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सम्मान से मरने के अधिकार के लिए कोर्ट पहुंचे प्रोफेसर, दूसरे लोगों को भी देना चाहते हैं कानून की जानकारी - death request plea in court chandigarh

चंडीगढ़ के प्रोफेसर डीएन जोहर ने चंडीगढ़ जिला अदालत में एक ऐसी वसीयत जमा करवाई है. जिसके बारे में आपने शायद कभी सुना नहीं होगा. प्रोफेसर ने सम्मान से मरने के लिए दस्तावेज जमा कराए हैं. ये देश का ऐसा पहला मामला है जब किसी अदालत में इस तरह के दस्तावेज जमा करवाए गए हो.

professor dn johar plea chandigarh
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Published : Dec 23, 2019, 9:20 PM IST

चंडीगढ़: अदालत में जमा कराए गए ये दस्तावेज इंसान की मौत से जुड़े हुए हैं और दस्तावेजों में सबसे पहले प्रोफेसर डीएन जोहर ने अपना और अपनी पत्नी आदर्श जोहर का नाम लिखवाया है. इस बारे में ईटीवी भारत की टीम ने प्रोफेसर डीएन जोहर से खास बातचीत की.

इस बारे में बात करते हुए प्रोफेसर डीएन जोहर ने बताया कि उन्होंने एक कानून के तहत ऐसे दस्तावेज तैयार करवाए जिसमें ये लिखा गया है कि अगर कोई मरीज अपनी बीमारी की वजह से ऐसी हालत में पहुंच जाए जहां से उसे बचाना नामुमकिन हो तो उसे मौत दे दी जाए लेकिन यह कानून सिर्फ उन मरीजों पर लागू होगा जिन मरीजों ने उनकी तरह पहले से ही इसके लिए अपने दस्तावेज तैयार करवाकर जिला अदालत में जमा करवाएं हो.

सम्मान से मरने के अधिकार के लिए कोर्ट पहुंचे प्रोफेसर, दूसरे लोगों को भी देना चाहते हैं इस कानून की जानकारी.

उन्होंने कहा कि इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में पहले से एक कानून बना हुआ है लेकिन जिला अदालतों में इसके लिए जजों की नियुक्ति नहीं हो पाई है. क्योंकि इसके लिए जिला अदालत में एक जज की खासतौर पर ड्यूटी लगाई जाती है. उन्होंने अपने दस्तावेज खुद तैयार किए हैं क्योंकि वह वकालत के प्रोफेसर रह चुके हैं और इसलिए कानून की अच्छी खासी समझ रखते हैं.

ये भी पढ़ें- नागरिकता संशोधन एक्ट पर साधु समाज की प्रतिक्रिया, कहा- राष्ट्र की सद्भावना के शत्रु न बनें

इन दस्तावेजों को तैयार करने में उन्हें कई महीनों का समय लग गया लेकिन आखिरकार उन्होंने ही दस्तावेज कानूनी तरीके से तैयार कर अदालत में जमा करवा दिए और इसके लिए जिला अदालत में एक जज की नियुक्ति भी कर दी गई है. चंडीगढ़ देश का ऐसा पहला शहर है जहां पर इस तरह के मामलों के लिए किसी जज की नियुक्ति की गई हो. अगर देश में कोई और व्यक्ति इस तरह के दस्तावेज जमा करवाना चाहे तो फिलहाल वह इस तरह के दस्तावेज जमा नहीं करवा सकता क्योंकि वहां पर इसके लिए कोई जज ही मौजूद नहीं होगा.

इन दस्तावेजों की जरूरत के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि हमारे संविधान हमें यह अधिकार देता है कि हर नागरिक सम्मान के साथ अपना जीवन व्यतीत करें और उसे उसी सम्मान के साथ मरने का भी अधिकार है. व्यक्तिगत तौर पर मैं यह सोचता हूं कि कि मैंने जिस आत्मसम्मान के साथ अपनी जिंदगी को जिया है मैं उसी आत्मसम्मान के साथ दुनिया छोड़ कर जाऊं और अपने अंतिम समय में मैं किसी पर बोझ ना बनूं.

