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चौधर की जंग: इन मुद्दों ने बदला राज्य में सियासत का खेल, इस बार का चुनाव है कुछ खास

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Published : Oct 5, 2019, 8:01 AM IST

Updated : Oct 6, 2019, 7:27 PM IST

ये है ईटीवी भारत की खास पेशकश 'चौधर की जंग'. हरियाणा में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. ऐसे में इस बार राजनीतिक दल किन मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाने वाले हैं, इसका आंकलन बहुत जरूरी है. तो आइये जानते हैं कि इस बार चुनाव कौन से मुद्दे सबसे ज्यादा प्रचलन में हैं-

haryana election issues

चंडीगढ़: राज्य में विधानसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है. 2014 की जंग 2019 तक आते-आते काफी बदल चुकी है. चुनाव के मुद्दे भी बदल गए हैं. हरियाणा विधानसभा के ये चुनाव कई मायनों में खास है, क्योंकि बीते चार महीनों में राजनीति में काफी कुछ बदल गया है, जिसका असर इन चुनाव के नतीजों पर पड़ सकता है. इस खास कार्यक्रम में हम आपको उन्हीं मुद्दों के बारे में बता रहे हैं जो इस बार के चुनाव में छाए हुए हैं.

जानिए हरियाणा में इस बार चुनाव में कौन से मुद्दे छाए हुए हैं, देखिए ये स्पेशल रिपोर्ट.
अनुच्छेद-370 और राष्ट्रवाद का मुद्दा
लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राष्ट्रवाद के मुद्दे को आगे करके चुनाव लड़ा था. राजनीतिक रैलियों में जमकर सर्जिकल स्ट्राइक का जिक्र किया गया था. वहीं जिस विपक्षी दल ने सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगे उसी को ही चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा. हरियाणा में भी राष्ट्रवाद के मुद्दे को आगे करके चुनाव लड़ा जा रहा है. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाए जाने के फैसले को मोदी सरकार का बड़ा कार्ड माना गया. देशभर में इसकी चर्चा हुई, पक्ष-विपक्ष दोनों तरफ से आवाजें उठीं. सरकार का कहना है कि उन्होंने देश के मन की आवाज सुनी है. हरियाणा में बीजेपी के सभी मंत्री और नेता हर रैली और जनसभा में अनुच्छेद-370 को हटाए जाने के फैसले का जमकर बखान कर रहे हैं.

वहीं कांग्रेस के हरियाणा चुनाव प्रबंधन समिति के अध्यक्ष और पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी अनुच्छेद-370 को हटाए जाने के फैसले का समर्थन करते हुए अपनी बदली हुए रणनीति का परिचय दे दिया है. इसके अलावा इनेलो नेता अभय चौटाला और जननायक जनता पार्टी के नेता दुष्यंत चौटाला भी अनुच्छेद-370 को हटाने का समर्थन कर चुके हैं. लोकसभा चुनाव में राष्ट्रवाद से जुड़े सभी मुद्दों से अलग चलने वाली बहुजन समाज पार्टी ने भी इस बार अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए अनुच्छेद-370 को हटाने का स्वागत किया है. संसद में भी बहुजन समाज पार्टी ने अनुच्छेद-370 को हटाने के पक्ष में वोट किया था. इस तरह लोकसभा चुनाव और अनुच्छेद-370 को हटाने के फैसले के बाद देश में हो रहे इन पहले बड़े चुनाव में ये मुद्दा छाया हुआ है.

कर्मचारियों की हड़ताल और धरने
हरियाणा में कई क्षेत्रों के कर्मचारी लगातार अपनी मांगों को लेकर धरने और हड़ताल करते आ रहे हैं. इनमें रोडवेज कर्मचारी, सफाई कर्मचारी, गेस्ट टीचर्स, कंप्यूटर टीचर्स, आशा वर्कर्स, मिड डे मील वर्कर्स, बिजली विभाग के कर्मचारी, मंडियों के आढ़ती आदि कई संगठन शामिल हैं. विपक्ष के नेता लगातार इन संगठनों के धरनों और हड़तालों में शामिल होकर सरकार को घेरते रहे हैं और साथ ही अपनी सरकार बनने पर इनकी मांगें पूरी करने का वादा भी करते रहे हैं. ऐसे में मौजूदा बीजेपी सरकार के सामने ये मुद्दा एक बड़ी चुनौती की तरह है.

