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पूरे हक के लिए जूझ रही आधी आबादी, हरियाणा में किसी पार्टी ने नहीं दिए महिलाओं को 33% टिकट

राजनेता हमेशा कहते हैं कि महिलाओं को राजनीति में आगे आना चाहिए. यहां तक कि देश की दो सबसे बड़ी पार्टियां महिलाओं को संसद में 33% आरक्षण की पक्षधर हैं लेकिन आरक्षण तो छोड़िए राजनीतिक पार्टियां अपने टिकट वितरण कतक में महिलाओं को उनका हक नहीं देतीं.

women candidates in haryana
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Published : Oct 6, 2019, 6:59 PM IST

Updated : Oct 6, 2019, 7:47 PM IST

चंडीगढ़ः हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार भी हमेशा की तरह महिलाओं को राजनीति ने नहीं अपनाया. राजनेता और राजनीतिक पार्टियां बड़े-बड़े मंचो से बड़ी-बड़ी बातें और देवे करते हैं कि महिलाओं के लिए हम ये करेंगे, महिलाओं के लिए हम वो हम करेंगे. लेकिन जब वक्त आता है तो हमेशा की तरह राजनीतिक पार्टियां कदम पीछे खींच लेती हैं.

हरियाणा में पार्टियों ने इतनी महिला उम्मीदवारों को दिया टिकट
प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं. जिसके लिए 21 अक्तूबर को वोट डाले जाएंगे लेकिन राजनीतिक पार्टियां महिलाओं के लिए कितनी गंभीर हैं इसके लिए उनका टिकट वितरण देख लीजिए. कांग्रेस ने 90 में से 9 महिलाओं को टिकट दिया है जो 2014 से 1 कम है. बीजेपी ने 90 में से 12 महिलाओं को टिकट दिया है जो 2014 से 3 कम है. इनेलो मे 83 उम्मीदवारों में से 15 महिलाओं को टिकट दिया है और जेजेपी ने तो 90 उम्मीदवारों में से मात्र 7 महिलाएं मैदान में उतारी हैं.

पूरे हक के लिए जूझ रही आधी आबादी, हरियाणा में किसी पार्टी ने नहीं दिए महिलाओं को 33% टिकट

इनेलो ने 33% महिलाओं को टिकट का वादा किया था
इंडियन नेशनल लोकदल के सुप्रीमो ओम प्रकाश चौटाला ने भरी सभा में मंच से ऐलान किया था कि उनकी पार्टी इस विधानसभा चुनाव में 33 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देगी लेकिन हकीकत आपके सामने है. इनेलो ने बाकी पार्टियों से तो ज्यादा महिलाओं को टिकट दिया है लेकिन फिर भी 83 में से संख्या 15 पर ही पहुंच पाई है. अब सोचिए जिस पार्टी ने वादा करके महिलाओं को टिकट नहीं दिया तो वो पार्टी कैसे महिलाओं को लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की पैरवी कर सकती है.

जेजेपी भी करती रही है वादे
जेजेपी नेता दिग्विजय चौटाला भी गाहे-बगाहे कहते रहे हैं कि उनकी पार्टी महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देगी. लेकिन उन्होंने तो सबसे कम मात्र 7 ही महिलाओं को मैदान में उतारा है.

ये भी पढ़ेंः विधानसभा चुनाव के प्रचार में उतरेंगे राहुल गांधी, 11 अक्टूबर को हरियाणा में कर सकते हैं रैली

कांग्रेस-बीजेपी दोनों ही रही हैं महिला आरक्षण की पक्षधर
कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां संसद में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने की पक्षधर रही हैं लेकिन कैसे रही हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 53 साल से ये विधेयक अपने पास होने का इंतजार कर रहा है. दरअसल हकीकत ये है कि खुलकर कोई भी पार्टी इस बिला का विरोध नहीं करती लेकिन जैसे ही मौका आता है वैसे ही अपने हित साधने में जुट जाते हैं. तभी तो देश की दो बड़ी पार्टियों के एक ही बिल पर एक मत होने के बाद भी बिल 53 साल से अटका है.

राहुल गांधी लगातार महिला आरक्षण की वकालत करते रहे हैं
राहुल गांधी तो 2019 लोकसभा चुनाव के वक्त कह चुके हैं कि उनकी सरकार आई तो संसद में महिला आरक्षण बिल प्राथमिकता से पास कराया जाएगा. वो लगातार महिला आरक्षण की पैरोकारी करते रहे हैं लेकिन आज तक वो भी अपनी पार्टी में कभी महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण नहीं दे पाए हैं.

ये भी पढ़ें- गढ़ी सांपला किलोई विधानसभा: जाटलैंड की ये सीट पूर्व सीएम हुड्डा का किला, क्या इस बार होगी सेंधमारी?

