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2014 में सबसे ज्यादा मतदान वाली इनमे से एक भी सीट नहीं जीत पाई थी कांग्रेस, पढ़िए क्या होगा इस बार?

2014 के विधानसभा चुनाव में जहां रिकॉर्ड तोड़ मतदान हुआ था. वहीं इस बार हरियाणा विधानसभा चुनाव में साल 1991 के बाद सबसे कम मतदान हुआ है. इसके अलावा इस बार मात्र दो ही सीटें ऐसी रही जहां मतदान प्रतिशत 80 फीसदी के आंकड़े को छू पाया.

haryana election voting percentage
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Published : Oct 22, 2019, 6:15 PM IST

Updated : Oct 22, 2019, 8:01 PM IST

चंडीगढ़: हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार 68.47 प्रतिशत मतदान हुआ है जो कि 2014 के मुकाबले काफी कम रहा. 2014 के विधानसभा चुनाव में हरियाणा के इतिहास में सबसे ज्यादा 76.13 प्रतिशत मतदान हुआ था. वहीं इस बार मतदान प्रतिशत कम होने के बाद कई तरह के समीकरणों को लेकर चर्चाएं भी शुरू हो गई हैं. 2014 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में 31 सीटों पर 80 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ था और इसके अलावा कुल 13 सीटें ऐसी थी जहां 83 फीसदी से ज्यादा मतदान प्रतिशत रहा था लेकिन इस बार वोट प्रतिशत 80 के पार मात्र दो सीटों पर ही रहा है. वहीं 83 फीसदी मतदान केवल एक ही सीट पर हुआ. इस बार जिन दो सीटों पर 80 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ है वो सीटें हैं ऐलनाबाद (83%) और टोहाना (80.56%).

वहीं इस बार हुए कम मतदान के कई मायनें भी सामने आ रहे हैं. सबसे पहले बात करेंगे उन पांच सीटों की जहां पिछली बार 83 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ था लेकिन इस बार इन विधानसभा क्षेत्रों में कम मतदान हुआ है. आखिर इस कम मतदान के क्या मायने हैं और इन सीटों पर इस बार क्या नतीजें आ सकते हैं-

अभय चौटाला.
अभय चौटाला.

ऐलनाबाद विधानसभा सीट
सिरसा जिले के अंदर आने वाली इस सीट पर पिछली बार की तरह ही इस बार भी सबसे ज्यादा मतदान हुआ है. यहां 2014 के चुनाव में 89.30 फीसदी मतदान हुआ था. तब यहां मुख्य मुकाबला इनेलो के अभय चौटाला और बीजेपी के पवन बेनीवाल में रहा था जिसमें अभय चौटाला ने जीत हासिल की थी. अभय चौटाला को कुल वोट प्रतिशत में से 46.70 फीसदी वोट प्राप्त किए थे जबकि पवन बेनीवाल को 38.91 फीसदी वोट मिले थे. इस बार यहां 83 फीसदी मतदान हुआ है जो पिछली बार के मुकाबले 6.30 फीसदी कम है. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यहां इस बार अभय चौटाला को कड़ी चुनौती मिल सकती है. इसका कारण चौटाला परिवार में टूट के कारण नई पार्टी बनना और कम मतदान को माना जा रहा है. इसके अलावा कम मतदान में बूथ लेवल मैनेजमेंट भी मायने रखता है और बीजेपी का बूथ लेवल मैनेजमेंट मजबूत है. अभय चौटाला के सामने एक बार फिर बीजेपी के पवन बेनीवाल ही हैं जो पिछली बार अभय चौटाला से 11,539 वोट से हार गए थे. वहीं जननायक जनता पार्टी की ओर से ओपी सिहाग को उतारा गया था. आखिर में ये ही माना जा रहा है कि इस बार कम मतदान के कारण ऐलनाबाद में उल्टफेर मुमकिन है.

रामचंद्र कम्बोज
रामचंद्र कम्बोज.

