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रजवाड़े दौर में जब गूगल मैप नहीं था तब राहगीरों को ऐसे रास्ता दिखाती थी अंबाला की कोस मीनारें - कोस मीनार क्या है

अंबाला में शेर शाह सूरी द्वारा बनवाई गई कोस मीनारें मौजूद हैं जो उस वक्त राहगीरों से लेकर फौज तक के लिए कई प्रकार से सहायक होती थीं.

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Published : Mar 22, 2021, 2:26 PM IST

Updated : Mar 22, 2021, 3:03 PM IST

अंबालाः भारत का इतिहास बेहद पुराना और शानदार है. कितने ही राजाओं और कितने ही योद्धाओं ने अपनी वीरता से शौर्य पाया है. और उन राजाओं ने कुछ ऐसे काम किये जो बाद में उनकी यादों के तौर पर देख गये. अंबाला में भी एरशाह सूरी ने एक ऐसी याद छोड़ी है जो आज भी मध्यकाल की यादें ताजा कर देती है. अंबाला में तीन कोस मीनारें बनी हैं.

पहली शहर की कपड़ा मार्केट में, दूसरी अंबाल छावनी की गांधी मार्केट में और तीसरी अंबाला छावनी की मोड़ा अनाज मंडी के पास. ये कौस मीनारें 70 फीट ऊंची हैं. जिनका निर्माण शेरशाह सूरी के वक्त में किया गया था. जिनका काम था राहगीरों और फौज को रास्ता दिखाना.

अंबाला में शेरशाह सूरी द्वारा बनवाई कोस मीनार फौज के इस काम आती थी

क्या कहते हैं इतिहासकार ?

इतिहासकार डॉ. उदयवीर सिंह बताते हैं कि व्यापारियों और फौज के दस्तों को सही मार्ग दिखाने के लिए इन कोस मीनारों का निर्माण किया गया था. इतना ही नहीं इन कोस मीनारों के नजदीक सराय भी बनाई गई थी, ताकि राहगीर विश्राम कर सकें. इसके अलावा हर कोस मीनार की नंबरिंग की गई थी, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि वह कहां और कौन सी जगह पहुंचे है. उन्होंने बताया कि कोस मीनारों की कुल संख्या को लेकर भी अलग-अलग मत हैं कुछ का कहना है कि इनकी कुल संख्या 1700 है तो कुछ 2500 बताते हैं.

ये भी पढ़ेंः क्या आर्य बाहर से आए? हरियाणा के राखीगढ़ी ने खोले प्राचीन मानव सभ्यता के नए राज

क्या बोले व्यापारी ?

जब हमारी टीम ने अंबाला शहर की मशहूर होलसेल कपड़ा मार्केट के व्यापारियों से बातचीत की तो उन्होंने माना कि अवैध अतिक्रमण की वजह से कपड़ा मार्केट में स्थित कोस मीनार के बारे में कोई नहीं जानता और ना ही आम जन का ध्यान ये मीनार अपनी ओर आकर्षित कर पाती है. इसके अलावा कोस मीनार के बारे में वह खुद भी कुछ नहीं जानते.

ये भी पढ़ेंः मुगलकालीन इतिहास समेटे हुए है कैथल की बावड़ी, रखरखाव के अभाव में हुई खंडहर

इस सब के बाद भी उन्होंने सरकार से अपील की, कि इन्हें मेंटेन करने का काम करें और कोस मीनार के इर्द-गिर्द हुए अवैध अतिक्रमण को हटाया जाए. हमारे देश में बहुत सी ऐतिहासिक धरोहरें ऐसे ही अपना अस्तित्व खो रही हैं जरूरत है उन्हें सहेजने की ताकि आने वाली पीढ़ी हमारी ऐतिहासिक भव्यता को देख सके.

हरियाणा से जुड़ा है शेर शाह सूरी का इतिहास

शेरशाह का जन्म 1486 के आस-पास बिहार में हुआ था. हालांकि इसके जन्म वर्ष और जगह दोनों को लेकर मतभेद है. कई जगह ये कहा जाता है कि शेरशाह का जन्म हिसार, हरियाणा में हुआ था. साल भी बदल जाता है. शेरशाह का नाम फरीद खान हुआ करता था. इनके पिताजी का नाम हसन खान था. हसन खान बहलोल लोदी के यहां काम करते थे. शेरशाह के दादा इब्राहिम खान सूरी नारनौल के जागीरदार हुआ करते थे.

ये भी पढ़ेंः सिरसा के थेहड़ का क्या है इतिहास? यहां मिले थे हड़प्पा काल के अवशेष

फरीद जब बड़ा हो रहा था, तभी उसने एक शेर मार डाला था. और इसी वजह से फरीद का नाम शेर खान पड़ गया. जहां शेर मारा था, उस जगह का नाम शेरघाटी पड़ गया. शेर खान के 8 भाई थे. सौतली मांएं भी थीं. शेर खान की घर में बनी नहीं, क्योंकि वो महत्वाकांक्षी था. वो घर छोड़कर जौनपुर के गवर्नर जमाल खान की सर्विस में चला गया. वहां से फिर वो बिहार के गवर्नर बहार खान लोहानी के यहां चला गया. यहां पर शेर खान की ताकत और बुद्धि को पहचाना गया. बहार खान से अनबन होने पर शेर खान ने बाबर की सेना में काम करना शुरू कर दिया. वहीं पर उसने नई तकनीक सीखी थी जिसके दम पर बाबर ने 1526 में बहलोल लोदी के बेटे इब्राहिम लोदी और बाद में राणा सांगा को हराया था. यहां से निकलकर फिर वो बिहार का गवर्नर बन गया.

