ETV Bharat / city

हरियाणा के इस गांव में लोगों को मरने के बाद भी नहीं मिलता अपनों का कंधा, पर क्यों?

हरियाणा के भिवानी जिले के गांव प्रेमनगर से जो तस्वीरें सामने आई हैं वो सत्ता, सिस्टम व समाज को हिला कर रख देंगी. यहां लोग चाह कर भी अपनों की अर्थी को कंधा नहीं दे पाते.

Cremation Problem bhiwani
Cremation Problem bhiwani
author img

By

Published : Aug 30, 2020, 4:41 PM IST

भिवानी: जिले के गांव प्रेमनगर की तस्वीरें आधुनिक भारत को शर्मसार कर देंगी. सत्ता, सिस्टम व समाज को हिला कर रख देंगी और सोचने पर मजबूर कर देंगी कि क्या आज के आधुनिक भारत और नंबर वन कहलाने वाले हरियाणा के गांवों में ऐसे हालात भी हैं. लोग इतने मजबूर कि मुर्दे तक को कंधा ना दे पाएं.

चाह कर भी अपनों को कंधा नहीं दे पाते यहां लोग

भिवानी जिले के गांव प्रेमनगर के श्मशान घाट के रास्ते पर कई दिनों से पानी भरा हुआ है और ये हालात हर साल महीनों तक रहते हैं. हर कोई चाहता है कि उसकी औलाद बुढ़ापे में उसका सहारा बने और जब उसकी मौत हो तो उसकी औलाद व चाहने वाले उसे कंधा दें, लेकिन यहां लोग चाह कर भी अपनों को कंधा नहीं दे पा रहे.

हरियाणा के इस गांव में लोगों को मरने के बाद भी नहीं मिलता अपनों का कंधा, पर क्यों?

अपनों को कंधा ना दे पाने का कारण है श्मशान घाट को जाने वाले ये कच्चा और पानी से भरा रास्ता. बीती रात यहां 62 वर्षीय हवासिंह की मौत हो गई, लेकिन श्मशान घाट के रास्ते पर पानी भरा होने के कारण उनके शव को कंधा नहीं दिया गया, बल्कि ट्रैक्टर से उनके शव को अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट ले जाया गया.

ये भी पढ़ें- कोरोना काल: लोगों में तनाव की समस्या से आत्महत्या और घरेलू हिंसा के मामलों में हुई बढ़ोतरी

लोगों की मानें तो यहां अक्सर मुर्दे गिरने या उनके अंतिम संस्कार में जाने वाले लोगों को गिरने व चोट लगने का डर बना रहता है. कई बार टैक्ट्रर जिसमें मुर्दे को ले जाया जाता है, उसके धंसने का भी डर रहता है. पूर्व सरपंच संदीप कुमार ने बताया कि श्मशान घाट के रास्ते में जलभराव के चलते लोग मुर्दे को कंधा तक नहीं दे पाते. शायद अनुसूचित जाति के श्मशान घाट होने के चलते सरपंच, विधायक या डीसी तक समाधान करने में रूची नहीं लेते.

किराये के ट्रैक्टर पर ले जाते हैं मृतकों को श्मशान

वहीं मृतक हवासिंह के भतीजे दर्शन सिंह ने बताया कि किसी की मौत होने पर मुर्दे को श्मशान घाट तक ले जाने के लिए ट्रैक्टर किराये पर लाना पड़ता है. ट्रैक्टर ना मिलने तक मुर्दे को घर पर ही रखना पड़ता है, पर वो चाह कर भी मुर्दे को कंधा नहीं दे पाते.

इनका आरोप है कि इस बारे में सरपंच से लेकर डीसी व विधायक तक को अवगत करवाया गया, लेकिन किसी ने कोई समाधान नहीं किया. ये लोग इस रास्ते को पक्का करवाने के लिए कई महीनों से प्रशासन के सामने गिड़गिड़ा रहे हैं.

आखिर कब बदलेंगे यहां के हालात ?

सरकार चाहे कोई हो, वो अक्सर गांवों का विकास शहरों की तर्ज पर करने के लंबे-चौड़े वायदे करती है, लेकिन आधुनिक भारत में मुर्दे को कंधा ना मिले तो सत्ता, सिस्टम व समाज पर सवाल खड़े होना लाजमी है. अब देखना होगा कि प्रशासन इस समस्या का समाधान कब तक करता है, या यहां के लोग आगे भी अपनों को कंधा देने से ऐसे ही वंचित रहेंगे.