रानियां विधानसभा सीट
सिरसा जिले के ही अंदर आने वाले रानियां विधानसभा क्षेत्र में पिछली बार 88.16 फीसदी मतदान हुआ था और सबसे ज्यादा मतदान वाली सीटों में रानियां विधानसभा सीट दूसरे नंबर पर थी. वहीं इस बार यानि 2019 के चुनाव में रानियां 80 फीसदी मतदान के आंकड़े को भी नहीं छू पाया और यहां इस बार 79.60 फीसदी मतदान हुआ है. 2014 में यहां इनेलो के रामचंद्र कम्बोज ने कड़े मुकाबले में हरियाणा के पूर्व गृह मंत्री गोपाल कांडा के भाई गोबिंद कांडा को 4,315 वोट से हराया था. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार भी यहां कड़ा मुकाबला ही देखने को मिलेगा. मौजूदा विधायक रामचंद्र कम्बोज चुनावी माहौल भांपते हुए इनेलो छोड़कर इस बार बीजेपी की टिकट पर मैदान में हैं. वहीं उनके सामने एक बार फिर हरियाणा लोकहित पार्टी के गोबिंद कांडा हैं. इनेलो की ओर से अशोक कुमार वर्मा और जेजेपी के लिए कुलदीप सिंह ने चुनाव लड़ा है. राजनीतिक विशेषज्ञ यहां त्रिकोणीय मुकाबले की उम्मीद कर रहे हैं जिसमें बीजेपी उम्मीदवार को बढ़त मिलने की चर्चा है. वहीं गोबिंद कांडा की जीत से भी इंकार नहीं किया जा रहा.

आदित्य देवीलाल.
आदित्य देवीलाल.

डबवाली विधानसभा सीट
सिरसा जिले का ही एक और विधानसभा क्षेत्र पिछले चुनाव में मतदान प्रतिशत के मामले में तीसरे नंबर पर रहा था. ये विधानसभा क्षेत्र था- डबवाली. 2014 में यहां 86.25 फीसदी मतदान हुआ था वहीं इस बार यहां 78.77 फीसदी मतदान हुआ है और ये सीट भी 80 प्रतिशत मतदान के आंकड़े से दूर रहा गया. 2014 में यहां चौटाला परिवार की बहू और अजय चौटाला की पत्नी नैना चौटाला इनेलो की टिकट पर मैदान में थीं. कड़े मुकाबले में उन्होंने कांग्रेस के डॉ. कमलवीर सिंह को 8,545 वोटों से हराया था. हालांकि इस बार परिस्थितियां बदल गई हैं. नैना चौटाला इस बार यहां से चुनावी मैदान में नहीं उतरीं. इनेलो के लिए डॉ. सीता राम तो कांग्रेस की ओर से अमित सिहाग को मैदान में उतारा गया. वहीं बीजेपी ने चौटाला परिवार के ही सदस्य चौधरी देवीलाल के पोते आदित्य देवीलाल चौटाला को मैदान में उतारा. जेजेपी ने सरवजीत सिंह मसितान को चुनाव लड़वाया है. राजनीतिक विशेषज्ञ यहां से इस बार बीजेपी की जीत मानकर चल रहे हैं जिसके कई कारण हैं. एक तो बीजेपी उम्मीदवार देवीलाल परिवार से संबंध रखते हैं, दूसरा चौटाला परिवार में फूट, बीजेपी के पक्ष में चल रही हवा और फिर कम मतदान होना. वहीं आदित्य के अलावा चौटाला परिवार का और कोई भी सदस्य यहां से चुनाव नहीं लड़ रहा है. ऐसे में राजनीतिक विशेषज्ञ यहां से देवीलाल के पोते और बीजेपी उम्मीदवार आदित्य देवीलाल चौटाला को आगे मानकर चल रहे हैं.

सुभाष बराला.
सुभाष बराला.

टोहाना विधानसभा सीट
फतेहाबाद जिले में आने वाली टोहाना विधानसभा सीट प्रतिशत के मामले में 2014 के चुनाव में चौथे नंबर पर रही थी. यहां 2014 के विधानसभा चुनाव में 85.22 फीसदी मतदान हुआ था वहीं इस बार यहां 80.56 फीसदी मतदान हुआ है. हालांकि कम मतदान के बावजूद भी ये सीट इस बार मतदान प्रतिशत के मामले में प्रदेश में दूसरे नंबर पर रही है. 2014 के चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार सुभाष बराला ने इनेलो उम्मीदवार निशान सिंह को 6,906 वोटों से हराया था. इस कड़े मुकाबले में जीत के बाद सुभाष बराला को बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया था. इस बार यहां बीजेपी के लिए एक बार फिर सुभाष बराला ने चुनाव लड़ा है. इनेलो की ओर से राजपाल सैनी, कांग्रेस की ओर से परमवीर सिंह और जेजेपी की ओर से देवेंद्र सिंह बबली मैदान में थे. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यहां भले ही कम मतदान हुआ हो लेकिन मौजूदा विधायक सुभाष बराला ही यहां से आगे चल रहे हैं. इसका कारण लोकसभा चुनाव के नतीजे और बीजेपी के पक्ष में चल रही लहर को माना जा रहा है. वहीं पिछली बार बीजेपी को टक्कर देने वाली इनेलो इस बार यहां जूझ रही है.

