चंडीगढ़: भारतीय सेना में भर्ती के लिए केंद्र सरकार द्वारा अग्निपथ योजना लाए जाने के बाद देशभर में इस को लेकर बवाल हो रहा है. केंद्र सरकार की इस योजना के तहत सेना में साढे 17 साल की उम्र से 23 साल (सिर्फ एक साल के लिए आयु 23 साल की गई है बाकी 21 साल है) तक की उम्र के युवाओं को 4 साल के लिए भर्ती किया जाएगा. लेकिन देश के ज्यादातर हिस्सों में युवा और राजनीतिक दलों से जुड़े लोग इस नीति का विरोध कर रहे हैं.
क्या अग्निपथ योजना सही है- कुलदीप सिंह काहलो कहते है कि पिछले 3 सालों से सेना में भर्ती नहीं हो सकी. जिसकी वजह से युवाओं में रोष था. 3 साल पहले सेना के लिए जो युवा फिट थे उनको कॉल ऑफ ऑर्डर नहीं आए. जिसकी वजह से युवाओं में नाराजगी थी. पंजाब, हिमाचल, हरियाणा के युवा बहुत बड़े स्तर पर सेना में भर्ती होते हैं. ऐसे में सरकार को अगर कोई इस तरह का फैसला लेना था तो उन्हें इस मामले से जुड़े जानकारों से बात करनी थी. सरकार ने जो 4 साल की भर्ती का फैसला लिया है. ये सही नहीं है. 4 साल के बाद जो 75 फीसदी युवा सेना से बाहर आएंगे उनका क्या होगा. उनको कौन नौकरियां देगा. साथ ही उनके भविष्य का क्या होगा? देश में इतनी बेरोजगारी है कि चपरासी की नौकरी के लिए एमए और पीएचडी छात्रा आवेदन कर रहे हैं. ऐसे में इनको कौन नौकरी देगा. इससे टेंपरेरी रिलीफ तो मिलेगा. लेकिन इससे नौजवानों को निराशा है. जिसकी वजह से देश भर में प्रदर्शन हो रहे हैं. अग्निपथ तो बाद में होगा यहां तो अग्निवर्षा ही शुरू हो गई है.
युवाओं में गुस्सा क्यों है- यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि समाज में जब भी कोई बदलाव लाना होता है तो वह धीरे-धीरे लाया जाता है. एकदम से नहीं. वे कहते हैं कि इसी वजह से इस मामले में फैसला जनता की मदद से लिया जाना चाहिए था. जहां तक सेना के अधिकारियों की बात है तो इस तरह के फैसलों में उनकी ज्यादा दखलअंदाजी नहीं होती. इससे राष्ट्रीय सुरक्षा भी प्रभावित होगी. क्योंकि अभी जो जवान 1 साल की ट्रेनिंग लेकर आता है, उनको सिखाने में 5 साल लग जाते हैं. उसके बाद ही वे एक मजबूत सिपाही के तौर पर उभर कर आते हैं. इसी वजह से हम ने पाकिस्तान के खिलाफ भी लड़ाइयां जीती थी. इसका उदाहरण हमने वर्तमान में गलवान घाटी में भी देखा है. यहां पर हमारे कम से कम 5 साल से अधिक ट्रेनिंग के जवानों ने चीन को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था.
बजट कम करने की कवायद है अग्निपथ- एक कारगिल रिव्यू कमेटी ने सलाह दी है कि उन्हें फौज को युवा बनाना है. इसलिए नीति में बदलाव की जरूरत है. सेना को नौजवान बनाने के पीछे तर्क दिया जाता है कि यह टेक्नोलॉजी का युग है. मैं यह पूछना चाहूंगा कि अगर टेक्नोलॉजी का समय है तो फिर यह मैट्रिक और प्लस टू पास युवा क्या करेगा. यहां तक कि जो 25 फीसदी भी रखे जाएंगे वह भी 10 या 15 साल तक रखे जाएंगे. यह सब पेंशन बजट को कम करने की कवायद है. साथ ही सेना की तनख्वाह को कम करने के लिए हो रहा है. जब युद्ध होगा तब यही जवान आगे जाकर लड़ाई लड़ेंगे. जो ब्यूरोक्रेट हैं वह बैठ के पीछे देखते रहेंगे.
