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भारत का 'मिनी क्यूबा' भिवानी, जहां हर घर में पैदा होता है बॉक्सर

भिवानी में मंदिरों की संख्या अधिक होने के कारण पहले इसे छोटी काशी के नाम से जाना जाता था, लेकिन बीते दो दशकों में भिवानी के मुक्केबाजों ने दुनिया में ऐसी धूम मचाई कि भिवानी को 'मिनी क्यूबा' के नाम से जाना जाने लगा.

india's mini cuba bhiwani boxers
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Published : Nov 14, 2019, 8:33 PM IST

Updated : Nov 16, 2019, 5:11 PM IST

भिवानी: 'मिनी क्यूबा' के नाम के मशहूर हरियाणा के भिवानी के मुक्केबाजों का दम पूरी दुनिया ने देखा है. 21वें कॉमनवेल्थ गेम्स में हरियाणा के छह बॉक्सरों में से तीन भिवानी के थे. इनमें विकास यादव को गोल्ड, मनीष कौशिक को सिल्वर और नमन ने ब्रॉन्ज जीता था.

रिपोर्ट: जाने क्यों कहते है भिवानी को मिनी क्यूूबा, देखें वीडियो

20 हजार स्पोर्ट्समैन
भिवानी में 2000 बॉक्सर और करीब 20 हजार स्पोर्ट्समैन हैं. यहां 2000 मुक्केबाज रोज बॉक्सिंग की प्रैक्टिस करते हैं. जिसके चलते भिवानी को 'मिनी क्यूबा' के नाम से भी जाना जाता है. पहले भिवानी को मंदिरों की संख्या अधिक होने के कारण छोटी काशी के नाम से जाने जाता था, लेकिन बीते दो दशकों में भिवानी के मुक्केबाजों ने दुनिया में ऐसी धूम मचाई कि भिवानी को 'मिनी क्यूबा' के नाम से जाना जाने लगा. भिवानी में हर चौथे या पांचवे घर में कोई न कोई सदस्य मुक्केबाजी का अभ्यास करता है.

भिवानी बॉक्सिंग क्लब

भिवानी को बॉक्सिंग का गढ़ बनाने में इस क्लब का बड़ा योगदान माना जाता है. इस क्लब ने देश को कई अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर दिए हैं

  • 17 फरवरी 2003 को इस बॉक्सिंग क्लब की स्थापना हुई
  • ओलिंपिक पदत विजेता विजेन्दर सिंह ने मुक्केबाजी की शुरुआत बचपन में भिवानी बॉक्सिंग क्लब से की. यहां से ट्रेनिंग लेने वाले कई खिलाड़ी नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर स्टार बॉक्सर साबित हुए हैं.
  • विजेंदर सिंह इस क्लब के स्टार बॉक्सर हैं. विजेंदर ने 2008 के ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीता
  • विजेंदर के अलावा जितेंद्र 51 Kg और दिनेश 81 kg ने ओलिंपिक में हिस्सा ले चुके हैं.
  • कैमेस्टी कप में जीतेंद्र कुमार 51 किलो (गोल्ड) दिनेश कुमार 81 किलो ब्रॉन्ज और विजेंदर 75 किलो में गोल्ड हासिल कर चुके हैं
  • जूनियर महिला वर्ग गोल्ड हासिल करने वाली सोनम का नाम सबसे ऊपर है. सोनम ने टर्की में आयोजित ट्रेनिंग कम कम्पटीशन में गोल्ड हासिल किया था.
  • बॉक्सिंग क्लब के कोच जगदीश सिंह (द्रोणाचार्य अवार्डी) यहां के फाउंडर भी हैं.

भिवानी की 'हवा' में बॉक्सिंग
1960 के दशक में भिवानी और भारतीय मुक्केबाजी ने अंतरराष्ट्रीय सफलता के साथ पहली कोशिश की थी, जब हवा सिंह ने बैंकॉक में 1966 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता था. उन्होंने इसके चार साल बाद 1970 में भी सोने का तमगा जीता था और इस तरह से लगातार दो एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय मुक्केबाज बने थे. हवा सिंह को उनके इस शानदार प्रदर्शन के लिए 1966 में अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया था.