प्रेमलता.
प्रेमलता.

उचाना कलां विधानसभा सीट
जींद जिले में आने वाली उचाना कलां विधानसभा सीट पर 2014 के चुनाव में 85.12 फीसदी मतदान हुआ था लेकिन इस बार यहां 76.83 फीसदी मतदान ही हुआ है. 2014 में यहां बड़े राजनीतिक परिवारों के चेहरों में जंग देखने को मिली था. एक तरफ सर छोटूराम के नाती बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता बीजेपी के टिकट पर मैदान में थीं तो वहीं उनके सामने चौधरी देवीलाल के पड़पोते दुष्यंत चौटाला मैदान में थे. प्रेमलता ने दुष्यंत चौटाला को कड़े मुकाबले में 7,480 वोटों से हराया था. इस हार के बाद दुष्यंत चौटाला के राजनीतिक जीवन में कई उतार चढ़ाव आए. पहला तो 2014 के लोकसभा चुनाव में वो हिसार से इनेलो के टिकट पर चुनाव जीतकर सांसद बनें. तब दुष्यंत देश में सबसे युवा सांसद बनें थे.

दुष्यंत चौटाला.
दुष्यंत चौटाला.

हालांकि इसके कुछ साल बाद 2018 में परिवार में फूट के कारण इनेलो छोड़कर उन्होंने अपनी नई पार्टी बनाई. 2019 लोकसभा चुनाव में फिर हिसार से चुनाव लड़े लेकिन इस बार वो हार गए. अब एक बार फिर वो हरियाणा विधानसभा चुनाव में उचाना कलां से मैदान में उतरे हैं. वहीं उनके सामने एक बार फिर बीजेपी की ओर से प्रेमलता ही मैदान में हैं. कांग्रेस के लिए बलराम और इनेलो के लिए सतपाल ने चुनाव लड़ा है. राजनीतिक विशेषज्ञ उचाना कलां को इस बार हरियाणा की हॉट सीट बता रहे हैं और यहां से दुष्यंत चौटाला और प्रेमलता में ही मुख्य मुकाबला मानकर चल रहे हैं. हालांकि परिवारिक लड़ाई और कम मतदान के कारण दुष्यंत चौटाला के लिए यहां जीत दर्ज करना आसान नहीं होगा.

इन पांच सीटों के अलावा 2014 के विधानसभा चुनाव में 8 और सीटों पर 83 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ था, ये सीटें थी-

  • जगाधरी- 84.75 %
  • सढ़ौरा- 84.28 %
  • फतेहाबाद- 83.95 %
  • कालांवाली- 83.76 %
  • कलायत- 83.71 %
  • नारनौंद- 83.18 %
  • सफीदों- 83.07 %
  • शाहबाद- 83.04 %

चंडीगढ़: हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार 68.47 प्रतिशत मतदान हुआ है जो कि 2014 के मुकाबले काफी कम रहा. 2014 के विधानसभा चुनाव में हरियाणा के इतिहास में सबसे ज्यादा 76.13 प्रतिशत मतदान हुआ था. वहीं इस बार मतदान प्रतिशत कम होने के बाद कई तरह के समीकरणों को लेकर चर्चाएं भी शुरू हो गई हैं. 2014 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में 31 सीटों पर 80 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ था और इसके अलावा कुल 13 सीटें ऐसी थी जहां 83 फीसदी से ज्यादा मतदान प्रतिशत रहा था लेकिन इस बार वोट प्रतिशत 80 के पार मात्र दो सीटों पर ही रहा है. वहीं 83 फीसदी मतदान केवल एक ही सीट पर हुआ. इस बार जिन दो सीटों पर 80 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ है वो सीटें हैं ऐलनाबाद (83%) और टोहाना (80.56%).