ये भी पढ़ें: चौधर की जंग: जानिए राज्य में किस पार्टी में है कितना दम?

किसानों का मुद्दा
हरियाणा में किसान कई मुद्दों को लेकर प्रदर्शन करते आ रहे हैं. कई जिलों में नेशनल हाई-वे के लिए अधिग्रहित की गई जमीन को लेकर किसान धरने पर बैठे हैं. इसके अलावा स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू करने, फसलों की खरीद, डार्क जोन के मुद्दों को लेकर भी किसान धरने देते रहते हैं. वहीं किसान संगठनों के साथ-साथ विपक्ष भी समय-समय पर किसानों का कर्ज माफ करने की मांग भी उठाता रहा है. इसलिए लगभग सभी दल ये जानते हैं कि विधानसभा चुनाव में किसानों के मुद्दे को नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है.

ट्रिपल तलाक बिल
मुस्लिम महिलाओं के हक के लिए भारतीय जनता पार्टी लगातार तीन तलाक बिल लाने की बात कर रही थी. पिछले कार्यकाल में तो ये बिल राज्यसभा में पास नहीं हो पाया था, लेकिन इस बार दोनों सदनों से बिल को हरी झंडी मिली. अब भारतीय जनता पार्टी की ओर से इस मुद्दे को चुनावी माहौल में भी उठाया जा रहा है. हरियाणा में 2011 जनगणना के अनुसार 7% मुस्लिम आबादी है. हरियाणा विधानसभा की तीन सीटों पर मुस्लिम वोट का सीधा असर है. वहीं लगभग 6 सीटों पर बड़ा असर रहता है. ये सीटें नूंह, रेवाड़ी और गुरुग्राम जिलों के अंदर आती हैं. बीजेपी लगातार जनसभाओं में तीन तलाक बिल को लेकर भी वाहवाही लूट रही है. वहीं हरियाणा के किसी भी विपक्षी दल ने इस मुद्दे का खुलकर विरोध नहीं किया. कांग्रेस की ओर से केवल कानून में थोड़े बदलाव की बात जरूर उठी थी.

जाट आरक्षण का मुद्दा
फरवरी 2016 में हुए जाट आंदोलन के बाद हरियाणा सरकार ने विधानसभा में जाटों और अन्य पांच समुदायों को सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण के लिए विधेयक पास किया था. इसके तहत पिछड़े वर्ग की नई कैटेगरी 'सी' को जोड़कर कोटे का प्रावधान किया गया था फिर जाट समेत 6 जातियों (जाट, रोर, जट्‌ट सिख, बिश्नोई, मूला जाट, त्यागी) को नौकरी और शिक्षण संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण देने के फैसले पर पंजाब एंव हरियाणा हाईकोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी थी. मामला अभी कोर्ट में लंबित है. वहीं जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला, इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला और अभय सिंह चौटाला ने जाट आरक्षण के मुद्दे के जनसभाओं में उठाकर राजनीति शुरू कर दी है.

ये भी पढ़ें: हरियाणा का वो मुख्यमंत्री जिसने प्रधानमंत्री को झुका दिया, लेकिन उसके अपने ही ले डूबे!

SYL का मुद्दा
हरियाणा में चुनाव आते है एक बार फिर एसवाईएल का मुद्दा भी छाया हुआ है. इनेलो और जेजेपी इस मुद्दे को उठाने में एक बार फिर सबसे आगे है. अकाली दल से गठबंधन ना करने की वजह बीजेपी ने एसवाईएल को ही बताया है. वहीं कांग्रेस का इस मुद्दे पर स्टैंड डामाडोल ही है. हरियाणा कांग्रेस के नेता पानी लाने की बात करते हैं तो वहीं पंजाब में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद भी केंद्र और पंजाब सरकार का हरियाणा कांग्रेस के नेताओं को जरा भी समर्थन नहीं मिल रहा है.