अंबालाः भारत का इतिहास बेहद पुराना और शानदार है. कितने ही राजाओं और कितने ही योद्धाओं ने अपनी वीरता से शौर्य पाया है. और उन राजाओं ने कुछ ऐसे काम किये जो बाद में उनकी यादों के तौर पर देख गये. अंबाला में भी एरशाह सूरी ने एक ऐसी याद छोड़ी है जो आज भी मध्यकाल की यादें ताजा कर देती है. अंबाला में तीन कोस मीनारें बनी हैं.

पहली शहर की कपड़ा मार्केट में, दूसरी अंबाल छावनी की गांधी मार्केट में और तीसरी अंबाला छावनी की मोड़ा अनाज मंडी के पास. ये कौस मीनारें 70 फीट ऊंची हैं. जिनका निर्माण शेरशाह सूरी के वक्त में किया गया था. जिनका काम था राहगीरों और फौज को रास्ता दिखाना.

अंबाला में शेरशाह सूरी द्वारा बनवाई कोस मीनार फौज के इस काम आती थी

क्या कहते हैं इतिहासकार ?

इतिहासकार डॉ. उदयवीर सिंह बताते हैं कि व्यापारियों और फौज के दस्तों को सही मार्ग दिखाने के लिए इन कोस मीनारों का निर्माण किया गया था. इतना ही नहीं इन कोस मीनारों के नजदीक सराय भी बनाई गई थी, ताकि राहगीर विश्राम कर सकें. इसके अलावा हर कोस मीनार की नंबरिंग की गई थी, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि वह कहां और कौन सी जगह पहुंचे है. उन्होंने बताया कि कोस मीनारों की कुल संख्या को लेकर भी अलग-अलग मत हैं कुछ का कहना है कि इनकी कुल संख्या 1700 है तो कुछ 2500 बताते हैं.

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क्या बोले व्यापारी ?

जब हमारी टीम ने अंबाला शहर की मशहूर होलसेल कपड़ा मार्केट के व्यापारियों से बातचीत की तो उन्होंने माना कि अवैध अतिक्रमण की वजह से कपड़ा मार्केट में स्थित कोस मीनार के बारे में कोई नहीं जानता और ना ही आम जन का ध्यान ये मीनार अपनी ओर आकर्षित कर पाती है. इसके अलावा कोस मीनार के बारे में वह खुद भी कुछ नहीं जानते.

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इस सब के बाद भी उन्होंने सरकार से अपील की, कि इन्हें मेंटेन करने का काम करें और कोस मीनार के इर्द-गिर्द हुए अवैध अतिक्रमण को हटाया जाए. हमारे देश में बहुत सी ऐतिहासिक धरोहरें ऐसे ही अपना अस्तित्व खो रही हैं जरूरत है उन्हें सहेजने की ताकि आने वाली पीढ़ी हमारी ऐतिहासिक भव्यता को देख सके.

हरियाणा से जुड़ा है शेर शाह सूरी का इतिहास

शेरशाह का जन्म 1486 के आस-पास बिहार में हुआ था. हालांकि इसके जन्म वर्ष और जगह दोनों को लेकर मतभेद है. कई जगह ये कहा जाता है कि शेरशाह का जन्म हिसार, हरियाणा में हुआ था. साल भी बदल जाता है. शेरशाह का नाम फरीद खान हुआ करता था. इनके पिताजी का नाम हसन खान था. हसन खान बहलोल लोदी के यहां काम करते थे. शेरशाह के दादा इब्राहिम खान सूरी नारनौल के जागीरदार हुआ करते थे.

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फरीद जब बड़ा हो रहा था, तभी उसने एक शेर मार डाला था. और इसी वजह से फरीद का नाम शेर खान पड़ गया. जहां शेर मारा था, उस जगह का नाम शेरघाटी पड़ गया. शेर खान के 8 भाई थे. सौतली मांएं भी थीं. शेर खान की घर में बनी नहीं, क्योंकि वो महत्वाकांक्षी था. वो घर छोड़कर जौनपुर के गवर्नर जमाल खान की सर्विस में चला गया. वहां से फिर वो बिहार के गवर्नर बहार खान लोहानी के यहां चला गया. यहां पर शेर खान की ताकत और बुद्धि को पहचाना गया. बहार खान से अनबन होने पर शेर खान ने बाबर की सेना में काम करना शुरू कर दिया. वहीं पर उसने नई तकनीक सीखी थी जिसके दम पर बाबर ने 1526 में बहलोल लोदी के बेटे इब्राहिम लोदी और बाद में राणा सांगा को हराया था. यहां से निकलकर फिर वो बिहार का गवर्नर बन गया.

Last Updated : Mar 22, 2021, 3:03 PM IST
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