वहीं इस बार हुए कम मतदान के कई मायनें भी सामने आ रहे हैं. सबसे पहले बात करेंगे उन पांच सीटों की जहां पिछली बार 83 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ था लेकिन इस बार इन विधानसभा क्षेत्रों में कम मतदान हुआ है. आखिर इस कम मतदान के क्या मायने हैं और इन सीटों पर इस बार क्या नतीजें आ सकते हैं-

अभय चौटाला.
अभय चौटाला.

ऐलनाबाद विधानसभा सीट
सिरसा जिले के अंदर आने वाली इस सीट पर पिछली बार की तरह ही इस बार भी सबसे ज्यादा मतदान हुआ है. यहां 2014 के चुनाव में 89.30 फीसदी मतदान हुआ था. तब यहां मुख्य मुकाबला इनेलो के अभय चौटाला और बीजेपी के पवन बेनीवाल में रहा था जिसमें अभय चौटाला ने जीत हासिल की थी. अभय चौटाला को कुल वोट प्रतिशत में से 46.70 फीसदी वोट प्राप्त किए थे जबकि पवन बेनीवाल को 38.91 फीसदी वोट मिले थे. इस बार यहां 83 फीसदी मतदान हुआ है जो पिछली बार के मुकाबले 6.30 फीसदी कम है. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यहां इस बार अभय चौटाला को कड़ी चुनौती मिल सकती है. इसका कारण चौटाला परिवार में टूट के कारण नई पार्टी बनना और कम मतदान को माना जा रहा है. इसके अलावा कम मतदान में बूथ लेवल मैनेजमेंट भी मायने रखता है और बीजेपी का बूथ लेवल मैनेजमेंट मजबूत है. अभय चौटाला के सामने एक बार फिर बीजेपी के पवन बेनीवाल ही हैं जो पिछली बार अभय चौटाला से 11,539 वोट से हार गए थे. वहीं जननायक जनता पार्टी की ओर से ओपी सिहाग को उतारा गया था. आखिर में ये ही माना जा रहा है कि इस बार कम मतदान के कारण ऐलनाबाद में उल्टफेर मुमकिन है.

रामचंद्र कम्बोज
रामचंद्र कम्बोज.

रानियां विधानसभा सीट
सिरसा जिले के ही अंदर आने वाले रानियां विधानसभा क्षेत्र में पिछली बार 88.16 फीसदी मतदान हुआ था और सबसे ज्यादा मतदान वाली सीटों में रानियां विधानसभा सीट दूसरे नंबर पर थी. वहीं इस बार यानि 2019 के चुनाव में रानियां 80 फीसदी मतदान के आंकड़े को भी नहीं छू पाया और यहां इस बार 79.60 फीसदी मतदान हुआ है. 2014 में यहां इनेलो के रामचंद्र कम्बोज ने कड़े मुकाबले में हरियाणा के पूर्व गृह मंत्री गोपाल कांडा के भाई गोबिंद कांडा को 4,315 वोट से हराया था. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार भी यहां कड़ा मुकाबला ही देखने को मिलेगा. मौजूदा विधायक रामचंद्र कम्बोज चुनावी माहौल भांपते हुए इनेलो छोड़कर इस बार बीजेपी की टिकट पर मैदान में हैं. वहीं उनके सामने एक बार फिर हरियाणा लोकहित पार्टी के गोबिंद कांडा हैं. इनेलो की ओर से अशोक कुमार वर्मा और जेजेपी के लिए कुलदीप सिंह ने चुनाव लड़ा है. राजनीतिक विशेषज्ञ यहां त्रिकोणीय मुकाबले की उम्मीद कर रहे हैं जिसमें बीजेपी उम्मीदवार को बढ़त मिलने की चर्चा है. वहीं गोबिंद कांडा की जीत से भी इंकार नहीं किया जा रहा.

आदित्य देवीलाल.
आदित्य देवीलाल.