फिलहाल ऐसा सिर्फ चंडीगढ़ में ही हो सकता है लेकिन मैं चाहूंगा कि पूरे देश में इस कानून की जानकारी फैले. ये लोगों पर निर्भर करता है कि वे इस कानून को अपनाते हैं या नहीं लेकिन मेरी कोशिश यही है कि इसकी जानकारी सभी तक पहुंचे ताकि कोई भी अपने अंतिम समय में किसी पर बोझ ना बनें और वह सम्मान के साथ इस दुनिया से रुखसत हो. इस कानून को सबके सामने लाने का मेरा यही मकसद है.

ये भी पढ़ें- सोनिया और प्रियंका गांधी पर देश में नफरत फैलाने का मुकदमा दर्ज होना चाहिए: अनिल विज

देश में लाखों मरीज ऐसे होते हैं जिनके बचने की कोई उम्मीद नहीं होती उनके शरीर के अंग काम करना बंद कर देते हैं और वे कभी होश में नहीं आ सकते लेकिन इसके बावजूद अस्पतालों में उन्हें कई कई महीनों तक वेंटिलेटर पर रखा जाता है. डॉक्टरों को और मरीज के घरवालों को पता होता है कि अब उन्हें बचाया नहीं जा सकता लेकिन इसके बावजूद कुछ नहीं कर सकते क्योंकि जब तक मरीज की मौत प्राकृतिक तौर पर नहीं होती तब तक उसे जिंदा रखने का कानून है.

कहीं ना कहीं वह मरीज ना चाहते हुए दूसरे लोगों पर बोझ बन जाता है. इसलिए मैंने इस कानून को लेकर रिसर्च वर्क शुरू किया और अंततः इस कानून के तहत दस्तावेज तैयार करवाकर जिला अदालत में जमा करवा दिए मुझे उम्मीद है कि चंडीगढ़ के बाद अब देश के दूसरे हिस्सों में भी मेरे जैसे लोग जरूर सामने आएंगे जो इस कानून का इस्तेमाल करेंगे.

ये भी पढ़ें- युद्ध की धमकियां देने वाले पाक को विज की चेतावनी, कहा- पिछली बार से होगा ज्यादा बुरा हाल

चंडीगढ़: अदालत में जमा कराए गए ये दस्तावेज इंसान की मौत से जुड़े हुए हैं और दस्तावेजों में सबसे पहले प्रोफेसर डीएन जोहर ने अपना और अपनी पत्नी आदर्श जोहर का नाम लिखवाया है. इस बारे में ईटीवी भारत की टीम ने प्रोफेसर डीएन जोहर से खास बातचीत की.

इस बारे में बात करते हुए प्रोफेसर डीएन जोहर ने बताया कि उन्होंने एक कानून के तहत ऐसे दस्तावेज तैयार करवाए जिसमें ये लिखा गया है कि अगर कोई मरीज अपनी बीमारी की वजह से ऐसी हालत में पहुंच जाए जहां से उसे बचाना नामुमकिन हो तो उसे मौत दे दी जाए लेकिन यह कानून सिर्फ उन मरीजों पर लागू होगा जिन मरीजों ने उनकी तरह पहले से ही इसके लिए अपने दस्तावेज तैयार करवाकर जिला अदालत में जमा करवाएं हो.

सम्मान से मरने के अधिकार के लिए कोर्ट पहुंचे प्रोफेसर, दूसरे लोगों को भी देना चाहते हैं इस कानून की जानकारी.

उन्होंने कहा कि इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में पहले से एक कानून बना हुआ है लेकिन जिला अदालतों में इसके लिए जजों की नियुक्ति नहीं हो पाई है. क्योंकि इसके लिए जिला अदालत में एक जज की खासतौर पर ड्यूटी लगाई जाती है. उन्होंने अपने दस्तावेज खुद तैयार किए हैं क्योंकि वह वकालत के प्रोफेसर रह चुके हैं और इसलिए कानून की अच्छी खासी समझ रखते हैं.

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इन दस्तावेजों को तैयार करने में उन्हें कई महीनों का समय लग गया लेकिन आखिरकार उन्होंने ही दस्तावेज कानूनी तरीके से तैयार कर अदालत में जमा करवा दिए और इसके लिए जिला अदालत में एक जज की नियुक्ति भी कर दी गई है. चंडीगढ़ देश का ऐसा पहला शहर है जहां पर इस तरह के मामलों के लिए किसी जज की नियुक्ति की गई हो. अगर देश में कोई और व्यक्ति इस तरह के दस्तावेज जमा करवाना चाहे तो फिलहाल वह इस तरह के दस्तावेज जमा नहीं करवा सकता क्योंकि वहां पर इसके लिए कोई जज ही मौजूद नहीं होगा.

