चंडीगढ़: साल 2020 ने इंसान को ऐसा मंजर भी दिखा दिया. जिसकी कल्पना भी शायद उसने कभी नहीं की थी. हरियाणा के लिए भी ये साल किसी बुरे सपने से कम नहीं रहा. यहां काफी संख्या में अलग-अलग राज्यों के लोग मजदूरी करते हैं. साल 2020 उनके लिए कभी नहीं भूलने वाला दुख देकर गया.
हरियाणा ने देखा पलायन
कोरोना की वजह से हरियाणा से काफी संख्या में मजदूरों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा. खेती-बाड़ी से लेकर कारखानों और कंपनियों से लेकर रोज मेहनत करके रोटी कमाने वाले मजदूरों के सामने लॉकडाउन के कारण एकाएक रोटी का संकट खड़ा हो गया. नतीजा ये हुआ कि इन मजदूरों को पैदल ही अपने घर की ओर निकलना पड़ा.
पैदल ही घर के लिए निकल पड़े प्रवासी मजदूर
क्या बच्चे-क्या बूढ़े..महिलाओं से लेकर जवान तक हर कोई घर जाना चाहता था. लेकिन लॉकडाउन के कारण न ट्रेन चल रही थी और न ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट. ऐसे में इन प्रवासी मजदूरों को जो मिला..उसी से ही घर के लिए निकल पड़े. भूख और प्यास, प्रवासी मजदूरों को सैकड़ों या फिर हजारों किलोमीटर तक पैदल ले गई. देश आजाद होने के बाद शायद ही किसी ने इस तरह का पलायन सड़क पर देखा होगा.
सरकार ने ट्रेन और बसों की व्यवस्था की
वक्त बीता तो सरकार भी इन मजदूरों की मदद के लिए आगे आई. आंकड़ों के मुताबिक हरियाणा सरकार की ओर से प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए 96 स्पेशल ट्रेनें और 5500 से ज्यादा बसों की व्यवस्था की गई. सरकारी आकंड़े बताते हैं कि करीब 3 लाख 26 हजार प्रवासी मजदूरों को हरियाणा सरकार ने उनके घर तक पहुंचाया.
ये भी पढ़ें- अलविदा 2020: वो साल जब कोरोना के कारण चरमरा गई हरियाणा की स्वास्थ्य सेवाएं
पलायन से थम गई विकास की रफ्तार
ये प्रवासी मजदूर घर की ओर निकल पड़े तो हरियाणा के विकास की रफ्तार भी मंद पड़ गई. खेती से लेकर फैक्ट्रियों तक और घर पर काम करने वाले मजदूरों से लेकर सड़क किनारे ठेला लगाने वालों तक सब जगह काम प्रभावित हुआ. आंकड़ों के मुताबिक हरियाणा करीब 15 से 20 लाख प्रवासी मजदूरों पर निर्भर करता है. बड़ी संख्या में लेबर के पलायन करने के कारण सब कुछ जैसे थम गया.
लेबर की कमी का पड़ा असर
बिहार एवं उत्तर प्रदेश से आने वाले मजदूर धान की रोपाई में माहिर माने जाते हैं, लेकिन लॉकडाउन के दौरान ही भारी संख्या में मजदूरों का पलायन हो गया. ऐसे में किसानों को अपनी खेती बर्बाद होने की चिंता सताने लगी. सिरसा की बात करें तो यह जिला भी धान की खेती में बड़ा योगदान देता रहा है. पिछले साल करीब 1 लाख हेक्टेयर में धान की खेती की गई थी, लेकिन इस बार मजदूरों की कमी यहां के किसानों को भी खलने लगी. जिसका नतीजा ये हुआ कि किसान अन्य फसल उगाने पर ध्यान देने लगे.
लेबर कम होने से घटा प्रोडक्शन
ऐसा ही कुछ हाल फैक्ट्रियों में भी देखने को मिला. जहां लेबर की कमी की वजह से प्रोडक्शन पर असर पड़ा. फैक्ट्रियों ने अपनी क्षमता से आधा काम करना शुरू दिया. मारूति से लेकर तमाम बड़ी कंपनियों में हर शिफ्ट में कर्मचारियों की संख्या कम करनी पड़ी. कोरोना के बाद जैसे-जैसे सरकार ने देश को अनलॉक किया. इन प्रवासी मजदूरों के वापस लौटने का सिलसिला भी जारी है.
ये भी पढ़ें- अलविदा 2020: वो साल जब हरियाणा में अचानक बढ़ गई बेरोजगारी, घटा राजस्व, लेना पड़ा कर्ज