डबवाली विधानसभा सीट
सिरसा जिले का ही एक और विधानसभा क्षेत्र पिछले चुनाव में मतदान प्रतिशत के मामले में तीसरे नंबर पर रहा था. ये विधानसभा क्षेत्र था- डबवाली. 2014 में यहां 86.25 फीसदी मतदान हुआ था वहीं इस बार यहां 78.77 फीसदी मतदान हुआ है और ये सीट भी 80 प्रतिशत मतदान के आंकड़े से दूर रहा गया. 2014 में यहां चौटाला परिवार की बहू और अजय चौटाला की पत्नी नैना चौटाला इनेलो की टिकट पर मैदान में थीं. कड़े मुकाबले में उन्होंने कांग्रेस के डॉ. कमलवीर सिंह को 8,545 वोटों से हराया था. हालांकि इस बार परिस्थितियां बदल गई हैं. नैना चौटाला इस बार यहां से चुनावी मैदान में नहीं उतरीं. इनेलो के लिए डॉ. सीता राम तो कांग्रेस की ओर से अमित सिहाग को मैदान में उतारा गया. वहीं बीजेपी ने चौटाला परिवार के ही सदस्य चौधरी देवीलाल के पोते आदित्य देवीलाल चौटाला को मैदान में उतारा. जेजेपी ने सरवजीत सिंह मसितान को चुनाव लड़वाया है. राजनीतिक विशेषज्ञ यहां से इस बार बीजेपी की जीत मानकर चल रहे हैं जिसके कई कारण हैं. एक तो बीजेपी उम्मीदवार देवीलाल परिवार से संबंध रखते हैं, दूसरा चौटाला परिवार में फूट, बीजेपी के पक्ष में चल रही हवा और फिर कम मतदान होना. वहीं आदित्य के अलावा चौटाला परिवार का और कोई भी सदस्य यहां से चुनाव नहीं लड़ रहा है. ऐसे में राजनीतिक विशेषज्ञ यहां से देवीलाल के पोते और बीजेपी उम्मीदवार आदित्य देवीलाल चौटाला को आगे मानकर चल रहे हैं.

सुभाष बराला.
सुभाष बराला.

टोहाना विधानसभा सीट
फतेहाबाद जिले में आने वाली टोहाना विधानसभा सीट प्रतिशत के मामले में 2014 के चुनाव में चौथे नंबर पर रही थी. यहां 2014 के विधानसभा चुनाव में 85.22 फीसदी मतदान हुआ था वहीं इस बार यहां 80.56 फीसदी मतदान हुआ है. हालांकि कम मतदान के बावजूद भी ये सीट इस बार मतदान प्रतिशत के मामले में प्रदेश में दूसरे नंबर पर रही है. 2014 के चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार सुभाष बराला ने इनेलो उम्मीदवार निशान सिंह को 6,906 वोटों से हराया था. इस कड़े मुकाबले में जीत के बाद सुभाष बराला को बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया था. इस बार यहां बीजेपी के लिए एक बार फिर सुभाष बराला ने चुनाव लड़ा है. इनेलो की ओर से राजपाल सैनी, कांग्रेस की ओर से परमवीर सिंह और जेजेपी की ओर से देवेंद्र सिंह बबली मैदान में थे. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यहां भले ही कम मतदान हुआ हो लेकिन मौजूदा विधायक सुभाष बराला ही यहां से आगे चल रहे हैं. इसका कारण लोकसभा चुनाव के नतीजे और बीजेपी के पक्ष में चल रही लहर को माना जा रहा है. वहीं पिछली बार बीजेपी को टक्कर देने वाली इनेलो इस बार यहां जूझ रही है.

प्रेमलता.
प्रेमलता.

उचाना कलां विधानसभा सीट
जींद जिले में आने वाली उचाना कलां विधानसभा सीट पर 2014 के चुनाव में 85.12 फीसदी मतदान हुआ था लेकिन इस बार यहां 76.83 फीसदी मतदान ही हुआ है. 2014 में यहां बड़े राजनीतिक परिवारों के चेहरों में जंग देखने को मिली था. एक तरफ सर छोटूराम के नाती बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता बीजेपी के टिकट पर मैदान में थीं तो वहीं उनके सामने चौधरी देवीलाल के पड़पोते दुष्यंत चौटाला मैदान में थे. प्रेमलता ने दुष्यंत चौटाला को कड़े मुकाबले में 7,480 वोटों से हराया था. इस हार के बाद दुष्यंत चौटाला के राजनीतिक जीवन में कई उतार चढ़ाव आए. पहला तो 2014 के लोकसभा चुनाव में वो हिसार से इनेलो के टिकट पर चुनाव जीतकर सांसद बनें. तब दुष्यंत देश में सबसे युवा सांसद बनें थे.