तो ये हैं हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार के बड़े मुद्दे जिन्होंने सत्ता तक जाने वाले इस खेल को बदल के रख दिया है.

चंडीगढ़: राज्य में विधानसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है. 2014 की जंग 2019 तक आते-आते काफी बदल चुकी है. चुनाव के मुद्दे भी बदल गए हैं. हरियाणा विधानसभा के ये चुनाव कई मायनों में खास है, क्योंकि बीते चार महीनों में राजनीति में काफी कुछ बदल गया है, जिसका असर इन चुनाव के नतीजों पर पड़ सकता है. इस खास कार्यक्रम में हम आपको उन्हीं मुद्दों के बारे में बता रहे हैं जो इस बार के चुनाव में छाए हुए हैं.

जानिए हरियाणा में इस बार चुनाव में कौन से मुद्दे छाए हुए हैं, देखिए ये स्पेशल रिपोर्ट.
अनुच्छेद-370 और राष्ट्रवाद का मुद्दालोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राष्ट्रवाद के मुद्दे को आगे करके चुनाव लड़ा था. राजनीतिक रैलियों में जमकर सर्जिकल स्ट्राइक का जिक्र किया गया था. वहीं जिस विपक्षी दल ने सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगे उसी को ही चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा. हरियाणा में भी राष्ट्रवाद के मुद्दे को आगे करके चुनाव लड़ा जा रहा है. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाए जाने के फैसले को मोदी सरकार का बड़ा कार्ड माना गया. देशभर में इसकी चर्चा हुई, पक्ष-विपक्ष दोनों तरफ से आवाजें उठीं. सरकार का कहना है कि उन्होंने देश के मन की आवाज सुनी है. हरियाणा में बीजेपी के सभी मंत्री और नेता हर रैली और जनसभा में अनुच्छेद-370 को हटाए जाने के फैसले का जमकर बखान कर रहे हैं.

वहीं कांग्रेस के हरियाणा चुनाव प्रबंधन समिति के अध्यक्ष और पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी अनुच्छेद-370 को हटाए जाने के फैसले का समर्थन करते हुए अपनी बदली हुए रणनीति का परिचय दे दिया है. इसके अलावा इनेलो नेता अभय चौटाला और जननायक जनता पार्टी के नेता दुष्यंत चौटाला भी अनुच्छेद-370 को हटाने का समर्थन कर चुके हैं. लोकसभा चुनाव में राष्ट्रवाद से जुड़े सभी मुद्दों से अलग चलने वाली बहुजन समाज पार्टी ने भी इस बार अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए अनुच्छेद-370 को हटाने का स्वागत किया है. संसद में भी बहुजन समाज पार्टी ने अनुच्छेद-370 को हटाने के पक्ष में वोट किया था. इस तरह लोकसभा चुनाव और अनुच्छेद-370 को हटाने के फैसले के बाद देश में हो रहे इन पहले बड़े चुनाव में ये मुद्दा छाया हुआ है.

कर्मचारियों की हड़ताल और धरने
हरियाणा में कई क्षेत्रों के कर्मचारी लगातार अपनी मांगों को लेकर धरने और हड़ताल करते आ रहे हैं. इनमें रोडवेज कर्मचारी, सफाई कर्मचारी, गेस्ट टीचर्स, कंप्यूटर टीचर्स, आशा वर्कर्स, मिड डे मील वर्कर्स, बिजली विभाग के कर्मचारी, मंडियों के आढ़ती आदि कई संगठन शामिल हैं. विपक्ष के नेता लगातार इन संगठनों के धरनों और हड़तालों में शामिल होकर सरकार को घेरते रहे हैं और साथ ही अपनी सरकार बनने पर इनकी मांगें पूरी करने का वादा भी करते रहे हैं. ऐसे में मौजूदा बीजेपी सरकार के सामने ये मुद्दा एक बड़ी चुनौती की तरह है.

