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फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर हरियाणा ने उठाए कई कदम, सीएस ने दी जानकारी

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए पर्यावरण प्रदूषण प्राधिकरण के अध्यक्ष भूरेलाल की अध्यक्षता में फसल अवशेष प्रबंधन के लिए इन सीटू तथा एक्स-सीटू प्रबंधन को लेकर वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से बैठक हुई. बैठक में हरियाणा की मुख्य सचिव केशनी आनन्द अरोड़ा ने भी हिस्सा लिया.

crop residue management haryana
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Published : Aug 18, 2020, 7:34 PM IST

चंडीगढ़: हरियाणा में राज्य सरकार द्वारा फसलों के अवशेषों के उचित प्रबंधन और आने वाले धान की कटाई के मौसम के मद्देनजर पराली जलाने के दुष्प्रभावों के बारे में किसानों में जागरूकता पैदा करने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाए जा रहे हैं. ये जानकारी हरियाणा की मुख्य सचिव केशनी आनन्द अरोड़ा ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए पर्यावरण प्रदूषण प्राधिकरण के अध्यक्ष भूरेलाल की अध्यक्षता में फसल अवशेष प्रबंधन के लिए इन सीटू तथा एक्स-सीटू प्रबंधन को लेकर वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से हुई बैठक में दी.

बड़े पैमाने पर चलाए गए जागरूकता अभियान

उन्होंने जानकारी दी कि सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे सभी पीले और लाल जोन में आने वाले गांवों पर ज्यादा ध्यान दें. सूचना, शिक्षा और संचार गतिविधियों जैसे गांव और खंड स्तरीय शिविरों और समारोहों, सोशल मीडिया जागरूकता और प्रदर्शन वैन की तैनाती करके बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाये गये हैं. किसानों को इन-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी के संचालन और रखरखाव के लिए प्रशिक्षित किया गया है और उनके खेतों में इन-सीटू प्रबंधन तकनीक का प्रदर्शन किया गया. कृषि विभाग द्वारा इन-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए प्रमुख स्थानों पर होर्डिंग्स और बैनर भी लगाए गए हैं.

ये भी पढ़ें- नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को प्रभावी और त्वरित गति से लागू करें: सत्यदेव आर्य

बैठक में बिजली विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव टी.सी. गुप्ता ने बताया कि प्रदेश में अवशेष प्रबंधन के लिए एक्ससीटू माध्यम से लगभग 8 लाख मीट्रिक टन फसल अवशेष प्रबंधन प्रतिवर्ष किया जा रहा है. प्रदेश में बायोमास फसल अवशेष प्रबंधन के लिए 4 बायोमास पॉवर परियोजनाओं को अनुमति प्रदान की गई है जिनमें से कुरुक्षेत्र एवं कैथल में 15-15 मेगावाट की परियोजनाओं पर कार्य चल रहा है. इससे लगभग साढ़े तीन लाख मीट्रिक टन फसल अवशेषों का प्रबंधन किया जा सकेगा. इसके अलावा, जींद तथा फतेहाबाद 9.9 मेगावाट की परियोजनाओं पर जल्द ही काम शुरू किया जाएगा.

पानी बचाने के लिए भी सरकार ने किया अच्छा काम

उन्होंने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के तहत गैर-बासमती उत्पादकों को फसल अवशेष प्रबंधन के लिए सात दिनों के भीतर 100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से प्रोत्साहन भी दिया जा रहा है. राज्य सरकार ने पर्याप्त मशीनें और परिचालन लागत के रूप में 1,000 रुपये प्रति एकड़ प्रदान करके, गैर-बासमती तथा बासमती की मूच्छल किस्म उगाने वाले छोटे और सीमांत किसानों की मदद की है. इन दोनों उद्देश्यों के लिए, राज्य सरकार द्वारा राज्य बजट में पहले ही 453 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है.

बैठक में कृषि और किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजीव कौशल बताया कि प्रदेश में भूजल संरक्षण करने की दिशा में ‘मेरा पानी, मेरी विरासत’ योजना को लागू किया गया है जिसमें खरीफ-2020 के दौरान फसल विविधिकरण योजना के तहत 40 मीटर से नीचे पहुंचे भूजल स्तर से प्रभावित खंडों में किसानों को धान की जगह कम पानी से पकने वाली मक्का, बाजरा, कपास, दलहन और बागवानी फसलें बोने के लिए प्रोत्साहित किया गया है. इस योजना के तहत राज्य सरकार द्वारा 7,000 रुपये प्रति एकड़ देने का वादा किया गया है, जिसमें 2,000 रुपये की पहली किस्त फसल के सत्यापन के बाद और शेष 5,000 रुपये फसल की पकाई के समय दिये जायेंगे.

