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हरियाणा के किसान मजबूरी में जला रहे हैं पराली, गाड़ियों के धुएं से बढ़ रहा दिल्ली का प्रदूषण

दिल्ली सरकार का दावा है कि दिल्ली-एनसीआर के प्रदूषण के लिए हरियाणा और पंजाब में जलाई जा रही पराली जिम्मेदार है. लेकिन आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि केजरीवाल सरकार का ये दावा महज आधी हकीकत ही है.

हरियाणा के किसान मजबूरी में जला रहे हैं पराली
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Published : Nov 21, 2019, 8:51 PM IST

Updated : Nov 21, 2019, 9:03 PM IST

चंडीगढ़: दिल्ली समेत उत्तर भारत में हो रहे प्रदूषण के लिए हरियाणा और पंजाब में जलाई जा रही पराली को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. लेकिन दिल्ली सरकार का ये दावा सिर्फ आधी हकीकत ही है.

धान का उत्पादन बढ़ा
दरअसल हर साल अक्टूबर और नवंबर के महीने में पराली जलाना किसानों की मजबूरी होती है. आंकड़ों के मुताबिक हरियाणा में हर साल धान का रकबा और उत्पादन बढ़ रहा है. साल 2014 में 12 लाख 77 हजार हेक्टेयर जमीन पर 39 लाख 89 हजार टन धान का उत्पादन होता था. जो साल 2018 में 14 लाख 47 हजार हेक्टेयर जमीन में 45 लाख 16 हजार टन धान का उत्पादन हुआ.

हरियाणा के किसान मजबूरी में जला रहे हैं पराली

पराली जलाए बगैर गेहूं की बुआई नहीं हो सकती
इतने बड़े उत्पादन के बाद बचने वाली धान की जड़ों का किसानों के पास कोई समाधान नहीं होता. लिहाजा उसे जला दिया जाता है. ताकि इसके बाद गेहूं की बुआई की जा सके. क्योंकि धान की जड़ों को अगर पूरी तरह से हटाया नहीं जाएगा तो गेहूं की बुआई नहीं हो पाएगी. किसानों का कहना है कि अगर पराली को जलाया नहीं जाए तो उन्हें 5 से 10 हजार रुपये पराली के समाधान के लिए खर्च करने होंगे.

पराली जलाना किसानों की मजबूरी
प्रदेश के किसानों का भी मानना है कि प्रदूषण से लोगों को काफी तकलीफ हो रही है. लेकिन पराली जलाना उनकी मजबूरी है. क्योंकि सरकार की तरह से पराली के समाधान के लिए उन्हें पर्याप्त साधन मुहैया नहीं कराए गए. ऐसे में वो पराली लेकर कहां जाएं. यही नहीं किसानों का कहना है कि पराली तो पिछले कई साल से जला रहे हैं, लेकिन दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण बढ़ने का सिलसिला अभी कुछ साल से ही शुरू हुआ है. ऐसे में पराली को प्रदूषण बढ़ने का जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए.

किसानों के पास पर्याप्त साधन नहीं
एक तरफ किसान पर्याप्त साधन नहीं होने की बात कह रहे हैं तो दूसरी तरह सरकार किसानों को पराली के समाधान के लिए मशीनें उपलब्ध कराने का दावा कर रही है. कृषि विभाग के अधिकारी का कहना है कि किसान ऑनलाइन अप्लाई करके भी मशीनें ले सकता है. जिससे पराली का समाधान हो सके.

मतलब साफ है कि सरकार ने किसानों को पराली के समाधान के लिए साधन तो उपलब्ध कराए हैं लेकिन वो पर्याप्त नहीं हैं. ऐसे में किसानों को मजबूरी में पराली जलानी पड़ रही है. जरुरत है सरकार को इन मशीनों और संसाधनों को ज्यादा से ज्यादा किसानों तक पहुंचाने की.

ये भी पढ़ें- दिल्ली के प्रदूषण के लिए पराली जिम्मेदार नहीं, किसानों को ज़बरदस्ती बनाया जा रहा विलेन!

चंडीगढ़: दिल्ली समेत उत्तर भारत में हो रहे प्रदूषण के लिए हरियाणा और पंजाब में जलाई जा रही पराली को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. लेकिन दिल्ली सरकार का ये दावा सिर्फ आधी हकीकत ही है.

