोचता है तो उसको नुकसान उठाना पड़ता है. महंत ने बताया कि करीब 50 से 60 साल पहले एक व्यक्ति यहां से लकड़ी काटकर घर ले गया था और निजी काम में उसका प्रयोग किया. उसको इसका भुगतान अपने बेटे की जान गंवा कर करना पड़ा.

ये भी पढ़ें- ये है हरियाणा का ताजमहल! जो महान विद्वान शेख चिल्ली की याद में बनवाया गया था

ऐसे ही बहुत सारे किस्से हैं जिसमें कई लोगों को अपने अंग गंवाने पड़े तो कई को अपनी जान भी गंवानी पड़ी. लोगों का मानना है कि ये बाबा नरसिंह दास का वरदान है कि इस जंगल की लकड़ी केवल यहीं प्रयोग में लाई जा सकती हैं.

स्थानीय निवासियों ने भी सुनाए कुछ किस्से

वहीं पृथला गांव के निवासी 70 वर्षीय सुमेर सिंह ने भी एक किस्सा सुनाया. उन्होंने बताया कि सन् 1970 में जब यहां वाटर सप्लाई की लाइन लगाई गई थी उस वक्त अधिकारियों के द्वारा काटी गई लकड़ियों को गाड़ियों में डालकर फरीदाबाद ले जाया गया, और जैसे ही वो अधिकारी फरीदाबाद पहुंचे तो उनका एक्सीडेंट हो गया.

बता दें कि, नरसिंह धाम के इन जंगलों में 100 साल से भी ज्यादा पुराने पेड़ पौधे भी हैं. धाम के इन जंगलों में 12 गांवों शामिल हैं और इन सभी गांवों का ये एक मंदिर है. इन गांवों के लोग यहां पर हर शनिवार और रविवार भंडारा पूजा पाठ इत्यादि के लिए आते हैं.

यहां के लोग इस मान्यता को आज भी मानते हैं और आज भी करोड़ों रुपये की लकड़ी जंगलों में पड़ी रहती है, लेकिन कोई लकड़ी का एक भी तिनका तक उठाकर अपने साथ में नहीं लाता.

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