अंबाला: जिले की अंबाला कैंट सीट सियासी लिहाज से बेहद खास मानी जाती है. यहां के विधायक अनिल विज के कारण सियासत में इस सीट का दबदबा 2014 के बाद से और बढ़ गया है. 2014 के बाद बढ़ा अंबाला का दबदबा क्या कायम रहेगा और क्या कहते हैं मौजूदा समीकरण एक नजर डालते हैं.
सुषमा स्वराज ने यहां से किया था आगाज
ये सीट हरियाणा के सबसे पुराने विधानसभा क्षेत्रों में से एक है और राजनैतिक तौर पर बेहद अहम मानी जाती है. ये सीट कई बड़े राजनेताओं के कारण भी जानी जाती है. पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. सुषमा स्वराज ने इसी सीट से अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत की थी. 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर उन्होंने चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. इसके बाद उन्हें राज्य सरकार में मंत्री बनाया गया था. 1987 में एक बार फिर यहां से जीत दर्ज करने के बाद वो राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हो गई थीं.
भाजपा की पकड़ है मजबूत
हरियाणा गठन के समय से अंबाला छावनी प्रदेश की उन सीटों में से एक है जहां पर भाजपा की शुरू से मजबूत पकड़ रही है. अब तक 12 बार यहां चुनाव हुए जिसमें सबसे ज्यादा कांग्रेस को 5 बार जीत मिली है लेकिन इसके अलावा बीजेपी और संघ को ही यहां से सफलता मिली है. ये सीट अंबाला लोकसभा क्षेत्र की सबसे अहम सीट है. आंकड़ों की मानें तो यहां हर समुदाय के मतदाता मौजूद हैं. सबसे ज्यादा संख्या यहां एससी और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की है. इसके अलावा बनिया, पंजाबी, सिख भी यहां अच्छी खासी संख्या में हैं.
पंजाबी समुदाय का दबदबा है ज्यादा
अंबाला कैंट विधानसभा का सियासी इतिहास बताता है कि यहां पंजाबी विधायक सबसे ज्यादा बार बने हैं. जिसमें अनिल विज सबसे ज्यादा बार चुने गए. एक तरह से ये कह सकते हैं कि यहां पंजाबी वर्ग का वर्चस्व रहा है. यहां अब तक हुए चुनावों में से 10 बार पंजाबी समुदाय से विधायक बने. दो बार सुषमा स्वराज (ब्राह्मण) और एक बार देवेंद्र बंसल (बनिया) यहां से चुनाव जीते.
अनिल विज हैं यहां के 'गब्बर'
बात अगर मौजूदा विधायक अनिल विज की करें तो उनके कारण 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद से इस सीट का महत्व और बढ़ गया है. अनिल विज हरियाणा के तेज तर्रार और सबसे विवादित कैबिनेट मंत्री रहे हैं, वो इसलिए क्योंकि वो सीएम मनोहर लाल खट्टर का विरोध करने से भी कभी पीछे नहीं हटे. वे हरियाणा में बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं. 2009 की विधानसभा में पार्टी के 4 विधायकों में एक वे भी थे. 2014 में भी वे पार्टी के सबसे मजबूत उम्मीदवारों में से थे. 1990 में जब उन्होंने यहां से पहले चुनाव लड़ा था तब से हर चुनाव में या तो जीते हैं या दूसरे स्थान पर रहे हैं.
1990 में सुषमा स्वराज के राज्यसभा में चुने जाने के बाद उपचुनाव में पहली बार अनिल विज को अवसर मिला था. 1991 का चुनाव भी भाजपा की टिकट पर लड़ा पर हार गए. इसके बाद उन्होंने 1996 और 2000 का चुनाव निर्दलीय लड़ा और जीते. 2005 में अनिल विज आजाद लड़ते हुए कांग्रेस के डी.बंसल से सिर्फ 615 वोटों से हार गए. 2009 में 18 साल बाद विज ने बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. इसके बाद 2014 के चुनाव में भी वे यहां से विधायक चुने गए.
2014 विधानसभा चुनाव का परिणाम
2014 के चुनाव में अंबाला कैंट में 1,74,704 मतदातता थे जिसमें से 1,26,888 लोगों ने मतदान किया था. यहां कुल 72.63 प्रतिशत मतदान हुआ था. बीजेपी के अनिल विज ने कांग्रेस के निर्मल सिंह को हराया था. विज को 66605 वोट मिले थे और निर्मल सिंह को 51143 वोट प्राप्त हुए थे. वहीं इनेलो प्रत्याशी सूरज प्रकाश जिंदल 5407 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर थे.
अंबाला कैंट विधानसभा का इतिहास
ये विधानसभा क्षेत्र अंबाला जिले का हिस्सा है. हरियाणा का ये जिला पड़ोसी राज्य पंजाब से सटा हुआ है. इस क्षेत्र में भारतीय थल सेना और वायु सेना के बड़े सेंटर होने के कारण इसे अंबाला कैंट विधानसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता है. इस क्षेत्र का नाम अंबा राजपूत के नाम पर रखा गया है. माना जाता है अंबाला शहर को उन्होंने ही 14वीं शताब्दी में बसाया था. वहीं, एक और मान्यता है कि यहां पर हिंदू देवी मां अंबा का भव्य मंदिर था, जिसके नाम पर इसे अंबाला के नाम से जाना गया.
कुल मतदाता- 195588
पुरुष- 104184
महिला- 91398
ट्रांसजेंडर- 6
अंबाला कैंट से कब कौन बना विधायक-
1967 डीआर आनन्द कांग्रेस
1968 भगवान दास भाजपा
1972 हंसराज सूरी कांग्रेस
1977 सुषमा स्वराज जनता पार्टी
1982 रामदास धमीजा कांग्रेस
1987 सुषमा स्वराज भाजपा
1991 ब्रिज आनन्द कांग्रेस
1996 अनिल विज निर्दलीय
2000 अनिल विज निर्दलीय
2005 देवेंद्र बंसल कांग्रेस
2009 अनिल विज भाजपा
2014 अनिल विज भाजपा