ये भी पढ़ें: चौधर की जंग: जानिए राज्य में किस पार्टी में है कितना दम?

किसानों का मुद्दा
हरियाणा में किसान कई मुद्दों को लेकर प्रदर्शन करते आ रहे हैं. कई जिलों में नेशनल हाई-वे के लिए अधिग्रहित की गई जमीन को लेकर किसान धरने पर बैठे हैं. इसके अलावा स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू करने, फसलों की खरीद, डार्क जोन के मुद्दों को लेकर भी किसान धरने देते रहते हैं. वहीं किसान संगठनों के साथ-साथ विपक्ष भी समय-समय पर किसानों का कर्ज माफ करने की मांग भी उठाता रहा है. इसलिए लगभग सभी दल ये जानते हैं कि विधानसभा चुनाव में किसानों के मुद्दे को नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है.

ट्रिपल तलाक बिल
मुस्लिम महिलाओं के हक के लिए भारतीय जनता पार्टी लगातार तीन तलाक बिल लाने की बात कर रही थी. पिछले कार्यकाल में तो ये बिल राज्यसभा में पास नहीं हो पाया था, लेकिन इस बार दोनों सदनों से बिल को हरी झंडी मिली. अब भारतीय जनता पार्टी की ओर से इस मुद्दे को चुनावी माहौल में भी उठाया जा रहा है. हरियाणा में 2011 जनगणना के अनुसार 7% मुस्लिम आबादी है. हरियाणा विधानसभा की तीन सीटों पर मुस्लिम वोट का सीधा असर है. वहीं लगभग 6 सीटों पर बड़ा असर रहता है. ये सीटें नूंह, रेवाड़ी और गुरुग्राम जिलों के अंदर आती हैं. बीजेपी लगातार जनसभाओं में तीन तलाक बिल को लेकर भी वाहवाही लूट रही है. वहीं हरियाणा के किसी भी विपक्षी दल ने इस मुद्दे का खुलकर विरोध नहीं किया. कांग्रेस की ओर से केवल कानून में थोड़े बदलाव की बात जरूर उठी थी.

जाट आरक्षण का मुद्दा
फरवरी 2016 में हुए जाट आंदोलन के बाद हरियाणा सरकार ने विधानसभा में जाटों और अन्य पांच समुदायों को सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण के लिए विधेयक पास किया था. इसके तहत पिछड़े वर्ग की नई कैटेगरी 'सी' को जोड़कर कोटे का प्रावधान किया गया था फिर जाट समेत 6 जातियों (जाट, रोर, जट्‌ट सिख, बिश्नोई, मूला जाट, त्यागी) को नौकरी और शिक्षण संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण देने के फैसले पर पंजाब एंव हरियाणा हाईकोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी थी. मामला अभी कोर्ट में लंबित है. वहीं जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला, इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला और अभय सिंह चौटाला ने जाट आरक्षण के मुद्दे के जनसभाओं में उठाकर राजनीति शुरू कर दी है.

ये भी पढ़ें: हरियाणा का वो मुख्यमंत्री जिसने प्रधानमंत्री को झुका दिया, लेकिन उसके अपने ही ले डूबे!

SYL का मुद्दा
हरियाणा में चुनाव आते है एक बार फिर एसवाईएल का मुद्दा भी छाया हुआ है. इनेलो और जेजेपी इस मुद्दे को उठाने में एक बार फिर सबसे आगे है. अकाली दल से गठबंधन ना करने की वजह बीजेपी ने एसवाईएल को ही बताया है. वहीं कांग्रेस का इस मुद्दे पर स्टैंड डामाडोल ही है. हरियाणा कांग्रेस के नेता पानी लाने की बात करते हैं तो वहीं पंजाब में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद भी केंद्र और पंजाब सरकार का हरियाणा कांग्रेस के नेताओं को जरा भी समर्थन नहीं मिल रहा है.