दुष्यंत चौटाला.
दुष्यंत चौटाला.

हालांकि इसके कुछ साल बाद 2018 में परिवार में फूट के कारण इनेलो छोड़कर उन्होंने अपनी नई पार्टी बनाई. 2019 लोकसभा चुनाव में फिर हिसार से चुनाव लड़े लेकिन इस बार वो हार गए. अब एक बार फिर वो हरियाणा विधानसभा चुनाव में उचाना कलां से मैदान में उतरे हैं. वहीं उनके सामने एक बार फिर बीजेपी की ओर से प्रेमलता ही मैदान में हैं. कांग्रेस के लिए बलराम और इनेलो के लिए सतपाल ने चुनाव लड़ा है. राजनीतिक विशेषज्ञ उचाना कलां को इस बार हरियाणा की हॉट सीट बता रहे हैं और यहां से दुष्यंत चौटाला और प्रेमलता में ही मुख्य मुकाबला मानकर चल रहे हैं. हालांकि परिवारिक लड़ाई और कम मतदान के कारण दुष्यंत चौटाला के लिए यहां जीत दर्ज करना आसान नहीं होगा.

इन पांच सीटों के अलावा 2014 के विधानसभा चुनाव में 8 और सीटों पर 83 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ था, ये सीटें थी-

  • जगाधरी- 84.75 %
  • सढ़ौरा- 84.28 %
  • फतेहाबाद- 83.95 %
  • कालांवाली- 83.76 %
  • कलायत- 83.71 %
  • नारनौंद- 83.18 %
  • सफीदों- 83.07 %
  • शाहबाद- 83.04 %
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वो सीटें जहां 2014 में हुआ था 83% से ज्यादा मतदान, पढ़िए क्या होगा यहां इस बार



2014 के विधानसभा चुनाव में जहां रिकॉर्ड तोड़ मतदान हुआ था. वहीं इस बार हरियाणा विधानसभा चुनाव में साल 1991 के बाद सबसे कम मतदान हुआ है. इसके अलावा इस बार मात्र दो ही सीटें ऐसी रही जहां मतदान प्रतिशत 80 फीसदी के आंकड़े को छू पाया.



चंडीगढ़: 2014 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में 31 सीटों पर 80 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ था और इसके अलावा कुल 13 सीटें ऐसी थी जहां 83 फीसदी से ज्यादा मतदान प्रतिशत रहा था लेकिन इस बार वोट प्रतिशत 80 के पार मात्र दो सीटों पर ही रहा है. वहीं 83 फीसदी मतदान केवल एक ही सीट पर हुआ. इस बार जिन दो सीटों पर 80 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ है वो सीटें हैं ऐलनाबाद (83%) और टोहाना (80.56%).

वहीं इस बार हुए कम मतदान के कई मायनें भी सामने आ रहे हैं. सबसे पहले बात करेंगे उन पांच सीटों की जहां पिछली बार 83 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ था लेकिन इस बार इन विधानसभा क्षेत्रों में कम मतदान हुआ है. आखिर इस कम मतदान के क्या मायने हैं और इन सीटों पर इस बार क्या नतीजें आ सकते हैं- 