धान का उत्पादन बढ़ा
दरअसल हर साल अक्टूबर और नवंबर के महीने में पराली जलाना किसानों की मजबूरी होती है. आंकड़ों के मुताबिक हरियाणा में हर साल धान का रकबा और उत्पादन बढ़ रहा है. साल 2014 में 12 लाख 77 हजार हेक्टेयर जमीन पर 39 लाख 89 हजार टन धान का उत्पादन होता था. जो साल 2018 में 14 लाख 47 हजार हेक्टेयर जमीन में 45 लाख 16 हजार टन धान का उत्पादन हुआ.

हरियाणा के किसान मजबूरी में जला रहे हैं पराली

पराली जलाए बगैर गेहूं की बुआई नहीं हो सकती
इतने बड़े उत्पादन के बाद बचने वाली धान की जड़ों का किसानों के पास कोई समाधान नहीं होता. लिहाजा उसे जला दिया जाता है. ताकि इसके बाद गेहूं की बुआई की जा सके. क्योंकि धान की जड़ों को अगर पूरी तरह से हटाया नहीं जाएगा तो गेहूं की बुआई नहीं हो पाएगी. किसानों का कहना है कि अगर पराली को जलाया नहीं जाए तो उन्हें 5 से 10 हजार रुपये पराली के समाधान के लिए खर्च करने होंगे.

पराली जलाना किसानों की मजबूरी
प्रदेश के किसानों का भी मानना है कि प्रदूषण से लोगों को काफी तकलीफ हो रही है. लेकिन पराली जलाना उनकी मजबूरी है. क्योंकि सरकार की तरह से पराली के समाधान के लिए उन्हें पर्याप्त साधन मुहैया नहीं कराए गए. ऐसे में वो पराली लेकर कहां जाएं. यही नहीं किसानों का कहना है कि पराली तो पिछले कई साल से जला रहे हैं, लेकिन दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण बढ़ने का सिलसिला अभी कुछ साल से ही शुरू हुआ है. ऐसे में पराली को प्रदूषण बढ़ने का जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए.

किसानों के पास पर्याप्त साधन नहीं
एक तरफ किसान पर्याप्त साधन नहीं होने की बात कह रहे हैं तो दूसरी तरह सरकार किसानों को पराली के समाधान के लिए मशीनें उपलब्ध कराने का दावा कर रही है. कृषि विभाग के अधिकारी का कहना है कि किसान ऑनलाइन अप्लाई करके भी मशीनें ले सकता है. जिससे पराली का समाधान हो सके.

मतलब साफ है कि सरकार ने किसानों को पराली के समाधान के लिए साधन तो उपलब्ध कराए हैं लेकिन वो पर्याप्त नहीं हैं. ऐसे में किसानों को मजबूरी में पराली जलानी पड़ रही है. जरुरत है सरकार को इन मशीनों और संसाधनों को ज्यादा से ज्यादा किसानों तक पहुंचाने की.

ये भी पढ़ें- दिल्ली के प्रदूषण के लिए पराली जिम्मेदार नहीं, किसानों को ज़बरदस्ती बनाया जा रहा विलेन!