इन दस्तावेजों की जरूरत के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि हमारे संविधान हमें यह अधिकार देता है कि हर नागरिक सम्मान के साथ अपना जीवन व्यतीत करें और उसे उसी सम्मान के साथ मरने का भी अधिकार है. व्यक्तिगत तौर पर मैं यह सोचता हूं कि कि मैंने जिस आत्मसम्मान के साथ अपनी जिंदगी को जिया है मैं उसी आत्मसम्मान के साथ दुनिया छोड़ कर जाऊं और अपने अंतिम समय में मैं किसी पर बोझ ना बनूं.

फिलहाल ऐसा सिर्फ चंडीगढ़ में ही हो सकता है लेकिन मैं चाहूंगा कि पूरे देश में इस कानून की जानकारी फैले. ये लोगों पर निर्भर करता है कि वे इस कानून को अपनाते हैं या नहीं लेकिन मेरी कोशिश यही है कि इसकी जानकारी सभी तक पहुंचे ताकि कोई भी अपने अंतिम समय में किसी पर बोझ ना बनें और वह सम्मान के साथ इस दुनिया से रुखसत हो. इस कानून को सबके सामने लाने का मेरा यही मकसद है.

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देश में लाखों मरीज ऐसे होते हैं जिनके बचने की कोई उम्मीद नहीं होती उनके शरीर के अंग काम करना बंद कर देते हैं और वे कभी होश में नहीं आ सकते लेकिन इसके बावजूद अस्पतालों में उन्हें कई कई महीनों तक वेंटिलेटर पर रखा जाता है. डॉक्टरों को और मरीज के घरवालों को पता होता है कि अब उन्हें बचाया नहीं जा सकता लेकिन इसके बावजूद कुछ नहीं कर सकते क्योंकि जब तक मरीज की मौत प्राकृतिक तौर पर नहीं होती तब तक उसे जिंदा रखने का कानून है.

कहीं ना कहीं वह मरीज ना चाहते हुए दूसरे लोगों पर बोझ बन जाता है. इसलिए मैंने इस कानून को लेकर रिसर्च वर्क शुरू किया और अंततः इस कानून के तहत दस्तावेज तैयार करवाकर जिला अदालत में जमा करवा दिए मुझे उम्मीद है कि चंडीगढ़ के बाद अब देश के दूसरे हिस्सों में भी मेरे जैसे लोग जरूर सामने आएंगे जो इस कानून का इस्तेमाल करेंगे.

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चंडीगढ़ के प्रोफेसर डीएन जौहर ने चंडीगढ़ जिला अदालत में एक ऐसी वसीयत जमा करवाई है। जिसके बारे में आपने शायद कभी सुना नहीं होगा। यह देश का ऐसा पहला मामला है जब किसी अदालत में इस तरह के दस्तावेज जमा करवाए गए हो। यह दस्तावेज इंसान की मौत से जुड़े हुए हैं और दस्तावेजों में सबसे पहले प्रोफेसर डीएन जौहर ने अपना और अपनी पत्नी आदर्श जोहर का नाम लिखवाया है। इस बारे में ईटीवी भारत की टीम ने प्रोफेसर डीएन जौहर से खास बातचीत की।