ऐलनाबाद विधानसभा सीट सीट

पिछली बार की तरह इस बार भी सबसे ज्यादा मतदान ऐलनाबाद सीट पर ही हुआ है. यहां 2014 के चुनाव में 89.30 फीसदी मतदान हुआ था. तब यहां मुख्य मुकाबला इनेलो के अभय चौटाला और बीजेपी के पवन बेनीवाल में रहा था जिसमें अभय चौटाला ने जीत हासिल की थी. अभय चौटाला को कुल वोट प्रतिशत में से 46.70 फीसदी वोट प्राप्त किए थे जबकि पवन बेनीवाल को 38.91 फीसदी वोट मिले थे. इस बार यहां 83 फीसदी मतदान हुआ है जो पिछली बार के मुकाबले 6.30 फीसदी कम है. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यहां इस बार अभय चौटाला को कड़ी चुनौती मिल सकती थी. इसका कारण चौटाला परिवार में टूट के कारण नई पार्टी बनना और कम मतदान को माना जा रहा है. इसके अलावा कम मतदान में बूथ लेवल मेनेजमेंट भी मायने रखता है और बीजेपी का बूथ लेवल मेनेजमेंट मजबूत है. अभय चौटाला के सामने एक बार फिर बीजेपी के पवन बेनीवाल ही हैं जो पिछली बार अभय से 11,539 वोट से हार गए थे. वहीं जननायक जनता पार्टी की ओर से ओपी सिहाग को उतारा गया था. आखिर में ये ही माना जा रहा है कि इस बार कम मतदान के कारण ऐलनाबाद में उल्टफेर मुमकिन है.

रानियां विधानसभा सीट

सिरसा जिले के अंदर आने वाले रानियां विधानसभा क्षेत्र में पिछली बार 88.16 फीसदी मतदान हुआ था और सबसे ज्यादा मतदान वाली सीटों में रानियां विधानसभा सीट दूसरे नंबर पर थी. वहीं इस बार यानि 2019 के चुनाव में रानियां 80 फीसदी मतदान के आंकड़े को भी नहीं छू पाया और यहां इस बार 79.60 फीसदी मतदान हुआ है. 2014 में यहां इनेलो के रामचंद्र काम्बोज ने कड़े मुकाबले में हरियाणा के पूर्व गृह मंत्री गोपाल कांडा के भाई गोबिंद कांडा को 4,315 वोट से हराया था. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार भी यहां कड़ा मुकाबला ही देखने को मिलेगा. मौजूदा विधायक रामचंद्र काम्बोज चुनावी माहौल भांपते हुए इनेलो छोड़कर इस बार बीजेपी की टिकट पर मैदान में हैं. वहीं उनके सामने एक बार फिर हरियाणा लोकहित पार्टी के गोबिंद कांडा मैदान में है. इनेलो की ओर अशोक कुमार वर्मा और जेजेपी के लिए कुलदीप सिंह ने चुनाव लड़ा है. राजनीतिक विशेषज्ञ यहां त्रिकोणीय मुकाबले की उम्मीद कर रहे हैं जिसमें बीजेपी उम्मीदवार को बढ़त मिलने की चर्चा है. वहीं गोबिंद कांडा की जीत से भी इंकार नहीं किया जा रहा है.

डबवाली विधानसभा सीट

सिरसा जिले का ही एक और विधानसभा क्षेत्र पिछले चुनाव में मतदान प्रतिशत के मामले में तीसरे नंबर पर रहा था. ये विधानसभा क्षेत्र था- डबवाली. 2014 में यहां 86.25 फीसदी मतदान हुआ था वहीं इस बार यहां 78.77 फीसदी मतदान हुआ है और ये सीट भी 80 प्रतिशत मतदान के आंकड़े से दूर रहा गया. 2014 में यहां चौटाला परिवार की बहू और अजय चौटाला की पत्नी नैना चौटाला इनेलो की टिकट पर मैदान में थीं. कड़े मुकाबले में उन्होंने कांग्रेस के डॉ. कमलवीर सिंह को 8,545 वोटों से हराया था. हालांकि इस बार परिस्थितियां बदल गई हैं. नैना चौटाला इस बार यहां से चुनावी मैदान में नहीं उतरीं. इनेलो के लिए डॉ. सीता राम तो कांग्रेस की ओर से अमित सिहाग को मैदान में उतारा गया. वहीं बीजेपी ने चौटाला परिवार के ही सदस्य चौधरी देवीलाल के पोते आदित्य देवीलाल चौटाला को मैदान में उतारा. जेजेपी ने सरवजीत सिंह मसितान को चुनाव लड़वाया है. राजनीतिक विशेषज्ञों यहां से इस बार बीजेपी की जीत मानकर चल रहे हैं जिसके कई कारण हैं. एक तो बीजेपी उम्मीदवार देवीलाल परिवार से संबंध रखते हैं, दूसरा चौटाला परिवार में फूट और फिर कम मतदान होना. इसके अलावा आदित्य के अलावा चौटाला परिवार का और कोई भी सदस्य यहां से चुनाव नहीं लड़ रहा है. ऐसे में राजनीतिक विशेषज्ञ यहां से देवीलाल के पोते और बीजेपी उम्मीदवार आदित्य देवीलाल चौटाला को आगे मानकर चल रहे हैं.