ये भी पढ़ें- भिवानी: खानक गांव में पाइपलाइन टूटने से पेयजल का संकट गहराया

भिवानी: जिले के गांव प्रेमनगर की तस्वीरें आधुनिक भारत को शर्मसार कर देंगी. सत्ता, सिस्टम व समाज को हिला कर रख देंगी और सोचने पर मजबूर कर देंगी कि क्या आज के आधुनिक भारत और नंबर वन कहलाने वाले हरियाणा के गांवों में ऐसे हालात भी हैं. लोग इतने मजबूर कि मुर्दे तक को कंधा ना दे पाएं.

चाह कर भी अपनों को कंधा नहीं दे पाते यहां लोग

भिवानी जिले के गांव प्रेमनगर के श्मशान घाट के रास्ते पर कई दिनों से पानी भरा हुआ है और ये हालात हर साल महीनों तक रहते हैं. हर कोई चाहता है कि उसकी औलाद बुढ़ापे में उसका सहारा बने और जब उसकी मौत हो तो उसकी औलाद व चाहने वाले उसे कंधा दें, लेकिन यहां लोग चाह कर भी अपनों को कंधा नहीं दे पा रहे.

हरियाणा के इस गांव में लोगों को मरने के बाद भी नहीं मिलता अपनों का कंधा, पर क्यों?

अपनों को कंधा ना दे पाने का कारण है श्मशान घाट को जाने वाले ये कच्चा और पानी से भरा रास्ता. बीती रात यहां 62 वर्षीय हवासिंह की मौत हो गई, लेकिन श्मशान घाट के रास्ते पर पानी भरा होने के कारण उनके शव को कंधा नहीं दिया गया, बल्कि ट्रैक्टर से उनके शव को अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट ले जाया गया.

ये भी पढ़ें- कोरोना काल: लोगों में तनाव की समस्या से आत्महत्या और घरेलू हिंसा के मामलों में हुई बढ़ोतरी

लोगों की मानें तो यहां अक्सर मुर्दे गिरने या उनके अंतिम संस्कार में जाने वाले लोगों को गिरने व चोट लगने का डर बना रहता है. कई बार टैक्ट्रर जिसमें मुर्दे को ले जाया जाता है, उसके धंसने का भी डर रहता है. पूर्व सरपंच संदीप कुमार ने बताया कि श्मशान घाट के रास्ते में जलभराव के चलते लोग मुर्दे को कंधा तक नहीं दे पाते. शायद अनुसूचित जाति के श्मशान घाट होने के चलते सरपंच, विधायक या डीसी तक समाधान करने में रूची नहीं लेते.

किराये के ट्रैक्टर पर ले जाते हैं मृतकों को श्मशान

वहीं मृतक हवासिंह के भतीजे दर्शन सिंह ने बताया कि किसी की मौत होने पर मुर्दे को श्मशान घाट तक ले जाने के लिए ट्रैक्टर किराये पर लाना पड़ता है. ट्रैक्टर ना मिलने तक मुर्दे को घर पर ही रखना पड़ता है, पर वो चाह कर भी मुर्दे को कंधा नहीं दे पाते.

इनका आरोप है कि इस बारे में सरपंच से लेकर डीसी व विधायक तक को अवगत करवाया गया, लेकिन किसी ने कोई समाधान नहीं किया. ये लोग इस रास्ते को पक्का करवाने के लिए कई महीनों से प्रशासन के सामने गिड़गिड़ा रहे हैं.

आखिर कब बदलेंगे यहां के हालात ?

सरकार चाहे कोई हो, वो अक्सर गांवों का विकास शहरों की तर्ज पर करने के लंबे-चौड़े वायदे करती है, लेकिन आधुनिक भारत में मुर्दे को कंधा ना मिले तो सत्ता, सिस्टम व समाज पर सवाल खड़े होना लाजमी है. अब देखना होगा कि प्रशासन इस समस्या का समाधान कब तक करता है, या यहां के लोग आगे भी अपनों को कंधा देने से ऐसे ही वंचित रहेंगे.

ये भी पढ़ें- भिवानी: खानक गांव में पाइपलाइन टूटने से पेयजल का संकट गहराया

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.