करनाल: हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को वामन जयंती मनाई जाती है. इस साल वामन जयंती 7 सितंबर 2022 को मनाई जा रहीं है. इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है. भागवत पुराण के अनुसार इस दिन त्रेता युग में श्रवण नक्षत्र में भगवान विष्णु ने पांचवें अवतार के रूप में जन्म लिया था. भगवान विष्णु ने चार अवतार मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार और नरसिंह अवतार पशु के रूप में लिए थे. उसके बाद उन्होंने पहला मनुष्य रूप वामन अवतार धारण किया था. इसी अपलक्ष्य में वामन द्वादशी मनाई जाती है.
वामन द्वादशी जयंती शुभ मुहूर्त- भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि 7 सितंबर 2022 बुधवार को सुबह 3 बजकर 4 मिनट से शुरू हुई है. द्वादशी तिथि का समापन 8 सितंबर 2022 गुरुवार को 12 बजकर 4 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार भगवान विष्णु के वामन अवतार का जन्मोत्सव 7 सितंबर को मनाया जाता है. इस दिन श्रवण नक्षत्र का विशेष महत्व रहता है. इसी नक्षत्र में वामन अवतार ने जन्म लिया था.
वामन जयंती पर पूजा कैसे करें- माना जाता है कि इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. इस दिन स्नान आदि से निवृत होकर भगवान विष्णु के वामन अवतार की तस्वीर चौकी पर स्थापित करें. अगर वामन अवतार की फोटो न हो तो श्रीहरी तस्वीर का पूजन भी कर सकते हैं. वामन भगवान को रोली, मौली, पीले पुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित करें और वामन अवतार की कथा का श्रवण करें. आरती करने के बाद प्रसाद बांटें. साथ ही गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन कराएं. इस दिन दान भी जरूर करना चाहिए. इस दिन श्रवण नक्षत्र में पूजा करना काफी फलदायी माना जाता है.
वामन द्वादशी की कथा- मान्यता है कि सतयुग में दैत्यराज बलि हुए थे. जो विष्णु भक्त भगवान प्रह्रलाद के पौत्र थे. राजा बलि ने अपने पराक्रम और बल से स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था, जिस कारण से सभी देवी-देवताओं में हडकंप मच गया था. तब राजा बलि से रक्षा के लिए सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गए. भगवान विष्णु ने सभी देवी-देवताओं की रक्षा का वचन देते हुए कहा कि मैं देवमाता अदिति के यहां वामन देव के रूप में जन्म लूंगा.
एक बार की बात है, राजा बलि नर्मदा नदी के किनारे यज्ञ कर रहे थे. तब भगवान विष्णु वामन रूप में यज्ञ स्थल पर पहुंचे. वामनदेव को ब्राह्राण वेश में देखकर राजा बलि ने उनका आदर-सत्कार और स्वागत किया और दान में कुछ मांगने को कहा. तब वामन देव ने राजा बलि से तीन पग भूमि देने का आग्रह किया. राजा बलि ने सोचा बालक ब्राह्राण के तीन पग होते ही कितने हैं. उन्होंने सोचा कि मैं तीनों लोकों का स्वामी हूं. मेरे लिए तीन पग भूमि कोई बड़ी बात नहीं है.
लेकिन यज्ञ स्थल पर दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य भी मौजूद थे. वे वामन देव के रूप को जान चुके थे कि ये भगवान विष्णु ब्राह्राण के वेश में हैं. दैत्य गुरु शुक्राचार्य राजा बलि को ऐसा वचन देने से मना कर रहे थे. लेकिन गुरु की सलाह को नजरअंदाज करते हुए राजा बलि ने वामन देव को तीन पग भूमि देने का वचन दे दिया. तब वामन देव ने अपने पहले पग से पृथ्वी और दूसरे पग से आकाश को नाप लिया.
अब एक पग नापने के लिए बच गया. तब राजा बलि ने कहा कि वामन देव आप तीसरा पग मेरे सिर पर रख सकते हैं. जब भगवान विष्णु ने तीसरा पग बलि के सिर पर रखा तब वो पाताल चला गया. राजा बलि की दान वीरता को देखकर भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें पाताल का स्वामी बनाते हुए वचन दिया कि चार माह के लिए वे स्वयं पाताल लोक में निवास करेंगे.