सालों से अटका है संसद में महिला आरक्षण
1975 में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं तब महिलाओं की हालत पर एक रिपोर्ट आई थी 'टूवर्ड्स इक्वैलिटी', जिसमें महिलाओं को आरक्षण देने की बात कही गई लेकिन इस कमेटी के ज्यादातर सदस्य आरक्षण के खिलाफ थे और महिलाएं भी अपने दम पर राजनीति में आना चाहती थीं. लेकिन अगले कुछ सालों में ही महिलाओं का ये भ्रम टूट गया और उन्हें लगा कि राजनीति में उनकी राहों में रोड़े अटकाए जा रहे हैं. तभी से संसद में महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने की जरूरत महसूस की गई. राजीव गांधी ने 1980 में पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिलाने की कोशिश की थी. लेकिन राज्यों की विधानसभाओं ने इसका विरोध किया.

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भारत की संसद

देवगौड़ा ने विधेयक पेश करने की कोशिश की थी
12 सितंबर 1996 में एचडी देवगौड़ा की सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक बिल पहली बार पेश करने की कोशिश की थी. लेकिन देवगौड़ा की सरकार गठबंधन सरकार थी जिसे कांग्रेस का बाहर से समर्थन था और मुलायम सिंह याद की समाजवादी पार्टी के अलावा लालू यादव की आरजेडी का समर्थन भी देवगौड़ा सरकार को लेना पड़ा था और लालू के अलावा मुलायम सिंह यादव भी इस बिल के विरोधी रहे हैं.

ये भी पढ़ेंः इनेलो ने तीन सीटों पर नहीं उतारे उम्मीदवार, जानें क्या है रणनीति ?

वाजपेयी सरकार ने भी बिल पेश करने की कोशिश की
अटल बिहारी के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार ने 1998 में संसद में महिला आरक्षण बिल को पेश करने की कोशिश की थी. लेकिन ये सरकार भी गठबंधन की थी और तब भी सफलता नहीं मिली थी. इसके बाद 1999 में फिर से ये बिल पेश करने की कोशिश हुई और वही ड्रामा हुआ. 2003 में एनडीए सरकार ने एक बार फिर ये बिल पेश करने की कोशिश की लेकिन प्रश्नकाल में ही सांसदों ने हंगामा कर दिया.

2010 में राज्यसभा से पारित हुआ महिला आरक्षण विधेयक
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रयासों के बाद 2010 में महिलाओं को संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण देने वाला बिल राज्यसभा से पारित कर दिया गया लेकिन ये बिल लोकसभा में जाकर अटक गया और ऐसा अटका कि 2014 तक अटका ही रहा. इसके बाद जब 2014 में 15वीं लोकसभा भंग हुई तो ये विधेयक भी खत्म हो गया. जिसके बाद इसे दोबारा से पेश करना था. लेकिन नरेंद्र मोदी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार ने आज तक इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया है.

चंडीगढ़ः हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार भी हमेशा की तरह महिलाओं को राजनीति ने नहीं अपनाया. राजनेता और राजनीतिक पार्टियां बड़े-बड़े मंचो से बड़ी-बड़ी बातें और देवे करते हैं कि महिलाओं के लिए हम ये करेंगे, महिलाओं के लिए हम वो हम करेंगे. लेकिन जब वक्त आता है तो हमेशा की तरह राजनीतिक पार्टियां कदम पीछे खींच लेती हैं.

हरियाणा में पार्टियों ने इतनी महिला उम्मीदवारों को दिया टिकट
प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं. जिसके लिए 21 अक्तूबर को वोट डाले जाएंगे लेकिन राजनीतिक पार्टियां महिलाओं के लिए कितनी गंभीर हैं इसके लिए उनका टिकट वितरण देख लीजिए. कांग्रेस ने 90 में से 9 महिलाओं को टिकट दिया है जो 2014 से 1 कम है. बीजेपी ने 90 में से 12 महिलाओं को टिकट दिया है जो 2014 से 3 कम है. इनेलो मे 83 उम्मीदवारों में से 15 महिलाओं को टिकट दिया है और जेजेपी ने तो 90 उम्मीदवारों में से मात्र 7 महिलाएं मैदान में उतारी हैं.

पूरे हक के लिए जूझ रही आधी आबादी, हरियाणा में किसी पार्टी ने नहीं दिए महिलाओं को 33% टिकट

इनेलो ने 33% महिलाओं को टिकट का वादा किया था
इंडियन नेशनल लोकदल के सुप्रीमो ओम प्रकाश चौटाला ने भरी सभा में मंच से ऐलान किया था कि उनकी पार्टी इस विधानसभा चुनाव में 33 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देगी लेकिन हकीकत आपके सामने है. इनेलो ने बाकी पार्टियों से तो ज्यादा महिलाओं को टिकट दिया है लेकिन फिर भी 83 में से संख्या 15 पर ही पहुंच पाई है. अब सोचिए जिस पार्टी ने वादा करके महिलाओं को टिकट नहीं दिया तो वो पार्टी कैसे महिलाओं को लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की पैरवी कर सकती है.