बॉक्सिंग में पहला ओलम्पिक पदक भिवानी के नाम
भारत को बॉक्सिंग में पहला ओलंपिक पदक दिलाने वाले विजेंदर सिंह भिवानी से ही हैं. ओलंपिक मेडलिस्ट वाले विजेंदर सिंह का गांव कालुवास भिवानी शहर से सटा हुआ है, जहां लगभग हर घर में मुक्केबाज हैं.

भिवानी की झोली में कई पुरस्कार
भिवानी का नाम मिनी क्यूबा यूं ही नहीं पड़ा, बल्कि इसके पीछे यहां के मुक्केबाजों की पिछले दो दशक की अथक मेहनत है. भिवानी ने विजेता विजेंदर सिंह, अखिल कुमार, जितेन्द्र सिंह, दिनेश कुमार, विकाश कृष्णन और राज कुमार सांगवान अंतर्राष्ट्रीय बॉक्सर देश को दिए हैं.

खेल रत्न पुरस्कार से लेकर अर्जुन अवॉर्ड जैसे सम्मानजनक पुरस्कार भिवानी जिले के मुक्केबाजों को मिले हैं. अकेले भिवानी जिले के मुक्केबाजों को 14 अर्जुन अवॉर्ड, एक खेल रत्न पुरस्कार मिल चुका हैं. देश की कुल मुक्केबाजी प्रतिभा का 50 प्रतिशत से अधिक अकेले भिवानी जिला देता हैं.

वर्ल्ड चैम्पियनशिप में खिलाड़ियों का दम
वर्ल्ड चैम्पियनशिप की बात करें तो आज तक 6 मेडल इस प्रतियोगिता में मिले हैं, जिनमें तीन अकेले भिवानी के मुक्केबाज विजेंदर सिंह, विकास कृष्णनन और मनीष कौशिक को मिले हैं. भिवानी जिले से 10 के लगभग ओलंपिक मुक्केबाज हैं.

भिवानी में 20 के करीब स्पोर्टस एकेडमी

  • भिवानी शहर में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया में 100 मुक्केबाज
  • भीम स्टेडियम में 200 मुक्केबाज
  • एबीसी एकादमी में 400 के लगभग मुक्केबाज
  • सीबीसी एकादमी में 200 के लगभग मुक्केबाज
  • कैप्टन हवासिंह बॉक्सिंग अकादमी में 200 के लगभग मुक्केबाज
  • इसके अलावा दो हजार के लगभग मुक्केबाज 20 के लगभग एकेडमी में मुक्केबाजी का अभ्यास करते हैं.

सरकारी नौकरियां मिलीं
भिवानी के मुक्केबाजों ने अपने मुक्के के दम पर पुलिस, रेलवे, भारतीय सेना सहित विभिन्न केंद्र और राज्य सरकारों ने खेल कोटे में रोजगार भी पाया है. भिवानी के मुक्केबाज विकास कृष्णनन, दिनेश सांगवान, जितेंद्र आज हरियाणा पुलिस में डीएसपी के पद पर हैं.

मशीन से भी दमदार भिवानी के खिलाड़ियों का पंच
भिवानी के अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज नीरज, प्रमोद कुमार का कहना है कि यहां के मुक्केबाजों का पंच मशीन से भी तेज चलता है. भिवानी में छोटी उम्र में ही मुक्केबाजी का अभ्यास शुरू कर देते हैं. वो दिन दूर नहीं, जब 'मिनी क्यूबा' के मुक्केबाज क्यूबा के मुक्केबाजों को पछाड़ते नजर आएंगे.

ये भी पढ़ें- भिवानी: बॉक्सर राजेश लुक्का की कहानी, चाय की दुकान से चाइना तक का सफर

भिवानी: 'मिनी क्यूबा' के नाम के मशहूर हरियाणा के भिवानी के मुक्केबाजों का दम पूरी दुनिया ने देखा है. 21वें कॉमनवेल्थ गेम्स में हरियाणा के छह बॉक्सरों में से तीन भिवानी के थे. इनमें विकास यादव को गोल्ड, मनीष कौशिक को सिल्वर और नमन ने ब्रॉन्ज जीता था.