टोहाना विधानसभा सीट

फतेहाबाद जिले में आने वाली टोहाना विधानसभा सीट प्रतिशत के मामले में 2014 के चुनाव में चौथे नंबर पर रही थी. यहां 2014 के विधानसभा चुनाव में 85.22 फीसदी मतदान हुआ था वहीं इस बार यहां 80.56 फीसदी मतदान हुआ है. हालांकि कम मतदान के बावजूद भी ये सीट इस बार मतदान प्रतिशत के मामले में प्रदेश में दूसरे नंबर पर रही है. 2014 के चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार सुभाष बराला ने इनेलो उम्मीदवार निशान सिंह को 6,906 वोटों से हराया था. इस कड़े मुकाबले में जीत के बाद सुभाष बराला को बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया था. इस बार यहां बीजेपी के लिए एक बार फिर सुभाष बराला ने चुनाव लड़ा है. इनेलो की ओर से राजपाल सैनी, कांग्रेस की ओर से परमवीर सिंह और जेजेपी की ओर से देवेंद्र सिंह बबली मैदान में थे. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यहां भले ही कम मतदान हुआ हो लेकिन मौजूदा विधायक सुभाष बराला ही यहां से आगे चल रहे हैं. इसका कारण लोकसभा चुनाव के नतीजे और बीजेपी के पक्ष में चल रही लहर को माना जा रहा है. वहीं पिछली बार बीजेपी को टक्कर देने वाली इनेलो इस बार यहां जूझ रही है.

उचाना कलां विधानसभा सीट

जींद जिले में आने वाली उचाना कलां विधानसभा सीट पर 2014 के चुनाव में 85.12 फीसदी मतदान हुआ था लेकिन इस बार यहां 76.83 फीसदी मतदान ही हुआ है. 2014 में यहां बड़े राजनीतिक परिवारों में जंग देखने को मिली था. एक तरफ सर छोटूराम के नाती बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता बीजेपी के टिकट पर मैदान में थीं तो वहीं उनके सामने चौधरी देवीलाल के पड़पोते दुष्यंत चौटाला मैदान में थे. प्रेमलता ने दुष्यंत चौटाला को कड़े मुकाबले में 7,480 वोटों से हराया था. इस हार के बाद दुष्यंत चौटाला के राजनीतिक जीवन में कई उतार चढ़ाव आए. पहला तो 2014 के लोकसभा चुनाव में वो हिसार से इनेलो के टिकट पर चुनाव जीतकर सांसद बनें. तब दुष्यंत देश में सबसे युवा सांसद बनें थे. हालांकि इसके कुछ साल बाद 2018 में परिवार में फूट के कारण इनेलो छोड़कर उन्होंने अपनी नई पार्टी बनाई. 2019 लोकसभा चुनाव में फिर हिसार से चुनाव लड़े लेकिन इस बार वो हार गए. अब एक बार फिर वो हरियाणा विधानसभा चुनाव में उचाना कलां से मैदान में उतरे हैं. वहीं उनके सामने एक बार फिर बीजेपी की ओर से प्रेमलता ही मैदान में हैं. कांग्रेस के लिए बलराम और इनेलो के लिए सतपाल ने चुनाव लड़ा है. राजनीतिक विशेषज्ञ उचाना कलां को इस बार हरियाणा की हॉट सीट बता रहे हैं और यहां से दुष्यंत चौटाला और प्रेमलता में ही मुख्य मुकाबला मानकर चल रहे हैं. हालांकि परिवारिक लड़ाई और कम मतदान के कारण दुष्यंत चौटाला के लिए यहां जीत दर्ज करना आसान नहीं होगा. 

इन पांच सीटों के अलावा 2014 के विधानसभा चुनाव में 8 और सीटों पर 83 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ था, ये सीटें थी- जगाधरी, सढ़ौरा, फतेहाबाद, कालांवाली, कलायत, नारनौंद, सफींदो और शाहबाद विधानसभा सीट. 

 


Conclusion:
Last Updated : Oct 22, 2019, 8:01 PM IST
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