तो ये हैं हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार के बड़े मुद्दे जिन्होंने सत्ता तक जाने वाले इस खेल को बदल के रख दिया है.

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चौधर की जंग: इन मुद्दों ने बदला राज्य में सियासत का खेल, इस बार चुनाव है कुछ खास



ये है ईटीवी भारत की खास पेशकश 'चौधर की जंग'. हरियाणा में अब जब चुनाव का बिगुल बच चुका है तो हरियाणा में राजनैतिक दल किन मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाने वाले हैं, इसका आंकलन बहुत जरूरी है. तो आइये जानते हैं कि इस बार चुनाव कौन से मुद्दे सबसे ज्यादा प्रचलन में हैं-



चंडीगढ़: राज्य में विधानसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है. 2014 की जंग 2019 तक आते-आते काफी बदल चुकी है. चुनाव के मुद्दे भी बदल गए हैं. हरियाणा विधानसभा के ये चुनाव कई मायनों में खास है, क्योंकि बीते चार महीनों में राजनीति में काफी कुछ बदल गया है जिसका असर इन चुनाव के नतीजों पर पड़ सकता है. इस खास कार्यक्रम में हम आपको उन्हीं मुद्दों के बारे में बता रहे हैं जो इस बार के चुनाव में छाए हुए हैं.

अनुच्छेद-370 और राष्ट्रवाद का मुद्दा

लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राष्ट्रवाद के मुद्दे को आगे करके चुनाव लड़ा था. राजनीतिक रैलियों में जमकर सर्जिकल स्ट्राइक का जिक्र किया गया था. वहीं जिस विपक्षी दल ने सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगे उसी को ही चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा. हरियाणा में भी राष्ट्रवाद के मुद्दे को आगे करके चुनाव लड़ा जा रहा है. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाए जाने के फैसले को मोदी सरकार का बड़ा कार्ड माना गया. देशभर में इसकी चर्चा हुई, पक्ष-विपक्ष दोनों तरफ से आवाजें उठीं. सरकार का कहना है कि उन्होंने देश के मन की आवाज सुनी है. हरियाणा में बीजेपी के सभी मंत्री और नेता हर रैली और जनसभा में अनुच्छेद-370 को हटाए जाने के फैसले का जमकर बखान कर रहे हैं. वहीं हरियाणा चुनाव समिति के अध्यक्ष और पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी अनुच्छेद-370 को हटाए जाने के फैसले का समर्थन करते हुए अपनी बदली हुए रणनीति का परिचय दे दिया है. इसके अलावा इनेलो नेता अभय चौटाला और जननायक जनता पार्टी के नेता दुष्यंत चौटाला भी अनुच्छेद-370 को हटाने का समर्थन कर चुके हैं. लोकसभा चुनाव में राष्ट्रवाद से जुड़े सभी मुद्दों से अलग चलने वाली बहुजन समाज पार्टी ने भी इस बार अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए अनुच्छेद-370 को हटाने का स्वागत किया है. इस तरह लोकसभा चुनाव और अनुच्छेद-370 को हटाने के फैसले के बाद देश में हो रहे इन पहले बड़े चुनाव में ये मुद्दा छाया हुआ है.

कर्मचारियों की हड़ताल और धरने 

हरियाणा में कई क्षेत्रों के कर्मचारी लगातार अपनी मांगों को लेकर धरने और हड़ताल करते आ रहे हैं. इनमें रोडवेज कर्मचारी, सफाई कर्मचारी, गेस्ट टीचर्स, कंप्यूटर टीचर्स, आशा वर्कर्स, मिड डे मील वर्कर्स, बिजली विभाग के कर्मचारी, मंडियों के आढ़ती आदि कई संगठन शामिल हैं. विपक्ष के नेता लगातार इन संगठनों के धरनों और हड़तालों में शामिल होकर सरकार को घेरते रहे हैं और साथ ही अपनी सरकार बनने पर इनकी मांगें पूरी करने का वादा भी करते रहे हैं. ऐसे में मौजूदा बीजेपी सरकार के सामने ये मुद्दा एक बड़ी चुनौती की तरह है.  

