करनाल: केंद्रीय मृदा एवं लवणता अनुसंधान संस्थान (सीएसएसआरआई) ने जापान के साथ मिलकर लवणता और उप सतही क्षारीयता प्रबंधन के लिए विशेष परियोजना पर शोध शुरू किया है. इसके तहत जापानी तकनीक पर आधारित कट सॉयलर मशीन भी मंगाई है. अब इस मशीन का भारतीय परिस्थितियों के अनुसार देसी स्वरूप तैयार किया जा रहा है, ताकि किसान इसका कम कीमत में अधिकाधिक लाभ उठा सकें और जमीन को उपजाऊ बनाकर बेहतर फसल की पैदावार की जा सके.
कट सॉयलर एक नई तकनीक: देश में कई क्षेत्रों में लवणता और क्षारीयता की समस्या लगातार बढ़ रही है. सीएसएसआरआई के विशेषज्ञ इस समस्या से निजात पाने में जुटे हुए है. देश में करीब 67 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि को सुधारा भी गया है, लेकिन अभी एक बड़ा भू-भाग लवणता व क्षारीयता से प्रभावित है. इसे सुधारने के लिए संस्थान ने कई तकनीक विकसित की. कट सॉयलर भी ऐसा ही प्रयास है. इसका फायदा आने वाले दिनों में किसानों को मिलेगा.
खेत में गड्ढा करती है मशीन : सीएसएसआरआई के करनाल केंद्र के अरविंद कुमार राय वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि ट्रैक्टर से चलने वाली ये मशीन खेत में 60 सेंटीमीटर तक का गड्ढा करती है, जो पाइप की तरह काम करता है. बाद में इस गड्ढे को जिप्सम आदि डालकर बंद भी कर देती है. क्षारीयता दूर करने के लिए पराली के ऊपर जिप्सम डाला जाता है, जो गड्ढे में चला जाता है. इससे अंदर से भूमि की सतह में सुधार हो सकेगा. इसके बाद इस क्षेत्र में गहरी जड़ वाली फसलें पैदा की जा सकेंगी.
2026 तक किसानों को उपलब्ध होगी मशीन : सीएसएसआरआई करनाल के निदेशक आरके यादव ने बताया कि कट सायलर मशीन के प्रयोग से तीन साल में करीब 60 प्रतिशत तक भूमि में लवणता कम की जा सकती है. करनाल जिले में शोध कार्य के तहत फील्ड स्टडी चल रही है. संस्थान के हिसार स्थित फार्म पर, पानीपत के नैन फार्म के साथ करनाल, कैथल आदि जिलों में कई स्थानों पर फील्ड स्टडी चल रही है. साथ ही पंजाब में 10 स्थानों पर उपसतही क्षारीयता पर फील्ड स्टडी चल रही है. कट सायलर का देसी स्वरूप तैयार करने पर भी कार्य किया जा रहा है. उम्मीद है कि 2026 तक ये मशीन किसानों को उपलब्ध हो जाएगी.
"कट सॉयलर मशीन जापान में जलभराव की समस्या से निपटने के लिए बनाई गई थी. पहली बार पराली के निपटान, उपसतही क्षारीय व लवणता को कम करने के लिए प्रयोग की जा रही है. इसी पर शोध चल रहा है. अब तक जो परीक्षण हुए हैं, उनमें मशीन ने 85 से 90 प्रतिशत पराली को जमीन के अंदर पहुंचा दिया है. तीन साल में 60 प्रतिशत तक लवणता व 50 से 60 प्रतिशत तक उप सतही क्षारीय को कम करने में सफल रही है. ये मशीन किसानों के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकती है". - डॉ. गजेंद्र यादव, वरिष्ठ वैज्ञानिक (सस्य विज्ञान) सीएसएसआरआई
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