रिपोर्ट: जाने क्यों कहते है भिवानी को मिनी क्यूूबा, देखें वीडियो

20 हजार स्पोर्ट्समैन
भिवानी में 2000 बॉक्सर और करीब 20 हजार स्पोर्ट्समैन हैं. यहां 2000 मुक्केबाज रोज बॉक्सिंग की प्रैक्टिस करते हैं. जिसके चलते भिवानी को 'मिनी क्यूबा' के नाम से भी जाना जाता है. पहले भिवानी को मंदिरों की संख्या अधिक होने के कारण छोटी काशी के नाम से जाने जाता था, लेकिन बीते दो दशकों में भिवानी के मुक्केबाजों ने दुनिया में ऐसी धूम मचाई कि भिवानी को 'मिनी क्यूबा' के नाम से जाना जाने लगा. भिवानी में हर चौथे या पांचवे घर में कोई न कोई सदस्य मुक्केबाजी का अभ्यास करता है.

भिवानी बॉक्सिंग क्लब

भिवानी को बॉक्सिंग का गढ़ बनाने में इस क्लब का बड़ा योगदान माना जाता है. इस क्लब ने देश को कई अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर दिए हैं

  • 17 फरवरी 2003 को इस बॉक्सिंग क्लब की स्थापना हुई
  • ओलिंपिक पदत विजेता विजेन्दर सिंह ने मुक्केबाजी की शुरुआत बचपन में भिवानी बॉक्सिंग क्लब से की. यहां से ट्रेनिंग लेने वाले कई खिलाड़ी नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर स्टार बॉक्सर साबित हुए हैं.
  • विजेंदर सिंह इस क्लब के स्टार बॉक्सर हैं. विजेंदर ने 2008 के ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीता
  • विजेंदर के अलावा जितेंद्र 51 Kg और दिनेश 81 kg ने ओलिंपिक में हिस्सा ले चुके हैं.
  • कैमेस्टी कप में जीतेंद्र कुमार 51 किलो (गोल्ड) दिनेश कुमार 81 किलो ब्रॉन्ज और विजेंदर 75 किलो में गोल्ड हासिल कर चुके हैं
  • जूनियर महिला वर्ग गोल्ड हासिल करने वाली सोनम का नाम सबसे ऊपर है. सोनम ने टर्की में आयोजित ट्रेनिंग कम कम्पटीशन में गोल्ड हासिल किया था.
  • बॉक्सिंग क्लब के कोच जगदीश सिंह (द्रोणाचार्य अवार्डी) यहां के फाउंडर भी हैं.

भिवानी की 'हवा' में बॉक्सिंग
1960 के दशक में भिवानी और भारतीय मुक्केबाजी ने अंतरराष्ट्रीय सफलता के साथ पहली कोशिश की थी, जब हवा सिंह ने बैंकॉक में 1966 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता था. उन्होंने इसके चार साल बाद 1970 में भी सोने का तमगा जीता था और इस तरह से लगातार दो एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय मुक्केबाज बने थे. हवा सिंह को उनके इस शानदार प्रदर्शन के लिए 1966 में अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया था.

बॉक्सिंग में पहला ओलम्पिक पदक भिवानी के नाम
भारत को बॉक्सिंग में पहला ओलंपिक पदक दिलाने वाले विजेंदर सिंह भिवानी से ही हैं. ओलंपिक मेडलिस्ट वाले विजेंदर सिंह का गांव कालुवास भिवानी शहर से सटा हुआ है, जहां लगभग हर घर में मुक्केबाज हैं.

भिवानी की झोली में कई पुरस्कार
भिवानी का नाम मिनी क्यूबा यूं ही नहीं पड़ा, बल्कि इसके पीछे यहां के मुक्केबाजों की पिछले दो दशक की अथक मेहनत है. भिवानी ने विजेता विजेंदर सिंह, अखिल कुमार, जितेन्द्र सिंह, दिनेश कुमार, विकाश कृष्णन और राज कुमार सांगवान अंतर्राष्ट्रीय बॉक्सर देश को दिए हैं.

खेल रत्न पुरस्कार से लेकर अर्जुन अवॉर्ड जैसे सम्मानजनक पुरस्कार भिवानी जिले के मुक्केबाजों को मिले हैं. अकेले भिवानी जिले के मुक्केबाजों को 14 अर्जुन अवॉर्ड, एक खेल रत्न पुरस्कार मिल चुका हैं. देश की कुल मुक्केबाजी प्रतिभा का 50 प्रतिशत से अधिक अकेले भिवानी जिला देता हैं.

