भिवानी: सिद्धपीठ बाबा जहरगिरी आश्रम में श्रावण मास की शुक्ल पंचमी को नाग पंचमी मनाई गई. इस अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय श्री महंत और सिद्धपीठ बाबा जहरगिरी आश्रम के पीठाधीश्वर महंत अशोक गिरी के द्वारा शेषनाग की विशेष पूजा की गई. इस दौरान नाग देवता को दूध, दही, घी, शहद, पंचामृत से स्नान करवाया गया. इसके बाद जल, फूल, चंदन लगाने के बाद आरती की गई. उसके बाद लड्डू और खीर का भोग लगाया गया.
मंहत अशोक गिरी ने बताया कि जब समुंद्र मंथन हुआ था तब किसी को रस्सी नहीं मिल रही थी. उस समय वासु की नाग को रस्सी की तरह इस्तेमाल किया गया था. इस दौरान देवताओं ने वासु की नाग की पूंछ पकड़ी थी और दानवों ने उनका मुंह पकड़ा था. मंथन में पहले विष निकला था. जिसे शिव भगवान में अपने कंठ में धारण किया था और समस्त लोकों की रक्षा की थी.
वहीं मंथन से जब अमृत निकला तो देवताओं ने इसे पीकर अमरत्व को प्राप्त किया. इसके बाद से ही इस तिथि को नाग पंचमी के पर्व के तौर पर मनाया जाता है. श्री महंत ने बताया कि हिंदु धर्म में नागों का विशेष महत्व है. इनकी पूजा पूरी श्रद्धा से की जाती है. नाग शिव शंकर के गले का आभूषण भी हैं और भगवान विष्णु की शैय्या भी है.
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उन्होंने बताया कि मान्यता है कि इस दिन नाग देवता का दूध से अभिषेक और पूजन किया जाता है. इससे वो किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. महाराज ने बताया कि कोई भी व्यक्ति नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करेगा उसे नागदंश का भय नहीं रहेगा. श्री महंत अशोक गिरी ने बताया कि जल्द ही आश्रम में जिस प्रकार काशी में संस्कृत की शिक्षा दी जाती है उसी प्रकार जहरगिरी आश्रम में भी युवाओं को संस्कृत और वेद शास्त्र की शिक्षा दी जायेगी.