ये भी पढ़ें- 'पंजाब से दिल्ली जाने वाला रास्ता बंद करो, शाम तक बन जाएगी नहर'

चंडीगढ़: हरियाणा में राज्य सरकार द्वारा फसलों के अवशेषों के उचित प्रबंधन और आने वाले धान की कटाई के मौसम के मद्देनजर पराली जलाने के दुष्प्रभावों के बारे में किसानों में जागरूकता पैदा करने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाए जा रहे हैं. ये जानकारी हरियाणा की मुख्य सचिव केशनी आनन्द अरोड़ा ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए पर्यावरण प्रदूषण प्राधिकरण के अध्यक्ष भूरेलाल की अध्यक्षता में फसल अवशेष प्रबंधन के लिए इन सीटू तथा एक्स-सीटू प्रबंधन को लेकर वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से हुई बैठक में दी.

बड़े पैमाने पर चलाए गए जागरूकता अभियान

उन्होंने जानकारी दी कि सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे सभी पीले और लाल जोन में आने वाले गांवों पर ज्यादा ध्यान दें. सूचना, शिक्षा और संचार गतिविधियों जैसे गांव और खंड स्तरीय शिविरों और समारोहों, सोशल मीडिया जागरूकता और प्रदर्शन वैन की तैनाती करके बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाये गये हैं. किसानों को इन-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी के संचालन और रखरखाव के लिए प्रशिक्षित किया गया है और उनके खेतों में इन-सीटू प्रबंधन तकनीक का प्रदर्शन किया गया. कृषि विभाग द्वारा इन-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए प्रमुख स्थानों पर होर्डिंग्स और बैनर भी लगाए गए हैं.

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बैठक में बिजली विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव टी.सी. गुप्ता ने बताया कि प्रदेश में अवशेष प्रबंधन के लिए एक्ससीटू माध्यम से लगभग 8 लाख मीट्रिक टन फसल अवशेष प्रबंधन प्रतिवर्ष किया जा रहा है. प्रदेश में बायोमास फसल अवशेष प्रबंधन के लिए 4 बायोमास पॉवर परियोजनाओं को अनुमति प्रदान की गई है जिनमें से कुरुक्षेत्र एवं कैथल में 15-15 मेगावाट की परियोजनाओं पर कार्य चल रहा है. इससे लगभग साढ़े तीन लाख मीट्रिक टन फसल अवशेषों का प्रबंधन किया जा सकेगा. इसके अलावा, जींद तथा फतेहाबाद 9.9 मेगावाट की परियोजनाओं पर जल्द ही काम शुरू किया जाएगा.

पानी बचाने के लिए भी सरकार ने किया अच्छा काम

उन्होंने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के तहत गैर-बासमती उत्पादकों को फसल अवशेष प्रबंधन के लिए सात दिनों के भीतर 100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से प्रोत्साहन भी दिया जा रहा है. राज्य सरकार ने पर्याप्त मशीनें और परिचालन लागत के रूप में 1,000 रुपये प्रति एकड़ प्रदान करके, गैर-बासमती तथा बासमती की मूच्छल किस्म उगाने वाले छोटे और सीमांत किसानों की मदद की है. इन दोनों उद्देश्यों के लिए, राज्य सरकार द्वारा राज्य बजट में पहले ही 453 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है.

बैठक में कृषि और किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजीव कौशल बताया कि प्रदेश में भूजल संरक्षण करने की दिशा में ‘मेरा पानी, मेरी विरासत’ योजना को लागू किया गया है जिसमें खरीफ-2020 के दौरान फसल विविधिकरण योजना के तहत 40 मीटर से नीचे पहुंचे भूजल स्तर से प्रभावित खंडों में किसानों को धान की जगह कम पानी से पकने वाली मक्का, बाजरा, कपास, दलहन और बागवानी फसलें बोने के लिए प्रोत्साहित किया गया है. इस योजना के तहत राज्य सरकार द्वारा 7,000 रुपये प्रति एकड़ देने का वादा किया गया है, जिसमें 2,000 रुपये की पहली किस्त फसल के सत्यापन के बाद और शेष 5,000 रुपये फसल की पकाई के समय दिये जायेंगे.

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