वर्ल्ड चैम्पियनशिप में खिलाड़ियों का दम
वर्ल्ड चैम्पियनशिप की बात करें तो आज तक 6 मेडल इस प्रतियोगिता में मिले हैं, जिनमें तीन अकेले भिवानी के मुक्केबाज विजेंदर सिंह, विकास कृष्णनन और मनीष कौशिक को मिले हैं. भिवानी जिले से 10 के लगभग ओलंपिक मुक्केबाज हैं.

भिवानी में 20 के करीब स्पोर्टस एकेडमी

  • भिवानी शहर में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया में 100 मुक्केबाज
  • भीम स्टेडियम में 200 मुक्केबाज
  • एबीसी एकादमी में 400 के लगभग मुक्केबाज
  • सीबीसी एकादमी में 200 के लगभग मुक्केबाज
  • कैप्टन हवासिंह बॉक्सिंग अकादमी में 200 के लगभग मुक्केबाज
  • इसके अलावा दो हजार के लगभग मुक्केबाज 20 के लगभग एकेडमी में मुक्केबाजी का अभ्यास करते हैं.

सरकारी नौकरियां मिलीं
भिवानी के मुक्केबाजों ने अपने मुक्के के दम पर पुलिस, रेलवे, भारतीय सेना सहित विभिन्न केंद्र और राज्य सरकारों ने खेल कोटे में रोजगार भी पाया है. भिवानी के मुक्केबाज विकास कृष्णनन, दिनेश सांगवान, जितेंद्र आज हरियाणा पुलिस में डीएसपी के पद पर हैं.

मशीन से भी दमदार भिवानी के खिलाड़ियों का पंच
भिवानी के अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज नीरज, प्रमोद कुमार का कहना है कि यहां के मुक्केबाजों का पंच मशीन से भी तेज चलता है. भिवानी में छोटी उम्र में ही मुक्केबाजी का अभ्यास शुरू कर देते हैं. वो दिन दूर नहीं, जब 'मिनी क्यूबा' के मुक्केबाज क्यूबा के मुक्केबाजों को पछाड़ते नजर आएंगे.

ये भी पढ़ें- भिवानी: बॉक्सर राजेश लुक्का की कहानी, चाय की दुकान से चाइना तक का सफर