Intro:कैथल से ऑपरेशन पराली


Body:उत्तरी भारत में अगर हम बात करें जहरीला धुआं हर किसी की आंखों में आंसू ले आता है और छोटे से लेकर बड़े तक सभी को सांस लेने में काफी दिक्कत हो रही थी जिसका ज्यादा प्रभाव दिल्ली में देखने को मिला तो इसी पर ईटीवी भारत के खास कार्यक्रम ऑपरेशन पराली में दिखाया गया कि किसानों को किन दिक्कतें में आकर मजबूरन पराली में आग लगानी पड़ती है। हमने जब किसानों से बात की तो उनका कहना है कि जो धान की फसल मशीन से कटवाते हैं उसके बाद जो उसके फाने वेस्टेज होते हैं उन को नियंत्रित करना एक बहुत ही बड़ा काम होता है क्योंकि उस को नियंत्रित करने के लिए किसानों को 5 से ₹6000 प्रति एकड़ के हिसाब से खर्च करना पड़ता है अगर आग ना लगाए तो वह आसानी से नियंत्रित नहीं होता। और जो आगे की फसल होती है गेहूं गेहूं की बिजाई करना बहुत ही मुश्किल हो जाता है क्योंकि कोई भी कृषि यंत्र उन फानो से जमीन के अंदर प्रवेश नहीं कर पाते। किसानों का कहना है कि अगर सरकार उनको विशेष यंत्र कम अनुदान पर दें और विशेष अनुदान फानो को नियंत्रित करने के लिए सरकार द्वारा दिए जाए तो किसानों को कुछ मदद मिल सकती है वरना किसान घाटे की तरफ जा रहा है। सीएचसी जो सेंटर बनाए गए हैं वह सेंटर के कंट्रोल से जब हमने बात की तो उन्होंने कहा कि हमारे पास का ही अंतर है जो किसान डी कंपोजर के लिए लेते हैं इसमें टिलर रोटावेटर आदि कई तरह के कृषि के यंत्र होते हैं जिनको किसान अनुदान पर यहां से प्राप्त कर सकते हैं वह ऑनलाइन अप्लाई करते हैं और उसके बाद उनको ऑनलाइन ही या वितरित किए जाते हैं यह किसान निजी तौर पर भी ले सकता है और कई किसान इकट्ठे होकर एक कमेटी बनाकर भी इन यंत्रों को किसान ले सकते हैं ताकि किसानों को थोड़ा फायदा हो सके और पैसे कम देने पड़े हर कृषि यंत्र पर अलग-अलग तरह की सब्सिडी है जो 100000 से लेकर 1200000 तक के कृषि यंत्र बनाए गए हैं। जब कृषि अधिकारी से हमने बात की उन्होंने कहा कि अब तक कैथल जिले में 84 किसानों पर एफ आई आर दर्ज की गई है और 190 लोगों पर फाइन क्या गया है अगर बात करें हम अब तक कैथल जिले में 477000 फाइन किया गया है। जिला कृषि अधिकारी डॉ दिनेश ने कहा कि समय-समय पर किसानों को जागरूक करने के लिए कैंप भी लगाए जाते हैं और ग्राम पंचायत को भी इसके बारे में कहा जाता है कि आप ज्यादा से ज्यादा अपने गांव वाले किसानों को जागरूक करें कि वह आग ना लगाएं और कोई अन्य उपाय अपनाएं लेकिन जिन भी किसानों से हमने बात की उन्होंने कहा कि गांव की पंचायत जरूर आती है और समझाती है लेकिन कृषि विभाग की तरफ से कोई भी कर्मचारी अधिकारी उन को जागरूक करने के लिए नहीं आया। कृषि अधिकारी डॉ दिनेश ने कहा कि दो धाराओं के तहत मामले दर्ज होते हैं एक 183 धारा और एक 144 धारा के तहत मामले दर्ज होता है 1 एकड़ से ढाई एकड़ तक आग लगाने वाले किसान को ढाई हजार रुपए देने पड़ते हैं और 6 महीने की सजा का प्रावधान भी है और ढाई एकड़ से ऊपर किसान को 5000 से लेकर ऊपर तक का फाइन लगाया जाता है। अधिवक्ता प्रदीप हरित ने बताया कि इन पर दो धाराएं लगाई जाती है और फाइन भी लगाया जाता है दो धाराओं के तहत फाइन भी लगाया जाता है एक धारा इसके तहत आती है कि किसान अपने थानों को आग लगा रहा है और दूसरी धारा इसके तहत आती है कि वह पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है दो आधार पर ही धाराएं लगाई जाती है जिनका फाइन भी अलग अलग होता है। वहीं पर किसान नेता ने कहा कि किसानों का पराली जलाना मजबूरी का काम है क्योंकि जो उन की अगली फसल होती है गेहूं की। उसको वह बिजाई करने के लिए खेत को अच्छे से तैयार करना चाहते हैं अगर खेत में पराली हो तो वह अच्छे से तैयार नहीं होता और वैसे किसान की फसल को आग लगाने से इतना प्रदूषण नहीं होता जो अन्य कारणों से होता है।


Conclusion:वहीं पर आकर बात करें हम राज्य सरकार की उन्होंने काफी कड़े निर्देश अधिकारियों को दे रखे हैं कि जो भी किसान आग लगाता है उसके ऊपर एफ आई आर दर्ज करो और जुर्माना भी डालो लेकिन किसान करे भी तो क्या करेगा किसान मजबूरी में है जो भी किसान अपनी फानो में आग लगाता है वह मजबूरी में लगाता है क्योंकि अगर वह उसको किसी मशीन उपकरण से डीकंपोज करता है तो उसमें बहुत ज्यादा खर्च हो जाता है
Last Updated : Nov 21, 2019, 9:03 PM IST
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