जेजेपी भी करती रही है वादे
जेजेपी नेता दिग्विजय चौटाला भी गाहे-बगाहे कहते रहे हैं कि उनकी पार्टी महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देगी. लेकिन उन्होंने तो सबसे कम मात्र 7 ही महिलाओं को मैदान में उतारा है.

ये भी पढ़ेंः विधानसभा चुनाव के प्रचार में उतरेंगे राहुल गांधी, 11 अक्टूबर को हरियाणा में कर सकते हैं रैली

कांग्रेस-बीजेपी दोनों ही रही हैं महिला आरक्षण की पक्षधर
कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां संसद में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने की पक्षधर रही हैं लेकिन कैसे रही हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 53 साल से ये विधेयक अपने पास होने का इंतजार कर रहा है. दरअसल हकीकत ये है कि खुलकर कोई भी पार्टी इस बिला का विरोध नहीं करती लेकिन जैसे ही मौका आता है वैसे ही अपने हित साधने में जुट जाते हैं. तभी तो देश की दो बड़ी पार्टियों के एक ही बिल पर एक मत होने के बाद भी बिल 53 साल से अटका है.

राहुल गांधी लगातार महिला आरक्षण की वकालत करते रहे हैं
राहुल गांधी तो 2019 लोकसभा चुनाव के वक्त कह चुके हैं कि उनकी सरकार आई तो संसद में महिला आरक्षण बिल प्राथमिकता से पास कराया जाएगा. वो लगातार महिला आरक्षण की पैरोकारी करते रहे हैं लेकिन आज तक वो भी अपनी पार्टी में कभी महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण नहीं दे पाए हैं.

ये भी पढ़ें- गढ़ी सांपला किलोई विधानसभा: जाटलैंड की ये सीट पूर्व सीएम हुड्डा का किला, क्या इस बार होगी सेंधमारी?

सालों से अटका है संसद में महिला आरक्षण
1975 में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं तब महिलाओं की हालत पर एक रिपोर्ट आई थी 'टूवर्ड्स इक्वैलिटी', जिसमें महिलाओं को आरक्षण देने की बात कही गई लेकिन इस कमेटी के ज्यादातर सदस्य आरक्षण के खिलाफ थे और महिलाएं भी अपने दम पर राजनीति में आना चाहती थीं. लेकिन अगले कुछ सालों में ही महिलाओं का ये भ्रम टूट गया और उन्हें लगा कि राजनीति में उनकी राहों में रोड़े अटकाए जा रहे हैं. तभी से संसद में महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने की जरूरत महसूस की गई. राजीव गांधी ने 1980 में पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिलाने की कोशिश की थी. लेकिन राज्यों की विधानसभाओं ने इसका विरोध किया.

women candidates in haryana
भारत की संसद

देवगौड़ा ने विधेयक पेश करने की कोशिश की थी
12 सितंबर 1996 में एचडी देवगौड़ा की सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक बिल पहली बार पेश करने की कोशिश की थी. लेकिन देवगौड़ा की सरकार गठबंधन सरकार थी जिसे कांग्रेस का बाहर से समर्थन था और मुलायम सिंह याद की समाजवादी पार्टी के अलावा लालू यादव की आरजेडी का समर्थन भी देवगौड़ा सरकार को लेना पड़ा था और लालू के अलावा मुलायम सिंह यादव भी इस बिल के विरोधी रहे हैं.

ये भी पढ़ेंः इनेलो ने तीन सीटों पर नहीं उतारे उम्मीदवार, जानें क्या है रणनीति ?

वाजपेयी सरकार ने भी बिल पेश करने की कोशिश की
अटल बिहारी के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार ने 1998 में संसद में महिला आरक्षण बिल को पेश करने की कोशिश की थी. लेकिन ये सरकार भी गठबंधन की थी और तब भी सफलता नहीं मिली थी. इसके बाद 1999 में फिर से ये बिल पेश करने की कोशिश हुई और वही ड्रामा हुआ. 2003 में एनडीए सरकार ने एक बार फिर ये बिल पेश करने की कोशिश की लेकिन प्रश्नकाल में ही सांसदों ने हंगामा कर दिया.

2010 में राज्यसभा से पारित हुआ महिला आरक्षण विधेयक
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रयासों के बाद 2010 में महिलाओं को संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण देने वाला बिल राज्यसभा से पारित कर दिया गया लेकिन ये बिल लोकसभा में जाकर अटक गया और ऐसा अटका कि 2014 तक अटका ही रहा. इसके बाद जब 2014 में 15वीं लोकसभा भंग हुई तो ये विधेयक भी खत्म हो गया. जिसके बाद इसे दोबारा से पेश करना था. लेकिन नरेंद्र मोदी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार ने आज तक इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया है.

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women candidates in haryana assembly election 2019




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Last Updated : Oct 6, 2019, 7:47 PM IST
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