किसानों का मुद्दा 

हरियाणा में किसान कई मुद्दों को लेकर प्रदर्शन करते आ रहे हैं. कई जिलों में नेशनल हाई-वे के लिए अधिग्रहित की गई जमीन को लेकर किसान धरने पर बैठे हैं. इसके अलावा स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू करने, फसलों की खरीद, डार्क जोन के मुद्दों को लेकर भी किसान धरने देते रहते हैं. वहीं किसान संगठनों के साथ-साथ विपक्ष भी समय-समय पर किसानों का कर्ज माफ करने की मांग भी उठाता रहा है. इसलिए लगभग सभी दल ये जानते हैं कि विधानसभा चुनाव में किसानों के मुद्दे को नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है.

ट्रिपल तलाक बिल  

मुस्लिम महिलाओं के हक के लिए भारतीय जनता पार्टी लगातार तीन तलाक बिल लाने की बात कर रही थी. पिछले कार्यकाल में तो ये बिल राज्यसभा में पास नहीं हो पाया था, लेकिन इस बार दोनों सदनों से बिल को हरी झंडी मिली. अब भारतीय जनता पार्टी की ओर से इस मुद्दे को चुनावी माहौल में भी उठाया जा रहा है. हरियाणा में 2011 जनगणना के अनुसार 7% मुस्लिम आबादी है. हरियाणा विधानसभा की तीन सीटों पर मुस्लिम वोट का सीधा असर है. वहीं लगभग 6 सीटों पर बड़ा असर रहता है. ये सीटें नूंह, रेवाड़ी और गुरुग्राम जिलों के अंदर आती हैं. बीजेपी लगातार जनसभाओं में तीन तलाक बिल को लेकर भी वाहवाही लूट रही है. वहीं हरियाणा के किसी भी विपक्षी दल ने इस मुद्दे का खुलकर विरोध नहीं किया. कांग्रेस की ओर से केवल कानून में थोड़े बदलाव की बात जरूर उठी थी.

जाट आरक्षण का मुद्दा 

फरवरी 2016 में हुए जाट आंदोलन के बाद हरियाणा सरकार ने विधानसभा में जाटों और अन्य पांच समुदायों को सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण के लिए विधेयक पास किया था. इसके तहत पिछड़े वर्ग की नई कैटेगरी 'सी' को जोड़कर कोटे का प्रावधान किया गया था फिर जाट समेत 6 जातियों (जाट, रोर, जट्‌ट सिख, बिश्नोई, मूला जाट, त्यागी) को नौकरी और शिक्षण संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण देने के फैसले पर पंजाब एंव हरियाणा हाईकोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी थी. मामला अभी कोर्ट में लंबित है. वहीं जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला, इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला और अभय सिंह चौटाला ने जाट आरक्षण के मुद्दे के जनसभाओं में उठाकर राजनीति शुरू कर दी है.

SYL का मुद्दा 

हरियाणा में चुनाव आते है एक बार फिर एसवाईएल का मुद्दा भी छाया हुआ है. इनेलो और जेजेपी इस मुद्दे को उठाने में एक बार फिर सबसे आगे है. अकाली दल से गठबंधन ना करने की वजह बीजेपी ने एसवाईएल को ही बताया है. वहीं कांग्रेस का इस मुद्दे पर स्टैंड डामाडोल ही है. हरियाणा कांग्रेस के नेता पानी लाने की बात करते हैं तो वहीं पंजाब में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद भी केंद्र और पंजाब सरकार का हरियाणा कांग्रेस के नेताओं को जरा भी समर्थन नहीं मिल रहा है.

तो ये हैं हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार के बड़े मुद्दे जिन्होंने सत्ता तक जाने वाले इस खेल को बदल के रख दिया है. 


Conclusion:
Last Updated : Oct 6, 2019, 7:27 PM IST
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