Body:इस बारे में बात करते हुए प्रोफेसर डीएन जौहर ने बताया कि उन्होंने एक कानून के तहत ऐसे दस्तावेज तैयार करवाए जिसमें यह लिखा गया है कि अगर कोई मरीज अपनी बीमारी की वजह से ऐसी हालत में पहुंच जाए जहां से उसे बचाना नामुमकिन हो तो उसे मौत दे दी जाए। लेकिन यह कानून सिर्फ उन मरीजों पर लागू होगा जिन मरीजों ने उनकी तरह पहले से ही इसके लिए अपने दस्तावेज तैयार करवाकर जिला अदालत में जमा करवाए हो। उन्होंने कहा कि इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में पहले से एक कानून बना हुआ है। लेकिन जिला अदालतों में इसके लिए जजों की नियुक्ति नहीं हो पाई है। क्योंकि इसके लिए जिला अदालत में एक जज कि खासतौर पर ड्यूटी लगाई जाती है।
उन्होंने अपने दस्तावेज खुद तैयार किए हैं । क्योंकि वह वकालत के प्रोफेसर रह चुके हैं और इसलिए कानून की अच्छी खासी समझ रखते हैं। इन दस्तावेजों को तैयार करने में उन्हें कई महीनों का समय लग गया। लेकिन आखिरकार उन्होंने ही दस्तावेज कानूनी तरीके से तैयार कर अदालत में जमा करवा दिए और इसके लिए जिला अदालत में एक जज की नियुक्ति भी कर दी गई है।
चंडीगढ़ देश का ऐसा पहला शहर है। जहां पर इस तरह के मामलों के लिए किसी जज की नियुक्ति की गई हो अगर देश में कोई और व्यक्ति इस तरह के दस्तावेज जमा करवाना चाहे तो फिलहाल वह इस तरह के दस्तावेज जमा नहीं करवा सकता। क्योंकि वहां पर इसके लिए कोई जज ही मौजूद नहीं होगा।
इन दस्तावेजों की जरूरत के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया की हमारे संविधान हमें यह अधिकार देता है कि हर नागरिक सम्मान के साथ अपना जीवन व्यतीत करें और उसे उसी सम्मान के साथ मरने का भी अधिकार है। व्यक्तिगत तौर पर मैं यह सोचता हूं कि कि मैंने जिस आत्मसम्मान के साथ अपनी जिंदगी को जिया है मैं उसी आत्मसम्मान के साथ या दुनिया छोड़ कर जाऊं और अपने अंतिम समय में मैं किसी पर बोझ ना बनू। क्योंकि एक समय के बाद मैं अपनी देखभाल खुद नहीं कर पाऊंगा और जब डॉक्टर भी मेरी जिंदगी की उम्मीद को छोड़ देंगे तब मैं चाहूंगा कि मेरी जिंदगी को खत्म कर दिया जाए ।मेरे शरीर को वेंटिलेटर पर लगा कर ना रखा जाए। इसीलिए मैंने इस बात को उठाया और इस कानून के तहत अपने दस्तावेज तैयार करके अदालत में जमा करवाएं।
फिलहाल ऐसा सिर्फ चंडीगढ़ में ही हो सकता है। लेकिन मैं चाहूंगा कि पूरे देश में इस कानून की जानकारी फैले ।
यह लोगों पर निर्भर करता है कि वे इस कानून को अपनाते हैं या नहीं। लेकिन मेरी कोशिश यही है के इसकी जानकारी सभी तक पहुंचे ।ताकि कोई भी अपने अंतिम समय में किसी पर बोझ ना बने और वह सम्मान के साथ इस दुनिया से रुखसत हो इस कानून को सबके सामने लाने का मेरा यही मकसद है।
देश में लाखों मरीज ऐसे होते हैं जिनके बचने की कोई उम्मीद नहीं होती उनके शरीर के अंग काम करना बंद कर देते हैं और वे कभी होश में नहीं आ सकते लेकिन इसके बावजूद अस्पतालों में उन्हें कई कई महीनों तक वेंटिलेटर पर रखा जाता है डॉक्टरों को और मरीज के घर वालों को पता होता है कि अब उन्हें बचाया नहीं जा सकता लेकिन इसके बावजूद कुछ नहीं कर सकते क्योंकि जब तक मरीज की मौत प्राकृतिक तौर पर नहीं होती तब तक उसे जिंदा रखने का कानून है इसलिए कहीं ना कहीं वह मरीज ना चाहते हुए दूसरे लोगों पर बोझ बन जाता है
इसलिए मैंने इस कानून को लेकर रिसर्च वर्क शुरू किया और अंततः इस कानून के तहत दस्तावेज तैयार करवाकर जिला अदालत में जमा करवा दिए मुझे उम्मीद है कि चंडीगढ़ के बाद अब देश के दूसरे हिस्सों में भी मेरे जैसे लोग जरूर सामने आएंगे जो इस कानून का इस्तेमाल करेंगे।

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