चरखी दादरी: भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से भाजपा ने सांसद धर्मबीर सिंह को एक बार फिर से मैदान में उतारा है. कांग्रेस से श्रुति चौधरी मैदान में होगी. हालांकि अभी अधिकारिक घोषणा नहीं हुई है. जजपा की ओर से नैना चौटाला और इनेलो सुनैना चौटाला को मैदान में उतारने की तैयारी कर रही हैं. अगर तीनों पार्टियों द्वारा महिलाओं को मैदान में उतरा गया तो रोचक मुकाबला देखने को मिलेगा.
हरियाणा में भिवानी लोकसभा क्षेत्र का चुनाव कई बार देशभर में चर्चित भी रहा और तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों की प्रतिष्ठा भी कई बार दांव पर लगी. परिसीमन होने से पूर्व भिवानी संसदीय क्षेत्र का एक चुनाव ऐसा भी रहा है जिस पर उस समय न केवल पूरे प्रदेश के निगाहें थी बल्कि देशभर के लिए वह खासी दिलचस्पियों का केन्द्र बना रहा.
2004 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा के तीन लालों के बेटे कुलदीप बिश्नोई, अजय चौटाला व सुरेंद्र सिंह यहां से मैदान में उतरे थे. इस दौरान प्रदेश के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी. त्रिकोणीय मुकाबले में कुलदीप बिश्रोई ने बाजी मारते हुए विजयी हासिल की थी.
भिवानी संसदीय सीट पर दादरी व बाढड़ा विधानसभा के मतदाताओं का रूख जिस ओर पलटा है, उसी प्रत्याशी ने जीत का मात्था चूमा है. भिवानी-महेंद्रगढ़ से भाजपा द्वारा धर्मबीर सिंह को मैदान में उतारा गया है. लोसपा-बसपा के टिकट पर रमेश पायलट मैदान में हैं.
कांग्रेस की ओर से पूर्व सांसद श्रुति चौधरी का नाम फाइनल है. परिर्वतन यात्रा के दौरान गुलाम नबी आजाद व पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने तो श्रुति के लिए वोट की अपील भी की थी. सीएलपी लीडर किरण चौधरी ने तो बेटी श्रुति की टिकट पक्की मानकर प्रचार शुरू किया हुआ है.
इस सीट से इनेलो बड़ा गेम खेलते हुए सुनैना चौटाला को उतार सकती है क्योंकि इनेलो महिला सेल की महासचिव सुनैना 14 अप्रैल को भिवानी से महिला सम्मेलन की शुरूआत कर रही हैं. वर्ष 2014 में इनेलो द्वारा राव बहादुर सिंह को प्रत्याशी बनाया गया था. अब इनेलो व जजपा दो फाड़ होने पर इनेलो सुनैना चौटाला पर दांव खेल सकती है.
कई विधानसभा क्षेत्रों के जजपा कार्यकर्ताओं ने भिवानी-महेंद्रगढ़ से नैना चौटाला के चुनाव लड़ने की मांग की है. कयास तो ये भी लगाए जा रहे हैं कि महिला पहलवान बबीता फोगाट को मैदान में उतारा जा सकता है. अगर नैना चौटाला भी मैदान में उतरती हैं तो यहां महिलाओं के बीच रोचक मुकाबला देखने को मिलेगा.
हालांकि अन्य पार्टियों अभी जीतने वाले उम्मीदवारों को उतारने की रणनीति बना रही है. इस बार भी वर्ष 2004 के चुनाव की तरह दिग्गज राजनीतिक घरानों की प्रतिष्ठा दांव पर रहेगी.