सरकार को क्या करना चाहिए- अभी जो विरोध हो रहा है वह इसी वजह से हो रहा है कि नौकरी आगे भी जारी रहे. सरकार को पहले इस ओर भी सोचना होगा. इसके साथ ही कम से कम 10 साल तक सेना में युवाओं को रखा जाए. अगर 15 साल तक भी हो सके तो किया जाना चाहिए. साथ ही इनको अपनी क्वालिफिकेशन इंप्रूव करने के लिए भी मौका मिलना चाहिए. सेना से हटने के बाद उनको नौकरी की गारंटी होनी चाहिए.
रिटायरमेंट के बाद नौकरी कौन देगा- फौज का बजट कम करने का यह कोई तरीका नहीं है. अगर कम करना है तो ब्यूरोक्रेट जो डिफेंस मिनिस्ट्री में बैठते हैं उनके बजट में भी कटौती की जानी चाहिए. क्योंकि मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस से जुड़े लोगों को भी डिफेंस बजट से ही पेंशन दी जाती है. यह अपनी तनख्वाह बढ़ाते रहते हैं. बाद में पेंशन का भी मजा लेते हैं. अगर ऐसा ही है तो इनकी नौकरी भी 4 साल की कर दी जानी चाहिए. तब जाकर इन्हें भी समझ आएगा कि बदलाव कैसे और क्या करना है.
रिटायरमेंट के बाद नौकरी की गारंटी देनी होगी. यह सिर्फ चुनावी वादे की तरह ना हो. अगर ऐसा हुआ तो आने वाले समय में देश के अंदर आतंकवाद फैलाने वाले लोग भी इनका इस्तेमाल कर सकते हैं. फिलहाल में युवाओं से अपील करूंगा कि वे जिस तरीके का विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं ऐसा ना करें. विरोध करने के और भी तरीके हैं. युवाओं को अपने सांसदों से मिलना चाहिए. प्रधानमंत्री तक अपनी आवाज पहुंचानी चाहिए. सांसदों को भी प्रधानमंत्री से मिलकर उन्हें बताना चाहिए.
सेना में रेजिमेंट को खत्म करना कितना सही- यह 200 साल पुरानी प्रथा है. अंग्रेजों को जब पता चला कि सिख मजबूत हैं तो उन्होंने सिख रेजीमेंट का निर्माण कर उन्हें आगे फ्रंट पर खड़ा किया. फिर गोरखा पलटन बनी. मराठा पलटन बनी. ऐसे करके रेजिमेंट का निर्माण हुआ. उन्होंने इसी का फायदा उठाया और इस तरीके से रेजीमेंट सिस्टम बना. इसलिए रेजिमेंट जरूरी है. क्योंकि जो रेजीमेंट का चिन्ह निशान होता है वह जवान के जज्बे को और मजबूत करता है. हमारी सेनाओं ने इसी के नाम पर ही सारी लड़ाईयां जीती हैं. क्योंकि जो रेजीमेंट होती है उसकी परंपरा और वैल्यू बहुत बड़े स्तर पर होती है. उसका असर सेना पर साफ दिखाई देता है. इसलिए सरकार को रेजिमेंट सिस्टम को खत्म नहीं करना चाहिए.
सेना में जाट सेंटर हो या सिख सेंटर हो या डोगरा सेंटर. उनमें उनके बच्चों को नौकरी में प्रिफरेंस दी जाती है. उसका क्या होगा?. उसी रैंक के थ्रू ही अधिकारी बनते हैं. ऐसे में तो वह भी खत्म हो जाएगा. इसलिए सेना में रेजिमेंट सिस्टम बरकरार रहना चाहिए. क्योंकि उससे ही हमारी परंपरा जीवित रहेगी. इसलिए जो इस मामले से जुड़े स्टेकहोल्डर है उन्हें इस बात पर फिर से विचार करना चाहिए. साथ ही नौजवानों को भी सरकारी संपत्ति का नुकसान नहीं करना चाहिए.
क्या इसमें सियासत हो रही है- कुलदीप सिंह काहलो कहते हैं कि असल जड़ तो सियासत है. क्योंकि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से ही सेना का राजनीतिकरण होने लगा था. अब राजनीतिक पार्टियां भी इस विवाद का फायदा उठाने लग गई हैं. हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड और बिहार में बीजेपी की सरकार है. वहां की विधानसभा में इसके खिलाफ प्रस्ताव पास होना चाहिए. पंजाब की विधानसभा में भी इसको लेकर प्रस्ताव पास किया जाना चाहिए. इस नीति को वापस लेने के लिए देश के राष्ट्रपति को अपनी विधानसभा से प्रस्ताव पास कर भेजें. क्योंकि देश की तीनों सेनाओं के प्रमुख राष्ट्रपति हैं.