Intro:रिपोर्ट इन्द्रवेश भिवानी
दिनांक 12 नवंबर।
कैरिबिआई सागरीय देश क्यूबा के बाद भिवानी कहलाता है दुनिया में मिनी क्यूबा
अकेले भिवानी की 20 अकादमी में दो हजार के लगभग मुक्केबाज लेते है प्रशिक्षण
देश की मुक्केबाजी का 50 प्रतिशत परिणाम देते है भिवानी के मुक्केबाज
मुक्केबाजों के दम पर दो दशक में भिवानी कहलाने लगा दुनिया का मिनी क्यूबा
ख्ेाल रत्न से लेकर अर्जुन अवॉर्डी मुक्केबाज भिवानी में करते है प्रैक्ट्सि
कैरिबिआई सागर का मात्र 11 लाख जनसंख्या वाला क्यूबा आज विश्व में बॉक्सिंग का गढ़ कहलाता हैं। जहां के मुक्केबाज विश्व में अपने मुक्कों की धूम आज भी कायम किए हुए हैं। क्यूबा के बाद विश्व में दूसरा ऐसा शहर भिवानी है, जहां दो हजार के लगभग मुक्केबाज प्रतिदिन मुक्केबाजी की प्रैक्ट्सि करते हैं। जिसके चलते भिवानी को मिनी क्यूबा के नाम से भी जाना जाता हैं। पहले भिवानी को मंदिरों की संख्या अधिक होने के कारण छोटी काशी के नाम से जाने जाना लगा था, परन्तु बीते दो दशक में भिवानी के मुक्केबाजों ने दुनिया में ऐसी धूम मचाई कि भिवानी को मिनी क्यूबा के नाम से जाना जाने लगा। क्यूबा देश के हर घर में जहां मुुक्केबाज पाया जता है, वही भिवानी शहर के भी हर चौथे या पांचवे घर में भी कोई युवा मुक्केबाजी का अभ्यास करता हैं।
भिवानी का नाम मिनी क्यूबा यू ही नहीं पड़ा, बल्कि इसके पीछे यहां के मुक्केबाजों की पिछले दो दशक की अथक मेहनत हैं। जिसके बल पर भिवानी में बिजेंद्र, अखिल, जितेंद्र, दिनेश, मनीष, लुक्का जैसे अंतर्राष्ट्रीय बॉक्सर देश को दिए। इसके सबसे बड़े खेल पुरस्कार खेल रत्न पुरस्कार से लेकर अर्जुन अवॉर्ड जैसे अंतर्राष्ट्रीय सम्मानजनक पुरस्कार भिवानी जिले के मुक्केबाजों को मिले हैं। अकेले भिवानी जिले के मुक्केबाजों को 7 अर्जुन अवॉर्ड, एक खेल रत्न पुरस्कार मिल चुका हैं। देश की कुल मुक्केबाजी प्रतिभा का 50 प्रतिशत से अधिक अकेले भिवानी जिला देता हैं। वल्र्ड चैम्पियनशिप की बात करे तो आज तक 6 मैडल इस प्रतियोगिता में मिले हैं, जिनमें तीन अकेले भिवानी के मुक्केबाज बिजेंद्र सिंह, विकास कृष्णनन व मनीष कौशिक को मिले हैं। भिवानी जिले से 10 के लगभग ओलम्पियन मुक्केबाज है। जो ओलम्पियन प्रतियोगिताओं में न केवल हिस्सेदरी, बल्कि मैडल भी ले चुके हैं।
Body: भिवानी शहर में स्पोर्ट्स एथाोरिटी ऑफ इंडिया में 100 मुक्केबाज, भीम स्टेडियम में 200 मुक्केबाज, एबीसी अकादमी में 400 के लगभग मुक्केबाज, सीबीसी अकादमी में 200 के लगभग मुक्केबाज, कैप्टन हवासिंह बॉक्सिंग अकादमी में 200 के लगभग मुक्केबाज सहित दो हजार के लगभग मुक्केबाज 20 के लगभग अकादमियों में मुक्केबाजी का अभ्यास करते हैं। ओलम्पिक मैडलिस्ट बिजेंद्र सिंह का गांव कालुवास भिवानी शहर से सटा हुआ है, जहां लगभग हर घर में मुक्केबाज हैं। मुक्केबाजी के बल पर यहां के प्रशिक्षकों को भी द्रोणाचार्य अवॉर्ड मिल चुके हैं। भिवानी शहर के मुक्केबाजों ने अपने मुक्के के दम पर पुलिस, रेलवे, भारतीय सेना सहित विभिन्न केंद्र व राज्य सरकारों ने खेल कोटे में रोजगार भी पाया है। भिवानी के मुककेबाज बिजेंद्र, विकास कृष्णनन, दिनेश सांगवान, जितेंद्र आज हरियाणा पुलिस में डीएसपी के पद पर है। ओलम्पियन मुक्केबाज बिजेंद्र तो आज पुलिस की नौकरी से विराम लेकर फिल्म स्टार भी बन चुका है।
Conclusion: भिवानी के अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाज नीरज, प्रमोद कुमार का कहना है कि यहां के मुक्केबाजों का पंच मशीन से भी तेज चलता है। जिसके चलते पूरी दुनिया में भिवानी के मुक्केबाजों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मैडल लेकर अपने आप को सिद्ध करने का काम किया हैं। भिवानी में छोटी उम्र में ही मुक्केबाज अभ्यास शुरू कर देते हैं तथा आने वाले समय में भिवानी के मुक्केबाजों का दबदबा दुनिया में बढ़ेगा। वह दिन दूर नहीं, जब मिनी क्यूबा के मुक्केबाज क्यूबा के मुक्केबाजों को पछाड़ते नजर आएंगे। मुक्केबाज प्रशिक्षक विष्णु व साई हॉस्टल के इंचार्ज कुलदीप का कहना है कि भिवानी का नाम मिनी क्यूबा यू ही नहीं पड़ा, बल्कि यहां के मुक्केबाजों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो परिणाम दिए है, उसी के चलते भिवानी को मिनी क्यूबा की उपाधि मिली हैं। क्यूबा देश में 16 हजार के लगभग मुक्केबाज है। जबकि भिवानी में भी दो हजार के लगभग मुक्केबाज प्रतिदिन मुक्केबाजी की प्रैक्ट्सि करते हैं। जो विश्व में क्यूबा के बाद सबसे बड़ा मुक्केबाजी का हब हैं।
बाईट : विष्णु मुक्केबाज प्रशिक्षक, कुलदीप इंचार्ज साई हॉस्टल एवं नीरज व प्रमोद अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाज।

Last Updated : Nov 16, 2019, 5:11 PM IST
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